Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 688

Page 688

ਗਾਵੈ ਗਾਵਣਹਾਰੁ ਸਬਦਿ ਸੁਹਾਵਣੋ ॥ गावै गावणहारु सबदि सुहावणो ॥ गुरु के वचनों के माध्यम से स्तुत्य भगवान् की महिमा का गुणगान करने से जीवन सुन्दर, अर्थपूर्ण और दिव्यता से परिपूर्ण हो जाता है।
ਸਾਲਾਹਿ ਸਾਚੇ ਮੰਨਿ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੁੰਨ ਦਾਨ ਦਇਆ ਮਤੇ ॥ सालाहि साचे मंनि सतिगुरु पुंन दान दइआ मते ॥ मन में गुरु के प्रति पूर्ण श्रद्धा धारण करके सत्य परमेश्वर की स्तुति करने से मनुष्य दान, पुण्य एवं दया करने वाली बुद्धि वाला बन जाता है।
ਪਿਰ ਸੰਗਿ ਭਾਵੈ ਸਹਜਿ ਨਾਵੈ ਬੇਣੀ ਤ ਸੰਗਮੁ ਸਤ ਸਤੇ ॥ पिर संगि भावै सहजि नावै बेणी त संगमु सत सते ॥ जिस मनुष्य को सहज अवस्था में अपने प्रियतम-प्रभु की संगति अच्छी लगती है, वह त्रिवेणी के संगम व सर्वोत्तम पावन तीर्थ प्रयागराज में स्नान कर लेता है।
ਆਰਾਧਿ ਏਕੰਕਾਰੁ ਸਾਚਾ ਨਿਤ ਦੇਇ ਚੜੈ ਸਵਾਇਆ ॥ आराधि एकंकारु साचा नित देइ चड़ै सवाइआ ॥ उस एक सत्यस्वरूप ओंकार की ही आराधना करो, जो सदैव ही जीवों को देन देता रहता है। उस दाता की दी हुई देन दिन-ब-दिन प्रफुल्लित होती रहती है।
ਗਤਿ ਸੰਗਿ ਮੀਤਾ ਸੰਤਸੰਗਤਿ ਕਰਿ ਨਦਰਿ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਇਆ ॥੩॥ गति संगि मीता संतसंगति करि नदरि मेलि मिलाइआ ॥३॥ हे मित्र ! संतों की संगति व सत्संगी मित्रों में सम्मिलित होने से मोक्ष प्राप्त हो जाता है। भगवान् ने मुझ पर अपनी कृपा-दृष्टि करके मुझे सत्संगति में मिलाकर अपने साथ मिला लिया है॥३॥
ਕਹਣੁ ਕਹੈ ਸਭੁ ਕੋਇ ਕੇਵਡੁ ਆਖੀਐ ॥ कहणु कहै सभु कोइ केवडु आखीऐ ॥ हे प्रभु ! आपके के गुणों का वर्णन तो सभी करते हैं और कहते हैं कि आप महान है, परंतु आपकी महानता कितनी अपार है, यह कोई नहीं कह सकता।
ਹਉ ਮੂਰਖੁ ਨੀਚੁ ਅਜਾਣੁ ਸਮਝਾ ਸਾਖੀਐ ॥ हउ मूरखु नीचु अजाणु समझा साखीऐ ॥ मैं तो मूर्ख, नीच एवं अनजान हूँ, मैंने गुरु की शिक्षा द्वारा आपकी महिमा के बारे में समझा है।
ਸਚੁ ਗੁਰ ਕੀ ਸਾਖੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਭਾਖੀ ਤਿਤੁ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ਮੇਰਾ ॥ सचु गुर की साखी अम्रित भाखी तितु मनु मानिआ मेरा ॥ गुरु की शिक्षा सत्य है, यह अमृत वाणी है और इससे मेरा मन प्रसन्न हो गया है।
