Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 757

Page 757

ਹਉ ਤਿਨ ਕੈ ਬਲਿਹਾਰਣੈ ਮਨਿ ਹਰਿ ਗੁਣ ਸਦਾ ਰਵੰਨਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मैं उन पर बलिहारी जाता हूँ, जो सदैव अपने मन में प्रभु का गुणगान करते रहते हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਗੁਰੁ ਸਰਵਰੁ ਮਾਨ ਸਰੋਵਰੁ ਹੈ ਵਡਭਾਗੀ ਪੁਰਖ ਲਹੰਨ੍ਹ੍ਹਿ ॥ गुरु मानसरोवर रूपी पावन सरोवर है और खुशनसीब पुरुष उसे प्राप्त कर लेते हैं।
ਸੇਵਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਖੋਜਿਆ ਸੇ ਹੰਸੁਲੇ ਨਾਮੁ ਲਹੰਨਿ ॥੨॥ जिन सेवकों ने गुरुमुख बनकर नाम को खोजा है, उन परमहंस संतों ने नाम हासिल कर लिया है॥ २॥
ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਨ੍ਹ੍ਹਿ ਰੰਗ ਸਿਉ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮਿ ਲਗੰਨ੍ਹ੍ਹਿ ॥ गुरुमुख परमात्मा के नाम-ध्यान में ही लीन रहते हैं और प्रेम से नाम-सिमरन करते रहते हैं।
ਧੁਰਿ ਪੂਰਬਿ ਹੋਵੈ ਲਿਖਿਆ ਗੁਰ ਭਾਣਾ ਮੰਨਿ ਲਏਨ੍ਹ੍ਹਿ ॥੩॥ यदि प्रारम्भ से ही ऐसा भाग्य लिखा हो तो गुरु की रजा को मान लेते हैं।॥ ३॥
ਵਡਭਾਗੀ ਘਰੁ ਖੋਜਿਆ ਪਾਇਆ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ॥ उन भाग्यवान पुरुषों ने अपना हृदय-घर खोजा है और नाम रूपी खजाना ही पाया है।
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਵੇਖਾਲਿਆ ਪ੍ਰਭੁ ਆਤਮ ਰਾਮੁ ਪਛਾਨੁ ॥੪॥ पूर्ण गुरु ने उन्हें परमात्मा दिखा दिया है और उन्होंने आत्मा में ईश्वर को पहचान लिया है॥ ४॥
ਸਭਨਾ ਕਾ ਪ੍ਰਭੁ ਏਕੁ ਹੈ ਦੂਜਾ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥ सब जीवों का प्रभु एक ही है और दूसरा अन्य कोई नहीं है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਮਨਿ ਵਸੈ ਤਿਤੁ ਘਟਿ ਪਰਗਟੁ ਹੋਇ ॥੫॥ वह उस व्यक्ति के हृदय में प्रगट होता है, जिसके मन में गुरु की कृपा द्वारा आ बसता है॥ ५ ॥
ਸਭੁ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਬ੍ਰਹਮੁ ਹੈ ਬ੍ਰਹਮੁ ਵਸੈ ਸਭ ਥਾਇ ॥ समूचा विश्व अन्तर्यामी ब्रह्म का रूप है और हर जगह ब्रह्म का निवास है।
