Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 743

Page 743

ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सूही महला ५ ॥ राग सूही, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਦੀਨੁ ਛਡਾਇ ਦੁਨੀ ਜੋ ਲਾਏ ॥ दीनु छडाइ दुनी जो लाए ॥ जिसे भगवान् धर्म के रास्ते से भटका देते हैं और उसे पूरी तरह माया, दुनिया के धन और ताकत से जोड़ देते हैं
ਦੁਹੀ ਸਰਾਈ ਖੁਨਾਮੀ ਕਹਾਏ ॥੧॥ दुही सराई खुनामी कहाए ॥१॥ वह लोक परलोक दोनों में पापी कहलाता है॥ १॥
ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਸੋ ਪਰਵਾਣੁ ॥ जो तिसु भावै सो परवाणु ॥ जो ईश्वर को उपयुक्त लगता है, मुझे वह प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार है।
ਆਪਣੀ ਕੁਦਰਤਿ ਆਪੇ ਜਾਣੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ आपणी कुदरति आपे जाणु ॥१॥ रहाउ ॥ अपनी सृष्टि की रचना को वह स्वयं ही जानते है॥ १॥ रहाउ॥
ਸਚਾ ਧਰਮੁ ਪੁੰਨੁ ਭਲਾ ਕਰਾਏ ॥ सचा धरमु पुंनु भला कराए ॥ वह जिस आदमी से सच्चा धर्म, पुण्य एवं भलाई का कार्य करवाते है,
ਦੀਨ ਕੈ ਤੋਸੈ ਦੁਨੀ ਨ ਜਾਏ ॥੨॥ दीन कै तोसै दुनी न जाए ॥२॥ नाम का धन संचित करते हुए भी वह दुनियावी सुख नहीं खोता॥ २॥
ਸਰਬ ਨਿਰੰਤਰਿ ਏਕੋ ਜਾਗੈ ॥ सरब निरंतरि एको जागै ॥ सब जीवों के हृदय में एक परमात्मा ही जाग्रत रहते है।
ਜਿਤੁ ਜਿਤੁ ਲਾਇਆ ਤਿਤੁ ਤਿਤੁ ਕੋ ਲਾਗੈ ॥੩॥ जितु जितु लाइआ तितु तितु को लागै ॥३॥ उसने जीवों को जिस कार्य में भी लगाया है, वे वहाँ ही लग गए हैं।॥ ३॥
ਅਗਮ ਅਗੋਚਰੁ ਸਚੁ ਸਾਹਿਬੁ ਮੇਰਾ ॥ अगम अगोचरु सचु साहिबु मेरा ॥ मेरे प्रभु अगम्य, अगोचर एवं शाश्वत है।
ਨਾਨਕੁ ਬੋਲੈ ਬੋਲਾਇਆ ਤੇਰਾ ॥੪॥੨੩॥੨੯॥ नानकु बोलै बोलाइआ तेरा ॥४॥२३॥२९॥ हे प्रभु ! नानक वही कहते हैं, जो आप उन्हें कहने की प्रेरणा देते हैं।॥ ४॥ २३॥ २६॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सूही महला ५ ॥ राग सूही, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਪ੍ਰਾਤਹਕਾਲਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਉਚਾਰੀ ॥ प्रातहकालि हरि नामु उचारी ॥ मैं प्रात:काल प्रभु का नाम उच्चारित करता रहता हूँ,
ਈਤ ਊਤ ਕੀ ਓਟ ਸਵਾਰੀ ॥੧॥ ईत ऊत की ओट सवारी ॥१॥ जिससे लोक-परलोक की ओट संवार ली है॥ १॥
ਸਦਾ ਸਦਾ ਜਪੀਐ ਹਰਿ ਨਾਮ ॥ सदा सदा जपीऐ हरि नाम ॥ हे जिज्ञासु ! सदा परमात्मा का नाम जपते रहना चाहिए,
ਪੂਰਨ ਹੋਵਹਿ ਮਨ ਕੇ ਕਾਮ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ पूरन होवहि मन के काम ॥१॥ रहाउ ॥ इससे सारी मनोकामनाएँ पूरी हो जाती हैं। १॥ रहाउ॥
ਪ੍ਰਭੁ ਅਬਿਨਾਸੀ ਰੈਣਿ ਦਿਨੁ ਗਾਉ ॥ प्रभु अबिनासी रैणि दिनु गाउ ॥ उस अविनाशी प्रभु का दिन-रात गुणगान करो।
ਜੀਵਤ ਮਰਤ ਨਿਹਚਲੁ ਪਾਵਹਿ ਥਾਉ ॥੨॥ जीवत मरत निहचलु पावहि थाउ ॥२॥ जीवित ही मोह-अभिमान को मार कर निश्चल स्थान पा लो॥ २॥
