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ਭਾਹਿ ਬਲੰਦੜੀ ਬੁਝਿ ਗਈ ਰਖੰਦੜੋ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪਿ ॥
भाहि बलंदड़ी बुझि गई रखंदड़ो प्रभु आपि ॥
मनुष्य की सांसारिक अभिलाषाओं से उत्पन्न अग्निसदृश दुःखदायी वेदना शांत हो जाती है, क्योंकि भगवान् का स्मरण करने वाले का स्वयं भगवान् ही रक्षक बन जाते हैं।
ਜਿਨਿ ਉਪਾਈ ਮੇਦਨੀ ਨਾਨਕ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਜਾਪਿ ॥੨॥
जिनि उपाई मेदनी नानक सो प्रभु जापि ॥२॥
हे नानक ! उस ब्रह्माण्ड के रचयिता प्रभु का जाप करो ॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पौड़ी ॥
ਜਾ ਪ੍ਰਭ ਭਏ ਦਇਆਲ ਨ ਬਿਆਪੈ ਮਾਇਆ ॥
जा प्रभ भए दइआल न बिआपै माइआ ॥
जब प्रभु दयालु हो जाते हैं तो माया प्रभावित नहीं करती।
ਕੋਟਿ ਅਘਾ ਗਏ ਨਾਸ ਹਰਿ ਇਕੁ ਧਿਆਇਆ ॥
कोटि अघा गए नास हरि इकु धिआइआ ॥
एक परमेश्वर का ध्यान करने से करोड़ों पाप नाश हो गए हैं।
ਨਿਰਮਲ ਭਏ ਸਰੀਰ ਜਨ ਧੂਰੀ ਨਾਇਆ ॥
निरमल भए सरीर जन धूरी नाइआ ॥
भगवान् के भक्तों की विनम्रतापूर्वक सेवा करने से हमारा शरीर पवित्र एवं निष्कलंक हो जाता है।
ਮਨ ਤਨ ਭਏ ਸੰਤੋਖ ਪੂਰਨ ਪ੍ਰਭੁ ਪਾਇਆ ॥
मन तन भए संतोख पूरन प्रभु पाइआ ॥
पवित्र महापुरुषों की संगति में व्यक्ति को परमेश्वर का साक्षात्कार होता है, जिससे उसका तन-मन संतुष्ट एवं प्रसन्न हो जाते हैं।
ਤਰੇ ਕੁਟੰਬ ਸੰਗਿ ਲੋਗ ਕੁਲ ਸਬਾਇਆ ॥੧੮॥
तरे कुट्मब संगि लोग कुल सबाइआ ॥१८॥
फिर मेरे परिवार के सदस्य एवं वंशावली मेरे साथ भवसागर से पार हो गए॥ १८ ॥
ਸਲੋਕ ॥
सलोक ॥
श्लोक॥
ਗੁਰ ਗੋਬਿੰਦ ਗੋਪਾਲ ਗੁਰ ਗੁਰ ਪੂਰਨ ਨਾਰਾਇਣਹ ॥
गुर गोबिंद गोपाल गुर गुर पूरन नाराइणह ॥
गुरु ईश्वर का साक्षात् अवतार एवं ब्रह्मांड के स्वामी है; गुरु ही सर्वव्यापक परमेश्वर का मूर्त स्वरूप है।
ਗੁਰ ਦਇਆਲ ਸਮਰਥ ਗੁਰ ਗੁਰ ਨਾਨਕ ਪਤਿਤ ਉਧਾਰਣਹ ॥੧॥
गुर दइआल समरथ गुर गुर नानक पतित उधारणह ॥१॥
हे नानक ! गुरु ही दया का सागर है, वह सर्वकला समर्थ है और वही पतितों का उद्धार करने वाले हैं॥ १॥
ਭਉਜਲੁ ਬਿਖਮੁ ਅਸਗਾਹੁ ਗੁਰਿ ਬੋਹਿਥੈ ਤਾਰਿਅਮੁ ॥
भउजलु बिखमु असगाहु गुरि बोहिथै तारिअमु ॥
यह संसार रूपी भवसागर बड़ा विषम एवं भयानक है किन्तु गुरु रूपी जहाज के द्वारा मैं इस भवसागर से पार हो गया हूँ।
ਨਾਨਕ ਪੂਰ ਕਰੰਮ ਸਤਿਗੁਰ ਚਰਣੀ ਲਗਿਆ ॥੨॥
नानक पूर करम सतिगुर चरणी लगिआ ॥२॥