ਮੰਦਾ ਕਿਸ ਨੋ ਆਖੀਐ ਸਬਦਿ ਵੇਖਹੁ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥੬॥ बुरा किसे कहा जाए? शब्द में ध्यान लगाकर देख लो॥ ६॥
ਬੁਰਾ ਭਲਾ ਤਿਚਰੁ ਆਖਦਾ ਜਿਚਰੁ ਹੈ ਦੁਹੁ ਮਾਹਿ ॥ जब तक आदमी ‘तेरा-मेरा' की दुविधा में पड़ा रहता है, वह तब तक ही किसी को बुरा और किसी को भला कहता रहता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਏਕੋ ਬੁਝਿਆ ਏਕਸੁ ਮਾਹਿ ਸਮਾਇ ॥੭॥ गुरुमुखों ने एक परमात्मा को ही समझा है और वह उस एक प्रभु में ही लीन रहते हैं।॥ ७॥
ਸੇਵਾ ਸਾ ਪ੍ਰਭ ਭਾਵਸੀ ਜੋ ਪ੍ਰਭੁ ਪਾਏ ਥਾਇ ॥ वही सेवा करनी चाहिए जो प्रभु को उपयुक्त लगती हो और जिसे स्वीकार कर लेता है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਆਰਾਧਿਆ ਗੁਰ ਚਰਣੀ ਚਿਤੁ ਲਾਇ ॥੮॥੨॥੪॥੯॥ हे नानक ! गुरु के चरणों में चित्त लगाकर उसने प्रभु की ही आराधना की है। ८ ।॥ २॥ ४॥ ६॥
ਰਾਗੁ ਸੂਹੀ ਅਸਟਪਦੀਆ ਮਹਲਾ ੪ ਘਰੁ ੨ रागु सूही असटपदीआ महला ४ घरु २
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਕੋਈ ਆਣਿ ਮਿਲਾਵੈ ਮੇਰਾ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਪਿਆਰਾ ਹਉ ਤਿਸੁ ਪਹਿ ਆਪੁ ਵੇਚਾਈ ॥੧॥ अगर कोई मुझे प्रियतम प्यारे से मिला दे तो मैं उसके पास अपना आप बेच दूँगा ॥ १॥
ਦਰਸਨੁ ਹਰਿ ਦੇਖਣ ਕੈ ਤਾਈ ॥ मैं हरि का दर्शन करने के लिए इस तरह ही करूँगा।
ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਹਿ ਤਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਲਹਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे परमेश्वर ! यदि तू कृपा कर दे तो सतगुरु से मिलाप हो जाए और फिर तेरे नाम का ध्यान करता रहूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਜੇ ਸੁਖੁ ਦੇਹਿ ਤ ਤੁਝਹਿ ਅਰਾਧੀ ਦੁਖਿ ਭੀ ਤੁਝੈ ਧਿਆਈ ॥੨॥ हे ईश्वर ! यदि तू मुझे सुख देता है तो मैं तेरी ही आराधना करता हूँ और दुख तकलीफ में भी तेरा ही चिंतन करता हूँ॥ २ ॥
ਜੇ ਭੁਖ ਦੇਹਿ ਤ ਇਤ ਹੀ ਰਾਜਾ ਦੁਖ ਵਿਚਿ ਸੂਖ ਮਨਾਈ ॥੩॥ तू मुझे भूखा रखता है तो मैं इससे भी तृप्त हो जाता हूँ और दुख में भी सुख की अनुभूति करता हूँ॥ ३॥
ਤਨੁ ਮਨੁ ਕਾਟਿ ਕਾਟਿ ਸਭੁ ਅਰਪੀ ਵਿਚਿ ਅਗਨੀ ਆਪੁ ਜਲਾਈ ॥੪॥ मैं अपना तन-मन काट-काटकर सबकुछ तुझे अर्पण कर दूँगा और अग्नि में खुद को जला दूँगा॥ ४॥
