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ਪਾਵਉ ਧੂਰਿ ਤੇਰੇ ਦਾਸ ਕੀ ਨਾਨਕ ਕੁਰਬਾਣੀ ॥੪॥੩॥੩੩॥
पावउ धूरि तेरे दास की नानक कुरबाणी ॥४॥३॥३३॥
नानक प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु! अगर आपके दासों की चरण-धूलि मिल जाए तो उस पर ही बलिहारी होऊँ ॥ ४ ॥ ३॥ ३३॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
राग बिलावल, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਰਾਖਹੁ ਅਪਨੀ ਸਰਣਿ ਪ੍ਰਭ ਮੋਹਿ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੇ ॥
राखहु अपनी सरणि प्रभ मोहि किरपा धारे ॥
हे प्रभु ! कृपा करके मुझे अपनी शरण में रखो।
ਸੇਵਾ ਕਛੂ ਨ ਜਾਨਊ ਨੀਚੁ ਮੂਰਖਾਰੇ ॥੧॥
सेवा कछू न जानऊ नीचु मूरखारे ॥१॥
मैं तो नीच एवं मूर्ख हूँ और आपकी सेवा करना कुछ भी नहीं जानता ॥ १॥
ਮਾਨੁ ਕਰਉ ਤੁਧੁ ਊਪਰੇ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਪਿਆਰੇ ॥
मानु करउ तुधु ऊपरे मेरे प्रीतम पिआरे ॥
हे मेरे प्रियतम प्यारे ! मुझे आप पर बहुत भरोसा है,
ਹਮ ਅਪਰਾਧੀ ਸਦ ਭੂਲਤੇ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਬਖਸਨਹਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हम अपराधी सद भूलते तुम्ह बखसनहारे ॥१॥ रहाउ ॥
हम जीव अपराधी हैं और सदा ही भूल करते रहते हैं लेकिन आप क्षमावान है ॥१॥ रहाउ ॥
ਹਮ ਅਵਗਨ ਕਰਹ ਅਸੰਖ ਨੀਤਿ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਨਿਰਗੁਨ ਦਾਤਾਰੇ ॥
हम अवगन करह असंख नीति तुम्ह निरगुन दातारे ॥
हे प्रभु! हम प्रतिदिन अनगिनत पाप करते हैं, फिर भी आप हम पापियों के प्रति दयालु और परोपकारी हैं।
ਦਾਸੀ ਸੰਗਤਿ ਪ੍ਰਭੂ ਤਿਆਗਿ ਏ ਕਰਮ ਹਮਾਰੇ ॥੨॥
दासी संगति प्रभू तिआगि ए करम हमारे ॥२॥
हे प्रभु! हमारे कर्म इतने बुरे हैं कि तुझे छोड़कर आपकी दासी माया की संगति में आसक्त रहते हैं।॥ २॥
ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਦੇਵਹੁ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਦਇਆ ਧਾਰਿ ਹਮ ਅਕਿਰਤਘਨਾਰੇ ॥
तुम्ह देवहु सभु किछु दइआ धारि हम अकिरतघनारे ॥
अपनी दया करके आप हमें सबकुछ देते रहते हो लेकिन हम फिर भी कृतघ्न जीव ही हैं।
ਲਾਗਿ ਪਰੇ ਤੇਰੇ ਦਾਨ ਸਿਉ ਨਹ ਚਿਤਿ ਖਸਮਾਰੇ ॥੩॥
लागि परे तेरे दान सिउ नह चिति खसमारे ॥३॥
