Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 686

Page 686

ਜਨਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਦੁਬਿਧਾ ਖੋਵੈ ॥ परन्तु वे दुविधा में फँस कर अपना दुर्लभ जन्म व्यर्थ ही गंवा देते हैं।
ਆਪੁ ਨ ਚੀਨਸਿ ਭ੍ਰਮਿ ਭ੍ਰਮਿ ਰੋਵੈ ॥੬॥ वे अपने आत्म स्वरूप को नहीं पहचानते और भ्रम में पड़कर रोते रहते हैं।॥ ६॥
ਕਹਤਉ ਪੜਤਉ ਸੁਣਤਉ ਏਕ ॥ जो मनुष्य एक परमेश्वर की गुणों वाली वाणी का बखान करता रहता है, वाणी को पढ़ता और सुनता रहता है,
ਧੀਰਜ ਧਰਮੁ ਧਰਣੀਧਰ ਟੇਕ ॥ पृथ्वी को धारण करने वाला परमेश्वर उसे धर्म, धैर्य एवं अपना सहारा देता है।
ਜਤੁ ਸਤੁ ਸੰਜਮੁ ਰਿਦੈ ਸਮਾਏ ॥ जब मनुष्य के हृदय में ब्रह्मचर्य, सत्य एवं संयम समा जाते है
ਚਉਥੇ ਪਦ ਕਉ ਜੇ ਮਨੁ ਪਤੀਆਏ ॥੭॥ तब मनुष्य का मन तुरीयावस्था में प्रसन्न हो जाता है ॥ ७॥
ਸਾਚੇ ਨਿਰਮਲ ਮੈਲੁ ਨ ਲਾਗੈ ॥ सत्यवादी पुरुष के निर्मल मन को विकारों की मैल नहीं लगती और
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਭਰਮ ਭਉ ਭਾਗੈ ॥ गुरु के शब्द द्वारा उसका भ्रम एवं मृत्यु का भय दूर हो जाता है।,"
ਸੂਰਤਿ ਮੂਰਤਿ ਆਦਿ ਅਨੂਪੁ ॥ आदिपुरुष की सूरत एवं मूर्त अत्यंत सुन्दर है।
ਨਾਨਕੁ ਜਾਚੈ ਸਾਚੁ ਸਰੂਪੁ ॥੮॥੧॥ नानक तो उस तत्यस्वरूप प्रभु के दर्शनों की ही कामना करता है ॥८॥१॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥ धनासरी महला १ ॥
ਸਹਜਿ ਮਿਲੈ ਮਿਲਿਆ ਪਰਵਾਣੁ ॥ जो व्यक्ति सहजावस्था में भगवान से मिलता है, उसका मिलाप ही स्वीकार होता है।
ਨਾ ਤਿਸੁ ਮਰਣੁ ਨ ਆਵਣੁ ਜਾਣੁ ॥ फिर उसकी मृत्यु नहीं होती और न ही वह जन्म-मरण के चक्र में पड़ता है।
ਠਾਕੁਰ ਮਹਿ ਦਾਸੁ ਦਾਸ ਮਹਿ ਸੋਇ ॥ दास अपने मालिक-प्रभु में ही लीन रहता है और दास के मन में वही निवास करता है
ਜਹ ਦੇਖਾ ਤਹ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥੧॥ मैं जहाँ भी देखता हूँ, उधर ही भगवान के सिवाय मुझे अन्य कोई भी दिखाई नहीं देता ॥ १॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਭਗਤਿ ਸਹਜ ਘਰੁ ਪਾਈਐ ॥ गुरु के माध्यम से परमात्मा की भक्ति करने से मनुष्य सहज ही सच्चे घर को पा लेता है।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਭੇਟੇ ਮਰਿ ਆਈਐ ਜਾਈਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गुरु से साक्षात्कार किए बिना मनुष्य मरणोपरांत आवागमन के चक्र में ही पड़ा रहता है अर्थात् जन्मता-मरता ही रहता है।॥ १॥ रहाउ ॥
