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ਇਕ ਬਸਤੁ ਅਗੋਚਰ ਲਹੀਐ ॥
एक अगोचर वस्तु ढूंढने के लिए
ਬਸਤੁ ਅਗੋਚਰ ਪਾਈ ॥
मैंने अगोचर वस्तु को पा लिया है चूंकि
ਘਟਿ ਦੀਪਕੁ ਰਹਿਆ ਸਮਾਈ ॥੨॥
मेरे हृदय में ज्ञान का दीपक प्रज्वलित हो रहा है॥२॥
ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਅਬ ਜਾਨਿਆ ॥
कबीर जी का कथन है कि अब मैंने प्रभु को जान लिया है।
ਜਬ ਜਾਨਿਆ ਤਉ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ॥
जब मैंने उस प्रभु को समझ लिया तो मेरा मन कृतार्थ हो गया,
ਮਨ ਮਾਨੇ ਲੋਗੁ ਨ ਪਤੀਜੈ ॥
परन्तु लोग इस पर विश्वास नहीं करते।
ਨ ਪਤੀਜੈ ਤਉ ਕਿਆ ਕੀਜੈ ॥੩॥੭॥
यदि वे विश्वास नहीं करते तो मैं क्या कर सकता हूँ ॥३॥७॥
ਹ੍ਰਿਦੈ ਕਪਟੁ ਮੁਖ ਗਿਆਨੀ ॥
तेरे हृदय में तो छल-कपट है और मुँह से ज्ञान की बातें कर रहा है।
ਝੂਠੇ ਕਹਾ ਬਿਲੋਵਸਿ ਪਾਨੀ ॥੧॥
हे झूठे व्यक्ति ! तू क्यों जल का मंथन कर रहा है अर्थात् बेकार ही बोल रहा है ॥१॥
ਕਾਂਇਆ ਮਾਂਜਸਿ ਕਉਨ ਗੁਨਾਂ ॥
इस काया को स्वच्छ करने का कोई फायदा नहीं,
ਜਉ ਘਟ ਭੀਤਰਿ ਹੈ ਮਲਨਾਂ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अगर तेरे हृदय में मैल ही भरी हुई है ॥१॥ रहाउ ॥
ਲਉਕੀ ਅਠਸਠਿ ਤੀਰਥ ਨ੍ਹ੍ਹਾਈ ॥
यद्यपि लौकी अड़सठ तीर्थों पर जाकर स्नान कर ले तो भी
ਕਉਰਾਪਨੁ ਤਊ ਨ ਜਾਈ ॥੨॥
इसका कड़वापन दूर नहीं होता।
ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਬੀਚਾਰੀ ॥
कबीर जी गहन सोच-विचार के पश्चात् यही कथन करते हैं कि
ਭਵ ਸਾਗਰੁ ਤਾਰਿ ਮੁਰਾਰੀ ॥੩॥੮॥
हे मुरारि ! मुझे इस भवसागर से पार कर दीजिए ॥ ३ ॥ ८॥
ਸੋਰਠਿ
सोरठि
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਬਹੁ ਪਰਪੰਚ ਕਰਿ ਪਰ ਧਨੁ ਲਿਆਵੈ ॥
मनुष्य अनेक प्रकार के प्रपंच करके पराया-धन लेकर आता है और
ਸੁਤ ਦਾਰਾ ਪਹਿ ਆਨਿ ਲੁਟਾਵੈ ॥੧॥
उस धन को लाकर अपने पुत्र एवं पत्नी के पास लुटा देता है ॥१॥
ਮਨ ਮੇਰੇ ਭੂਲੇ ਕਪਟੁ ਨ ਕੀਜੈ ॥
हे मेरे मन ! भूल कर भी छल-कपट मत कीजिए,
ਅੰਤਿ ਨਿਬੇਰਾ ਤੇਰੇ ਜੀਅ ਪਹਿ ਲੀਜੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
चूंकि जीवन के अंत में तेरी आत्मा को भी कर्मों का लेखा-जोखा देना पड़ेगा ॥१॥ रहाउ ॥
ਛਿਨੁ ਛਿਨੁ ਤਨੁ ਛੀਜੈ ਜਰਾ ਜਨਾਵੈ ॥
क्षण-क्षण यह तन क्षीण होता जा रहा है और बुढ़ापा बढ़ता जा रहा है।
ਤਬ ਤੇਰੀ ਓਕ ਕੋਈ ਪਾਨੀਓ ਨ ਪਾਵੈ ॥੨॥
तब तेरी हाथों की ओक में किसी ने भी जल नही डालना ॥२॥
ਕਹਤੁ ਕਬੀਰੁ ਕੋਈ ਨਹੀ ਤੇਰਾ ॥
कबीर जी कहते हैं कि तेरा कोई भी नहीं है,
ਹਿਰਦੈ ਰਾਮੁ ਕੀ ਨ ਜਪਹਿ ਸਵੇਰਾ ॥੩॥੯॥
फिर तू उचित समय ब्रह्ममुहूर्त क्यों नहीं राम के नाम का जाप करता ॥३॥६॥
ਸੰਤਹੁ ਮਨ ਪਵਨੈ ਸੁਖੁ ਬਨਿਆ ॥
हे संतो ! पवन जैसे मन को सुख प्राप्त हो गया है और
ਕਿਛੁ ਜੋਗੁ ਪਰਾਪਤਿ ਗਨਿਆ ॥ ਰਹਾਉ ॥
