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ਆਪੁ ਗਇਆ ਦੁਖੁ ਕਟਿਆ ਹਰਿ ਵਰੁ ਪਾਇਆ ਨਾਰਿ ॥੪੭॥
आपु गइआ दुखु कटिआ हरि वरु पाइआ नारि ॥४७॥
उस जीव रूपी नारी ने ही हरि रूपी वर प्राप्त किया है, जिसका अहंकार दूर हो गया है और उसका दुःख कट गया है॥ ४७ ॥
ਸੁਇਨਾ ਰੁਪਾ ਸੰਚੀਐ ਧਨੁ ਕਾਚਾ ਬਿਖੁ ਛਾਰੁ ॥
सुइना रुपा संचीऐ धनु काचा बिखु छारु ॥
संसार में हर कोई सोना-चांदी एकत्रित करने में लगा रहता है परन्तु यह सब भ्रमित करने वाला धन है, जो आध्यात्मिकता के लिए विष बन जाता है और अंत में केवल राख के समान रह जाता है।
ਸਾਹੁ ਸਦਾਏ ਸੰਚਿ ਧਨੁ ਦੁਬਿਧਾ ਹੋਇ ਖੁਆਰੁ ॥
साहु सदाए संचि धनु दुबिधा होइ खुआरु ॥
कोई धन दौलत संचित करके स्वयं को साहूकार कहलवाता है, किन्तु वह अपने द्वंद्व प्रेम के कारण नष्ट हो जाता है।
ਸਚਿਆਰੀ ਸਚੁ ਸੰਚਿਆ ਸਾਚਉ ਨਾਮੁ ਅਮੋਲੁ ॥
सचिआरी सचु संचिआ साचउ नामु अमोलु ॥
सच्चे व्यापारी वही हैं जो वास्तविक धन, अर्थात् शाश्वत भगवान् के नाम का अमूल्य खजाना, इकट्ठा करते हैं।
ਹਰਿ ਨਿਰਮਾਇਲੁ ਊਜਲੋ ਪਤਿ ਸਾਚੀ ਸਚੁ ਬੋਲੁ ॥
हरि निरमाइलु ऊजलो पति साची सचु बोलु ॥
उन्होंने प्रभु-नाम की निर्मल और अनुपम पूँजी अर्जित की है, जिससे उन्हें सच्चा सम्मान मिलता है और उनकी वाणी सत्य बन जाती है।
ਸਾਜਨੁ ਮੀਤੁ ਸੁਜਾਣੁ ਤੂ ਤੂ ਸਰਵਰੁ ਤੂ ਹੰਸੁ ॥
साजनु मीतु सुजाणु तू तू सरवरु तू हंसु ॥
हे परमेश्वर ! आप ही सच्चे, बुद्धिमान और कोमल मित्र हैं। आप ही संसार रूपी सरोवर हैं और आप ही उसमें निवास करने वाले हंस हैं।
ਸਾਚਉ ਠਾਕੁਰੁ ਮਨਿ ਵਸੈ ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ਤਿਸੁ ॥
साचउ ठाकुरु मनि वसै हउ बलिहारी तिसु ॥
मैं उस पर बलिहारी जाता हूँ, जिसके मन में सच्चे ठाकुर का निवास है।
ਮਾਇਆ ਮਮਤਾ ਮੋਹਣੀ ਜਿਨਿ ਕੀਤੀ ਸੋ ਜਾਣੁ ॥
माइआ ममता मोहणी जिनि कीती सो जाणु ॥
हे पंडित, उस प्रभु को पहचानो, जिसने अपनी ही रची हुई माया से जीवों को मोहित कर रखा है।
ਬਿਖਿਆ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਏਕੁ ਹੈ ਬੂਝੈ ਪੁਰਖੁ ਸੁਜਾਣੁ ॥੪੮॥
बिखिआ अम्रितु एकु है बूझै पुरखु सुजाणु ॥४८॥
जो चतुर पुरुष इस तथ्य को बूझ लेता है, वह नाम और माया से उत्पन्न होने वाले सुख-दुख से प्रभावित नहीं होता।॥४८॥
ਖਿਮਾ ਵਿਹੂਣੇ ਖਪਿ ਗਏ ਖੂਹਣਿ ਲਖ ਅਸੰਖ ॥
खिमा विहूणे खपि गए खूहणि लख असंख ॥
