Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 689

Page 689

ਸਤਿਗੁਰ ਪੂਛਉ ਜਾਇ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਸਾ ਜੀਉ ॥ मेरी अभिलाषा है कि मुझे कोई ऐसा संत मिल जाए, जो मेरी सारी चिन्ता दूर कर दे और ठाकुर जी से मेरा प्यार लगा दे ॥२॥
ਸਚੁ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈ ਸਾਚੁ ਚਵਾਈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਚੁ ਪਛਾਣਾ ॥ मैंने सभी वेद पढ़े हैं परन्तु मेरे मन के सन्देह दूर नहीं होते और मेरे शरीर रूपी घर में रहने वाली पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, आँख, कान, नाक, जिव्हा इत्यादि एक क्षण भर के लिए धैर्य नहीं करते।
ਦੀਨਾ ਨਾਥੁ ਦਇਆਲੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣਾ ॥ क्या कोई ऐसा भक्त है, जो मोह-माया से निर्लिप्त हो और वह मेरे हृदय में नामामृत को सींच दे॥ ३॥
ਕਰਣੀ ਕਾਰ ਧੁਰਹੁ ਫੁਰਮਾਈ ਆਪਿ ਮੁਆ ਮਨੁ ਮਾਰੀ ॥ मैंने जितने भी तीर्थ किए हैं, इन तीर्थों पर स्नान करने से उतनी अहंकार रूपी मैल मैंने अपने मन को लगा ली है और मेरे हृदय रूपी घर का स्वामी प्रभु एक तिल भर के लिए भी प्रसन्न नहीं होता।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਮਹਾ ਰਸੁ ਮੀਠਾ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਨਾਮਿ ਨਿਵਾਰੀ ॥੫॥੨॥ मैं ऐसी साधसंगति कब प्राप्त करूँगा जिसमें मैं परमेश्वर का नाम जप कर सदैव ही आनंदित रहूँगा और मेरा मन अपनी आँखों में ज्ञान रूपी सुरमा डालकर ज्ञान रूपी तीर्थ में स्नान करेगा ॥ ४॥
ਧਨਾਸਰੀ ਛੰਤ ਮਹਲਾ ੧ ॥ मैंने ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं सन्यास इन सभी आश्रमों के धर्म कमाए हैं परन्तु मेरा मन संतुष्ट नहीं होता। मैं ज्ञानहीन स्नान करके अपने शरीर को स्वच्छ करता रहता हूँ।
ਪਿਰ ਸੰਗਿ ਮੂਠੜੀਏ ਖਬਰਿ ਨ ਪਾਈਆ ਜੀਉ ॥ मेरी तो कामना है कि कोई ऐसा महापुरुष मुझे मिल जाए जो विधाता परब्रह्म के प्रेम में मग्न हुआ हो और वह मेरी दुर्मति की मैल दूर कर दे ॥ ५॥
ਮਸਤਕਿ ਲਿਖਿਅੜਾ ਲੇਖੁ ਪੁਰਬਿ ਕਮਾਇਆ ਜੀਉ ॥ मनुष्य धर्म-कर्मों में ही मग्न रहता है परन्तु वह क्षण भर के लिए भी प्रभु से प्रेम नहीं करता। वह तो घमण्ड एवं अहंकार में ही पड़ा रहता है परन्तु उसका कोई भी धर्म-कर्म किसी काम नहीं आता।
ਲੇਖੁ ਨ ਮਿਟਈ ਪੁਰਬਿ ਕਮਾਇਆ ਕਿਆ ਜਾਣਾ ਕਿਆ ਹੋਸੀ ॥ जिसे शुभ फल देने वाला सत्य की मूर्ति गुरु मिल जाता है, वह सदा परमात्मा का कीर्ति-गान करता रहता है और गुरु की कृपा से कोई विरला पुरुष ही अपने नेत्रों से भगवान के दर्शन प्राप्त करता है॥ ६॥