ਸੋ ਸਾਹੁ ਸੇਵਿ ਜਿਤੁ ਤੋਟਿ ਨ ਆਵੈ ॥ सो साहु सेवि जितु तोटि न आवै ॥ उस साहूकार प्रभु की भक्ति करो, जिससे किसी प्रकार की कमी नहीं आती ।
ਖਾਤ ਖਰਚਤ ਸੁਖਿ ਅਨਦਿ ਵਿਹਾਵੈ ॥੩॥ खात खरचत सुखि अनदि विहावै ॥३॥ नाम-धन का उपयोग करने एवं बाँटते हुए जीवन सुख एवं आनंद में व्यतीत होता है॥ ३॥
ਜਗਜੀਵਨ ਪੁਰਖੁ ਸਾਧਸੰਗਿ ਪਾਇਆ ॥ जगजीवन पुरखु साधसंगि पाइआ ॥ परमपुरुष परमेश्वर जग का जीवन है और उसे साध संगति द्वारा ही पाया जा सकता है।
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ॥੪॥੨੪॥੩੦॥ गुर प्रसादि नानक नामु धिआइआ ॥४॥२४॥३०॥ हे नानक ! गुरु के आशीर्वाद से मैंने परमात्मा के नाम का ही ध्यान किया है॥ ४॥ २४ ॥ ३० ॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सूही महला ५ ॥ राग सूही, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਜਬ ਭਏ ਦਇਆਲ ॥ गुर पूरे जब भए दइआल ॥ जब पूर्ण गुरु दयालु हो गए तो
ਦੁਖ ਬਿਨਸੇ ਪੂਰਨ ਭਈ ਘਾਲ ॥੧॥ दुख बिनसे पूरन भई घाल ॥१॥ मेरे सब दुःख नष्ट हो गए और नाम-सिमरन की साधना साकार हो गई॥ १॥
ਪੇਖਿ ਪੇਖਿ ਜੀਵਾ ਦਰਸੁ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰਾ ॥ पेखि पेखि जीवा दरसु तुम्हारा ॥ हे प्रभु ! मैं आपके दर्शन देख-देखकर ही जीता हूँ और
ਚਰਣ ਕਮਲ ਜਾਈ ਬਲਿਹਾਰਾ ॥ चरण कमल जाई बलिहारा ॥ मैं आपके चरण-कमलों पर बलिहारी जाता हूँ।
ਤੁਝ ਬਿਨੁ ਠਾਕੁਰ ਕਵਨੁ ਹਮਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ तुझ बिनु ठाकुर कवनु हमारा ॥१॥ रहाउ ॥ हे ठाकुर जी ! आपके बिना हमारा कौन है ?॥ १॥ रहाउ॥
ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਬਣਿ ਆਈ ॥ साधसंगति सिउ प्रीति बणि आई ॥ साधु-संगति से मेरी प्रीति बन गई है और
ਪੂਰਬ ਕਰਮਿ ਲਿਖਤ ਧੁਰਿ ਪਾਈ ॥੨॥ पूरब करमि लिखत धुरि पाई ॥२॥ पूर्व जन्म के कर्मानुसार साधसंगति पाई है॥ २॥
ਜਪਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਅਚਰਜੁ ਪਰਤਾਪ ॥ जपि हरि हरि नामु अचरजु परताप ॥ हे भाई! हमेशा भगवान् का नाम लो, इससे तुम्हें महान आध्यात्मिक उन्नति का आशीर्वाद मिलेगा।
ਜਾਲਿ ਨ ਸਾਕਹਿ ਤੀਨੇ ਤਾਪ ॥੩॥ जालि न साकहि तीने ताप ॥३॥ अब तीनों रोगों (शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक) में से कोई भी आध्यात्मिक जीवन को हानि नहीं पहुंचा सकता।॥ ३॥
ਨਿਮਖ ਨ ਬਿਸਰਹਿ ਹਰਿ ਚਰਣ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੇ ॥ निमख न बिसरहि हरि चरण तुम्हारे ॥ आपके सुन्दर चरण एक क्षण भर के लिए भी न भूले,"
ਨਾਨਕੁ ਮਾਗੈ ਦਾਨੁ ਪਿਆਰੇ ॥੪॥੨੫॥੩੧॥ नानकु मागै दानु पिआरे ॥४॥२५॥३१॥ हे हरि ! दास नानक आपसे यही दान चाहते है ॥ ४। २५ ॥ ३१ ॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सूही महला ५ ॥ राग सूही, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਸੇ ਸੰਜੋਗ ਕਰਹੁ ਮੇਰੇ ਪਿਆਰੇ ॥ से संजोग करहु मेरे पिआरे ॥ हे मेरे प्यारे ! ऐसा संयोग बनाओ,
