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ਤੂ ਦਾਤਾ ਹਮ ਸੇਵਕ ਤੇਰੇ ॥
तू हमारा दाता हैं और हम तेरे सेवक हैं।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਿ ਦੀਜੈ ਗੁਰਿ ਗਿਆਨ ਰਤਨੁ ਦੀਪਾਇਆ ॥੬॥
कृपा करके नामामृत प्रदान करो, गुरु से ज्ञान रत्न का दीपक आलोकित किया है॥ ६॥
ਪੰਚ ਤਤੁ ਮਿਲਿ ਇਹੁ ਤਨੁ ਕੀਆ ॥
पॉच तत्वों से यह तन बनाया है,
ਆਤਮ ਰਾਮ ਪਾਏ ਸੁਖੁ ਥੀਆ ॥
उसमें आत्मा के निवास से सुख उत्पन्न हो गया है।
ਕਰਮ ਕਰਤੂਤਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਫਲੁ ਲਾਗਾ ਹਰਿ ਨਾਮ ਰਤਨੁ ਮਨਿ ਪਾਇਆ ॥੭॥
शुभ कमों के फलस्वरूप उसमें अमृत नाम रूपी फल लग गया है और रत्न सरीखा हरि-नाम मन में ही पा लिया है॥ ७॥
ਨਾ ਤਿਸੁ ਭੂਖ ਪਿਆਸ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ॥
जिसका मन हरि से संतुष्ट हो गया है, उसे कोई भूख-प्यारा प्रभावित नहीं करती और
ਸਰਬ ਨਿਰੰਜਨੁ ਘਟਿ ਘਟਿ ਜਾਨਿਆ ॥
उसने घट-घट में व्याप्त मायातीत ईश्वर द्वारा को जान लिया है।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਰਸਿ ਰਾਤਾ ਕੇਵਲ ਬੈਰਾਗੀ ਗੁਰਮਤਿ ਭਾਇ ਸੁਭਾਇਆ ॥੮॥
वह वैराग्यगन होकर केवल अमृत रस में ही लीन रहता है और गुरु के उपदेश शोभा का पात्र बन गया है॥ ८॥
ਅਧਿਆਤਮ ਕਰਮ ਕਰੇ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ॥
जो दिन-रात आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति का कर्म करता है,
ਨਿਰਮਲ ਜੋਤਿ ਨਿਰੰਤਰਿ ਜਾਤੀ ॥
उसने निर्मल ज्योति को जान लिया है।
ਸਬਦੁ ਰਸਾਲੁ ਰਸਨ ਰਸਿ ਰਸਨਾ ਬੇਣੁ ਰਸਾਲੁ ਵਜਾਇਆ ॥੯॥
उसने आत्मिक रस में लीन होकर रसना से रसीले शब्द द्वारा रसीली ध्वनि वाली बाँसुरी को बजाया है॥ ९॥
ਬੇਣੁ ਰਸਾਲ ਵਜਾਵੈ ਸੋਈ ॥
वही रसीली बाँसुरी बजाता है
ਜਾ ਕੀ ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਸੋਝੀ ਹੋਈ ॥
जिसे तीनों लोकों का ज्ञान हो जाता है।
ਨਾਨਕ ਬੂਝਹੁ ਇਹ ਬਿਧਿ ਗੁਰਮਤਿ ਹਰਿ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਲਿਵ ਲਾਇਆ ॥੧੦॥
हे नानक ! गुरु-मतानुसार इस विधि को बूझ लो, क्योंकि इससे ही राम नाम में ध्यान लगता है।॥ १०॥
