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ਯਾਰ ਵੇ ਤੈ ਰਾਵਿਆ ਲਾਲਨੁ ਮੂ ਦਸਿ ਦਸੰਦਾ ॥
यार वे तै राविआ लालनु मू दसि दसंदा ॥
हे सज्जन ! तूने मेरे प्रियवर के साथ रमण किया है अतः मुझे उसके बारे में बताओ।
ਲਾਲਨੁ ਤੈ ਪਾਇਆ ਆਪੁ ਗਵਾਇਆ ਜੈ ਧਨ ਭਾਗ ਮਥਾਣੇ ॥
लालनु तै पाइआ आपु गवाइआ जै धन भाग मथाणे ॥
जिनके माथे पर शुभ भाग्य विद्यमान है, वे अपना अहंकार मिटाकर प्रिय-प्रभु को प्राप्त कर लेते हैं।
ਬਾਂਹ ਪਕੜਿ ਠਾਕੁਰਿ ਹਉ ਘਿਧੀ ਗੁਣ ਅਵਗਣ ਨ ਪਛਾਣੇ ॥
बांह पकड़ि ठाकुरि हउ घिधी गुण अवगण न पछाणे ॥
ठाकुर जी ने मुझे बाँह से पकड़ कर अपना बना लिया है और मेरे गुण एवं अवगुणों की ओर ध्यान नहीं दिया।
ਗੁਣ ਹਾਰੁ ਤੈ ਪਾਇਆ ਰੰਗੁ ਲਾਲੁ ਬਣਾਇਆ ਤਿਸੁ ਹਭੋ ਕਿਛੁ ਸੁਹੰਦਾ ॥
गुण हारु तै पाइआ रंगु लालु बणाइआ तिसु हभो किछु सुहंदा ॥
हे प्रभु ! जिसे आप गुणों की माला से अलंकृत कर देते हैं और अपने नाम के गहरे रंग से रंग देते है, उसे सब कुछ सुन्दर लगता है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਧੰਨਿ ਸੁਹਾਗਣਿ ਸਾਈ ਜਿਸੁ ਸੰਗਿ ਭਤਾਰੁ ਵਸੰਦਾ ॥੩॥
जन नानक धंनि सुहागणि साई जिसु संगि भतारु वसंदा ॥३॥
हे नानक ! वह सुहागिन नारी धन्य है, जिसके साथ उसका पति-परमेश्वर रहता है॥ ३॥
ਯਾਰ ਵੇ ਨਿਤ ਸੁਖ ਸੁਖੇਦੀ ਸਾ ਮੈ ਪਾਈ ॥
यार वे नित सुख सुखेदी सा मै पाई ॥
हे सज्जन ! जिसकी कामना हेतु मैं प्रतिदिन प्रार्थना करती थी, उसे मैंने पा लिया है।
ਵਰੁ ਲੋੜੀਦਾ ਆਇਆ ਵਜੀ ਵਾਧਾਈ ॥
वरु लोड़ीदा आइआ वजी वाधाई ॥
मुझे अपने हृदय में अपने इच्छित पति-परमेश्वर का अनुभव हो गया है, और अब मुझे ऐसा लगता है जैसे मेरे हृदय में आनंदमय गीत गूंज रहे हैं।
ਮਹਾ ਮੰਗਲੁ ਰਹਸੁ ਥੀਆ ਪਿਰੁ ਦਇਆਲੁ ਸਦ ਨਵ ਰੰਗੀਆ ॥
महा मंगलु रहसु थीआ पिरु दइआलु सद नव रंगीआ ॥
जब मेरा सदैव नवरंग सुंदर प्रियवर प्रभु मुझ पर दयालु हुआ, तो मुझमें बड़ा आनंद एवं हर्षोल्लास उत्पन्न हो गया।
ਵਡ ਭਾਗਿ ਪਾਇਆ ਗੁਰਿ ਮਿਲਾਇਆ ਸਾਧ ਕੈ ਸਤਸੰਗੀਆ ॥
वड भागि पाइआ गुरि मिलाइआ साध कै सतसंगीआ ॥
सौभाग्य से मैंने अपने प्रियतम प्रभु को पा लिया है। संतों की सुसंगति में रहने से गुरु ने मुझे उससे मिला दिया है।
