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                    ਜੈ ਜਗਦੀਸ ਕੀ ਗਤਿ ਨਹੀ ਜਾਣੀ ॥੩॥
                   
                    
                                              
                        मगर जगदीश की जय-जयकार की महिमा नहीं जानी॥ ३ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਰਣਿ ਸਮਰਥ ਅਗੋਚਰ ਸੁਆਮੀ ॥
                   
                    
                                              
                        हे मन-वाणी से परे स्वामी ! तू सर्वकला समर्थ है और मैं तेरी ही शरण में आया हूँ।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਉਧਰੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥੪॥੨੭॥੩੩॥
                   
                    
                                              
                        नानक की प्रार्थना है कि हे अन्तर्यामी प्रभु ! मेरा भी भवसागर से उद्धार कर दो ॥ ४ ॥ २७ ॥ ३३ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
                   
                    
                                              
                        सूही महला ५ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਾਧਸੰਗਿ ਤਰੈ ਭੈ ਸਾਗਰੁ ॥
                   
                    
                                              
                        साधुओं की संगति करने से जीव भयानक संसार सागर से तर जाता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਿਮਰਿ ਰਤਨਾਗਰੁ ॥੧॥
                   
                    
                                              
                        हरि नाम-स्मरण करते रहो, जो रत्नाकर है॥ १॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਜੀਵਾ ਨਾਰਾਇਣ ॥
                   
                    
                                              
                        हे नारायण ! तेरा नाम सिमरन करके ही जी रहा हूँ।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਦੂਖ ਰੋਗ ਸੋਗ ਸਭਿ ਬਿਨਸੇ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਮਿਲਿ ਪਾਪ ਤਜਾਇਣ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
                   
                    
                                              
                        मेरे दुख, रोग, शोक सब नाश हो गए हैं और पूर्ण गुरु से मिलकर पाप त्याग दिए हैं।॥ १॥ रहाउ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਜੀਵਨ ਪਦਵੀ ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਉ ॥
                   
                    
                                              
                        भगवान का नाम ही जीवन पदवी है,
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮਨੁ ਤਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਸਾਚੁ ਸੁਆਉ ॥੨॥
                   
                    
                                              
                        जिससे मन-तन निर्मल हो जाता है और सच्चा मनोरथ साकार हो जाता है॥ २I।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਆਠ ਪਹਰ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਧਿਆਈਐ ॥
                   
                    
                                              
                        आठों प्रहर परब्रह्म का ध्यान करना चाहिए लेकिन
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਤੁ ਹੋਇ ਤਾ ਪਾਈਐ ॥੩॥
                   
                    
                                              
                        यह तो ही मिलता है, यदि पूर्व से ही तकदीर में लिखा हो ॥ ३ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਰਣਿ ਪਏ ਜਪਿ ਦੀਨ ਦਇਆਲਾ ॥
                   
                    
                                              
                        जो दीनदयाल परमात्मा का नाम जपकर उसकी शरण में पड़ गए हैं,
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਾਨਕੁ ਜਾਚੈ ਸੰਤ ਰਵਾਲਾ ॥੪॥੨੮॥੩੪॥
                   
                    
                                              
                        नानक उन संतजनों की चरण-रज ही माँगता है॥ ४ ॥ २८ ॥ ३४ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
                   
                    
                                              
                        सूही महला ५ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਘਰ ਕਾ ਕਾਜੁ ਨ ਜਾਣੀ ਰੂੜਾ ॥
                   
                    
                                              
                        जीव हृदय-घर के नाम-सिमरन रूपी सुन्दर काम को नहीं जानता।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਝੂਠੈ ਧੰਧੈ ਰਚਿਓ ਮੂੜਾ ॥੧॥
                   
                    
                                              
                        वह मूर्ख तो दुनिया के झूठे धंधे में ही मस्त रहता है। १॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਜਿਤੁ ਤੂੰ ਲਾਵਹਿ ਤਿਤੁ ਤਿਤੁ ਲਗਨਾ ॥
                   
                    
                                              