ਐਸੇ ਜਨ ਵਿਰਲੇ ਸੰਸਾਰੇ ॥
संसार में ऐसे विरले ही व्यक्ति हैं,
ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰਹਿ ਰਹਹਿ ਨਿਰਾਰੇ ॥
जो शब्द-गुरु का चिंतन करके निर्लिप्त रहते हैं।
ਆਪਿ ਤਰਹਿ ਸੰਗਤਿ ਕੁਲ ਤਾਰਹਿ ਤਿਨ ਸਫਲ ਜਨਮੁ ਜਗਿ ਆਇਆ ॥੧੧॥
वे स्वयं तो पार होते ही हैं, संगत में आने वालों का वंशावलि सहित उद्धार कर देते हैं और जग में उनका जन्म सफल हुआ है॥ ११॥
ਘਰੁ ਦਰੁ ਮੰਦਰੁ ਜਾਣੈ ਸੋਈ ॥
वही प्रभु के शरीर रूपी घर, द्वार, मन्दिर रूपी दसम द्वार को जान लेता है,"
ਜਿਸੁ ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਤੇ ਸੋਝੀ ਹੋਈ ॥
जिसे पूर्ण गुरु से ज्ञान प्राप्त हो जाता है।
ਕਾਇਆ ਗੜ ਮਹਲ ਮਹਲੀ ਪ੍ਰਭੁ ਸਾਚਾ ਸਚੁ ਸਾਚਾ ਤਖਤੁ ਰਚਾਇਆ ॥੧੨॥
महल का मालिक शरीर रूपी गढ़ में ही रहता है और उस परम-सत्य ने हृदय को सच्चा तख्त बनाया हुआ है।॥ १२॥
ਚਤੁਰ ਦਸ ਹਾਟ ਦੀਵੇ ਦੁਇ ਸਾਖੀ ॥
चौदह भवन एवं सूर्य-चाँद रूपी दो दीये साक्षी हैं कि
ਸੇਵਕ ਪੰਚ ਨਾਹੀ ਬਿਖੁ ਚਾਖੀ ॥
सेवक-पंचों ने माया रूपी विष को नहीं चखा।
ਅੰਤਰਿ ਵਸਤੁ ਅਨੂਪ ਨਿਰਮੋਲਕ ਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਹਰਿ ਧਨੁ ਪਾਇਆ ॥੧੩॥
उनके हृदय में अनुपम अमूल्य नाम-वस्तु विद्यमान है और गुरु से मिलकर उन्होंने हरिनाम रूपी धन पा लिया है॥ १३॥
ਤਖਤਿ ਬਹੈ ਤਖਤੈ ਕੀ ਲਾਇਕ ॥
हृदय रूपी तख्त पर वही बैठता है जो योग्य होता है।
ਪੰਚ ਸਮਾਏ ਗੁਰਮਤਿ ਪਾਇਕ ॥
गुरु ये सेवक पंच सत्य में ही लीन रहते हैं।
ਆਦਿ ਜੁਗਾਦੀ ਹੈ ਭੀ ਹੋਸੀ ਸਹਸਾ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਇਆ ॥੧੪॥
आदि-जुगादि से एक ईश्वर ही है, अब भी है, भविष्य में भी उसका ही अस्तित्व होगा। जिसने इस रहस्य को जान लिया है, उसका भ्रम एवं सन्देह दूर हो गया है॥ १४॥
ਤਖਤਿ ਸਲਾਮੁ ਹੋਵੈ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ॥
हृदय रूपी तख्त पर उस विराजमान को दिन-रात नमन होता है।
ਇਹੁ ਸਾਚੁ ਵਡਾਈ ਗੁਰਮਤਿ ਲਿਵ ਜਾਤੀ ॥
ईश्वर का यह बड़प्पन है, गुरु की शिक्षा द्वारा ध्यान लगाने से ही उसे जाना जाता है।
ਨਾਨਕ ਰਾਮੁ ਜਪਹੁ ਤਰੁ ਤਾਰੀ ਹਰਿ ਅੰਤਿ ਸਖਾਈ ਪਾਇਆ ॥੧੫॥੧॥੧੮॥
