Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 669

Page 669

ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥ धनासरी महला ४ ॥ राग धनश्री, चौथे गुरु: ४ ॥
ਗੁਨ ਕਹੁ ਹਰਿ ਲਹੁ ਕਰਿ ਸੇਵਾ ਸਤਿਗੁਰ ਇਵ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈ ॥ गुन कहु हरि लहु करि सेवा सतिगुर इव हरि हरि नामु धिआई ॥ सच्चे गुरु की शिक्षाओं के माध्यम से ईश्वर का अनुभव करो, उनके दिव्य गुणों का स्मरण करो, और इस प्रकार उनके पावन नाम का निरंतर ध्यान करते रहो।
ਹਰਿ ਦਰਗਹ ਭਾਵਹਿ ਫਿਰਿ ਜਨਮਿ ਨ ਆਵਹਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜੋਤਿ ਸਮਾਈ ॥੧॥ हरि दरगह भावहि फिरि जनमि न आवहि हरि हरि हरि जोति समाई ॥१॥ इस तरह हरि के दरबार में अच्छे लगोगे, फिर तुम दुबारा जन्म-मरण के चक्र में नही आओगे और उस परम-सत्य की ज्योति में ही विलीन हो जाओगे॥ १॥
ਜਪਿ ਮਨ ਨਾਮੁ ਹਰੀ ਹੋਹਿ ਸਰਬ ਸੁਖੀ ॥ जपि मन नामु हरी होहि सरब सुखी ॥ हे मेरे मन ! हरि-नाम का जाप कर, फिर तू सर्वत्र सुखी रहेगा।
ਹਰਿ ਜਸੁ ਊਚ ਸਭਨਾ ਤੇ ਊਪਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਸੇਵਿ ਛਡਾਈ ॥ ਰਹਾਉ ॥ हरि जसु ऊच सभना ते ऊपरि हरि हरि हरि सेवि छडाई ॥ रहाउ ॥ हरि का यश सभी धर्म-कर्मों से उत्तम एवं उनसे श्रेष्ठ है और हरि की सेवा तुझे यम से मुक्त करवा देगी॥ रहाउ॥
ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧਿ ਕੀਨੀ ਗੁਰਿ ਭਗਤਿ ਹਰਿ ਦੀਨੀ ਤਬ ਹਰਿ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਬਨਿ ਆਈ ॥ हरि क्रिपा निधि कीनी गुरि भगति हरि दीनी तब हरि सिउ प्रीति बनि आई ॥ जब कृपानिधि हरि ने मुझ पर कृपा की और गुरु ने मुझे हरि-भक्ति की देन प्रदान की तो हरि से मेरी प्रीति बन गई।
ਬਹੁ ਚਿੰਤ ਵਿਸਾਰੀ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਉਰਿ ਧਾਰੀ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਭਏ ਹੈ ਸਖਾਈ ॥੨॥੨॥੮॥ बहु चिंत विसारी हरि नामु उरि धारी नानक हरि भए है सखाई ॥२॥२॥८॥ हे नानक ! मैंने अपनी सारी चिंता भुला कर अपने हृदय में हरि-नाम धारण कर लिया है और अब हरि मेरा मित्र बन गया है॥ २॥ २ ॥ ८ ॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥ धनासरी महला ४ ॥ राग धनश्री, चौथे गुरु: ४ ॥
ਹਰਿ ਪੜੁ ਹਰਿ ਲਿਖੁ ਹਰਿ ਜਪਿ ਹਰਿ ਗਾਉ ਹਰਿ ਭਉਜਲੁ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰੀ ॥ हरि पड़ु हरि लिखु हरि जपि हरि गाउ हरि भउजलु पारि उतारी ॥ हरिनाम पढो,'हरि'हरि' लिखो, हरि का जाप करो और हरि का ही गुणगान करो, क्योंकि एक वही भवसागर से पार करवाने वाला है।
ਮਨਿ ਬਚਨਿ ਰਿਦੈ ਧਿਆਇ ਹਰਿ ਹੋਇ ਸੰਤੁਸਟੁ ਇਵ ਭਣੁ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਮੁਰਾਰੀ ॥੧॥ मनि बचनि रिदै धिआइ हरि होइ संतुसटु इव भणु हरि नामु मुरारी ॥१॥ अपने मन-वचन, हृदय में उसका ध्यान-मनन करो, प्रभु संतुष्ट हो जाते हैं, इसलिए इस तरह नाम ही जपते रहो ॥१॥