हे मालिक ! हम आपको हृदय में बसाने में असमर्थ हैं, फिर भी आपकी कृपा से मिले उपहारों से जुड़े रहते हैं।॥ ३॥
ਤੁਝ ਤੇ ਬਾਹਰਿ ਕਿਛੁ ਨਹੀ ਭਵ ਕਾਟਨਹਾਰੇ ॥
तुझ ते बाहरि किछु नही भव काटनहारे ॥
हे संसार-सागर के बन्धन काटने वाले ! आपके वश से बाहर कुछ भी नहीं है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸਰਣਿ ਦਇਆਲ ਗੁਰ ਲੇਹੁ ਮੁਗਧ ਉਧਾਰੇ ॥੪॥੪॥੩੪॥
कहु नानक सरणि दइआल गुर लेहु मुगध उधारे ॥४॥४॥३४॥
हे दयालु गुरु ! भक्त नानक विनती करते हैं कि मैं आपकी शरण में आया हूँ, मुझ मूर्ख का भवसागर से उद्धार कर दो। ॥४॥४॥३४॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
राग बिलावल, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਦੋਸੁ ਨ ਕਾਹੂ ਦੀਜੀਐ ਪ੍ਰਭੁ ਅਪਨਾ ਧਿਆਈਐ ॥
दोसु न काहू दीजीऐ प्रभु अपना धिआईऐ ॥
हमें अपनी परेशानियों के लिए किसी अन्य को दोष नहीं देना चाहिए अपितु सदैव प्रभु का ध्यान करना चाहिए।
ਜਿਤੁ ਸੇਵਿਐ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ਘਨਾ ਮਨ ਸੋਈ ਗਾਈਐ ॥੧॥
जितु सेविऐ सुखु होइ घना मन सोई गाईऐ ॥१॥
हे मेरे मन ! जिसकी उपासना करने से बहुत सुख मिलता है,उस परमात्मा का ही यशोगान करना चाहिए॥ १॥
ਕਹੀਐ ਕਾਇ ਪਿਆਰੇ ਤੁਝੁ ਬਿਨਾ ॥
कहीऐ काइ पिआरे तुझु बिना ॥
हे मेरे प्यारे ! आपके अतिरिक्त किसे अपना दुःख बताऊँ ?
ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਦਇਆਲ ਸੁਆਮੀ ਸਭ ਅਵਗਨ ਹਮਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तुम्ह दइआल सुआमी सभ अवगन हमा ॥१॥ रहाउ ॥
हे मेरे स्वामी ! आप दया का सागर है, परन्तु मुझ में अनेक अवगुण भरे हुए हैं।॥ १॥ रहाउ ॥
ਜਿਉ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਰਾਖਹੁ ਤਿਉ ਰਹਾ ਅਵਰੁ ਨਹੀ ਚਾਰਾ ॥
जिउ तुम्ह राखहु तिउ रहा अवरु नही चारा ॥
जैसे (सुख दुःख में) आप मुझे रखते है, वैसे ही मैं रहता हूँ। इसके अतिरिक्त अन्य कोई साधन नहीं है।
ਨੀਧਰਿਆ ਧਰ ਤੇਰੀਆ ਇਕ ਨਾਮ ਅਧਾਰਾ ॥੨॥
नीधरिआ धर तेरीआ इक नाम अधारा ॥२॥
बेसहारों को आपका ही सहारा है तथा एक आपका नाम ही सबके जीवन का आधार है। २ ॥
ਜੋ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਕਰਹੁ ਸੋਈ ਭਲਾ ਮਨਿ ਲੇਤਾ ਮੁਕਤਾ ॥
जो तुम्ह करहु सोई भला मनि लेता मुकता ॥
जो कुछ आप करते है, वही भला है और जो इसे सहर्ष स्वीकार कर लेता है, वह मुक्त हो जाता है।