हे नानक ! राम नाम जपने से ही भवसागर से पार हुआ जा सकता है और अन्त में वही सहायक साथी प्राप्त होता है॥१५॥१॥१८॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੧ ॥
मारू महला १॥
ਹਰਿ ਧਨੁ ਸੰਚਹੁ ਰੇ ਜਨ ਭਾਈ ॥ ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵਿ ਰਹਹੁ ਸਰਣਾਈ ॥
हे मेरे भाई, भक्तजनो ! हरि-नाम धन संचय करो; सतगुरु की सेवा में तल्लीन रहो और उसकी शरण में पड़े रहो।
ਤਸਕਰੁ ਚੋਰੁ ਨ ਲਾਗੈ ਤਾ ਕਉ ਧੁਨਿ ਉਪਜੈ ਸਬਦਿ ਜਗਾਇਆ ॥੧॥
इस धन को कोई तस्कर अथवा चोर चुरा नहीं सकता, क्योंकि शब्द ध्वनि द्वारा मन सावधान रहता है॥ १॥
ਤੂ ਏਕੰਕਾਰੁ ਨਿਰਾਲਮੁ ਰਾਜਾ ॥
हे परमात्मा ! तू एकाकार है, मोह-माया से निर्लिप्त है, समूचे विश्व का बादशाह है।
ਤੂ ਆਪਿ ਸਵਾਰਹਿ ਜਨ ਕੇ ਕਾਜਾ ॥
तू स्वयं ही अपने भक्तजनों के कार्य संवारता है।
ਅਮਰੁ ਅਡੋਲੁ ਅਪਾਰੁ ਅਮੋਲਕੁ ਹਰਿ ਅਸਥਿਰ ਥਾਨਿ ਸੁਹਾਇਆ ॥੨॥
अमर, अडोल, अपरंपार, अमूल्य ईश्वर का अटल स्थान भी बहुत सुन्दर हैं।॥२॥
ਦੇਹੀ ਨਗਰੀ ਊਤਮ ਥਾਨਾ ॥
शरीर रूपी नगरी उत्तम स्थान है,
ਪੰਚ ਲੋਕ ਵਸਹਿ ਪਰਧਾਨਾ ॥
जहाँ सत्य, संतोष, नम्रता इत्यादि पाँच लोग रहते हैं।
ਊਪਰਿ ਏਕੰਕਾਰੁ ਨਿਰਾਲਮੁ ਸੁੰਨ ਸਮਾਧਿ ਲਗਾਇਆ ॥੩॥
इन सबके ऊपर एक ओंकार निर्लिप्त होकर शून्य समाधि लगाए बैठा हुआ है॥ ३॥
ਦੇਹੀ ਨਗਰੀ ਨਉ ਦਰਵਾਜੇ ॥
आँखे, कान, नाक, मुँह इत्यादि शरीर रूपी नगरी के नौ द्वार हैं,
ਸਿਰਿ ਸਿਰਿ ਕਰਣੈਹਾਰੈ ਸਾਜੇ ॥
सबकी रचना उस रचयिता ने की है।
ਦਸਵੈ ਪੁਰਖੁ ਅਤੀਤੁ ਨਿਰਾਲਾ ਆਪੇ ਅਲਖੁ ਲਖਾਇਆ ॥੪॥
सबसे निराला एवं मायातीत प्रभु दसम द्वार में रहता है और उस परमपुरुष ने स्वयं ही अपने अदृष्ट रूप को दिखाया है॥ ४॥
ਪੁਰਖੁ ਅਲੇਖੁ ਸਚੇ ਦੀਵਾਨਾ ॥
कर्मों से रहित उस परमपुरुष का दीवान (न्यायालय) शाश्वत है,
ਹੁਕਮਿ ਚਲਾਏ ਸਚੁ ਨੀਸਾਨਾ ॥
वह सब पर अपना हुक्म चलाता है और उसका नाम रूपी परवाना अटल है।
ਨਾਨਕ ਖੋਜਿ ਲਹਹੁ ਘਰੁ ਅਪਨਾ ਹਰਿ ਆਤਮ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਪਾਇਆ ॥੫॥
हे नानक ! ह्रदय-घर में परमात्मा को खोज लो, क्योंकि आत्मा में ही राम नाम पाया जा सकता है ॥५॥