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ਗੁਰਮੁਖਿ ਵੇਖਣੁ ਬੋਲਣਾ ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥
गुरमुखि वेखणु बोलणा नामु जपत सुखु पाइआ ॥
वह चीज़ों को गुरु-वाणी के आलोक में देखता है और उसी अनुसार बोलता है, और ईश्वर के निरंतर स्मरण से आत्मा की शांति प्राप्त करता है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਗਿਆਨੁ ਪ੍ਰਗਾਸਿਆ ਤਿਮਰ ਅਗਿਆਨੁ ਅੰਧੇਰੁ ਚੁਕਾਇਆ ॥੨॥
नानक गुरमुखि गिआनु प्रगासिआ तिमर अगिआनु अंधेरु चुकाइआ ॥२॥
हे नानक ! जब हम गुरु गुरु की शिक्षाओं का पालन करते हैं, तब अज्ञानता का अंधकार छट जाता है और मन आध्यात्मिक ज्योति से प्रकाशित हो उठता है।॥ २ ॥
ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
तृतीय गुरुः ३॥
ਮਨਮੁਖ ਮੈਲੇ ਮਰਹਿ ਗਵਾਰ ॥
मनमुख मैले मरहि गवार ॥
मनमुखी जीव मन के मैले होते हैं और ऐसे आध्यात्मिक रूप से मृत ही रहते हैं।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਿਰਮਲ ਹਰਿ ਰਾਖਿਆ ਉਰ ਧਾਰਿ ॥
गुरमुखि निरमल हरि राखिआ उर धारि ॥
लेकिन गुरुमुख निर्मल हैं और उन्होंने भगवान् को अपने हृदय में बसाया हुआ है।
ਭਨਤਿ ਨਾਨਕੁ ਸੁਣਹੁ ਜਨ ਭਾਈ ॥
भनति नानकु सुणहु जन भाई ॥
नानक का कथन है कि हे मेरे भाई, भक्तजनों ! जरा सुनो;
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿਹੁ ਹਉਮੈ ਮਲੁ ਜਾਈ ॥
सतिगुरु सेविहु हउमै मलु जाई ॥
सतगुरु की सेवा करो, इससे अहंकार रूपी मैल दूर हो जाती है।
ਅੰਦਰਿ ਸੰਸਾ ਦੂਖੁ ਵਿਆਪੇ ਸਿਰਿ ਧੰਧਾ ਨਿਤ ਮਾਰ ॥
अंदरि संसा दूखु विआपे सिरि धंधा नित मार ॥
मनमुख के मन में संशय बना रहता है, इसलिए उसे दुःख ही प्रभावित करता रहता है और वे निरंतर सांसारिक भ्रमों और उलझनों के कारण दुःख भोगते हैं।
ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਸੂਤੇ ਕਬਹੁ ਨ ਜਾਗਹਿ ਮਾਇਆ ਮੋਹ ਪਿਆਰ ॥
दूजै भाइ सूते कबहु न जागहि माइआ मोह पिआर ॥
जो जीव द्वैतभाव में सोये रहते हैं, वे आध्यात्मिक रूप से कभी नहीं जागते, अपितु मोह-माया से ही उनका प्यार बना रहता है।
ਨਾਮੁ ਨ ਚੇਤਹਿ ਸਬਦੁ ਨ ਵੀਚਾਰਹਿ ਇਹੁ ਮਨਮੁਖ ਕਾ ਬੀਚਾਰ ॥
नामु न चेतहि सबदु न वीचारहि इहु मनमुख का बीचार ॥
मनमुख का विचार अर्थात् सोचने का ढंग यही है कि वह न तो परमात्मा का नाम याद करता है और न ही शब्द का चिंतन करता है।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨ ਭਾਇਆ ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ਨਾਨਕ ਜਮੁ ਮਾਰਿ ਕਰੇ ਖੁਆਰ ॥੩॥
हरि नामु न भाइआ बिरथा जनमु गवाइआ नानक जमु मारि करे खुआर ॥३॥
हे नानक ! उसे हरि का नाम कभी नहीं भाया और उसने अपना जन्म व्यर्थ ही गंवा लिया है। ऐसे जीव को यम दंडित करता है और अपमानित करता है। ॥ ३॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पौड़ी॥
ਜਿਸ ਨੋ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਸਚੁ ਬਖਸੀਅਨੁ ਸੋ ਸਚਾ ਸਾਹੁ ॥
जिस नो हरि भगति सचु बखसीअनु सो सचा साहु ॥
वही वास्तव में आध्यात्मिक रूप से धनवान है, जिसे ईश्वर ने भक्ति एवं सत्य का दान दिया है।