ਸੋ ਗੁਰੁ ਕਰਉ ਜਿ ਸਾਚੁ ਦ੍ਰਿੜਾਵੈ ॥ ऐसा गुरु ही धारण करो, जो मन में सत्य को दृढ़ करवा दे एवं
ਅਕਥੁ ਕਥਾਵੈ ਸਬਦਿ ਮਿਲਾਵੈ ॥ अकथनीय प्रभु की कथा करवाए और शब्द द्वारा भगवान से मिलाप करवा दे।
ਹਰਿ ਕੇ ਲੋਗ ਅਵਰ ਨਹੀ ਕਾਰਾ ॥ भक्तों को नाम-सिमरन के सिवाय अन्य कोई कार्य अच्छा नहीं लगता।
ਸਾਚਉ ਠਾਕੁਰੁ ਸਾਚੁ ਪਿਆਰਾ ॥੨॥ वे तो केवल सत्यस्वरूप परमेश्वर एवं सत्य से ही प्रेम करते हैं।॥ २॥
ਤਨ ਮਹਿ ਮਨੂਆ ਮਨ ਮਹਿ ਸਾਚਾ ॥ मनुष्य के तन में मन का निवास है और मन में ही सत्य का वास है।
ਸੋ ਸਾਚਾ ਮਿਲਿ ਸਾਚੇ ਰਾਚਾ ॥ वही मनुष्य सत्यवादी है, जो सत्य प्रभु को मिलकर उसके साथ लीन रहता है।
ਸੇਵਕੁ ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਲਾਗੈ ਪਾਇ ॥ सेवक प्रभु-चरणों में लग जाता है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਮਿਲੈ ਮਿਲਾਇ ॥੩॥ यदि मनुष्य को पूर्ण सतगुरु मिल जाए तो वह उसे भगवान से मिला देता है॥ ३॥
ਆਪਿ ਦਿਖਾਵੈ ਆਪੇ ਦੇਖੈ ॥ भगवान स्वयं ही समस्त जीवों को देखता है लेकिन वह उन्हें अपने दर्शन स्वयं ही दिखाता है।
ਹਠਿ ਨ ਪਤੀਜੈ ਨਾ ਬਹੁ ਭੇਖੈ ॥ वह न तो हठयोग से प्रसन्न होता है और न ही वह अनेक वेष धारण करने से प्रसन्न होता है।
ਘੜਿ ਭਾਡੇ ਜਿਨਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪਾਇਆ ॥ जिसने शरीर रूपी बर्तन का निर्माण करके उसमें नाम रूपी अमृत डाला है,
ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤਿ ਪ੍ਰਭਿ ਮਨੁ ਪਤੀਆਇਆ ॥੪॥ उसका मन केवल प्रेम-भक्ति से ही प्रसन्न होता है॥ ४॥
ਪੜਿ ਪੜਿ ਭੂਲਹਿ ਚੋਟਾ ਖਾਹਿ ॥ जो व्यक्ति धार्मिक ग्रंथ पढ़-पढ़कर भटक जाते हैं, वे यम द्वारा बहुत दु:खी होते हैं।
ਬਹੁਤੁ ਸਿਆਣਪ ਆਵਹਿ ਜਾਹਿ ॥ वे अपनी अधिक चतुराई के कारण जन्मते-मरते ही रहते हैं।
ਨਾਮੁ ਜਪੈ ਭਉ ਭੋਜਨੁ ਖਾਇ ॥ जो नाम का जाप करते रहते हैं और भगवान का भय रूपी भोजन खाते रहते हैं,
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੇਵਕ ਰਹੇ ਸਮਾਇ ॥੫॥ वे सेवक गुरु के माध्यम से परम-सत्य में ही लीन रहते हैं ॥५॥
ਪੂਜਿ ਸਿਲਾ ਤੀਰਥ ਬਨ ਵਾਸਾ ॥ जो मनुष्य मूर्ति-पूजा करता है, तीर्थ-स्नान करता है, जंगलों में निवास कर लेता है,
ਭਰਮਤ ਡੋਲਤ ਭਏ ਉਦਾਸਾ ॥ त्यागी भी बन गया है और स्थान-स्थान भटकता एवं विचलित होता रहता है,
ਮਨਿ ਮੈਲੈ ਸੂਚਾ ਕਿਉ ਹੋਇ ॥ फिर वह अशुद्ध मन से कैसे पवित्र हो सकता है ?
