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ਪ੍ਰਭ ਸਾਚੇ ਕੀ ਸਾਚੀ ਕਾਰ ॥ ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਸਵਾਰਣਹਾਰ ॥੪॥੪॥
उस सच्चे प्रभु की आराधना भी सत्य है। हे नानक ! प्रभु का नाम मनुष्य को सुन्दर बनाने वाला है ॥४॥४॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥
धनासरी महला ३ ॥
ਜੋ ਹਰਿ ਸੇਵਹਿ ਤਿਨ ਬਲਿ ਜਾਉ ॥
मैं तो उन पर कुर्बान जाता हूँ, जो भगवान का सिमरन करते हैं।
ਤਿਨ ਹਿਰਦੈ ਸਾਚੁ ਸਚਾ ਮੁਖਿ ਨਾਉ ॥
उनके हृदय एवं मुख में हर समय सत्य-नाम ही रहता है अर्थात् वे हृदय और मुँह से सत्य-नाम ही जपते रहते हैं।
ਸਾਚੋ ਸਾਚੁ ਸਮਾਲਿਹੁ ਦੁਖੁ ਜਾਇ ॥
परम-सत्य प्रभु का चिंतन करने से दु:ख दूर हो जाता है और
ਸਾਚੈ ਸਬਦਿ ਵਸੈ ਮਨਿ ਆਇ ॥੧॥
सत्य-नाम द्वारा प्रभु मन में आकर बस जाता है ॥१॥
ਗੁਰਬਾਣੀ ਸੁਣਿ ਮੈਲੁ ਗਵਾਏ ॥
गुरुवाणी सुनकर मनुष्य अपने मन की अहंकार रूपी मैल दूर कर लेता है और
ਸਹਜੇ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਮੰਨਿ ਵਸਾਏ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि-नाम को सहज ही अपने मन में बसा लेता है ॥१॥ रहाउ ॥
ਕੂੜੁ ਕੁਸਤੁ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਅਗਨਿ ਬੁਝਾਏ ॥
वह झूठ, छल-कपट एवं तृष्णा रूपी अग्नि को बुझा लेता है और
ਅੰਤਰਿ ਸਾਂਤਿ ਸਹਜਿ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ॥
अपने मन में शांति एवं सहज सुख को पा लेता है।
ਗੁਰ ਕੈ ਭਾਣੈ ਚਲੈ ਤਾ ਆਪੁ ਜਾਇ ॥
जो मनुष्य गुरु की रज़ा अनुसार आचरण करता है, उसके मन में से अहंत्व दूर हो जाता है।
ਸਾਚੁ ਮਹਲੁ ਪਾਏ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇ ॥੨॥
वह भगवान का गुणगान करता रहता है और वह सत्य को प्राप्त कर लेता है॥ २॥
ਨ ਸਬਦੁ ਬੂਝੈ ਨ ਜਾਣੈ ਬਾਣੀ ॥
मनमुख न तो उसने शब्द के रहस्य को समझा है और न ही वाणी को जाना है,
ਮਨਮੁਖਿ ਅੰਧੇ ਦੁਖਿ ਵਿਹਾਣੀ ॥
ज्ञानहीन मनमुख की तमाम आयु दुःख में ही व्यतीत हो गई है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟੇ ਤਾ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ॥
यदि वह सतगुरु से साक्षात्कार कर ले तो उसे सुख की प्राप्ति हो जाए।
ਹਉਮੈ ਵਿਚਹੁ ਠਾਕਿ ਰਹਾਏ ॥੩॥
चूंकि गुरु उसके मन में से अहंकार को खत्म कर देता है।॥३॥
ਕਿਸ ਨੋ ਕਹੀਐ ਦਾਤਾ ਇਕੁ ਸੋਇ ॥
जब एक ईश्वर ही सबका दाता है तो उसके अलावा किससे प्रार्थना करूँ ?
