Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 935

Page 935

ਨਾ ਤਿਸੁ ਗਿਆਨੁ ਨ ਧਿਆਨੁ ਹੈ ਨਾ ਤਿਸੁ ਧਰਮੁ ਧਿਆਨੁ ॥ ना तिसु गिआनु न धिआनु है ना तिसु धरमु धिआनु ॥ न उसके पास कोई ज्ञान-ध्यान हैं, न ही कोई धर्म का ध्यान हैं और न ही मन की एकाग्रता।
ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਨਿਰਭਉ ਕਹਾ ਕਿਆ ਜਾਣਾ ਅਭਿਮਾਨੁ ॥ विणु नावै निरभउ कहा किआ जाणा अभिमानु ॥ नाम के बिना कोई निडर नहीं हो सकता और अभिमान का दुःख नहीं समझ सकता।
ਥਾਕਿ ਰਹੀ ਕਿਵ ਅਪੜਾ ਹਾਥ ਨਹੀ ਨਾ ਪਾਰੁ ॥ थाकि रही किव अपड़ा हाथ नही ना पारु ॥ मैं कर्मों की थकावट से चूर हूँ। यह संसार भगवान् और मेरे बीच एक अनंत सागर है, जिसके न तट हैं और न सीमाएं। मैं इसे कैसे पार कर सकूँ?
ਨਾ ਸਾਜਨ ਸੇ ਰੰਗੁਲੇ ਕਿਸੁ ਪਹਿ ਕਰੀ ਪੁਕਾਰ ॥ ना साजन से रंगुले किसु पहि करी पुकार ॥ ईश्वर के नाम से ओत-प्रोत मित्रों की संगति के बिना, मैं सहायता के लिए किससे प्रार्थना कर सकता हूँ?
ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਿਉ ਪ੍ਰਿਉ ਜੇ ਕਰੀ ਮੇਲੇ ਮੇਲਣਹਾਰੁ ॥ नानक प्रिउ प्रिउ जे करी मेले मेलणहारु ॥ हे नानक ! यदि मैं निरंतर ईश्वर का ध्यान करता रहूँ, तो वह स्वयं मुझे अपने साथ मिला लेंगे।
ਜਿਨਿ ਵਿਛੋੜੀ ਸੋ ਮੇਲਸੀ ਗੁਰ ਕੈ ਹੇਤਿ ਅਪਾਰਿ ॥੩੭॥ जिनि विछोड़ी सो मेलसी गुर कै हेति अपारि ॥३७॥ जिसने मुझे वियोग दिया है, वहीं गुरु के अपार प्रेम द्वारा मिला लेगा ॥ ३७ ॥
ਪਾਪੁ ਬੁਰਾ ਪਾਪੀ ਕਉ ਪਿਆਰਾ ॥ पापु बुरा पापी कउ पिआरा ॥ पाप बुरा है, किन्तु पापी को यह प्यारा लगता है।
ਪਾਪਿ ਲਦੇ ਪਾਪੇ ਪਾਸਾਰਾ ॥ पापि लदे पापे पासारा ॥ पापी मनुष्य तो पापों का भार ही सिर पर लादता रहता हैं और अपने पापों का ही प्रसार करता रहता है।
ਪਰਹਰਿ ਪਾਪੁ ਪਛਾਣੈ ਆਪੁ ॥ परहरि पापु पछाणै आपु ॥ यदि मनुष्य को अपनी जड़ों तथा ईश्वर का बोध हो जाए तो उसे बुरे कर्म त्याग देना चाहिए।
ਨਾ ਤਿਸੁ ਸੋਗੁ ਵਿਜੋਗੁ ਸੰਤਾਪੁ ॥ ना तिसु सोगु विजोगु संतापु ॥ उसे कोई दुःख, वियोग एवं संताप नहीं लगता।
ਨਰਕਿ ਪੜੰਤਉ ਕਿਉ ਰਹੈ ਕਿਉ ਬੰਚੈ ਜਮਕਾਲੁ ॥ नरकि पड़ंतउ किउ रहै किउ बंचै जमकालु ॥ वह नरक में पड़ने से कैसे बच सकता है और कैसे यमकाल से छूट सकता है?