वे क्षमाविहीन असंख्य लोग आध्यात्मिक रूप से नष्ट हो गए हैं।
ਗਣਤ ਨ ਆਵੈ ਕਿਉ ਗਣੀ ਖਪਿ ਖਪਿ ਮੁਏ ਬਿਸੰਖ ॥
गणत न आवै किउ गणी खपि खपि मुए बिसंख ॥
उनकी गिनती नहीं की जा सकती, फिर उनकी गणना से क्या लाभ? दया के बिना असंख्य जीव नष्ट हो चुके हैं।
ਖਸਮੁ ਪਛਾਣੈ ਆਪਣਾ ਖੂਲੈ ਬੰਧੁ ਨ ਪਾਇ ॥
खसमु पछाणै आपणा खूलै बंधु न पाइ ॥
जो अपने मालिक को पहचान लेता है, वह माया के बन्धनों से मुक्त हो जाता है और फिर कभी सांसारिक जाल में नहीं फँसता।
ਸਬਦਿ ਮਹਲੀ ਖਰਾ ਤੂ ਖਿਮਾ ਸਚੁ ਸੁਖ ਭਾਇ ॥
सबदि महली खरा तू खिमा सचु सुख भाइ ॥
हे भगवान् ! गुरु के वचनों के माध्यम से आप उसके हृदय में प्रकट होते हैं, और वह सहज ही दया और सच्चाई को प्राप्त कर लेता है।
ਖਰਚੁ ਖਰਾ ਧਨੁ ਧਿਆਨੁ ਤੂ ਆਪੇ ਵਸਹਿ ਸਰੀਰਿ ॥
खरचु खरा धनु धिआनु तू आपे वसहि सरीरि ॥
हे भगवान् ! तब आप स्वयं उसकी जीवन-यात्रा का सच्चा खर्च, सच्चा धन बन जाते हैं; आप ही उसके ध्यान का केंद्र बनते हैं और उसके शरीर में वास करते हैं।
ਮਨਿ ਤਨਿ ਮੁਖਿ ਜਾਪੈ ਸਦਾ ਗੁਣ ਅੰਤਰਿ ਮਨਿ ਧੀਰ ॥
मनि तनि मुखि जापै सदा गुण अंतरि मनि धीर ॥
यदि अपने मन, तन एवं मुख में प्रभु का नाम जपता रहे तो अन्तर्मन में शुभ-गुण उत्पन्न हो जाते हैं और उसका अंतर्मन शांत व धैर्यवान हो जाता है।
ਹਉਮੈ ਖਪੈ ਖਪਾਇਸੀ ਬੀਜਉ ਵਥੁ ਵਿਕਾਰੁ ॥
हउमै खपै खपाइसी बीजउ वथु विकारु ॥
हरि-नाम के बिना प्रत्येक वस्तु विकार रूप हैं और व्यक्ति धीरे-धीरे अहंकार की गहराइयों में डूबने लगता है।
ਜੰਤ ਉਪਾਇ ਵਿਚਿ ਪਾਇਅਨੁ ਕਰਤਾ ਅਲਗੁ ਅਪਾਰੁ ॥੪੯॥
जंत उपाइ विचि पाइअनु करता अलगु अपारु ॥४९॥
जीवों को पैदा करके परमेश्वर ने उन्हें अहंकार में डाल दिया है, परन्तु अपरंपार कर्ता-प्रभु निर्लिप्त है।॥ ४९ ॥
ਸ੍ਰਿਸਟੇ ਭੇਉ ਨ ਜਾਣੈ ਕੋਇ ॥
स्रिसटे भेउ न जाणै कोइ ॥
उस सृष्टि रचयिता का भेद कोई नहीं जानता।
ਸ੍ਰਿਸਟਾ ਕਰੈ ਸੁ ਨਿਹਚਉ ਹੋਇ ॥
स्रिसटा करै सु निहचउ होइ ॥
वह स्रष्टा जो कुछ करता है, यह निश्चय ही होता है।
ਸੰਪੈ ਕਉ ਈਸਰੁ ਧਿਆਈਐ ॥
स्मपै कउ ईसरु धिआईऐ ॥
परन्तु मुख्यतः लोग सांसारिक धन के लिए ईश्वर का ध्यान करते हैं किन्तु
ਸੰਪੈ ਪੁਰਬਿ ਲਿਖੇ ਕੀ ਪਾਈਐ ॥
स्मपै पुरबि लिखे की पाईऐ ॥
परन्तु मनुष्य को वही मिलता है जो उसके भाग्य में पहले से लिखा होता है।
ਸੰਪੈ ਕਾਰਣਿ ਚਾਕਰ ਚੋਰ ॥
स्मपै कारणि चाकर चोर ॥