ਪਖਾ ਫੇਰੀ ਪਾਣੀ ਢੋਵਾ ਜੋ ਦੇਵਹਿ ਸੋ ਖਾਈ ॥੫॥ मैं संतजनों को पंखा करता हूँ, उनके लिए पानी ढोता हूँ और वही खाता हूँ जो मुझे देते हैं।॥ ५॥
ਨਾਨਕੁ ਗਰੀਬੁ ਢਹਿ ਪਇਆ ਦੁਆਰੈ ਹਰਿ ਮੇਲਿ ਲੈਹੁ ਵਡਿਆਈ ॥੬॥ हे हरि ! गरीब नानक तेरे द्वार पर नतमस्तक हो गया है, मुझे अपने साथ मिला लो, मुझे यही बड़ाई दो॥ ६॥
ਅਖੀ ਕਾਢਿ ਧਰੀ ਚਰਣਾ ਤਲਿ ਸਭ ਧਰਤੀ ਫਿਰਿ ਮਤ ਪਾਈ ॥੭॥ मैं सारी धरती घूम कर देखँगा, शायद मेरा गुरु मुझे मिल जाए। मैं अपनी आंखें निकालकर उसके चरणों में रख दूँगा ॥ ७॥
ਜੇ ਪਾਸਿ ਬਹਾਲਹਿ ਤਾ ਤੁਝਹਿ ਅਰਾਧੀ ਜੇ ਮਾਰਿ ਕਢਹਿ ਭੀ ਧਿਆਈ ॥੮॥ यदि गुरु मुझे अपने पास बिठा ले तो तेरी ही आराधना करूँगा। यदि वह मुझे धक्के मार-मार कर निकाल भी देगा तो तेरा ही ध्यान करूँगा। ॥८॥
ਜੇ ਲੋਕੁ ਸਲਾਹੇ ਤਾ ਤੇਰੀ ਉਪਮਾ ਜੇ ਨਿੰਦੈ ਤ ਛੋਡਿ ਨ ਜਾਈ ॥੯॥ यदि लोग मेरी सराहना करेंगे तो वह तेरी ही उपमा है। यदि निंदा-आलोचना करेंगे तो भी मैं तुझे छोड़कर नहीं जाऊँगा। ९ ॥
ਜੇ ਤੁਧੁ ਵਲਿ ਰਹੈ ਤਾ ਕੋਈ ਕਿਹੁ ਆਖਉ ਤੁਧੁ ਵਿਸਰਿਐ ਮਰਿ ਜਾਈ ॥੧੦॥ यदि तू मेरे साथ रहे तो मुझे क्या कह सकता है? तुझे भुलाने से तो मैं मर ही जाता हूँ॥ १०॥
ਵਾਰਿ ਵਾਰਿ ਜਾਈ ਗੁਰ ਊਪਰਿ ਪੈ ਪੈਰੀ ਸੰਤ ਮਨਾਈ ॥੧੧॥ मैं अपने गुरु पर शत कुर्बान जाता हूँ और पैरों पर पड़कर संतों को खुश करता हूँ॥ ११॥
ਨਾਨਕੁ ਵਿਚਾਰਾ ਭਇਆ ਦਿਵਾਨਾ ਹਰਿ ਤਉ ਦਰਸਨ ਕੈ ਤਾਈ ॥੧੨॥ हे हरि ! तेरे दर्शन करने के लिए बेचारा नानक तो दीवाना हो गया है। १२॥
ਝਖੜੁ ਝਾਗੀ ਮੀਹੁ ਵਰਸੈ ਭੀ ਗੁਰੁ ਦੇਖਣ ਜਾਈ ॥੧੩॥ चाहे सख्त आंधी-तूफान आ जाए, चाहे मूसलाधार बारिश आ जाए तो भी गुरु के दर्शन करने के लिए जाता हूँ॥ १३॥
ਸਮੁੰਦੁ ਸਾਗਰੁ ਹੋਵੈ ਬਹੁ ਖਾਰਾ ਗੁਰਸਿਖੁ ਲੰਘਿ ਗੁਰ ਪਹਿ ਜਾਈ ॥੧੪॥ यदि बहुत खारा समुद्र-सागर हो तो भी गुरु का शिष्य उसे पार करके अपने गुरु के पास जाता है॥ १४॥
ਜਿਉ ਪ੍ਰਾਣੀ ਜਲ ਬਿਨੁ ਹੈ ਮਰਤਾ ਤਿਉ ਸਿਖੁ ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਮਰਿ ਜਾਈ ॥੧੫॥ जैसे प्राणी जल के बिना मर जाता है, वैसे ही गुरु के बिना शिष्य मृत्यु को प्राप्त हो जाता है॥ १५॥


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