ਕੂਚੁ ਕਰਹਿ ਆਵਹਿ ਬਿਖੁ ਲਾਦੇ ਸਬਦਿ ਸਚੈ ਗੁਰੁ ਮੇਰਾ ॥ कूचु करहि आवहि बिखु लादे सबदि सचै गुरु मेरा ॥ जो मनुष्य विष रूपी माया का भार लादते हैं, वे मरते एवं जन्मते रहते हैं। मेरे गुरु अपने सेवक को शब्द के द्वारा सत्य के साथ मिला देते हैं।
ਆਖਣਿ ਤੋਟਿ ਨ ਭਗਤਿ ਭੰਡਾਰੀ ਭਰਿਪੁਰਿ ਰਹਿਆ ਸੋਈ ॥ आखणि तोटि न भगति भंडारी भरिपुरि रहिआ सोई ॥ कहने मात्र से प्रभु के गुण समाप्त नहीं होते और जीवों को देने से उसकी भक्ति के भण्डार में कोई न्यूनता नहीं आती।
ਨਾਨਕ ਸਾਚੁ ਕਹੈ ਬੇਨੰਤੀ ਮਨੁ ਮਾਂਜੈ ਸਚੁ ਸੋਈ ॥੪॥੧॥ नानक साचु कहै बेनंती मनु मांजै सचु सोई ॥४॥१॥ हे नानक! जो भक्त भगवान् को स्मरण करता है और श्रद्धा से उसकी प्रार्थना करता है, वह अपने मन के विकारों को धो डालता है, और उसे हर दिशा में, हर कण में प्रभु का दर्शन होने लगता है। ॥४॥१॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥ धनासरी महला १ ॥ राग धनासरि, प्रथम गुरु: १ ॥
ਜੀਵਾ ਤੇਰੈ ਨਾਇ ਮਨਿ ਆਨੰਦੁ ਹੈ ਜੀਉ ॥ जीवा तेरै नाइ मनि आनंदु है जीउ ॥ हे पूज्य परमेश्वर ! मैं आपके नाम-सिमरन द्वारा ही जीवित हूँ और मेरे मन में आनंद बना रहता है।
ਸਾਚੋ ਸਾਚਾ ਨਾਉ ਗੁਣ ਗੋਵਿੰਦੁ ਹੈ ਜੀਉ ॥ साचो साचा नाउ गुण गोविंदु है जीउ ॥ सत्यस्वरूप परमेश्वर का नाम सत्य है और उस गोविन्द के गुण भी सत्य हैं।
ਗੁਰ ਗਿਆਨੁ ਅਪਾਰਾ ਸਿਰਜਣਹਾਰਾ ਜਿਨਿ ਸਿਰਜੀ ਤਿਨਿ ਗੋਈ ॥ गुर गिआनु अपारा सिरजणहारा जिनि सिरजी तिनि गोई ॥ गुरु द्वारा प्रदत्त दिव्य ज्ञान हमें यह बोध कराता है कि सृष्टिकर्ता परमेश्वर अनंत और अपरिमेय है; जिसने इस ब्रह्मांड की रचना की है, वही समय आने पर इसका संहार भी करता है।
ਪਰਵਾਣਾ ਆਇਆ ਹੁਕਮਿ ਪਠਾਇਆ ਫੇਰਿ ਨ ਸਕੈ ਕੋਈ ॥ परवाणा आइआ हुकमि पठाइआ फेरि न सकै कोई ॥ जब प्रभु के आदेश द्वारा भेजा हुआ (मृत्यु का) निमंत्रण आ जाता है तो कोई भी प्राणी उसे टाल नहीं सकता।
ਆਪੇ ਕਰਿ ਵੇਖੈ ਸਿਰਿ ਸਿਰਿ ਲੇਖੈ ਆਪੇ ਸੁਰਤਿ ਬੁਝਾਈ ॥ आपे करि वेखै सिरि सिरि लेखै आपे सुरति बुझाई ॥ वह स्वयं ही जीवों को उत्पन्न करके देखता रहता है अर्थात् उनकी देखभाल करता रहता है और स्वयं ही जीवों के किए कर्मों अनुसार उनके माथे पर भाग्य का लेख लिखता है। उसने स्वयं ही जीवों को अपने बारे में ज्ञान प्रदान किया है।
ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬੁ ਅਗਮ ਅਗੋਚਰੁ ਜੀਵਾ ਸਚੀ ਨਾਈ ॥੧॥ नानक साहिबु अगम अगोचरु जीवा सची नाई ॥१॥ हे नानक ! वह मालिक-परमेश्वर अगम्य एवं अगोचर है और मैं उसके सत्य नाम की स्तुति करने से ही जीवित हूँ ॥१॥
