Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 671

Page 671

ਕਾਮ ਹੇਤਿ ਕੁੰਚਰੁ ਲੈ ਫਾਂਕਿਓ ਓਹੁ ਪਰ ਵਸਿ ਭਇਓ ਬਿਚਾਰਾ ॥ कामवासना में आसक्त होने के कारण हाथी फँस जाता है, वह बेचारा पराए वश में पड़ जाता है अर्थात् पराधीन हो जाता है।
ਨਾਦ ਹੇਤਿ ਸਿਰੁ ਡਾਰਿਓ ਕੁਰੰਕਾ ਉਸ ਹੀ ਹੇਤ ਬਿਦਾਰਾ ॥੨॥ नाद में मुग्ध होने के कारण हिरण अपना सिर शिकारी को दे देता है और नाद के मोह में मुग्ध होने के कारण वह मृत्यु को प्राप्त हो जाता है॥ २॥
ਦੇਖਿ ਕੁਟੰਬੁ ਲੋਭਿ ਮੋਹਿਓ ਪ੍ਰਾਨੀ ਮਾਇਆ ਕਉ ਲਪਟਾਨਾ ॥ प्राणी अपना कुटुंब देखकर धन-दौलत के लोभ में फंस जाता है, जिसके कारण वह धन-दौलत में ही लिपटा रहता है।
ਅਤਿ ਰਚਿਓ ਕਰਿ ਲੀਨੋ ਅਪੁਨਾ ਉਨਿ ਛੋਡਿ ਸਰਾਪਰ ਜਾਨਾ ॥੩॥ वह सांसारिक पदार्थों को अपना ही समझता है और इन में ही अधिकतर मग्न रहता है। वह यह नहीं समझता किं उसने सब पदार्थों को यहाँ ही छोड़कर दुनिया से चले जाना है॥ ३॥
ਬਿਨੁ ਗੋਬਿੰਦ ਅਵਰ ਸੰਗਿ ਨੇਹਾ ਓਹੁ ਜਾਣਹੁ ਸਦਾ ਦੁਹੇਲਾ ॥ यह बात भलीभांति समझ लो किं जिस मनुष्य ने भगवान के अलावा किसी अन्य से प्रेम किया है, वह हमेशा ही दुखी रहता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਇਹੈ ਬੁਝਾਇਓ ਪ੍ਰੀਤਿ ਪ੍ਰਭੂ ਸਦ ਕੇਲਾ ॥੪॥੨॥ हे नानक ! गुरु ने मुझे यही समझाया है कि भगवान के प्रेम में हमेशा आनंद ही बना रहता है ॥ ४॥ २॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਃ ੫ ॥ धनासरी महला ५ ॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਦੀਓ ਮੋਹਿ ਨਾਮਾ ਬੰਧਨ ਤੇ ਛੁਟਕਾਏ ॥ ईश्वर ने कृपा करके मुझे अपना नाम प्रदान किया है और मुझे माया के बन्धनों से मुक्त कर दिया है।
ਮਨ ਤੇ ਬਿਸਰਿਓ ਸਗਲੋ ਧੰਧਾ ਗੁਰ ਕੀ ਚਰਣੀ ਲਾਏ ॥੧॥ उसने मुझे गुरु के चरणों से लगा दिया है और जगत का समूचा ही धंधा मेरे मन से भूल गया है॥१॥
ਸਾਧਸੰਗਿ ਚਿੰਤ ਬਿਰਾਨੀ ਛਾਡੀ ॥ साधसंगत में मिलकर मैंने बेगानी चिताएँ छोड़ दी हैं।
ਅਹੰਬੁਧਿ ਮੋਹ ਮਨ ਬਾਸਨ ਦੇ ਕਰਿ ਗਡਹਾ ਗਾਡੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मैंने अपनी अहंबुद्धि, माया का मोह एवं अपनी मन की वासनाओं को गद्दा खोदकर उसमें दफन कर दिया है ॥१॥ रहाउ॥