लोग धन के लिए दूसरों के नौकर बन जाते हैं और कुछ चौर भी बन जाते हैं,
ਸੰਪੈ ਸਾਥਿ ਨ ਚਾਲੈ ਹੋਰ ॥
स्मपै साथि न चालै होर ॥
किन्तु मरणोपरांत धन जीव के साथ नहीं जाता और यह किसी अन्य संबंधी का ही बन जाता है।
ਬਿਨੁ ਸਾਚੇ ਨਹੀ ਦਰਗਹ ਮਾਨੁ ॥
बिनु साचे नही दरगह मानु ॥
शाश्वत प्रभु के नाम की पूंजी के बिना प्रभु के दरबार में किसी को भी आदर नहीं मिलता।
ਹਰਿ ਰਸੁ ਪੀਵੈ ਛੁਟੈ ਨਿਦਾਨਿ ॥੫੦॥
हरि रसु पीवै छुटै निदानि ॥५०॥
जो हरि-नाम रूपी रस का पान करता है, वह जन्म-मरण से छूट जाता हैं ॥५०॥
ਹੇਰਤ ਹੇਰਤ ਹੇ ਸਖੀ ਹੋਇ ਰਹੀ ਹੈਰਾਨੁ ॥
हेरत हेरत हे सखी होइ रही हैरानु ॥
हे मित्र ! मैं यह देख-देख चकित हूँ कि
ਹਉ ਹਉ ਕਰਤੀ ਮੈ ਮੁਈ ਸਬਦਿ ਰਵੈ ਮਨਿ ਗਿਆਨੁ ॥
हउ हउ करती मै मुई सबदि रवै मनि गिआनु ॥
मेरा अहंकार समाप्त हो गया है, और गुरु के दिव्य वचनों का जाप करके मेरा मन आध्यात्मिक रूप से जाग्रत हो गया है।
ਹਾਰ ਡੋਰ ਕੰਕਨ ਘਣੇ ਕਰਿ ਥਾਕੀ ਸੀਗਾਰੁ ॥
हार डोर कंकन घणे करि थाकी सीगारु ॥
मैं हार, परांदी और कंगन इत्यादि सब आभूषणों का श्रृंगार कर-करके थक चुकी थी।(बाहरी आडंबरों से थक चुकी थी)
ਮਿਲਿ ਪ੍ਰੀਤਮ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਸਗਲ ਗੁਣਾ ਗਲਿ ਹਾਰੁ ॥
मिलि प्रीतम सुखु पाइआ सगल गुणा गलि हारु ॥
लेकिन अब जब मुझे प्रिय भगवान् का अनुभव हुआ, तो मुझे ऐसी शांति मिली, जो दिव्य गुणों की माला पहनने जैसी है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਈਐ ਹਰਿ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਪਿਆਰੁ ॥
नानक गुरमुखि पाईऐ हरि सिउ प्रीति पिआरु ॥
हे नानक ! गुरु के माध्यम से ही प्रभु से प्रेम होता है।
ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਕਿਨਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਦੇਖਹੁ ਮਨਿ ਬੀਚਾਰਿ ॥
हरि बिनु किनि सुखु पाइआ देखहु मनि बीचारि ॥
अपने मन में विचार करके देख लो कि भगवान् के बिना किसी को भी आध्यात्मिक सुख उपलब्ध नहीं हुआ।
ਹਰਿ ਪੜਣਾ ਹਰਿ ਬੁਝਣਾ ਹਰਿ ਸਿਉ ਰਖਹੁ ਪਿਆਰੁ ॥
हरि पड़णा हरि बुझणा हरि सिउ रखहु पिआरु ॥
हरि की कथा पढ़नी चाहिए, हरि को समझना चाहिए और उससे ही प्रेम बनाकर रखो।
ਹਰਿ ਜਪੀਐ ਹਰਿ ਧਿਆਈਐ ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੁ ॥੫੧॥
हरि जपीऐ हरि धिआईऐ हरि का नामु अधारु ॥५१॥