ਆਸਾ ਮਨਸਾ ਸਗਲ ਪੂਰੀ ਪ੍ਰਿਅ ਅੰਕਿ ਅੰਕੁ ਮਿਲਾਈ ॥
आसा मनसा सगल पूरी प्रिअ अंकि अंकु मिलाई ॥
मेरी आशा एवं सारे मनोरथ पूरे हो गए हैं और मेरे प्रियवर प्रभु ने मुझे अपने गले से लगा लिया है।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕੁ ਸੁਖ ਸੁਖੇਦੀ ਸਾ ਮੈ ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਪਾਈ ॥੪॥੧॥
बिनवंति नानकु सुख सुखेदी सा मै गुर मिलि पाई ॥४॥१॥
नानक प्रार्थना करते हैं, जिस प्रभु को पाने के लिए मैं प्रार्थना करती थी, उसे मैंने गुरु से मिलकर पा लिया है ॥४॥१॥
ਜੈਤਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੨ ਛੰਤ
जैतसरी महला ५ घरु २ छंत
राग जैतश्री, पंचम गुरु, द्वितीय ताल, छंद:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक॥
ਊਚਾ ਅਗਮ ਅਪਾਰ ਪ੍ਰਭੁ ਕਥਨੁ ਨ ਜਾਇ ਅਕਥੁ ॥
ऊचा अगम अपार प्रभु कथनु न जाइ अकथु ॥
मेरे प्रभु सर्वोच्च, अगम्य एवं अपरंपार है, वह अकथनीय है तथा उसका कथन करना असंभव है।
ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਸਰਣਾਗਤੀ ਰਾਖਨ ਕਉ ਸਮਰਥੁ ॥੧॥
नानक प्रभ सरणागती राखन कउ समरथु ॥१॥
नानक तो उस प्रभु की शरण में आया है, जो रक्षा करने में समर्थ है॥ १॥
ਛੰਤੁ ॥
छंतु ॥
छन्द॥
ਜਿਉ ਜਾਨਹੁ ਤਿਉ ਰਾਖੁ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰਿਆ ॥
जिउ जानहु तिउ राखु हरि प्रभ तेरिआ ॥
हे हरि-प्रभु ! मैं तो आपका ही दास हूँः अतः जैसे आपको उपयुक्त लगे, वैसे ही मेरी रक्षा करो।
ਕੇਤੇ ਗਨਉ ਅਸੰਖ ਅਵਗਣ ਮੇਰਿਆ ॥
केते गनउ असंख अवगण मेरिआ ॥
मुझ में तो असंख्य अवगुण हैं, फिर मैं अपने कितने अवगुण गिन सकता हूँ।
ਅਸੰਖ ਅਵਗਣ ਖਤੇ ਫੇਰੇ ਨਿਤਪ੍ਰਤਿ ਸਦ ਭੂਲੀਐ ॥
असंख अवगण खते फेरे नितप्रति सद भूलीऐ ॥
मुझ में असंख्य अवगुण होने के कारण अपराधों में ही फंसा रहता हूँ तथा नित्य-प्रतिदिन सर्वदा ही भूल करता हूँ।
ਮੋਹ ਮਗਨ ਬਿਕਰਾਲ ਮਾਇਆ ਤਉ ਪ੍ਰਸਾਦੀ ਘੂਲੀਐ ॥
मोह मगन बिकराल माइआ तउ प्रसादी घूलीऐ ॥
मैं विकराल माया के मोह में मग्न हूँ और आपकी दया से ही मैं इससे मुक्ति प्राप्त कर सकता हूँ।