ਸਾਚਿ ਮਿਲੈ ਪਾਵੈ ਪਤਿ ਸੋਇ ॥੬॥ जिसे सत्य मिल जाता है, उसे ही शोभा प्राप्त होती है॥ ६॥
ਆਚਾਰਾ ਵੀਚਾਰੁ ਸਰੀਰਿ ॥ उसका आचरण अच्छा हो जाता है और उसके शरीर में शुभ विचार उत्पन्न हो जाते हैं।
ਆਦਿ ਜੁਗਾਦਿ ਸਹਜਿ ਮਨੁ ਧੀਰਿ ॥ उसका मन युग-युगांतरों में भी सदैव ही धैर्य से सहज अवस्था में लीन रहता है।
ਪਲ ਪੰਕਜ ਮਹਿ ਕੋਟਿ ਉਧਾਰੇ ॥ जो पलक झपकने के समय में ही करोड़ों जीवों का उद्धार कर देता है
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਗੁਰੁ ਮੇਲਿ ਪਿਆਰੇ ॥੭॥ हे प्यारे परमेश्वर ! अपनी कृपा करके मुझे गुरु से मिला दो ॥ ७॥
ਕਿਸੁ ਆਗੈ ਪ੍ਰਭ ਤੁਧੁ ਸਾਲਾਹੀ ॥ हे प्रभु ! मैं किसके समक्ष तेरी स्तुति करूँ ?
ਤੁਧੁ ਬਿਨੁ ਦੂਜਾ ਮੈ ਕੋ ਨਾਹੀ ॥ चूंकि तेरे अलावा मेरे लिए अन्य कोई महान् नहीं।
ਜਿਉ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਤਿਉ ਰਾਖੁ ਰਜਾਇ ॥ जैसे तुझे उपयुक्त लगता है, वैसे ही तू मुझे अपनी इच्छानुसार रख।
ਨਾਨਕ ਸਹਜਿ ਭਾਇ ਗੁਣ ਗਾਇ ॥੮॥੨॥ चूंकि नानक तो सहज स्वभाव प्रेमपूर्वक तेरे ही गुण गाता है॥८॥२॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੬ ਅਸਟਪਦੀ धनासरी महला ५ घरु ६ असटपदी
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਜੋ ਜੋ ਜੂਨੀ ਆਇਓ ਤਿਹ ਤਿਹ ਉਰਝਾਇਓ ਮਾਣਸ ਜਨਮੁ ਸੰਜੋਗਿ ਪਾਇਆ ॥ जो भी जीव जिस योनि में आया है, वह उस में ही उलझ गया है; अहोभाग्य से अमूल्य मानव-जन्म प्राप्त हुआ है।
ਤਾਕੀ ਹੈ ਓਟ ਸਾਧ ਰਾਖਹੁ ਦੇ ਕਰਿ ਹਾਥ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਮੇਲਹੁ ਹਰਿ ਰਾਇਆ ॥੧॥ हे साधुजनो ! मैंने आपका सहारा ही देखा है, इसलिए अपना हाथ देकर मेरी रक्षा करो तथा कृपा करके विश्व के बादशाह प्रभु से मिला दो॥१॥
ਅਨਿਕ ਜਨਮ ਭ੍ਰਮਿ ਥਿਤਿ ਨਹੀ ਪਾਈ ॥ मैं तो अनेक जन्मों में भटका हूँ परन्तु मुझे कहीं भी स्थिरता प्राप्त नहीं हुई।
ਕਰਉ ਸੇਵਾ ਗੁਰ ਲਾਗਉ ਚਰਨ ਗੋਵਿੰਦ ਜੀ ਕਾ ਮਾਰਗੁ ਦੇਹੁ ਜੀ ਬਤਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ अब मैं अपने गुरु के चरणों में लगकर उसकी सेवा करता हूँ। हे गुरुदेव ! मुझे गोविन्द से मिलन का मार्ग बता दीजिए ॥१॥ रहाउ ॥
ਅਨਿਕ ਉਪਾਵ ਕਰਉ ਮਾਇਆ ਕਉ ਬਚਿਤਿ ਧਰਉ ਮੇਰੀ ਮੇਰੀ ਕਰਤ ਸਦ ਹੀ ਵਿਹਾਵੈ ॥ मैं माया को अपने हृदय में बसाकर रखता हूँ और इसे प्राप्त करने हेतु अनेक उपाय करता रहता हूँ। हमेशा ही ‘मेरी-मेरी' करते हुए मेरी तमाम आयु बीतती जा रही है।


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