हे नानक ! पूर्ण भाग्य से ही सतगुरु के चरणों में लगा हूँ॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पौड़ी ॥
ਧੰਨੁ ਧੰਨੁ ਗੁਰਦੇਵ ਜਿਸੁ ਸੰਗਿ ਹਰਿ ਜਪੇ ॥
धंनु धंनु गुरदेव जिसु संगि हरि जपे ॥
धन्य है वह गुरु, जिसकी संगति में भगवान् का सिमरन किया जाता है।
ਗੁਰ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਜਬ ਭਏ ਤ ਅਵਗੁਣ ਸਭਿ ਛਪੇ ॥
गुर क्रिपाल जब भए त अवगुण सभि छपे ॥
जब गुरु कृपालु होते हैं, तब मनुष्य के सभी विकार स्वतः ही नष्ट हो जाते हैं।
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਗੁਰਦੇਵ ਨੀਚਹੁ ਉਚ ਥਪੇ ॥
पारब्रहम गुरदेव नीचहु उच थपे ॥
पारब्रह्म गुरुदेव ने मुझे निम्न से उच्च बना दिया है।
ਕਾਟਿ ਸਿਲਕ ਦੁਖ ਮਾਇਆ ਕਰਿ ਲੀਨੇ ਅਪ ਦਸੇ ॥
काटि सिलक दुख माइआ करि लीने अप दसे ॥
उन्होंने माया के बन्धन काटकर हमें अपना दास बनाया है।
ਗੁਣ ਗਾਏ ਬੇਅੰਤ ਰਸਨਾ ਹਰਿ ਜਸੇ ॥੧੯॥
गुण गाए बेअंत रसना हरि जसे ॥१९॥
अब हमारी रसना भगवान् का यश एवं उसका गुणगान करती रहती है।॥ १६ ॥
ਸਲੋਕ ॥
सलोक ॥
श्लोक॥
ਦ੍ਰਿਸਟੰਤ ਏਕੋ ਸੁਨੀਅੰਤ ਏਕੋ ਵਰਤੰਤ ਏਕੋ ਨਰਹਰਹ ॥
द्रिसटंत एको सुनीअंत एको वरतंत एको नरहरह ॥
वे केवल एक ही ईश्वर का दर्शन करते हैं, एक ही ईश्वर का श्रवण करते हैं और उनके लिए वही एक ईश्वर सर्वत्र व्याप्त प्रतीत होता है।
ਨਾਮ ਦਾਨੁ ਜਾਚੰਤਿ ਨਾਨਕ ਦਇਆਲ ਪੁਰਖ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਹ ॥੧॥
नाम दानु जाचंति नानक दइआल पुरख क्रिपा करह ॥१॥
हे दयालु परमेश्वर ! कृपा करो, क्योंकि दास नानक तो आपसे नाम-दान की ही याचना कर रहा है॥ १॥
ਹਿਕੁ ਸੇਵੀ ਹਿਕੁ ਸੰਮਲਾ ਹਰਿ ਇਕਸੁ ਪਹਿ ਅਰਦਾਸਿ ॥
हिकु सेवी हिकु समला हरि इकसु पहि अरदासि ॥
मैं तो उस एक परमेश्वर की ही उपासना करता हूँ, उस एक को ही स्मरण करता हूँ तथा एक के समक्ष ही प्रार्थना करता हूँ।
ਨਾਮ ਵਖਰੁ ਧਨੁ ਸੰਚਿਆ ਨਾਨਕ ਸਚੀ ਰਾਸਿ ॥੨॥
नाम वखरु धनु संचिआ नानक सची रासि ॥२॥
हे नानक ! मैंने तो नाम पदार्थ एवं नाम धन ही संचित किया है, क्योंकि यह नाम धन ही चिरस्थायी और अक्षय पूंजी है। ॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पौड़ी॥
ਪ੍ਰਭ ਦਇਆਲ ਬੇਅੰਤ ਪੂਰਨ ਇਕੁ ਏਹੁ ॥
प्रभ दइआल बेअंत पूरन इकु एहु ॥
दयालु एवं बेअंत प्रभु सर्वव्यापक है।
ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਆਪੇ ਆਪਿ ਦੂਜਾ ਕਹਾ ਕੇਹੁ ॥
सभु किछु आपे आपि दूजा कहा केहु ॥
वह आप ही सबकुछ है, फिर उस जैसा मैं अन्य किसे कहूँ?