ਕਿਰਪਾ ਕਰੇ ਸਬਦਿ ਮਿਲਾਵਾ ਹੋਇ ॥
यदि वह मुझ पर अपनी कृपा कर दे तो मेरा शब्द द्वारा उससे मिलाप हो जाए।
ਮਿਲਿ ਪ੍ਰੀਤਮ ਸਾਚੇ ਗੁਣ ਗਾਵਾ ॥
फिर मैं अपने सच्चे प्रियतम को मिलकर उसका स्तुतिगान करूँ।
ਨਾਨਕ ਸਾਚੇ ਸਾਚਾ ਭਾਵਾ ॥੪॥੫॥
हे नानक ! मैं चाहता हूँ कि मैं सत्यवादी बनकर उस परम-सत्य प्रभु को अच्छा लगूं ॥ ४॥ ५॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥
धनासरी महला ३ ॥
ਮਨੁ ਮਰੈ ਧਾਤੁ ਮਰਿ ਜਾਇ ॥
जब मन विकारों की तरफ से समाप्त हो जाता है तो मोह-ममता भी मिट जाती है।
ਬਿਨੁ ਮਨ ਮੂਏ ਕੈਸੇ ਹਰਿ ਪਾਇ ॥
मन को वशीभूत किए बिना भगवान कैसे पाया जा सकता है?
ਇਹੁ ਮਨੁ ਮਰੈ ਦਾਰੂ ਜਾਣੈ ਕੋਇ ॥
कोई विरला व्यक्ति ही इस मन को मारने की औषधि जानता है।
ਮਨੁ ਸਬਦਿ ਮਰੈ ਬੂਝੈ ਜਨੁ ਸੋਇ ॥੧॥
केवल वही व्यक्ति जानता है कि मन शब्द द्वारा ही विषय-विकारों की ओर से मरता है ॥१॥
ਜਿਸ ਨੋ ਬਖਸੇ ਹਰਿ ਦੇ ਵਡਿਆਈ ॥
जिसे भगवान क्षमा कर देता है, उसे ही शोभा प्रदान करता है,
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਵਸੈ ਮਨਿ ਆਈ ॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरु की कृपा से हरि-नाम मन में आकर बस जाता है॥ रहाउ ॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਕਰਣੀ ਕਾਰ ਕਮਾਵੈ ॥
जब व्यक्ति गुरुमुख बनकर शुभ कर्म करता है तो
ਤਾ ਇਸੁ ਮਨ ਕੀ ਸੋਝੀ ਪਾਵੈ ॥
उसे इस मन की सूझ आती है।
ਮਨੁ ਮੈ ਮਤੁ ਮੈਗਲ ਮਿਕਦਾਰਾ ॥
मन तो अहंकार रूपी मदिरा के नशे में मुग्ध होकर हाथी जैसा अहंकारी हो गया है।
ਗੁਰੁ ਅੰਕਸੁ ਮਾਰਿ ਜੀਵਾਲਣਹਾਰਾ ॥੨॥
लेकिन गुरु नाम रूपी अंकुश लगाकर इस नाम विहीन मन को पुनः जीवित करने वाला है भाव नाम-सिमरन में लगाने वाला है॥२॥
ਮਨੁ ਅਸਾਧੁ ਸਾਧੈ ਜਨੁ ਕੋਈ ॥
कोई विरला आदमी ही इस असाध्य मन को अपने वश में करता है।
ਅਚਰੁ ਚਰੈ ਤਾ ਨਿਰਮਲੁ ਹੋਈ ॥
यह मन चंचल है, यदि कोई इसे अचल कर दे तो यह पवित्र हो जाता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਇਹੁ ਮਨੁ ਲਇਆ ਸਵਾਰਿ ॥
जब गुरुमुख ने अपना यह मन अपने नियंत्रण में कर लिया तो
ਹਉਮੈ ਵਿਚਹੁ ਤਜੈ ਵਿਕਾਰ ॥੩॥
इस मन ने स्वयं में विद्यमान अहंत्व एवं विकार को त्याग दिया ॥३॥
ਜੋ ਧੁਰਿ ਰਖਿਅਨੁ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਇ ॥
जिन्हें प्रारम्भ से ही परमेश्वर ने गुरु से मिलाकर अपने साथ मिला लिया वे
ਕਦੇ ਨ ਵਿਛੁੜਹਿ ਸਬਦਿ ਸਮਾਇ ॥