ਸਗਲ ਸਮਗ੍ਰੀ ਤੇਰੀਆ ਸਭ ਤੇਰੀ ਜੁਗਤਾ ॥੩॥
सगल समग्री तेरीआ सभ तेरी जुगता ॥३॥
यह सम्पूर्ण सृष्टि आपकी अपनी है और सब कुछ आपकी मर्यादा में हो रहा है॥ ३॥
ਚਰਨ ਪਖਾਰਉ ਕਰਿ ਸੇਵਾ ਜੇ ਠਾਕੁਰ ਭਾਵੈ ॥
चरन पखारउ करि सेवा जे ठाकुर भावै ॥
हे गुरुदेव! यदि आप प्रसन्न हैं, तो मुझे आशीर्वाद दीजिए कि मैं अत्यंत नम्रता से आपकी भक्ति में लीन रह सकूँ।
ਹੋਹੁ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਦਇਆਲ ਪ੍ਰਭ ਨਾਨਕੁ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ॥੪॥੫॥੩੫॥
होहु क्रिपाल दइआल प्रभ नानकु गुण गावै ॥४॥५॥३५॥
हे प्रभु ! कृपालु एवं दयालु हो जाओ ताकि भक्त नानक आपके गुण गाता रहे॥ ४॥ ५ ॥ ३५ ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
राग बिलावल, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਮਿਰਤੁ ਹਸੈ ਸਿਰ ਊਪਰੇ ਪਸੂਆ ਨਹੀ ਬੂਝੈ ॥
मिरतु हसै सिर ऊपरे पसूआ नही बूझै ॥
मृत्यु सिर पर खड़ी हुई हँसती है लेकिन पशु समान मनुष्य इस तथ्य को नहीं समझता।
ਬਾਦ ਸਾਦ ਅਹੰਕਾਰ ਮਹਿ ਮਰਣਾ ਨਹੀ ਸੂਝੈ ॥੧॥
बाद साद अहंकार महि मरणा नही सूझै ॥१॥
जीवन-भर वाद-विवाद, स्वादों एवं अहंकार में लिप्त रहने के कारण मृत्यु का विचार भी उसके मन में नहीं आता ॥ १॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਹੁ ਆਪਨਾ ਕਾਹੇ ਫਿਰਹੁ ਅਭਾਗੇ ॥
सतिगुरु सेवहु आपना काहे फिरहु अभागे ॥
हे बदनसीब ! क्यों भटक रहा है ? अपने सतगुरु की सेवा करो।
ਦੇਖਿ ਕਸੁੰਭਾ ਰੰਗੁਲਾ ਕਾਹੇ ਭੂਲਿ ਲਾਗੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
देखि कसु्मभा रंगुला काहे भूलि लागे ॥१॥ रहाउ ॥
रंग-बिरंगे फूलों की नश्वर सुंदरता की भांति क्षणभंगुर सांसारिक सुखों को देखकर तुम उनमें भूलकर क्यों आसक्त हो गए हो? ॥ १॥ रहाउ॥
ਕਰਿ ਕਰਿ ਪਾਪ ਦਰਬੁ ਕੀਆ ਵਰਤਣ ਕੈ ਤਾਈ ॥
करि करि पाप दरबु कीआ वरतण कै ताई ॥
अपने उपयोग के लिए पाप कर-करके तूने अपार धन एकत्रित किया है।
ਮਾਟੀ ਸਿਉ ਮਾਟੀ ਰਲੀ ਨਾਗਾ ਉਠਿ ਜਾਈ ॥੨॥
माटी सिउ माटी रली नागा उठि जाई ॥२॥
किन्तु जब मृत्यु आती है तो यह शरीर रूपी मिट्टी मिट्टी में ही मिल जाता है और जीव नग्न ही दुनिया से चला जाता है।॥ २॥
ਜਾ ਕੈ ਕੀਐ ਸ੍ਰਮੁ ਕਰੈ ਤੇ ਬੈਰ ਬਿਰੋਧੀ ॥
जा कै कीऐ स्रमु करै ते बैर बिरोधी ॥
जिन संबंधियों के लिए वह कठोर परिश्रम करता है, वहीं उसके विरोधी बनकर उससे वैर करते हैं।
