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ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੩ ਘਰੁ ੧ ॥
रामकली महला ३ घरु १ ॥
ਸਤਜੁਗਿ ਸਚੁ ਕਹੈ ਸਭੁ ਕੋਈ ॥
सतयुग में सब लोग सत्य बोलते थे और
ਘਰਿ ਘਰਿ ਭਗਤਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਈ ॥
गुरु की अनुकंपा से घर-घर में भक्ति होती थी।
ਸਤਜੁਗਿ ਧਰਮੁ ਪੈਰ ਹੈ ਚਾਰਿ ॥
सतयुग में धर्म के चार पैर (सत्य, संतोष, धर्म एवं दया) थे।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੂਝੈ ਕੋ ਬੀਚਾਰਿ ॥੧॥
कोई गुरुमुख ही इस विचार को बूझता है॥ १॥
ਜੁਗ ਚਾਰੇ ਨਾਮਿ ਵਡਿਆਈ ਹੋਈ ॥
चारों युगों में नाम की ही कीर्ति होती रही है।
ਜਿ ਨਾਮਿ ਲਾਗੈ ਸੋ ਮੁਕਤਿ ਹੋਵੈ ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਨਾਮੁ ਨ ਪਾਵੈ ਕੋਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जो नाम-स्मरण में लग जाता है, उसकी मुक्ति हो जाती है, किन्तु गुरु के बिना कोई भी नाम प्राप्त नहीं कर सकता ॥ १॥ रहाउ॥
ਤ੍ਰੇਤੈ ਇਕ ਕਲ ਕੀਨੀ ਦੂਰਿ ॥
त्रैता युग में धर्म की एक पाला दूर कर दी गई अर्थात् धर्म का एक पैर टूट गया
ਪਾਖੰਡੁ ਵਰਤਿਆ ਹਰਿ ਜਾਣਨਿ ਦੂਰਿ ॥
इससे जगत् में पाखण्ड प्रवृत्त हो गया तथा लोग ईश्वर को दूर मानने लग गए।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੂਝੈ ਸੋਝੀ ਹੋਈ ॥
लेकिन जो गुरुमुख बनकर इस भेद को समझता है, उसे ज्ञान हो जाता है।
ਅੰਤਰਿ ਨਾਮੁ ਵਸੈ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥੨॥
जिसके मन में नाम स्थित हो जाता है, उसे सुख प्राप्त होता है॥ २॥
ਦੁਆਪੁਰਿ ਦੂਜੈ ਦੁਬਿਧਾ ਹੋਇ ॥
द्वापर में द्वैतभाव के कारण जीवों के मन में दुविधा पैदा हो गई।
ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਨੇ ਜਾਣਹਿ ਦੋਇ ॥
लोग भ्रम में भूलकर ब्रह्म एवं माया को दो विभिन्न शक्तियां समझने लग गए।
ਦੁਆਪੁਰਿ ਧਰਮਿ ਦੁਇ ਪੈਰ ਰਖਾਏ ॥
इस तरह द्वापर में धर्म के दो ही पैर रह गए।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਵੈ ਤ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਏ ॥੩॥
लेकिन जो गुरुमुख बन जाता था, वह नाम को मन में बसा लेता था ॥ ३॥
ਕਲਜੁਗਿ ਧਰਮ ਕਲਾ ਇਕ ਰਹਾਏ ॥
फिर कलियुग में धर्म की एक ही कला रह गई और वह एक ही पैर पर चलने लगा।
ਇਕ ਪੈਰਿ ਚਲੈ ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਵਧਾਏ ॥
दुनिया में चारों ओर मोह-माया में वृद्धि हो गई।
ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਅਤਿ ਗੁਬਾਰੁ ॥
यह माया का मोह घोर अंधेरा अर्थात् निरा अज्ञान है।
ਸਤਗੁਰੁ ਭੇਟੈ ਨਾਮਿ ਉਧਾਰੁ ॥੪॥
जो सतगुरु से भेंट करता है, उसका नाम द्वारा उद्धार हो जाता है।॥ ४॥
ਸਭ ਜੁਗ ਮਹਿ ਸਾਚਾ ਏਕੋ ਸੋਈ ॥
सब युगों में एक परमात्मा ही मौजूद है।
ਸਭ ਮਹਿ ਸਚੁ ਦੂਜਾ ਨਹੀ ਕੋਈ ॥
वह परम सत्य सब में विद्यमान है, अन्य कोई नहीं।
ਸਾਚੀ ਕੀਰਤਿ ਸਚੁ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥
उस सच्चे की सच्ची स्तुति करने से ही सुख हासिल होता है,
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣੈ ਕੋਈ ॥੫॥