ਨਾ ਕੋ ਮੇਰਾ ਦੁਸਮਨੁ ਰਹਿਆ ਨਾ ਹਮ ਕਿਸ ਕੇ ਬੈਰਾਈ ॥ अब कोई भी मेरा दुश्मन नहीं रहा और न ही मैं किसी का वैरी हूँ।
ਬ੍ਰਹਮੁ ਪਸਾਰੁ ਪਸਾਰਿਓ ਭੀਤਰਿ ਸਤਿਗੁਰ ਤੇ ਸੋਝੀ ਪਾਈ ॥੨॥ गुरु से मुझे यह सूझ प्राप्त हुई है कि जिसने यह सृष्टि-रचना का प्रसार किया है, वह ब्रह्म सर्वव्यापी है॥२ ॥
ਸਭੁ ਕੋ ਮੀਤੁ ਹਮ ਆਪਨ ਕੀਨਾ ਹਮ ਸਭਨਾ ਕੇ ਸਾਜਨ ॥ मैंने सभी को अपना मित्र बना लिया है और मैं सबका सज्जन बन गया हूँ।
ਦੂਰਿ ਪਰਾਇਓ ਮਨ ਕਾ ਬਿਰਹਾ ਤਾ ਮੇਲੁ ਕੀਓ ਮੇਰੈ ਰਾਜਨ ॥੩॥ जब मेरे मन की जुदाई का दर्द दूर हो गया तो राजन प्रभु से मेरा मिलन हो गया।॥३॥
ਬਿਨਸਿਓ ਢੀਠਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਵੂਠਾ ਸਬਦੁ ਲਗੋ ਗੁਰ ਮੀਠਾ ॥ मेरे मन की निर्लज्जता दूर हो गई है, मन में नामामृत आ बरसा है और गुरु का शब्द मेरे मन को मीठा लगता है।
ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਸਰਬ ਨਿਵਾਸੀ ਨਾਨਕ ਰਮਈਆ ਡੀਠਾ ॥੪॥੩॥ हे नानक ! मैंने जल, धरती एवं आकाश में सर्व निवासी राम को देख लिया है ॥४॥३॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਃ ੫ ॥ धनासरी मः ५ ॥
ਜਬ ਤੇ ਦਰਸਨ ਭੇਟੇ ਸਾਧੂ ਭਲੇ ਦਿਨਸ ਓਇ ਆਏ ॥ जब से मुझे साधु (गुरुदेव) के दर्शन हुए हैं, तब से मेरे शुभ दिन आ गए हैं।
ਮਹਾ ਅਨੰਦੁ ਸਦਾ ਕਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਪੁਰਖ ਬਿਧਾਤਾ ਪਾਏ ॥੧॥ सदैव ही प्रभु का कीर्तन करने से मेरे मन में महाआनंद बना रहता है और मैंने उस परमपुरुष विधाता को पा लिया है॥१॥
ਅਬ ਮੋਹਿ ਰਾਮ ਜਸੋ ਮਨਿ ਗਾਇਓ ॥ अब मैं अपने मन में राम का यशगान करता रहता हूँ।
ਭਇਓ ਪ੍ਰਗਾਸੁ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਮਨ ਮਹਿ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਪਾਇਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मैंने पूर्ण सतगुरु को पा लिया है, जिससे प्रभु-ज्योति का प्रकाश हो गया है और मेरे मन में सदैव ही सुख बना रहता है।॥१॥ रहाउ॥
ਗੁਣ ਨਿਧਾਨੁ ਰਿਦ ਭੀਤਰਿ ਵਸਿਆ ਤਾ ਦੂਖੁ ਭਰਮ ਭਉ ਭਾਗਾ ॥ जब गुणों का भण्डार प्रभु मेरे हृदय में आकर बस गया तो मेरा दुःख, भ्रम एवं भय सभी दूर हो गए।
ਭਈ ਪਰਾਪਤਿ ਵਸਤੁ ਅਗੋਚਰ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਰੰਗੁ ਲਾਗਾ ॥੨॥ मेरा राम-नाम से प्रेम हो गया है और मुझे अगोचर वस्तु प्राप्त हो गई है॥२ ॥