ਜਿਤੁ ਰਸਨਾ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਉਚਾਰੇ ॥੧॥ जितु रसना हरि नामु उचारे ॥१॥ जिससे मेरी जिह्वा आपका नाम उच्चारित करती रहे ॥ १॥
ਸੁਣਿ ਬੇਨਤੀ ਪ੍ਰਭ ਦੀਨ ਦਇਆਲਾ ॥ सुणि बेनती प्रभ दीन दइआला ॥ हे दीनदयाल प्रभु ! मेरी एक विनती सुनो;
ਸਾਧ ਗਾਵਹਿ ਗੁਣ ਸਦਾ ਰਸਾਲਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ साध गावहि गुण सदा रसाला ॥१॥ रहाउ ॥ मुझे उन संतों के साथ जोड़ो जो सदैव प्रेमपूर्वक आपके गुण गाते हैं।।॥ १॥ रहाउ॥
ਜੀਵਨ ਰੂਪੁ ਸਿਮਰਣੁ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰਾ ॥ जीवन रूपु सिमरणु प्रभ तेरा ॥ हे प्रभु ! आपका सिमरन जीवन रूप है।
ਜਿਸੁ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਹਿ ਬਸਹਿ ਤਿਸੁ ਨੇਰਾ ॥੨॥ जिसु क्रिपा करहि बसहि तिसु नेरा ॥२॥ जिस पर आप अपनी कृपा करते है, वह आपको अपने भीतर महसूस करता है।॥ २ ॥
ਜਨ ਕੀ ਭੂਖ ਤੇਰਾ ਨਾਮੁ ਅਹਾਰੁ ॥ जन की भूख तेरा नामु अहारु ॥ तेरा नाम ऐसा भोजन है, जिससे भक्त की सारी भूख दूर हो जाती है।
ਤੂੰ ਦਾਤਾ ਪ੍ਰਭ ਦੇਵਣਹਾਰੁ ॥੩॥ तूं दाता प्रभ देवणहारु ॥३॥ हे प्रभु ! आप दाता है और सब कुछ देने वाला है॥ ३॥
ਰਾਮ ਰਮਤ ਸੰਤਨ ਸੁਖੁ ਮਾਨਾ ॥ राम रमत संतन सुखु माना ॥ प्रेमपूर्वक राम नाम जपकर संतजनों ने सुख ही माना है।
ਨਾਨਕ ਦੇਵਨਹਾਰ ਸੁਜਾਨਾ ॥੪॥੨੬॥੩੨॥ नानक देवनहार सुजाना ॥४॥२६॥३२॥ हे नानक ! ईश्वर, महान दाता, सर्वज्ञ है।॥ ४॥ २६॥ ३२॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सूही महला ५ ॥ राग सूही, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਬਹਤੀ ਜਾਤ ਕਦੇ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਨ ਧਾਰਤ ॥ बहती जात कदे द्रिसटि न धारत ॥ हे जीव ! तेरी जीवन रूपी नदिया बहती जा रही है, पर तू कभी इस तरफ दृष्टि भी नहीं करता।
ਮਿਥਿਆ ਮੋਹ ਬੰਧਹਿ ਨਿਤ ਪਾਰਚ ॥੧॥ मिथिआ मोह बंधहि नित पारच ॥१॥ तू नित्य ही मिथ्या मोह के झगड़े में फंसा रहता है॥ १॥
ਮਾਧਵੇ ਭਜੁ ਦਿਨ ਨਿਤ ਰੈਣੀ ॥ माधवे भजु दिन नित रैणी ॥ इसलिए नित्य ही माधव का भजन करते रहो और
ਜਨਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਜੀਤਿ ਹਰਿ ਸਰਣੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जनमु पदारथु जीति हरि सरणी ॥१॥ रहाउ ॥ हरि की शरण में पड़कर अपना अमूल्य जन्म जीत लो ॥ १॥ रहाउ ॥
ਕਰਤ ਬਿਕਾਰ ਦੋਊ ਕਰ ਝਾਰਤ ॥ करत बिकार दोऊ कर झारत ॥ तुम सोच विचार कर हर प्रकार के बुरे काम करते रहते हो,
ਰਾਮ ਰਤਨੁ ਰਿਦ ਤਿਲੁ ਨਹੀ ਧਾਰਤ ॥੨॥ राम रतनु रिद तिलु नही धारत ॥२॥ किन्तु रत्न जैसे अमूल्य राम नाम को अपने हृदय में तिल मात्र भी धारण नहीं करते ॥ २ ॥
ਭਰਣ ਪੋਖਣ ਸੰਗਿ ਅਉਧ ਬਿਹਾਣੀ ॥ भरण पोखण संगि अउध बिहाणी ॥ आपका जीवन बस शरीर को खिलाने-पिलाने और सवारने में बीत रहा है


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