ਤੁਮ ਸਰਿ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ਆਇਆ ਜਾਇਸੀ ਜੀਉ ॥ तुम सरि अवरु न कोइ आइआ जाइसी जीउ ॥ हे ईश्वर ! आपके जैसा अन्य कोई भी नहीं है। जो भी जन्म लेकर दुनिया में आया है, वह यहाँ से चला जाएगा।
ਹੁਕਮੀ ਹੋਇ ਨਿਬੇੜੁ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਇਸੀ ਜੀਉ ॥ हुकमी होइ निबेड़ु भरमु चुकाइसी जीउ ॥ आपके आदेश से ही जीवों के किए कर्मों का निपटारा होता है और आप ही उनका भ्रम दूर करते हैं।
ਗੁਰੁ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਏ ਅਕਥੁ ਕਹਾਏ ਸਚ ਮਹਿ ਸਾਚੁ ਸਮਾਣਾ ॥ गुरु भरमु चुकाए अकथु कहाए सच महि साचु समाणा ॥ हे भाई ! गुरु अपने सेवक का भ्रम दूर कर देता है और उससे अकथनीय प्रभु की स्तुति करवाता है। फिर वह सत्यपुरुष सत्य में ही समा जाता है।
ਆਪਿ ਉਪਾਏ ਆਪਿ ਸਮਾਏ ਹੁਕਮੀ ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਣਾ ॥ आपि उपाए आपि समाए हुकमी हुकमु पछाणा ॥ जो व्यक्ति परमेश्वर की दिव्य आज्ञा को समझने लगता है, वही यह गूढ़ सत्य जान पाता है कि सर्वशक्तिमान स्वयं ही इस सृष्टि का सृजन करता है और समय आने पर उसे अपने में ही लीन कर लेता है।
ਸਚੀ ਵਡਿਆਈ ਗੁਰ ਤੇ ਪਾਈ ਤੂ ਮਨਿ ਅੰਤਿ ਸਖਾਈ ॥ सची वडिआई गुर ते पाई तू मनि अंति सखाई ॥ हे प्रभु ! जिसने गुरु से आपके नाम की सच्ची शोभा प्राप्त कर ली है, आप उसके मन में आकर बस जाते हैं और अन्तिम काल में भी उसका साथी बनते हैं।
ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬੁ ਅਵਰੁ ਨ ਦੂਜਾ ਨਾਮਿ ਤੇਰੈ ਵਡਿਆਈ ॥੨॥ नानक साहिबु अवरु न दूजा नामि तेरै वडिआई ॥२॥ नानक कहते हैं कि हे प्रभु ! आपके अतिरिक्त दूसरा कोई भी स्वामी नहीं है और आपके सत्य नाम द्वारा ही जीव को आपके दरबार में प्रतिष्ठित होता है।॥२॥
ਤੂ ਸਚਾ ਸਿਰਜਣਹਾਰੁ ਅਲਖ ਸਿਰੰਦਿਆ ਜੀਉ ॥ तू सचा सिरजणहारु अलख सिरंदिआ जीउ ॥ हे परमेश्वर ! एक आप ही सच्चे सृजनहार एवं अलख है और आपने ही सब जीवों को पैदा किया है।
ਏਕੁ ਸਾਹਿਬੁ ਦੁਇ ਰਾਹ ਵਾਦ ਵਧੰਦਿਆ ਜੀਉ ॥ एकु साहिबु दुइ राह वाद वधंदिआ जीउ ॥ सब का परमात्मा एक ही है परन्तु उससे मिलने के कर्म मार्ग एवं ज्ञान मार्ग-उन दो प्रचलित मागों ने जीवों में परस्पर विवाद बढ़ा दिए हैं।
ਦੁਇ ਰਾਹ ਚਲਾਏ ਹੁਕਮਿ ਸਬਾਏ ਜਨਮਿ ਮੁਆ ਸੰਸਾਰਾ ॥ दुइ राह चलाए हुकमि सबाए जनमि मुआ संसारा ॥ परमेश्वर ने अपने आदेश में समस्त जीवों को इन दो मार्गों पर चलाया हुआ है। उसके आदेश से ही यह जगत जन्मता एवं मरता रहता है।