ਚਿੰਤ ਅਚਿੰਤਾ ਸੋਚ ਅਸੋਚਾ ਸੋਗੁ ਲੋਭੁ ਮੋਹੁ ਥਾਕਾ ॥ मैं सब चिंताओं एवं सब सोचो से रहित हो गया हूँ अर्थात् अब मुझे कोई चिन्ता एवं सोच नहीं रही, मेरे मन में से शोक, लोभ एवं मोह थक चुका है अर्थात् मिट गया है।
ਹਉਮੈ ਰੋਗ ਮਿਟੇ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਜਮ ਤੇ ਭਏ ਬਿਬਾਕਾ ॥੩॥ प्रभु की अपार कृपा से मेरा अहंकार का रोग मिट गया है और यम का मुझे अब कोई भय नहीं ॥ ३॥
ਗੁਰ ਕੀ ਟਹਲ ਗੁਰੂ ਕੀ ਸੇਵਾ ਗੁਰ ਕੀ ਆਗਿਆ ਭਾਣੀ ॥ अब मुझे गुरु की सेवा-चाकरी एवं गुरु की आज्ञा ही अच्छी लगती है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਿਨਿ ਜਮ ਤੇ ਕਾਢੇ ਤਿਸੁ ਗੁਰ ਕੈ ਕੁਰਬਾਣੀ ॥੪॥੪॥ हे नानक ! मैं उस गुरु पर कुर्बान जाता हूँ, जिसने मुझे यम के बिछाए हुए कर्म-जाल से निकाल लिया है॥ ४॥ ४॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ धनासरी मः ५ ॥
ਜਿਸ ਕਾ ਤਨੁ ਮਨੁ ਧਨੁ ਸਭੁ ਤਿਸ ਕਾ ਸੋਈ ਸੁਘੜੁ ਸੁਜਾਨੀ ॥ जिस परमात्मा का मुझे तन, मन एवं धन दिया हुआ है, यह सब कुछ उसका ही पैदा किया हुआ है और वही चतुर एवं सर्वज्ञ है।
ਤਿਨ ਹੀ ਸੁਣਿਆ ਦੁਖੁ ਸੁਖੁ ਮੇਰਾ ਤਉ ਬਿਧਿ ਨੀਕੀ ਖਟਾਨੀ ॥੧॥ जब उसने मेरा दुःख एवं सुख सुना तो मेरी दशा अच्छी बन गई॥१॥
ਜੀਅ ਕੀ ਏਕੈ ਹੀ ਪਹਿ ਮਾਨੀ ॥ मेरे मन की एक प्रार्थना ही परमात्मा के पास स्वीकार हुई है।
ਅਵਰਿ ਜਤਨ ਕਰਿ ਰਹੇ ਬਹੁਤੇਰੇ ਤਿਨ ਤਿਲੁ ਨਹੀ ਕੀਮਤਿ ਜਾਨੀ ॥ ਰਹਾਉ ॥ मैं अन्य बहुत सारे यत्न करता रहा परन्तु मेरे मन ने एक तिल मात्र भी कीमत नहीं समझी॥ रहाउ॥
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਨਿਰਮੋਲਕੁ ਹੀਰਾ ਗੁਰਿ ਦੀਨੋ ਮੰਤਾਨੀ ॥ हरिनामामृत एक अनमोल हीरा है, गुरु ने मुझे यह नाम-मंत्र दिया है।
ਡਿਗੈ ਨ ਡੋਲੈ ਦ੍ਰਿੜੁ ਕਰਿ ਰਹਿਓ ਪੂਰਨ ਹੋਇ ਤ੍ਰਿਪਤਾਨੀ ॥੨॥ अब मेरा मन विकारों के गड़े में नहीं गिरता और न ही इधर-उधर भटकता अपितु दृढ़ रहता है और इसके साथ मेरा मन पूर्णतया तृप्त हो गया है॥२॥
ਓਇ ਜੁ ਬੀਚ ਹਮ ਤੁਮ ਕਛੁ ਹੋਤੇ ਤਿਨ ਕੀ ਬਾਤ ਬਿਲਾਨੀ ॥ वह जो मेरे तेरे वाली भेदभावना थी, उनकी बात अब मिट गई हैं।


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