ਮਨਿ ਜਪੀਐ ਹਰਿ ਜਗਦੀਸ ॥ ਮਿਲਿ ਸੰਗਤਿ ਸਾਧੂ ਮੀਤ ॥ मनि जपीऐ हरि जगदीस ॥ मिलि संगति साधू मीत ॥ हे मेरे मित्र ! हमें सत्संगति में सम्मिलित होकर सदा अपने हृदय में ब्रह्मांड के स्वामी भगवान् का स्मरण और ध्यान करना चाहिए।
ਸਦਾ ਅਨੰਦੁ ਹੋਵੈ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਹਰਿ ਕੀਰਤਿ ਕਰਿ ਬਨਵਾਰੀ ॥ ਰਹਾਉ ॥ सदा अनंदु होवै दिनु राती हरि कीरति करि बनवारी ॥ रहाउ ॥ उस बनवारी प्रभु का कीर्ति-गान करो, उससे सदैव दिन-रात आनंद बना रहता है॥ रहाउ॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਰੀ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਤਬ ਭਇਓ ਮਨਿ ਉਦਮੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਿਓ ਗਤਿ ਭਈ ਹਮਾਰੀ ॥ हरि हरि करी द्रिसटि तब भइओ मनि उदमु हरि हरि नामु जपिओ गति भई हमारी ॥ जब भगवान् ने मुझ पर अपनी करुणादृष्टि की तो मेरे मन में उल्लास उत्पन्न हो गया। हरि-नाम का जाप करने से मेरी मुक्ति हो गई।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕੀ ਪਤਿ ਰਾਖੁ ਮੇਰੇ ਸੁਆਮੀ ਹਰਿ ਆਇ ਪਰਿਓ ਹੈ ਸਰਣਿ ਤੁਮਾਰੀ ॥੨॥੩॥੯॥ जन नानक की पति राखु मेरे सुआमी हरि आइ परिओ है सरणि तुमारी ॥२॥३॥९॥ हे मेरे स्वामी हरि ! नानक की लाज रखो, मैं तो आपकी शरण में आ गया हूँ॥ २॥ ३॥ ६॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥ धनासरी महला ४ ॥ राग धनश्री, चौथे गुरु: ४ ॥
ਚਉਰਾਸੀਹ ਸਿਧ ਬੁਧ ਤੇਤੀਸ ਕੋਟਿ ਮੁਨਿ ਜਨ ਸਭਿ ਚਾਹਹਿ ਹਰਿ ਜੀਉ ਤੇਰੋ ਨਾਉ ॥ चउरासीह सिध बुध तेतीस कोटि मुनि जन सभि चाहहि हरि जीउ तेरो नाउ ॥ हे परमेश्वर ! चौरासी सिद्ध, बुद्ध, तैंतीस करोड़ देवता एवं मुनिजन सभी आपके नाम की कामना करते हैं,
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਕੋ ਵਿਰਲਾ ਪਾਵੈ ਜਿਨ ਕਉ ਲਿਲਾਟਿ ਲਿਖਿਆ ਧੁਰਿ ਭਾਉ ॥੧॥ गुर प्रसादि को विरला पावै जिन कउ लिलाटि लिखिआ धुरि भाउ ॥१॥ परन्तु इनमें से कोई विरला ही गुरु की कृपा से नाम की देन प्राप्त करता है, जिसके माथे पर प्रारम्भ से ही प्रभु-प्रेम का लेख लिखा होता है ॥१॥
ਜਪਿ ਮਨ ਰਾਮੈ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਜਸੁ ਊਤਮ ਕਾਮ ॥ जपि मन रामै नामु हरि जसु ऊतम काम ॥ हे मेरे मन ! राम नाम का जाप कर, चूंकि हरि का यशोगान सर्वोत्तम कार्य है।
ਜੋ ਗਾਵਹਿ ਸੁਣਹਿ ਤੇਰਾ ਜਸੁ ਸੁਆਮੀ ਹਉ ਤਿਨ ਕੈ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੈ ਜਾਉ ॥ ਰਹਾਉ ॥ जो गावहि सुणहि तेरा जसु सुआमी हउ तिन कै सद बलिहारै जाउ ॥ रहाउ ॥ हे मेरे स्वामी ! जो तेरा यश गाते एवं सुनते हैं, मैं उन पर सदैव ही बलिहारी जाता हूँ॥ रहाउ॥
ਸਰਣਾਗਤਿ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਕ ਹਰਿ ਸੁਆਮੀ ਜੋ ਤੁਮ ਦੇਹੁ ਸੋਈ ਹਉ ਪਾਉ ॥ सरणागति प्रतिपालक हरि सुआमी जो तुम देहु सोई हउ पाउ ॥ हे मेरे स्वामी हरि ! आप अपनी शरण में आए जीवों का पालन-पोषण करने वाले हैं, जो आप मुझे देते हो, मैं वही प्राप्त करता हूँ।
ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਿ ਦੀਜੈ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਸਿਮਰਣ ਕਾ ਹੈ ਚਾਉ ॥੨॥੪॥੧੦॥ दीन दइआल क्रिपा करि दीजै नानक हरि सिमरण का है चाउ ॥२॥४॥१०॥ हे दीनदयाल ! अपनी कृपा करके नानक को अपने नाम की देन दीजिए, क्योंकि उसे तो हरि-सिमरन का ही अत्यंत चाव है ॥२॥४॥१०॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥ धनासरी महला ४ ॥ राग धनश्री, चौथे गुरु: ४ ॥
ਸੇਵਕ ਸਿਖ ਪੂਜਣ ਸਭਿ ਆਵਹਿ ਸਭਿ ਗਾਵਹਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਊਤਮ ਬਾਨੀ ॥ सेवक सिख पूजण सभि आवहि सभि गावहि हरि हरि ऊतम बानी ॥ सभी सिक्ख-सेवक पूजा करने के लिए गुरु की संगति में आते हैं और वे सभी-मिलकर हरि की उत्तम वाणी ही गाते हैं।
ਗਾਵਿਆ ਸੁਣਿਆ ਤਿਨ ਕਾ ਹਰਿ ਥਾਇ ਪਾਵੈ ਜਿਨ ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਆਗਿਆ ਸਤਿ ਸਤਿ ਕਰਿ ਮਾਨੀ ॥੧॥ गाविआ सुणिआ तिन का हरि थाइ पावै जिन सतिगुर की आगिआ सति सति करि मानी ॥१॥ परन्तु वाणी द्वारा गाया एवं सुना हुआ यश प्रभु केवल उनका ही स्वीकृत करते हैं, जिन्होंने सतगुरु की आज्ञा को पूर्ण सत्य समझकर स्वीकार कर लिया है ॥१॥
ਬੋਲਹੁ ਭਾਈ ਹਰਿ ਕੀਰਤਿ ਹਰਿ ਭਵਜਲ ਤੀਰਥਿ ॥ बोलहु भाई हरि कीरति हरि भवजल तीरथि ॥ हे भाई ! हरि का कीर्ति-गान करो, चूंकि भवसागर में से पार करवाने हेतु हरि ही पावन तीर्थ स्थल है।
ਹਰਿ ਦਰਿ ਤਿਨ ਕੀ ਊਤਮ ਬਾਤ ਹੈ ਸੰਤਹੁ ਹਰਿ ਕਥਾ ਜਿਨ ਜਨਹੁ ਜਾਨੀ ॥ ਰਹਾਉ ॥ हरि दरि तिन की ऊतम बात है संतहु हरि कथा जिन जनहु जानी ॥ रहाउ ॥ हे संतजनों ! हरि के दरबार पर उनकी बात को उत्तम माना जाता है, जिन्होंने हरि-कथा की महिमा को समझा है ॥ रहाउ ॥
ਆਪੇ ਗੁਰੁ ਚੇਲਾ ਹੈ ਆਪੇ ਆਪੇ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਚੋਜ ਵਿਡਾਨੀ ॥ आपे गुरु चेला है आपे आपे हरि प्रभु चोज विडानी ॥ वह हरि-प्रभु स्वयं ही गुरु है और स्वयं ही सेवक है और स्वयं ही अद्भुत कौतुक करने वाले है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਆਪਿ ਮਿਲਾਏ ਸੋਈ ਹਰਿ ਮਿਲਸੀ ਅਵਰ ਸਭ ਤਿਆਗਿ ਓਹਾ ਹਰਿ ਭਾਨੀ ॥੨॥੫॥੧੧॥ जन नानक आपि मिलाए सोई हरि मिलसी अवर सभ तिआगि ओहा हरि भानी ॥२॥५॥११॥ हे नानक ! हरि को वही मनुष्य मिलता है, जिसे वह स्वयं ही अपने साथ मिलाता है और वही उसको भाता है, जो प्रभु-सिमरन के अतिरिक्त अन्य सब कुछ त्याग देता है। ॥२॥५॥११॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥ धनासरी महला ४ ॥ जिस परमात्मा के वश में कामधेनु है, वह अपने भक्तों की हर इच्छाएँ पूरी करने वाले हैं और सर्व सुख प्रदान करने वाले हैं।
ਇਛਾ ਪੂਰਕੁ ਸਰਬ ਸੁਖਦਾਤਾ ਹਰਿ ਜਾ ਕੈ ਵਸਿ ਹੈ ਕਾਮਧੇਨਾ ॥ इछा पूरकु सरब सुखदाता हरि जा कै वसि है कामधेना ॥ हे मेरी आत्मा ! सो ऐसे प्रभु का ध्यान-मनन करना चाहिए, तो ही तुझे सर्व सुख प्राप्त होगा ॥१॥
ਸੋ ਐਸਾ ਹਰਿ ਧਿਆਈਐ ਮੇਰੇ ਜੀਅੜੇ ਤਾ ਸਰਬ ਸੁਖ ਪਾਵਹਿ ਮੇਰੇ ਮਨਾ ॥੧॥ सो ऐसा हरि धिआईऐ मेरे जीअड़े ता सरब सुख पावहि मेरे मना ॥१॥ हे मेरी आत्मा ! सो ऐसे प्रभु का ध्यान-मनन करना चाहिए, तो ही तुझे सर्व सुख प्राप्त होगा ॥१॥


© 2025 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top