ਲੂਕ ਕਰਤ ਬਿਕਾਰ ਬਿਖੜੇ ਪ੍ਰਭ ਨੇਰ ਹੂ ਤੇ ਨੇਰਿਆ ॥
लूक करत बिकार बिखड़े प्रभ नेर हू ते नेरिआ ॥
हम छिपकर बड़े कष्टप्रद पाप करते हैं। लेकिन वह प्रभु तो बहुत निकट है।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਦਇਆ ਧਾਰਹੁ ਕਾਢਿ ਭਵਜਲ ਫੇਰਿਆ ॥੧॥
बिनवंति नानक दइआ धारहु काढि भवजल फेरिआ ॥१॥
नानक प्रार्थना करते हैं कि हे परमेश्वर ! मुझ पर दया करो और इस भवसागर के भंवर से बाहर निकाल दो ॥१॥
ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक॥
ਨਿਰਤਿ ਨ ਪਵੈ ਅਸੰਖ ਗੁਣ ਊਚਾ ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਨਾਉ ॥
निरति न पवै असंख गुण ऊचा प्रभ का नाउ ॥
उस प्रभु का नाम महान् है और उसके असंख्य गुणों का निर्णय नहीं किया जा सकता।
ਨਾਨਕ ਕੀ ਬੇਨੰਤੀਆ ਮਿਲੈ ਨਿਥਾਵੇ ਥਾਉ ॥੨॥
नानक की बेनंतीआ मिलै निथावे थाउ ॥२॥
नानक की यही प्रार्थना है कि हे प्रभु! हम बेसहारा जीवों को आपके चरणों का सहारा मिल जाए॥ २ ॥
ਛੰਤੁ ॥
छंतु ॥
छंद॥
ਦੂਸਰ ਨਾਹੀ ਠਾਉ ਕਾ ਪਹਿ ਜਾਈਐ ॥
दूसर नाही ठाउ का पहि जाईऐ ॥
भगवान् के अतिरिक्त हम जीवों हेतु अन्य कोई ठिकाना नहीं। फिर हम तुच्छ जीव उसके अतिरिक्त किसके पास जाएँ।
ਆਠ ਪਹਰ ਕਰ ਜੋੜਿ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਧਿਆਈਐ ॥
आठ पहर कर जोड़ि सो प्रभु धिआईऐ ॥
आठ प्रहर हमें दोनों हाथ जोड़कर प्रभु का ध्यान-मनन करना चाहिए।
ਧਿਆਇ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਸਦਾ ਅਪੁਨਾ ਮਨਹਿ ਚਿੰਦਿਆ ਪਾਈਐ ॥
धिआइ सो प्रभु सदा अपुना मनहि चिंदिआ पाईऐ ॥
अपने उस प्रभु का ध्यान-मनन करने से मनोवांछित फल प्राप्त होता है।
ਤਜਿ ਮਾਨ ਮੋਹੁ ਵਿਕਾਰੁ ਦੂਜਾ ਏਕ ਸਿਉ ਲਿਵ ਲਾਈਐ ॥
तजि मान मोहु विकारु दूजा एक सिउ लिव लाईऐ ॥
अतः हम जीवों को अपना अभिमान, मोह तथा विकार त्याग कर परमेश्वर के साथ सुरति लगानी चाहिए।
ਅਰਪਿ ਮਨੁ ਤਨੁ ਪ੍ਰਭੂ ਆਗੈ ਆਪੁ ਸਗਲ ਮਿਟਾਈਐ ॥
अरपि मनु तनु प्रभू आगै आपु सगल मिटाईऐ ॥
हमें अपना मन एवं तन प्रभु के समक्ष अर्पण करके अपना समूचा अहंकार मिटा देना चाहिए।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕੁ ਧਾਰਿ ਕਿਰਪਾ ਸਾਚਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਈਐ ॥੨॥