ਤਿਸ ਕੀ ਮੁਹਤਾਜੀ ਲੋਕੁ ਕਢਦਾ ਹੋਰਤੁ ਹਟਿ ਨ ਵਥੁ ਨ ਵੇਸਾਹੁ ॥
तिस की मुहताजी लोकु कढदा होरतु हटि न वथु न वेसाहु ॥
संपूर्ण संसार उसके अधीन हो जाता है क्योंकि भक्ति का दिव्य धन कहीं और से प्राप्त नहीं होता यह तो केवल प्रभु की कृपा से ही मिलता है।
ਭਗਤ ਜਨਾ ਕਉ ਸਨਮੁਖੁ ਹੋਵੈ ਸੁ ਹਰਿ ਰਾਸਿ ਲਏ ਵੇਮੁਖ ਭਸੁ ਪਾਹੁ ॥
भगत जना कउ सनमुखु होवै सु हरि रासि लए वेमुख भसु पाहु ॥
जो व्यक्ति भक्तजनों के सम्मुख रहता है, उसे हरि-नाम रूपी राशि मिल जाती है, किन्तु विमुख जीव कलंकित होते हैं।
ਹਰਿ ਕੇ ਨਾਮ ਕੇ ਵਾਪਾਰੀ ਹਰਿ ਭਗਤ ਹਹਿ ਜਮੁ ਜਾਗਾਤੀ ਤਿਨਾ ਨੇੜਿ ਨ ਜਾਹੁ ॥
हरि के नाम के वापारी हरि भगत हहि जमु जागाती तिना नेड़ि न जाहु ॥
भगवान के भक्त प्रेमपूर्वक और भक्तिपूर्वक उनके नाम का स्मरण करते हैं। मृत्यु रूपी राक्षस और दण्ड देने वाला उनके निकट नहीं जाता।
ਜਨ ਨਾਨਕਿ ਹਰਿ ਨਾਮ ਧਨੁ ਲਦਿਆ ਸਦਾ ਵੇਪਰਵਾਹੁ ॥੭॥
जन नानकि हरि नाम धनु लदिआ सदा वेपरवाहु ॥७॥
दास नानक ने भी हरि-नाम रूपी धन लाद लिया है, इसलिए वह सदा निश्चिंत रहते हैं।॥ ७ ॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥
सलोक मः ३ ॥
श्लोक, तृतीय गुरुः ३॥
ਇਸੁ ਜੁਗ ਮਹਿ ਭਗਤੀ ਹਰਿ ਧਨੁ ਖਟਿਆ ਹੋਰੁ ਸਭੁ ਜਗਤੁ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਇਆ ॥
इसु जुग महि भगती हरि धनु खटिआ होरु सभु जगतु भरमि भुलाइआ ॥
इस युग में भक्तों ने ही हरि-धन का लाभ प्राप्त किया है तथा अन्य समूचा जगत् भ्रम में भूला हुआ है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਨਾਮੁ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ॥
गुर परसादी नामु मनि वसिआ अनदिनु नामु धिआइआ ॥
गुरु की कृपा से जिसके मन में नाम स्थित हो गया है, उसने रात-दिन नाम का ही मनन किया है।
ਬਿਖਿਆ ਮਾਹਿ ਉਦਾਸ ਹੈ ਹਉਮੈ ਸਬਦਿ ਜਲਾਇਆ ॥
बिखिआ माहि उदास है हउमै सबदि जलाइआ ॥
वह विष रूपी माया में से निर्लिप्त बना रहता है और शब्द द्वारा उसने अपने अहंकार को जला दिया है।
ਆਪਿ ਤਰਿਆ ਕੁਲ ਉਧਰੇ ਧੰਨੁ ਜਣੇਦੀ ਮਾਇਆ ॥
आपि तरिआ कुल उधरे धंनु जणेदी माइआ ॥
वह स्वयं भवसागर में से पार हो गया है और उसकी सारी कुल का भी उद्धार हो गया है, उसे जन्म देने वाली माता धन्य है।
ਸਦਾ ਸਹਜੁ ਸੁਖੁ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਸਚੇ ਸਿਉ ਲਿਵ ਲਾਇਆ ॥
सदा सहजु सुखु मनि वसिआ सचे सिउ लिव लाइआ ॥
उसके मन में सदैव सहज सुख बसा रहता है और सत्य में ही लगन लगी रहती है।
ਬ੍ਰਹਮਾ ਬਿਸਨੁ ਮਹਾਦੇਉ ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਭੁਲੇ ਹਉਮੈ ਮੋਹੁ ਵਧਾਇਆ ॥
ब्रहमा बिसनु महादेउ त्रै गुण भुले हउमै मोहु वधाइआ ॥
यहाँ तक कि ब्रह्मा, विष्णु और शिव जैसे देवता भी माया की तीन अवस्थाओं तमस् (बुराई), रजस (गुण) और सत्त्व (शक्ति) के चक्र में भ्रमित रहते हैं। उनके भीतर भी कभी-कभी अहंकार और सांसारिक इच्छाएँ जागृत हो जाती हैं।
ਪੰਡਿਤ ਪੜਿ ਪੜਿ ਮੋਨੀ ਭੁਲੇ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਚਿਤੁ ਲਾਇਆ ॥
पंडित पड़ि पड़ि मोनी भुले दूजै भाइ चितु लाइआ ॥