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਨਾਹੀ ਕੋ ਬੇਲੀ ਬਿਖੁ ਲਾਦੀ ਸਿਰਿ ਭਾਰਾ ॥ नाम बिना नाही को बेली बिखु लादी सिरि भारा ॥ जीव ने व्यर्थ ही माया रूपी विष का भार उठाया हुआ है परन्तु परमात्मा के नाम बिना कोई भी उसका साथी नहीं बनता।
ਹੁਕਮੀ ਆਇਆ ਹੁਕਮੁ ਨ ਬੂਝੈ ਹੁਕਮਿ ਸਵਾਰਣਹਾਰਾ ॥ हुकमी आइआ हुकमु न बूझै हुकमि सवारणहारा ॥ जीव तो परमात्मा के आदेश से ही जगत् में आया है। परन्तु वह उसके आदेश को नहीं समझता। प्रभु स्वयं ही अपने आदेश में जीव को सुन्दर बनाने वाले हैं।
ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬੁ ਸਬਦਿ ਸਿਞਾਪੈ ਸਾਚਾ ਸਿਰਜਣਹਾਰਾ ॥੩॥ नानक साहिबु सबदि सिञापै साचा सिरजणहारा ॥३॥ हे नानक ! मालिक-परमेश्वर की पहचान तो शब्द के द्वारा ही होती है और वही सच्चा सृजनहार है ॥३॥
ਭਗਤ ਸੋਹਹਿ ਦਰਵਾਰਿ ਸਬਦਿ ਸੁਹਾਇਆ ਜੀਉ ॥ भगत सोहहि दरवारि सबदि सुहाइआ जीउ ॥ भगवान् के भक्त उसके दरबार में बैठे बड़े सुन्दर लगते हैं और उनका जीवन शब्द से ही सुन्दर बना हुआ है।
ਬੋਲਹਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਾਣਿ ਰਸਨ ਰਸਾਇਆ ਜੀਉ ॥ बोलहि अम्रित बाणि रसन रसाइआ जीउ ॥ वह अपने मुख से अमृत वाणी बोलते हैं और उन्होंने अपनी रसना को अमृत रस पिलाया हुआ है।
ਰਸਨ ਰਸਾਏ ਨਾਮਿ ਤਿਸਾਏ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਵਿਕਾਣੇ ॥ रसन रसाए नामि तिसाए गुर कै सबदि विकाणे ॥ वे अमृत रस के ही प्यासे होते हैं और अपनी रसना को अमृत रस ही पिलाते रहते हैं। वे तो गुरु के शब्द पर ही न्यौछावर होते हैं।
ਪਾਰਸਿ ਪਰਸਿਐ ਪਾਰਸੁ ਹੋਏ ਜਾ ਤੇਰੈ ਮਨਿ ਭਾਣੇ ॥ पारसि परसिऐ पारसु होए जा तेरै मनि भाणे ॥ हे प्रभु ! जब वे आपके मन को अच्छे लगते हैं तो वे पारस रूपी गुरु को स्पर्श करके स्वयं भी पारस (रूपी गुरु) बन जाते हैं।
ਅਮਰਾ ਪਦੁ ਪਾਇਆ ਆਪੁ ਗਵਾਇਆ ਵਿਰਲਾ ਗਿਆਨ ਵੀਚਾਰੀ ॥ अमरा पदु पाइआ आपु गवाइआ विरला गिआन वीचारी ॥ वे अपने अहंकार को समाप्त करके अमर पदवी प्राप्त कर लेते हैं। कोई विरला पुरुष ही इस ज्ञान पर चिंतन करता है।
ਨਾਨਕ ਭਗਤ ਸੋਹਨਿ ਦਰਿ ਸਾਚੈ ਸਾਚੇ ਕੇ ਵਾਪਾਰੀ ॥੪॥ नानक भगत सोहनि दरि साचै साचे के वापारी ॥४॥ हे नानक !भक्त सत्य के द्वार पर ही शोभा देते हैं और सत्य नाम के ही व्यापारी हैं।॥ ४॥
ਭੂਖ ਪਿਆਸੋ ਆਥਿ ਕਿਉ ਦਰਿ ਜਾਇਸਾ ਜੀਉ ॥ भूख पिआसो आथि किउ दरि जाइसा जीउ ॥ हे भाई ! मैं तो माया का भूखा और प्यासा हैं। फिर मैं भगवान् के दरबार पर कैसे जा सकता हूँ?


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