ਅੰਤ ਕਾਲਿ ਭਜਿ ਜਾਹਿਗੇ ਕਾਹੇ ਜਲਹੁ ਕਰੋਧੀ ॥੩॥
अंत कालि भजि जाहिगे काहे जलहु करोधी ॥३॥
इनके लिए तू क्यों क्रोध में जल रहा है ? क्योंकि अंतकाल सभी तुझसे दूर भाग जाएँगे ॥ ३ ॥
ਦਾਸ ਰੇਣੁ ਸੋਈ ਹੋਆ ਜਿਸੁ ਮਸਤਕਿ ਕਰਮਾ ॥
दास रेणु सोई होआ जिसु मसतकि करमा ॥
जिसके मस्तक पर भाग्य होता है, वही प्रभु के दासों की चरणरज बना है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਬੰਧਨ ਛੁਟੇ ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਸਰਨਾ ॥੪॥੬॥੩੬॥
कहु नानक बंधन छुटे सतिगुर की सरना ॥४॥६॥३६॥
हे नानक ! जिसने भी सतगुरु की शरण ली है, उसके सभी बन्धन छूट गए हैं।॥ ४॥ ६॥ ३६ ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
राग बिलावल, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਪਿੰਗੁਲ ਪਰਬਤ ਪਾਰਿ ਪਰੇ ਖਲ ਚਤੁਰ ਬਕੀਤਾ ॥
पिंगुल परबत पारि परे खल चतुर बकीता ॥
लंगड़ा आदमी पर्वत पर चढ़ गया है और महामूर्ख भी चतुर वक्ता बन गया है।
ਅੰਧੁਲੇ ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਸੂਝਿਆ ਗੁਰ ਭੇਟਿ ਪੁਨੀਤਾ ॥੧॥
अंधुले त्रिभवण सूझिआ गुर भेटि पुनीता ॥१॥
गुरु से मिलकर अंधे व्यक्ति को तीनों लोकों का ज्ञान हो गया है॥ १॥
ਮਹਿਮਾ ਸਾਧੂ ਸੰਗ ਕੀ ਸੁਨਹੁ ਮੇਰੇ ਮੀਤਾ ॥
महिमा साधू संग की सुनहु मेरे मीता ॥
हे मेरे मित्र ! साधु-संगति की महिमा सुनो;
ਮੈਲੁ ਖੋਈ ਕੋਟਿ ਅਘ ਹਰੇ ਨਿਰਮਲ ਭਏ ਚੀਤਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मैलु खोई कोटि अघ हरे निरमल भए चीता ॥१॥ रहाउ ॥
जिस किसी ने भी साधु का संग किया है, उसके मन की मैल दूर हो गई है, उसके करोड़ों ही पाप नाश हो गए हैं और उसका चित्त निर्मल हो गया है॥ १॥ रहाउ ॥
ਐਸੀ ਭਗਤਿ ਗੋਵਿੰਦ ਕੀ ਕੀਟਿ ਹਸਤੀ ਜੀਤਾ ॥
ऐसी भगति गोविंद की कीटि हसती जीता ॥
गोविंद की भक्ति ऐसी है कि नम्रता रूपी चींटी ने अहम् रूपी हाथी को भी जीत लिया है।
ਜੋ ਜੋ ਕੀਨੋ ਆਪਨੋ ਤਿਸੁ ਅਭੈ ਦਾਨੁ ਦੀਤਾ ॥੨॥
जो जो कीनो आपनो तिसु अभै दानु दीता ॥२॥
जिस-किसी को भी भगवान् ने अपना बनाया है, उसे अभयदान दिया है।॥ २॥
ਸਿੰਘੁ ਬਿਲਾਈ ਹੋਇ ਗਇਓ ਤ੍ਰਿਣੁ ਮੇਰੁ ਦਿਖੀਤਾ ॥
सिंघु बिलाई होइ गइओ त्रिणु मेरु दिखीता ॥
(अहंकार रूपी) सिंह (नम्रता रूपी) बिल्ली बन गया है। उसे (नम्रता रूपी) घास का तिनका सुमेरु पर्वत दिखाई देने लग गया है।