बिनवंति नानकु धारि किरपा साचि नामि समाईऐ ॥२॥
नानक प्रार्थना करते है कि हे प्रभु ! मुझ पर कृपा करो ताकि मैं आपके सत्य नाम में विलीन हो जाऊँ॥ २॥
ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक॥
ਰੇ ਮਨ ਤਾ ਕਉ ਧਿਆਈਐ ਸਭ ਬਿਧਿ ਜਾ ਕੈ ਹਾਥਿ ॥
रे मन ता कउ धिआईऐ सभ बिधि जा कै हाथि ॥
हे मन ! उस प्रभु का ध्यान करना चाहिए, जिसके वश में समस्त युक्तियाँ हैं।
ਰਾਮ ਨਾਮ ਧਨੁ ਸੰਚੀਐ ਨਾਨਕ ਨਿਬਹੈ ਸਾਥਿ ॥੩॥
राम नाम धनु संचीऐ नानक निबहै साथि ॥३॥
हे नानक ! राम-नाम का ही धन संचित करना चाहिए, जो परलोक में हमारा सहायक बनता है॥ ३॥
ਛੰਤੁ ॥
छंतु ॥
छंद॥
ਸਾਥੀਅੜਾ ਪ੍ਰਭੁ ਏਕੁ ਦੂਸਰ ਨਾਹਿ ਕੋਇ ॥
साथीअड़ा प्रभु एकु दूसर नाहि कोइ ॥
जीवन में एक प्रभु ही हमारा सच्चा साथी है और उसके अतिरिक्त दूसरा कोई हितैषी नहीं।
ਥਾਨ ਥਨੰਤਰਿ ਆਪਿ ਜਲਿ ਥਲਿ ਪੂਰ ਸੋਇ ॥
थान थनंतरि आपि जलि थलि पूर सोइ ॥
वह स्वयं ही देश-देशांतरों, समुद्र एवं धरती में सर्वव्यापी है।
ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਪੂਰਿ ਰਹਿਆ ਸਰਬ ਦਾਤਾ ਪ੍ਰਭੁ ਧਨੀ ॥
जलि थलि महीअलि पूरि रहिआ सरब दाता प्रभु धनी ॥
सबके दाता, स्वामी-प्रभु समुद्र, पृथ्वी एवं अंतरिक्ष में विद्यमान हो रहा है।
ਗੋਪਾਲ ਗੋਬਿੰਦ ਅੰਤੁ ਨਾਹੀ ਬੇਅੰਤ ਗੁਣ ਤਾ ਕੇ ਕਿਆ ਗਨੀ ॥
गोपाल गोबिंद अंतु नाही बेअंत गुण ता के किआ गनी ॥
उस गोपाल गोविन्द का कोई अन्त नहीं चूंकि उसके गुण बेअंत हैं और हम उसके गुणों की गिनती कैसे कर सकते हैं।
ਭਜੁ ਸਰਣਿ ਸੁਆਮੀ ਸੁਖਹ ਗਾਮੀ ਤਿਸੁ ਬਿਨਾ ਅਨ ਨਾਹਿ ਕੋਇ ॥
भजु सरणि सुआमी सुखह गामी तिसु बिना अन नाहि कोइ ॥
हमें सुख प्रदान करने वाले स्वामी प्रभु की शरण का ही भजन करना चाहिए चूंकि उसके बिना अन्य कोई सहायक नहीं।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਦਇਆ ਧਾਰਹੁ ਤਿਸੁ ਪਰਾਪਤਿ ਨਾਮੁ ਹੋਇ ॥੩॥
बिनवंति नानक दइआ धारहु तिसु परापति नामु होइ ॥३॥
नानक प्रार्थना करते है कि हे प्रभु ! जिस पर आप अपनी दया करते हैं, उसे आपका नाम धन प्राप्त हो जाता है॥ ३॥