ਆਪਿ ਕਰਹੁ ਪ੍ਰਭ ਦਾਨੁ ਆਪੇ ਆਪਿ ਲੇਹੁ ॥
आपि करहु प्रभ दानु आपे आपि लेहु ॥
हे प्रभु ! आप स्वयं ही दान करते हो और स्वयं ही दान लेते हो।
ਆਵਣ ਜਾਣਾ ਹੁਕਮੁ ਸਭੁ ਨਿਹਚਲੁ ਤੁਧੁ ਥੇਹੁ ॥
आवण जाणा हुकमु सभु निहचलु तुधु थेहु ॥
जन्म एवं मृत्यु सब आपके आदेश में ही है और आपका पावन धाम शाश्वत है।
ਨਾਨਕੁ ਮੰਗੈ ਦਾਨੁ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਨਾਮੁ ਦੇਹੁ ॥੨੦॥੧॥
नानकु मंगै दानु करि किरपा नामु देहु ॥२०॥१॥
नानक तो आपसे नाम का दान ही माँगते हैं, इसलिए कृपा करके मुझे अपना नाम प्रदान करो॥ २०॥ १॥
ਜੈਤਸਰੀ ਬਾਣੀ ਭਗਤਾ ਕੀ
जैतसरी बाणी भगता की
राग जैतश्री, भक्तों की वाणी :
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਨਾਥ ਕਛੂਅ ਨ ਜਾਨਉ ॥
नाथ कछूअ न जानउ ॥
हे प्रभु ! मैं कुछ भी नहीं जानता,
ਮਨੁ ਮਾਇਆ ਕੈ ਹਾਥਿ ਬਿਕਾਨਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मनु माइआ कै हाथि बिकानउ ॥१॥ रहाउ ॥
मेरा मन माया से इस प्रकार बंध गया है, मानो वह माया के हाथों बिक चुका है॥ १॥ रहाउ॥
ਤੁਮ ਕਹੀਅਤ ਹੌ ਜਗਤ ਗੁਰ ਸੁਆਮੀ ॥
तुम कहीअत हौ जगत गुर सुआमी ॥
हे स्वामी ! आपको सारे जगत् का गुरु कहा जाता है,
ਹਮ ਕਹੀਅਤ ਕਲਿਜੁਗ ਕੇ ਕਾਮੀ ॥੧॥
हम कहीअत कलिजुग के कामी ॥१॥
किन्तु मैं कलियुग का कामी कहलाता हूँ॥ १॥
ਇਨ ਪੰਚਨ ਮੇਰੋ ਮਨੁ ਜੁ ਬਿਗਾਰਿਓ ॥
इन पंचन मेरो मनु जु बिगारिओ ॥
इन कामादिक पाँच विकारों ने मेरा मन दूषित कर दिया है,
ਪਲੁ ਪਲੁ ਹਰਿ ਜੀ ਤੇ ਅੰਤਰੁ ਪਾਰਿਓ ॥੨॥
पलु पलु हरि जी ते अंतरु पारिओ ॥२॥
क्योंकि ये हर क्षण प्रभु से मेरी अंतरात्मा को दूर करते रहते हैं।॥ २ ॥
ਜਤ ਦੇਖਉ ਤਤ ਦੁਖ ਕੀ ਰਾਸੀ ॥
जत देखउ तत दुख की रासी ॥
मैं जिधर भी देखता हूँ, उधर ही दु:खों की राशि है।
ਅਜੌਂ ਨ ਪਤ੍ਯ੍ਯਾਇ ਨਿਗਮ ਭਏ ਸਾਖੀ ॥੩॥
अजौं न पत्याइ निगम भए साखी ॥३॥
यद्यपि वेदादि धर्मग्रंथ स्पष्ट रूप से प्रमाणित करते हैं कि विकारों के प्रति मोह भयानक परिणाम उत्पन्न करता है, तथापि मेरा मन अब भी उनकी ओर आकृष्ट रहता है।॥ ३॥
ਗੋਤਮ ਨਾਰਿ ਉਮਾਪਤਿ ਸ੍ਵਾਮੀ ॥
गोतम नारि उमापति स्वामी ॥
गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या एवं पार्वती के स्वामी शिव का क्या हाल हुआ ?
ਸੀਸੁ ਧਰਨਿ ਸਹਸ ਭਗ ਗਾਂਮੀ ॥੪॥
सीसु धरनि सहस भग गांमी ॥४॥
ब्रह्मा का अपनी कन्या पर कुदृष्टि रखने के कारण उमापति शिव ने जब ब्रह्मा का पांचवां सिर काटा तो वह सिर शिव के हाथ से ही चिपक गया था॥ ४॥
ਇਨ ਦੂਤਨ ਖਲੁ ਬਧੁ ਕਰਿ ਮਾਰਿਓ ॥
इन दूतन खलु बधु करि मारिओ ॥
इन कामादिक विकारों ने मेरे मूर्ख मन पर बड़े आक्रमण किए हैं किन्तु
ਬਡੋ ਨਿਲਾਜੁ ਅਜਹੂ ਨਹੀ ਹਾਰਿਓ ॥੫॥
बडो निलाजु अजहू नही हारिओ ॥५॥
यह मन बड़ा निर्लज्ज है, जो अभी भी इसकी संगति नहीं छोड़ रहा ॥ ५ ॥
ਕਹਿ ਰਵਿਦਾਸ ਕਹਾ ਕੈਸੇ ਕੀਜੈ ॥
कहि रविदास कहा कैसे कीजै ॥
रविदास जी कहते हैं कि अब मैं कहाँ जाऊँ और क्या करूँ ?
ਬਿਨੁ ਰਘੁਨਾਥ ਸਰਨਿ ਕਾ ਕੀ ਲੀਜੈ ॥੬॥੧॥
बिनु रघुनाथ सरनि का की लीजै ॥६॥१॥
अब परमेश्वर के अतिरिक्त किस की शरण ली जाए॥ ६॥ १ ॥