                        हे भगवान् ! तू जीव को जिस कार्य में लगा देता है, वह उस में ही लग जाता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਜਾ ਤੂੰ ਦੇਹਿ ਤੇਰਾ ਨਾਉ ਜਪਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
                   
                    
                                              
                        जब तू अपना नाम देता है तो ही वह नाम जपता है। १॥ रहाउ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹਰਿ ਕੇ ਦਾਸ ਹਰਿ ਸੇਤੀ ਰਾਤੇ ॥
                   
                    
                                              
                        भगवान के भक्त उसके प्रेम में लीन रहते हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਰਾਮ ਰਸਾਇਣਿ ਅਨਦਿਨੁ ਮਾਤੇ ॥੨॥
                   
                    
                                              
                        वे रात-दिन राम नाम रूपी रसायण में मस्त रहते हैं।॥ २ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਬਾਹ ਪਕਰਿ ਪ੍ਰਭਿ ਆਪੇ ਕਾਢੇ ॥ ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਟੂਟੇ ਗਾਢੇ ॥੩॥
                   
                    
                                              
                        हे प्रभु ! तू उनकी बाँह पकड़ कर उन्हें स्वयं ही भवसागर से निकाल देता है और जन्म-जन्मांतर के बिछुड़े हुओं को अपने साथ मिला लेता है॥ ३॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਉਧਰੁ ਸੁਆਮੀ ਪ੍ਰਭ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੇ ॥
                   
                    
                                              
                        हे स्वामी प्रभु ! कृपा करके मेरा उद्धार कर दो।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਹਰਿ ਸਰਣਿ ਦੁਆਰੇ ॥੪॥੨੯॥੩੫॥
                   
                    
                                              
                        क्योंकि दास नानक तेरी शरण में तेरे द्वार में आ पड़ा है॥ ४॥ २६॥ ३५ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥                                                                                                                                                                        
                   
                    
                                              
                        सूही महला ५ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸੰਤ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਨਿਹਚਲੁ ਘਰੁ ਪਾਇਆ ॥
                   
                    
                                              
                        संतों की कृपा से निश्चल घर पा लिया है,
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਰਬ ਸੂਖ ਫਿਰਿ ਨਹੀ ਡੋੁਲਾਇਆ ॥੧॥
                   
                    
                                              
                        जिससे सर्व सुख मिल गए और मन फिर से नहीं डगमगाता॥ १॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗੁਰੂ ਧਿਆਇ ਹਰਿ ਚਰਨ ਮਨਿ ਚੀਨ੍ਹ੍ਹੇ ॥
                   
                    
                                              
                        गुरु का ध्यान करके मन में हरि-चरणों को जान लिया है,
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਤਾ ਤੇ ਕਰਤੈ ਅਸਥਿਰੁ ਕੀਨ੍ਹ੍ਹੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
                   
                    
                                              
                        जिससे करतार ने मुझे स्थिर कर दिया है॥ १॥ रहाउ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗੁਣ ਗਾਵਤ ਅਚੁਤ ਅਬਿਨਾਸੀ ॥
                   
                    
                                              
                        अब मैं अच्युत अविनाशी परमात्मा के गुण गाता रहता हूँ,
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਤਾ ਤੇ ਕਾਟੀ ਜਮ ਕੀ ਫਾਸੀ ॥੨॥
                   
                    
                                              
                        जिसके फलस्वरूप मृत्यु की फाँसी कट गई है॥ २॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਲੀਨੇ ਲੜਿ ਲਾਏ ॥
                   
                    
                                              
                        कृपा करके ईश्वर ने मुझे अपने साथ लगा लिया है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਦਾ ਅਨਦੁ ਨਾਨਕ ਗੁਣ ਗਾਏ ॥੩॥੩੦॥੩੬॥
                   
                    
                                              
                        हे नानक ! परमात्मा का गुणगान करने से सदैव आनंद बना रहता है ॥३॥ ३०॥ ३६॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
                   
                    
                                              
                        सूही महला ५ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਚਨ ਸਾਧ ਕੀ ਬਾਣੀ ॥
                   
                    
                                              