कदापि जुदा नहीं होते और उसके शब्द में लीन रहते हैं।
ਆਪਣੀ ਕਲਾ ਆਪੇ ਪ੍ਰਭੁ ਜਾਣੈ ॥
अपनी कला को प्रभु स्वयं ही जानता है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਪਛਾਣੈ ॥੪॥੬॥
हे नानक ! गुरुमुख ही नाम के भेद को पहचानता है ॥४॥६॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥
धनासरी महला ३ ॥
ਕਾਚਾ ਧਨੁ ਸੰਚਹਿ ਮੂਰਖ ਗਾਵਾਰ ॥
मूर्ख एवं गंवार मनुष्य नाशवान् धन को संचित करते रहते हैं।
ਮਨਮੁਖ ਭੂਲੇ ਅੰਧ ਗਾਵਾਰ ॥
ऐसे ज्ञानहीन एवं गंवार मनमुख भटके हुए हैं।
ਬਿਖਿਆ ਕੈ ਧਨਿ ਸਦਾ ਦੁਖੁ ਹੋਇ ॥
झूठा धन सदैव ही दुःख देता है,
ਨਾ ਸਾਥਿ ਜਾਇ ਨ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ॥੧॥
न यह व्यक्ति के साथ जाता है और न ही इससे कुछ उपलब्धि होती है ॥१॥
ਸਾਚਾ ਧਨੁ ਗੁਰਮਤੀ ਪਾਏ ॥
सच्चा धन तो गुरु की शिक्षा द्वारा ही प्राप्त होता है और
ਕਾਚਾ ਧਨੁ ਫੁਨਿ ਆਵੈ ਜਾਏ ॥ ਰਹਾਉ ॥
झूठा नाशवान् धन सदैव आता एवं जाता रहता है॥ रहाउ॥
ਮਨਮੁਖਿ ਭੂਲੇ ਸਭਿ ਮਰਹਿ ਗਵਾਰ ॥
मनमुखी जीव तो भटके हुए ही हैं और वे सभी गंवार मरते ही रहते हैं।
ਭਵਜਲਿ ਡੂਬੇ ਨ ਉਰਵਾਰਿ ਨ ਪਾਰਿ ॥
वे भवसागर में डूब जाते हैं, वे न तो इस पार लगते हैं और न ही उस पार।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟੇ ਪੂਰੈ ਭਾਗਿ ॥
पूर्ण भाग्य से जिनकी गुरु से भेंट हो जाती है,
ਸਾਚਿ ਰਤੇ ਅਹਿਨਿਸਿ ਬੈਰਾਗਿ ॥੨॥
वे सत्य-नाम में मग्न हुए दिन-रात वैराग्यवान रहते हैं।॥२॥
ਚਹੁ ਜੁਗ ਮਹਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਸਾਚੀ ਬਾਣੀ ॥
चारों युगों में सच्ची वाणी ही अमृत समान है और
ਪੂਰੈ ਭਾਗਿ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਣੀ ॥
पूर्ण भाग्य से ही जीव हरि-नाम में लीन होता है।
ਸਿਧ ਸਾਧਿਕ ਤਰਸਹਿ ਸਭਿ ਲੋਇ ॥
सिद्ध, साधक एवं सभी लोग परमात्मा के नाम के लिए तरसते रहते हैं,
ਪੂਰੈ ਭਾਗਿ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ॥੩॥
किन्तु अहोभाग्य से ही नाम की उपलब्धि होती है॥ ३॥
ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਸਾਚਾ ਸਾਚਾ ਹੈ ਸੋਇ ॥ ਊਤਮ ਬ੍ਰਹਮੁ ਪਛਾਣੈ ਕੋਇ ॥
एक ईश्वर ही सत्य है और सब कुछ उस सत्य का ही रूप है। वह ब्रह्म सर्वश्रेष्ठ है परन्तु कोई विरला मनुष्य ही उसे पहचानता है।
ਸਚੁ ਸਾਚਾ ਸਚੁ ਆਪਿ ਦ੍ਰਿੜਾਏ ॥
परम-सत्य परमेश्वर स्वयं ही अपना नाम मनुष्य को दृढ़ करवाता है।