लेकिन कोई विरला ही गुरुमुख बनकर नाम जपता है॥ ५ ॥
ਸਭ ਜੁਗ ਮਹਿ ਨਾਮੁ ਊਤਮੁ ਹੋਈ ॥
सब युगों में नाम ही सब धर्म-कर्मों से उत्तम है,
ਗੁਰਮੁਖਿ ਵਿਰਲਾ ਬੂਝੈ ਕੋਈ ॥
लेकिन कोई विरला गुरुमुख ही इस तथ्य को समझता है।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਏ ਭਗਤੁ ਜਨੁ ਸੋਈ ॥
जो हरि-नाम का ध्यान करता है, वही भक्त है।
ਨਾਨਕ ਜੁਗਿ ਜੁਗਿ ਨਾਮਿ ਵਡਿਆਈ ਹੋਈ ॥੬॥੧॥
हे नानक ! युग-युग में नाम की ही कीर्ति हुई है॥ ६॥ १॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੪ ਘਰੁ ੧
रामकली महला ४ घरु १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਜੇ ਵਡ ਭਾਗ ਹੋਵਹਿ ਵਡਭਾਗੀ ਤਾ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵੈ ॥
यदि किसी भाग्यशाली का बड़ा भाग्य हो तो ही वह हरि-नाम का ध्यान करता है।
ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਨਾਮੇ ਸੁਖੁ ਪਾਵੈ ਹਰਿ ਨਾਮੇ ਨਾਮਿ ਸਮਾਵੈ ॥੧॥
प्रभु का नाम जपने से उसे सुख हासिल हो जाता है और हरि-नाम में ही विलीन हो जाता है॥ १॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਭਗਤਿ ਕਰਹੁ ਸਦ ਪ੍ਰਾਣੀ ॥
हे प्राणी ! गुरुमुख बनकर भगवान की भक्ति करो;
ਹਿਰਦੈ ਪ੍ਰਗਾਸੁ ਹੋਵੈ ਲਿਵ ਲਾਗੈ ਗੁਰਮਤਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਣੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
इससे हृदय में ज्ञान का आलोक हो जाएगा, परमात्मा में ध्यान लग जाएगा और गुरु मतानुसार हरि-नाम में विलीन हो जाओगे ॥ १॥ रहाउ॥
ਹੀਰਾ ਰਤਨ ਜਵੇਹਰ ਮਾਣਕ ਬਹੁ ਸਾਗਰ ਭਰਪੂਰੁ ਕੀਆ ॥
हरि का नाम हीरे-रत्न, जवाहर-माणिक्य की तरह अमूल्य है और गुरु रूपी समुद्र में प्रभु ने भरपूर किया हुआ है।
ਜਿਸੁ ਵਡ ਭਾਗੁ ਹੋਵੈ ਵਡ ਮਸਤਕਿ ਤਿਨਿ ਗੁਰਮਤਿ ਕਢਿ ਕਢਿ ਲੀਆ ॥੨॥
जिसके माथे पर बड़े भाग्य उज्जवल हो, वह गुरु मतानुसार इसे निकालकर प्राप्त कर लेता है॥ २॥
ਰਤਨੁ ਜਵੇਹਰੁ ਲਾਲੁ ਹਰਿ ਨਾਮਾ ਗੁਰਿ ਕਾਢਿ ਤਲੀ ਦਿਖਲਾਇਆ ॥
हरि का नाम रत्न-जवाहर एवं लाल जैसा अनमोल है, जिसे गुरु ने अपने हाथ की तली पर रखकर सबको दिखाया है किन्तु
ਭਾਗਹੀਣ ਮਨਮੁਖਿ ਨਹੀ ਲੀਆ ਤ੍ਰਿਣ ਓਲੈ ਲਾਖੁ ਛਪਾਇਆ ॥੩॥
भाग्यहीन मनमुखों ने इनको प्राप्त नहीं किया, लाखों रुपए के मूल्य का यह नाम तृण की ओट में छिपा कर रखा हुआ है॥ ३॥
ਮਸਤਕਿ ਭਾਗੁ ਹੋਵੈ ਧੁਰਿ ਲਿਖਿਆ ਤਾ ਸਤਗੁਰੁ ਸੇਵਾ ਲਾਏ ॥
आरम्भ से ही जिसके भाग्य में लिखा हो तो ही सतगुरु उसे सेवा में लगाता है।
ਨਾਨਕ ਰਤਨ ਜਵੇਹਰ ਪਾਵੈ ਧਨੁ ਧਨੁ ਗੁਰਮਤਿ ਹਰਿ ਪਾਏ ॥੪॥੧॥
हे नानक ! वह जीव धन्य है, जो रत्न-जवाहर रूपी नाम को प्राप्त कर लेता है और गुरु उपदेश द्वारा भगवान् को पा लेता है ॥ ४ ॥१ ॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
रामकली महला ४ ॥
ਰਾਮ ਜਨਾ ਮਿਲਿ ਭਇਆ ਅਨੰਦਾ ਹਰਿ ਨੀਕੀ ਕਥਾ ਸੁਨਾਇ ॥
राम के भक्तों को मिलकर मन में आनंद पैदा हो गया है और उन्होंने मुझे हरि की उत्तम कथा सुनाई है।
ਦੁਰਮਤਿ ਮੈਲੁ ਗਈ ਸਭ ਨੀਕਲਿ ਸਤਸੰਗਤਿ ਮਿਲਿ ਬੁਧਿ ਪਾਇ ॥੧॥
अब मन में से दुर्मति की सारी मैल निकल गई है और सत्संगति में मिलकर बुद्धि प्राप्त हो गई है॥ १॥