                        साधु की वाणी अमृत वचन है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਜੋ ਜੋ ਜਪੈ ਤਿਸ ਕੀ ਗਤਿ ਹੋਵੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨਿਤ ਰਸਨ ਬਖਾਨੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
                   
                    
                                              
                        जो भी इसे जपता है, उसकी मुक्ति हो जाती है। वह अपनी जीभ से नित्य हरि नाम का बखान करता रहता है॥ १॥ रहाउ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਕਲੀ ਕਾਲ ਕੇ ਮਿਟੇ ਕਲੇਸਾ ॥
                   
                    
                                              
                        मेरे कलियुग के क्लेश मिट गए है क्योंकि
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਏਕੋ ਨਾਮੁ ਮਨ ਮਹਿ ਪਰਵੇਸਾ ॥੧॥
                   
                    
                                              
                        परमात्मा का एक नाम ही मेरे मन में प्रवेश कर गया है॥ १॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਾਧੂ ਧੂਰਿ ਮੁਖਿ ਮਸਤਕਿ ਲਾਈ ॥
                   
                    
                                              
                        मैंने साधु की चरण-धूलि अपने मुख एवं मस्तक पर लगाई है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਾਨਕ ਉਧਰੇ ਹਰਿ ਗੁਰ ਸਰਣਾਈ ॥੨॥੩੧॥੩੭॥
                   
                    
                                              
                        हे नानक ! हरि-गुरु की शरण में आने से उद्धार हो गया है।ll २ ॥ ३१॥ ३७ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੩ ॥
                   
                    
                                              
                        सूही महला ५ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗੋਬਿੰਦਾ ਗੁਣ ਗਾਉ ਦਇਆਲਾ ॥
                   
                    
                                              
                        हे गोविन्द ! तू बड़ा दयालु है और मैं हर वक्त तेरा ही गुणगान करता रहता हूँ।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਦਰਸਨੁ ਦੇਹੁ ਪੂਰਨ ਕਿਰਪਾਲਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥
                   
                    
                                              
                        हे पूर्ण कृपालु ! मुझे अपने दर्शन दीजिए॥ रहाउ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਤੁਮ ਹੀ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਾ ॥
                   
                    
                                              
                        अपनी कृपा करो, क्योंकि एक तू ही प्रतिपालक है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਸਭੁ ਤੁਮਰਾ ਮਾਲਾ ॥੧॥
                   
                    
                                              
                        यह प्राण एवं शरीर सब तेरी ही दी हुई पूंजी है॥ १॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਚਲੈ ਜਪਿ ਨਾਲਾ ॥
                   
                    
                                              
                        अमृत नाम जपों, अंतिम समय एक यही जीव के साथ जाता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਾਨਕੁ ਜਾਚੈ ਸੰਤ ਰਵਾਲਾ ॥੨॥੩੨॥੩੮॥
                   
                    
                                              
                        नानक तो संतों की चरण-धूलि ही चाहता है॥ २॥ ३२ ॥ ३८ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
                   
                    
                                              
                        सूही महला ५ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਦੂਜਾ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥
                   
                    
                                              
                        उसके सिवा दूसरा अन्य कोई नहीं है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਆਪੇ ਥੰਮੈ ਸਚਾ ਸੋਈ ॥੧॥
                   
                    
                                              
                        वह सच्चा परमात्मा स्वयं ही सबको सहारा देता है॥ १॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਮੇਰਾ ਆਧਾਰੁ ॥
                   
                    
                                              
                        परमात्मा का नाम ही मेरे जीवन का आधार है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਸਮਰਥੁ ਅਪਾਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
                   
                    
                                              
                        वह अपरंपार सबकुछ करने-करवाने में समर्थ है॥ १॥ रहाउ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਭ ਰੋਗ ਮਿਟਾਵੇ ਨਵਾ ਨਿਰੋਆ ॥
                   
                    
                                              
                        उसने सारे रोग मिटा कर तंदुरुस्त कर दिया है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਾਨਕ ਰਖਾ ਆਪੇ ਹੋਆ ॥੨॥੩੩॥੩੯॥
                   
                    
                                              
                        हे नानक ! परमात्मा स्वयं ही (मेरा) रखवाला बना है ॥२॥३३॥३९॥