ਕਿਉ ਆਵਣ ਜਾਣਾ ਵੀਸਰੈ ਝੂਠੁ ਬੁਰਾ ਖੈ ਕਾਲੁ ॥ किउ आवण जाणा वीसरै झूठु बुरा खै कालु ॥ उसे जन्म-मरण का चक्र कैसे भूले? झूठ बुरा है और क्रूर काल झूठे आदमी को निगल लेता है।
ਮਨੁ ਜੰਜਾਲੀ ਵੇੜਿਆ ਭੀ ਜੰਜਾਲਾ ਮਾਹਿ ॥ मनु जंजाली वेड़िआ भी जंजाला माहि ॥ दुनिया के जाल में फंसा हुआ मन और भी जंजाल में फंस जाता है।
ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਕਿਉ ਛੂਟੀਐ ਪਾਪੇ ਪਚਹਿ ਪਚਾਹਿ ॥੩੮॥ विणु नावै किउ छूटीऐ पापे पचहि पचाहि ॥३८॥ हरि-नाम के बिना उसकी मुक्ति कैसे संभव है? वह पापों में फंसा ही नष्ट हो जाता है॥३८ ॥
ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਫਾਹੀ ਫਾਸੈ ਕਊਆ ॥ फिरि फिरि फाही फासै कऊआ ॥ पाप करने वाला (कौए के समान) बार-बार पाप कर्म में फँसता रहता है;
ਫਿਰਿ ਪਛੁਤਾਨਾ ਅਬ ਕਿਆ ਹੂਆ ॥ फिरि पछुताना अब किआ हूआ ॥ फिर वह पछताता है, फंदे में से छूटने के लिए अब उससे कुछ भी नहीं हो सकता।
ਫਾਥਾ ਚੋਗ ਚੁਗੈ ਨਹੀ ਬੂਝੈ ॥ फाथा चोग चुगै नही बूझै ॥ वह फंदे में फंसा हुआ भी विषय-विकार रूपी चोगा चुगता रहता है, पर यह समझता नहीं।
ਸਤਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਤ ਆਖੀ ਸੂਝੈ ॥ सतगुरु मिलै त आखी सूझै ॥ यदि उसे सतगुरु मिल जाए तो उसे अपनी आँखों से फंदे एवं चोगे का ज्ञान हो जाए।
ਜਿਉ ਮਛੁਲੀ ਫਾਥੀ ਜਮ ਜਾਲਿ ॥ जिउ मछुली फाथी जम जालि ॥ जैसे मछली फँसी होती है, वैसे ही जीव मृत्यु के जाल में फँसा हुआ है।
ਵਿਣੁ ਗੁਰ ਦਾਤੇ ਮੁਕਤਿ ਨ ਭਾਲਿ ॥ विणु गुर दाते मुकति न भालि ॥ दाता गुरु के बिना किसी से मुक्ति की उम्मीद मत करो अन्यथा,
ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਆਵੈ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਜਾਇ ॥ फिरि फिरि आवै फिरि फिरि जाइ ॥ जीव बार-बार जन्म लेता है और बार-बार मरता रहता है।
ਇਕ ਰੰਗਿ ਰਚੈ ਰਹੈ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥ इक रंगि रचै रहै लिव लाइ ॥ परन्तु जो परमेश्वर के प्रेम से ओत-प्रोत है, वह उसी पर केन्द्रित रहता है;
ਇਵ ਛੂਟੈ ਫਿਰਿ ਫਾਸ ਨ ਪਾਇ ॥੩੯॥ इव छूटै फिरि फास न पाइ ॥३९॥ आवागमन से मुक्त हो जाता है और पुनः उसे मृत्यु की फाँसी नहीं पड़ती ॥३६॥
ਬੀਰਾ ਬੀਰਾ ਕਰਿ ਰਹੀ ਬੀਰ ਭਏ ਬੈਰਾਇ ॥ बीरा बीरा करि रही बीर भए बैराइ ॥ जब मृत्यु का क्षण आता है, तब शरीर आत्मा को 'हे भाई, हे भाई' कहकर पुकारता है और साथ न छोड़ने की प्रार्थना करता है, परंतु आत्मा पराई बन जाती है।