सदैव हरि को ही जपते रहना चाहिए, हरि का ही भजन करना चाहिए, चूंकि हरि का नाम ही हमारा जीवनाधार है॥ ५१॥
ਲੇਖੁ ਨ ਮਿਟਈ ਹੇ ਸਖੀ ਜੋ ਲਿਖਿਆ ਕਰਤਾਰਿ ॥
लेखु न मिटई हे सखी जो लिखिआ करतारि ॥
हे सखी ! ईश्वर ने जो भाग्य लिख दिया है, वह कभी मिट नहीं सकता।
ਆਪੇ ਕਾਰਣੁ ਜਿਨਿ ਕੀਆ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪਗੁ ਧਾਰਿ ॥
आपे कारणु जिनि कीआ करि किरपा पगु धारि ॥
लेकिन वही ईश्वर, जो इस ब्रह्मांड के रचयिता हैं; जब दया करते हैं और हमारे हृदय में प्रकट होते हैं, तभी पूर्वनिर्धारित भाग्य मिटते हैं।
ਕਰਤੇ ਹਥਿ ਵਡਿਆਈਆ ਬੂਝਹੁ ਗੁਰ ਬੀਚਾਰਿ ॥
करते हथि वडिआईआ बूझहु गुर बीचारि ॥
गुरु के ज्ञान द्वारा इस तथ्य को समझ लो, सब बड़ाईयाँ परमात्मा के हाथ में हैं।
ਲਿਖਿਆ ਫੇਰਿ ਨ ਸਕੀਐ ਜਿਉ ਭਾਵੀ ਤਿਉ ਸਾਰਿ ॥
लिखिआ फेरि न सकीऐ जिउ भावी तिउ सारि ॥
हे प्रभु, भाग्य बदला नहीं जा सकता, जैसी नियति है, वैसा ही होना है। कृपया अपनी इच्छा अनुसार हमारा ध्यान रखें।
ਨਦਰਿ ਤੇਰੀ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਨਾਨਕ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰਿ ॥
नदरि तेरी सुखु पाइआ नानक सबदु वीचारि ॥
हे नानक ! कहो : हे प्रभु! जब मैंने गुरु के वचनों पर ध्यान दिया, तब समझ में आया कि सच्ची शांति तो आपकी कृपा से ही मिलती है।
ਮਨਮੁਖ ਭੂਲੇ ਪਚਿ ਮੁਏ ਉਬਰੇ ਗੁਰ ਬੀਚਾਰਿ ॥
मनमुख भूले पचि मुए उबरे गुर बीचारि ॥
जो लोग संदेह में भटकते रहे और मनमानी करते रहे, वे आत्मिक रूप से गिर गए; लेकिन जिन्होंने गुरु के वचनों पर मन लगाया, वे बच गए।
ਜਿ ਪੁਰਖੁ ਨਦਰਿ ਨ ਆਵਈ ਤਿਸ ਕਾ ਕਿਆ ਕਰਿ ਕਹਿਆ ਜਾਇ ॥
जि पुरखु नदरि न आवई तिस का किआ करि कहिआ जाइ ॥
जो सर्वव्यापी ईश्वर आँखों से दिखाई नहीं देता, उसके बारे में कोई क्या कह सकता है?
ਬਲਿਹਾਰੀ ਗੁਰ ਆਪਣੇ ਜਿਨਿ ਹਿਰਦੈ ਦਿਤਾ ਦਿਖਾਇ ॥੫੨॥
बलिहारी गुर आपणे जिनि हिरदै दिता दिखाइ ॥५२॥
मैं अपने गुरु के प्रति समर्पित हूँ, जिन्होंने मेरे हृदय में ही परमात्मा के दर्शन करवा दिए हैं।५२॥
ਪਾਧਾ ਪੜਿਆ ਆਖੀਐ ਬਿਦਿਆ ਬਿਚਰੈ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਇ ॥
पाधा पड़िआ आखीऐ बिदिआ बिचरै सहजि सुभाइ ॥
हे पंडित, वही सच्चा गुरु तभी शिक्षित कहा जाता है, जो सहजता से दिव्य ज्ञान के अनुसार अपना जीवन जीता है।