इस तरह लगता है कि मुझे किसी सीमा तक योग की प्राप्ति हो गई है ॥ रहाउ ॥
ਗੁਰਿ ਦਿਖਲਾਈ ਮੋਰੀ ॥
गुरु ने मुझे वह मोरी (कमजोरी) दिखा दी है,
ਜਿਤੁ ਮਿਰਗ ਪੜਤ ਹੈ ਚੋਰੀ ॥
जिसके कारण विकार रूपी मृग चोरी से भीतर घुसते हैं।
ਮੂੰਦਿ ਲੀਏ ਦਰਵਾਜੇ ॥
मैंने दरवाजे बन्द कर लिए हैं और
ਬਾਜੀਅਲੇ ਅਨਹਦ ਬਾਜੇ ॥੧॥
मेरे भीतर अनहद नाद बज रहा है।॥१॥
ਕੁੰਭ ਕਮਲੁ ਜਲਿ ਭਰਿਆ ॥
मेरे हृदय-कमल का घड़ा पाप के जल से भरा हुआ है।
ਜਲੁ ਮੇਟਿਆ ਊਭਾ ਕਰਿਆ ॥
मैंने विकारों से भरे जल को निकाल दिया है और घड़े को सीधा कर दिया है।
ਕਹੁ ਕਬੀਰ ਜਨ ਜਾਨਿਆ ॥
कबीर जी का कथन है कि इस सेवक ने इसे समझ लिया है,
ਜਉ ਜਾਨਿਆ ਤਉ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ॥੨॥੧੦॥
अब जब समझ लिया है तो मेरा मन संतुष्ट हो गया है॥२॥१o॥
ਰਾਗੁ ਸੋਰਠਿ ॥
रागु सोरठि ॥
ਭੂਖੇ ਭਗਤਿ ਨ ਕੀਜੈ ॥
हे ईश्वर! भूखे रहकर मुझसे तेरी भक्ति नहीं हो सकती,
ਯਹ ਮਾਲਾ ਅਪਨੀ ਲੀਜੈ ॥
इसलिए अपनी यह माला वापिस ले लो।
ਹਉ ਮਾਂਗਉ ਸੰਤਨ ਰੇਨਾ ॥
मैं तो केवल संतजनों की चरण धूलि ही माँगता हूँ और
ਮੈ ਨਾਹੀ ਕਿਸੀ ਕਾ ਦੇਨਾ ॥੧॥
मैंने किसी का कुछ नहीं देना ॥ १ ॥
ਮਾਧੋ ਕੈਸੀ ਬਨੈ ਤੁਮ ਸੰਗੇ ॥
हे माधव ! मेरा तेरे साथ कैसे प्रेम बना रह सकता है?
ਆਪਿ ਨ ਦੇਹੁ ਤ ਲੇਵਉ ਮੰਗੇ ॥ ਰਹਾਉ ॥
यदि तू स्वयं मुझे नहीं देता तो तुझसे विनती करके प्राप्त कर लूँगा॥ रहाउ ॥
ਦੁਇ ਸੇਰ ਮਾਂਗਉ ਚੂਨਾ ॥ ਪਾਉ ਘੀਉ ਸੰਗਿ ਲੂਨਾ ॥
मैं दो सेर आटा, और एक पाव घी, के साथ नमक माँगता हूँ।
ਅਧ ਸੇਰੁ ਮਾਂਗਉ ਦਾਲੇ ॥
मैं आधा सेर दाल भी माँगता हूँ और
ਮੋ ਕਉ ਦੋਨਉ ਵਖਤ ਜਿਵਾਲੇ ॥੨॥
यह सारी साम्रगी दोनों समय जीवन निर्वाह के लिए मदद करेगी ॥ २॥
ਖਾਟ ਮਾਂਗਉ ਚਉਪਾਈ ॥ ਸਿਰਹਾਨਾ ਅਵਰ ਤੁਲਾਈ ॥
में चार पावों वाली खाट माँगता हूँ और साथ एक तकिया और एक तोशक माँगता हूँ।
ਊਪਰ ਕਉ ਮਾਂਗਉ ਖੀਂਧਾ ॥
तन के ऊपर लेने के लिए एक रजाई भी माँगता हूँ।
ਤੇਰੀ ਭਗਤਿ ਕਰੈ ਜਨੁ ਥੀਧਾ ॥੩॥
तभी तेरा यह सेवक तेरी भक्ति प्रेमपूर्वक कर सकेगा।३ ॥
ਮੈ ਨਾਹੀ ਕੀਤਾ ਲਬੋ ॥ ਇਕੁ ਨਾਉ ਤੇਰਾ ਮੈ ਫਬੋ ॥
हे प्रभु! ये चीजें माँगने में मैंने कोई लालच नहीं किया और एक तेरा नाम ही मुझे भला लगता है।
ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ॥ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ਤਉ ਹਰਿ ਜਾਨਿਆ ॥੪॥੧੧॥
कबीर जी का कथन है कि मेरा मन प्रसन्न हो गया है। जब मेरा मन इस तरह प्रसन्न हो गया है तो मैंने प्रभु को जान लिया है।॥४॥११॥
ਰਾਗੁ ਸੋਰਠਿ ਬਾਣੀ ਭਗਤ ਨਾਮਦੇ ਜੀ ਕੀ ਘਰੁ ੨
रागु सोरठि बाणी भगत नामदे जी की घरु २
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਜਬ ਦੇਖਾ ਤਬ ਗਾਵਾ ॥
जब ईश्वर के दर्शन करता हूँ, तब ही उसका गुणगान करता हूँ
ਤਉ ਜਨ ਧੀਰਜੁ ਪਾਵਾ ॥੧॥
तो ही मुझ सेवक को धीरज प्राप्त होता है ॥१॥