ਬੀਰ ਚਲੇ ਘਰਿ ਆਪਣੈ ਬਹਿਣ ਬਿਰਹਿ ਜਲਿ ਜਾਇ ॥ बीर चले घरि आपणै बहिण बिरहि जलि जाइ ॥ आत्मा रूपी भाई परलोक में चला जाता हैं और उसकी काया रूपी बहिन वियोग की अग्नि में जल जाती हैं।
ਬਾਬੁਲ ਕੈ ਘਰਿ ਬੇਟੜੀ ਬਾਲੀ ਬਾਲੈ ਨੇਹਿ ॥ बाबुल कै घरि बेटड़ी बाली बालै नेहि ॥ जैसे कन्या अपने पितृगृह में गुड़ियों के खेल में मग्न रहती है, वैसे ही आत्मा इस संसार में माया के मोह में फँसी रहती है।
ਜੇ ਲੋੜਹਿ ਵਰੁ ਕਾਮਣੀ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਹਿ ਤੇਹਿ ॥ जे लोड़हि वरु कामणी सतिगुरु सेवहि तेहि ॥ यदि वह कामिनी अपने पति को पाना चाहती है तो उसे प्रेमपूर्वक सच्चे गुरु की शिक्षाओं का अनुसरण करना चाहिए।
ਬਿਰਲੋ ਗਿਆਨੀ ਬੂਝਣਉ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਾਚਿ ਮਿਲੇਇ ॥ बिरलो गिआनी बूझणउ सतिगुरु साचि मिलेइ ॥ परंतु केवल कोई विरला, आध्यात्मिक रूप से जागरूक व्यक्ति ही इस सत्य को समझ पाता है कि केवल सच्चा गुरु ही जीवात्मा को शाश्वत परमेश्वर से जोड़ सकता है।
ਠਾਕੁਰ ਹਾਥਿ ਵਡਾਈਆ ਜੈ ਭਾਵੈ ਤੈ ਦੇਇ ॥ ठाकुर हाथि वडाईआ जै भावै तै देइ ॥ ईश्वर की स्तुति का गान करना एक महान सौभाग्य है, जो उसी के अधीन है, और वह इसे उसी को प्रदान करते हैं जिस पर वह प्रसन्न होते हैं।
ਬਾਣੀ ਬਿਰਲਉ ਬੀਚਾਰਸੀ ਜੇ ਕੋ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਇ ॥ बाणी बिरलउ बीचारसी जे को गुरमुखि होइ ॥ यदि कोई गुरुमुख बन जाता है तो ऐसा विरला ही वाणी का विचार करता है।
ਇਹ ਬਾਣੀ ਮਹਾ ਪੁਰਖ ਕੀ ਨਿਜ ਘਰਿ ਵਾਸਾ ਹੋਇ ॥੪੦॥ इह बाणी महा पुरख की निज घरि वासा होइ ॥४०॥ यह वाणी महापुरुष की रची हुई है और इससे जीव का अपने सच्चे घर में स्थायी रूप से निवास हो जाता है। ४०॥
ਭਨਿ ਭਨਿ ਘੜੀਐ ਘੜਿ ਘੜਿ ਭਜੈ ਢਾਹਿ ਉਸਾਰੈ ਉਸਰੇ ਢਾਹੈ ॥ भनि भनि घड़ीऐ घड़ि घड़ि भजै ढाहि उसारै उसरे ढाहै ॥ परमेश्वर (तत्वों को) तोड़-तोड़कर जगत् का निर्माण करता है और जगत्-निर्माण करके उसका विनाश कर देता है, वह बिगाड़कर फिर से बनाता है, वह जीवों को पैदा करके समय आने पर उनका नाश कर देता है।
ਸਰ ਭਰਿ ਸੋਖੈ ਭੀ ਭਰਿ ਪੋਖੈ ਸਮਰਥ ਵੇਪਰਵਾਹੈ ॥ सर भरि सोखै भी भरि पोखै समरथ वेपरवाहै ॥ वह सर्वशक्तिमान हैं और पूर्णतः निश्चिंत परमेश्वर संसार रूपी भरे हुए सरोवरों को सुखा देता और पुनः उन्हें भर भी देता है।
ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਨੇ ਭਏ ਦਿਵਾਨੇ ਵਿਣੁ ਭਾਗਾ ਕਿਆ ਪਾਈਐ ॥ भरमि भुलाने भए दिवाने विणु भागा किआ पाईऐ ॥ वे संदेह से भ्रमित होकर माया की खोज में उन्मत्त हो गये हैं; भाग्य के बिना कुछ भी प्राप्त नहीं होता।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਗਿਆਨੁ ਡੋਰੀ ਪ੍ਰਭਿ ਪਕੜੀ ਜਿਨ ਖਿੰਚੈ ਤਿਨ ਜਾਈਐ ॥ गुरमुखि गिआनु डोरी प्रभि पकड़ी जिन खिंचै तिन जाईऐ ॥ गुरु के माध्यम से ही यह ज्ञान होता है कि प्रत्येक जीव की ज्ञान-डोरी प्रभु ने अपने हाथ में पकड़ी हुई है। वह जीवों को जिधर चलाते हैं, वे उधर ही चल पड़ते हैं।
ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇ ਸਦਾ ਰੰਗਿ ਰਾਤੇ ਬਹੁੜਿ ਨ ਪਛੋਤਾਈਐ ॥ हरि गुण गाइ सदा रंगि राते बहुड़ि न पछोताईऐ ॥ जो जीव भगवान् का गौरवगान करके सदैव उसके रंग में लीन रहता है, उसे कोई दुबारा पछतावा नहीं होता।
ਭਭੈ ਭਾਲਹਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੂਝਹਿ ਤਾ ਨਿਜ ਘਰਿ ਵਾਸਾ ਪਾਈਐ ॥ भभै भालहि गुरमुखि बूझहि ता निज घरि वासा पाईऐ ॥ भ–भक्तजन केवल ईश्वर की ही खोज में रहते हैं, और जब गुरु के माध्यम से उन्हें उसका मार्ग स्पष्ट होता है, तो ईश्वर उनके हृदय में निवास करने लगते हैं।
ਭਭੈ ਭਉਜਲੁ ਮਾਰਗੁ ਵਿਖੜਾ ਆਸ ਨਿਰਾਸਾ ਤਰੀਐ ॥ भभै भउजलु मारगु विखड़ा आस निरासा तरीऐ ॥ भ-इस भवसागर से पार होने वाला मार्ग बहुत कठिन है और सांसारिक इच्छाओं की आशाओं से रहित होकर ही इसमें से पार हुआ जा सकता है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਆਪੋ ਚੀਨ੍ਹ੍ਹੈ ਜੀਵਤਿਆ ਇਵ ਮਰੀਐ ॥੪੧॥ गुर परसादी आपो चीन्है जीवतिआ इव मरीऐ ॥४१॥ जो व्यक्ति गुरु की कृपा से आत्म-ज्ञान को समझ लेता है, वह जीवन्मुक्त हो जाता है ॥ ४१॥
ਮਾਇਆ ਮਾਇਆ ਕਰਿ ਮੁਏ ਮਾਇਆ ਕਿਸੈ ਨ ਸਾਥਿ ॥ माइआ माइआ करि मुए माइआ किसै न साथि ॥ यह माया मेरी है, यह धन-दौलत मेरा अपना हैं। यही कहते हुए कितने ही लोग दुनिया छोड़ गए हैं, परन्तु यह माया किसी के साथ नहीं गई।
ਹੰਸੁ ਚਲੈ ਉਠਿ ਡੁਮਣੋ ਮਾਇਆ ਭੂਲੀ ਆਥਿ ॥ हंसु चलै उठि डुमणो माइआ भूली आथि ॥ आत्मा रूपी हंस मायूस होकर दुनिया से चल देता है परन्तु माया उसे यही भूली रहती है।
ਮਨੁ ਝੂਠਾ ਜਮਿ ਜੋਹਿਆ ਅਵਗੁਣ ਚਲਹਿ ਨਾਲਿ ॥ मनु झूठा जमि जोहिआ अवगुण चलहि नालि ॥ मिथ्या में डूबे हुए मन पर मृत्यु का भय आ बैठता है, मरणोपरांत जीव के अवगुण उसके साथ ही जाते हैं।
ਮਨ ਮਹਿ ਮਨੁ ਉਲਟੋ ਮਰੈ ਜੇ ਗੁਣ ਹੋਵਹਿ ਨਾਲਿ ॥ मन महि मनु उलटो मरै जे गुण होवहि नालि ॥ यदि उसके पास गुण हो तो उसका अशुद्ध मन विकारों की ओर से पलट कर शुद्ध मन में ही समा जाता है।


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