धर्मग्रंथों के ज्ञाता पंडित और तपस्वी ऋषि-मुनि भी जब धन और संपत्ति के लोभ में फंसे, तो सत्य से दूर हो गए।
ਜੋਗੀ ਜੰਗਮ ਸੰਨਿਆਸੀ ਭੁਲੇ ਵਿਣੁ ਗੁਰ ਤਤੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥
जोगी जंगम संनिआसी भुले विणु गुर ततु न पाइआ ॥
योगी, जंगम एवं सन्यासी भी भटके हुए और गुरु के बिना किसी को भी परमतत्व प्राप्त नहीं हुआ।
ਮਨਮੁਖ ਦੁਖੀਏ ਸਦਾ ਭ੍ਰਮਿ ਭੁਲੇ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹੀ ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ॥
मनमुख दुखीए सदा भ्रमि भुले तिन्ही बिरथा जनमु गवाइआ ॥
मनमुखी जीव भ्रम में फंसकर भूले हुए हैं, सदैव दुःखी रहते हैं और उन्होंने अपना जन्म व्यर्थ गंवा दिया है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਸੇਈ ਜਨ ਸਮਧੇ ਜਿ ਆਪੇ ਬਖਸਿ ਮਿਲਾਇਆ ॥੧॥
नानक नामि रते सेई जन समधे जि आपे बखसि मिलाइआ ॥१॥
हे नानक ! नाम में लीन रहने वाले जीव सदैव स्थिर रहते हैं और ईश्वर ने करुणा करके उन्हें स्वयं में मिला लिया है॥ १॥
ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
तृतीय गुरुः ३॥
ਨਾਨਕ ਸੋ ਸਾਲਾਹੀਐ ਜਿਸੁ ਵਸਿ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਹੋਇ ॥
नानक सो सालाहीऐ जिसु वसि सभु किछु होइ ॥
हे नानक ! उसकी स्तुति करनी चाहिए, जिसके वश में सबकुछ है।
ਤਿਸਹਿ ਸਰੇਵਹੁ ਪ੍ਰਾਣੀਹੋ ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥
तिसहि सरेवहु प्राणीहो तिसु बिनु अवरु न कोइ ॥
हे प्राणियों ! परमात्मा को याद करो; उसके अतिरिक्त अन्य कोई नहीं है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਅੰਤਰਿ ਮਨਿ ਵਸੈ ਸਦਾ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ॥੨॥
गुरमुखि अंतरि मनि वसै सदा सदा सुखु होइ ॥२॥
गुरुमुख के अन्तर्मन में ईश्वर बस जाते हैं और वह सदैव सुखी रहता है।॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पौड़ी॥
ਜਿਨੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਨਾਮ ਧਨੁ ਨ ਖਟਿਓ ਸੇ ਦੇਵਾਲੀਏ ਜੁਗ ਮਾਹਿ ॥
जिनी गुरमुखि हरि नाम धनु न खटिओ से देवालीए जुग माहि ॥
जिन्होंने गुरु की शिक्षाओं का पालन कर भगवान् के नाम का धन नहीं कमाया, वे इस जग में दिवालिया बने रहते हैं।
ਓਇ ਮੰਗਦੇ ਫਿਰਹਿ ਸਭ ਜਗਤ ਮਹਿ ਕੋਈ ਮੁਹਿ ਥੁਕ ਨ ਤਿਨ ਕਉ ਪਾਹਿ ॥
ओइ मंगदे फिरहि सभ जगत महि कोई मुहि थुक न तिन कउ पाहि ॥
वे सारे जगत् में भीख माँगते रहते हैं, परन्तु कोई उनकी ओर ध्यान नहीं देता।
ਪਰਾਈ ਬਖੀਲੀ ਕਰਹਿ ਆਪਣੀ ਪਰਤੀਤਿ ਖੋਵਨਿ ਸਗਵਾ ਭੀ ਆਪੁ ਲਖਾਹਿ ॥
पराई बखीली करहि आपणी परतीति खोवनि सगवा भी आपु लखाहि ॥
वे पराई निन्दा करते रहते हैं, लेकिन अपना भरोसा भी गंवा देते हैं, अपितु अपना दुष्चरित्र भी प्रकट कर देते हैं।
ਜਿਸੁ ਧਨ ਕਾਰਣਿ ਚੁਗਲੀ ਕਰਹਿ ਸੋ ਧਨੁ ਚੁਗਲੀ ਹਥਿ ਨ ਆਵੈ ਓਇ ਭਾਵੈ ਤਿਥੈ ਜਾਹਿ ॥
जिसु धन कारणि चुगली करहि सो धनु चुगली हथि न आवै ओइ भावै तिथै जाहि ॥
जिस धन के लिए वे चुगली करते हैं, पर वह धन चुगली करने से भी उनके हाथ नहीं आता, चाहे वे कहीं भी जाकर यत्न कर लें।