ਗੁਣੀ ਅਚਾਰਿ ਨਹੀ ਰੰਗਿ ਰਾਤੀ ਅਵਗੁਣ ਬਹਿ ਬਹਿ ਰੋਸੀ ॥ जो मनुष्य अपने मन के हठ से अभ्यास करता है, उसकी साधना तिल भर भी स्वीकृत नहीं होती। वह तो मायाधारी बगुले की तरह ही ध्यान लगाकर रखता है।
ਧਨੁ ਜੋਬਨੁ ਆਕ ਕੀ ਛਾਇਆ ਬਿਰਧਿ ਭਏ ਦਿਨ ਪੁੰਨਿਆ ॥ क्या कोई ऐसा सुख देने वाला महापुरुष है, जो मुझे प्रभु की कथा सुनाए और उसे मिलने से मेरी मुक्ति हो जाए॥ ७॥
ਨਾਨਕ ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਦੋਹਾਗਣਿ ਛੂਟੀ ਝੂਠਿ ਵਿਛੁੰਨਿਆ ॥੧॥ यदि सृष्टि का पालनहार परमात्मा मुझ पर सुप्रसन्न हो जाए तो मेरे मोह-माया के बन्धन काट दे। मेरा मन गुरु के शब्द द्वारा प्रभु के प्रेम में मग्न रहता है।
ਬੂਡੀ ਘਰੁ ਘਾਲਿਓ ਗੁਰ ਕੈ ਭਾਇ ਚਲੋ ॥ अपने निर्भय गोविन्द को मिलकर मैं सदैव ही आनंदपूर्वक रहता हूँ। हे नानक ! भगवान के चरणों में पड़कर मैंने सर्व सुख प्राप्त कर लिए हैं।॥ ८॥
ਸਾਚਾ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ਪਾਵਹਿ ਸੁਖਿ ਮਹਲੋ ॥ अब मेरी जीवन-यात्रा सफल हो गई है और संतों से मिलकर मेरा जन्म-मरण का चक्र समाप्त हो गया है॥ १॥ रहाउ दूसरा ॥ १॥ ३॥
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਏ ਤਾ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ਪੇਈਅੜੈ ਦਿਨ ਚਾਰੇ ॥ धनासरी महला १ छंत
ਨਿਜ ਘਰਿ ਜਾਇ ਬਹੈ ਸਚੁ ਪਾਏ ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਲਿ ਪਿਆਰੇ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਵਿਣੁ ਭਗਤੀ ਘਰਿ ਵਾਸੁ ਨ ਹੋਵੀ ਸੁਣਿਅਹੁ ਲੋਕ ਸਬਾਏ ॥ मैं तीर्थ पर स्नान करने के लिए जाऊँ ? किन्तु परमात्मा का नाम ही वास्तविक तीर्थ है।
ਨਾਨਕ ਸਰਸੀ ਤਾ ਪਿਰੁ ਪਾਏ ਰਾਤੀ ਸਾਚੈ ਨਾਏ ॥੨॥ शब्द का चिन्तन ही तीर्थ है और यह ज्ञान मेरे हृदय में है।
ਪਿਰੁ ਧਨ ਭਾਵੈ ਤਾ ਪਿਰ ਭਾਵੈ ਨਾਰੀ ਜੀਉ ॥ गुरु का दिया हुआ ज्ञान ही सच्चा तीर्थ-स्थान और दसाहरा है, जहाँ हमेशा ही दस पर्व (अष्टमी, चौदश, संक्रान्ति, पूर्णिमा, अमावस्या, सूर्य ग्रहण, चन्द्र ग्रहण, उत्तरायण, दक्षिणयान एवं व्यतिपात) मनाए जाते हैं।
ਰੰਗਿ ਪ੍ਰੀਤਮ ਰਾਤੀ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰੀ ਜੀਉ ॥ हे पृथ्वी को धारण करने वाले प्रभु! मैं तुझसे सदैव ही नाम माँगता रहता हूँ, मुझे यह नाम प्रदान कीजिए।
ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰੀ ਨਾਹ ਪਿਆਰੀ ਨਿਵਿ ਨਿਵਿ ਭਗਤਿ ਕਰੇਈ ॥ समूचा संसार ही रोगी है और इन रोगों की औषधि केवल परमात्मा का नाम ही है।सत्य नाम के बिना मन को अहंकार की मैल लग जाती है।
ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਜਲਾਏ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਰਸ ਮਹਿ ਰੰਗੁ ਕਰੇਈ ॥ गुरु की वाणी पवित्र है, जो सदैव ही मन में से अज्ञान रूपी अन्धेरे को दूर करके प्रकाश करती है। यह नित्य ही स्नान करने वाला सच्चा तीर्थ स्थान है॥ १॥
ਪ੍ਰਭ ਸਾਚੇ ਸੇਤੀ ਰੰਗਿ ਰੰਗੇਤੀ ਲਾਲ ਭਈ ਮਨੁ ਮਾਰੀ ॥ सत्य नाम में समावेश करने से मन को अहंकार की मैल नहीं लगती, तदन्तर अहंकार की मैल को स्वच्छ करने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
ਨਾਨਕ ਸਾਚਿ ਵਸੀ ਸੋਹਾਗਣਿ ਪਿਰ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਪਿਆਰੀ ॥੩॥ अपने हृदय में भगवान के गुणों का हार पिरोने से मनुष्य को किसी के समक्ष विनती करने की जरूरत नहीं पड़ती।
ਪਿਰ ਘਰਿ ਸੋਹੈ ਨਾਰਿ ਜੇ ਪਿਰ ਭਾਵਏ ਜੀਉ ॥ जो मनुष्य सिमरन द्वारा अपने मन के अहंकार को नष्ट कर देता है, वह भवसागर में से पार हो जाता है और दूसरों को भी भवसागर से पार करवा देता है। वह पुनः योनि-चक्र में नहीं पड़ता अर्थात् उसकी मुक्ति हो जाती है।
ਝੂਠੇ ਵੈਣ ਚਵੇ ਕਾਮਿ ਨ ਆਵਏ ਜੀਉ ॥ वह स्वयं ही पारस और ध्यानी बन जाता है। ऐसा सत्यवादी पुरुष ही सच्चे प्रभु को अच्छा लगता है।
ਝੂਠੁ ਅਲਾਵੈ ਕਾਮਿ ਨ ਆਵੈ ਨਾ ਪਿਰੁ ਦੇਖੈ ਨੈਣੀ ॥ वह रात-दिन आनंद एवं हर्ष की अनुभूति करता है और उसके तमाम दुःख एवं पाप नाश हो जाते हैं।
ਅਵਗੁਣਿਆਰੀ ਕੰਤਿ ਵਿਸਾਰੀ ਛੂਟੀ ਵਿਧਣ ਰੈਣੀ ॥ वह सत्यनाम को प्राप्त कर लेता है और गुरु उसे भगवान के दर्शन करवा देता है। फिर उसके मन को अहंकार की मैल नहीं लगती, क्योंकि सत्य उसके हृदय में बस जाता है॥ २॥
ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਨ ਮਾਨੈ ਫਾਹੀ ਫਾਥੀ ਸਾ ਧਨ ਮਹਲੁ ਨ ਪਾਏ ॥ हे मित्र ! सत्संगियों से मिलाप ही पूर्ण स्नान है।
ਨਾਨਕ ਆਪੇ ਆਪੁ ਪਛਾਣੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਹਜਿ ਸਮਾਏ ॥੪॥
ਧਨ ਸੋਹਾਗਣਿ ਨਾਰਿ ਜਿਨਿ ਪਿਰੁ ਜਾਣਿਆ ਜੀਉ ॥
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਕੂੜਿਆਰਿ ਕੂੜੁ ਕਮਾਣਿਆ ਜੀਉ ॥
ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਸੁਹਾਵੀ ਸਾਚੇ ਭਾਵੀ ਭਾਇ ਭਗਤਿ ਪ੍ਰਭ ਰਾਤੀ ॥
ਪਿਰੁ ਰਲੀਆਲਾ ਜੋਬਨਿ ਬਾਲਾ ਤਿਸੁ ਰਾਵੇ ਰੰਗਿ ਰਾਤੀ ॥
ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਵਿਗਾਸੀ ਸਹੁ ਰਾਵਾਸੀ ਫਲੁ ਪਾਇਆ ਗੁਣਕਾਰੀ ॥
ਨਾਨਕ ਸਾਚੁ ਮਿਲੈ ਵਡਿਆਈ ਪਿਰ ਘਰਿ ਸੋਹੈ ਨਾਰੀ ॥੫॥੩॥


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