Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 654

Page 654

ਤੁਧੁ ਆਪੇ ਸਿਸਟਿ ਸਿਰਜੀਆ ਆਪੇ ਫੁਨਿ ਗੋਈ ॥ तू स्वयं ही सृष्टि-रचना करता है और स्वयं ही आखिरकार इसका विनाश करता है।
ਸਭੁ ਇਕੋ ਸਬਦੁ ਵਰਤਦਾ ਜੋ ਕਰੇ ਸੁ ਹੋਈ ॥ एक तेरा शब्द (हुक्म) ही सर्वव्यापी है और जो कुछ भी तू करता है, वही होता है।
ਵਡਿਆਈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਦੇਇ ਪ੍ਰਭੁ ਹਰਿ ਪਾਵੈ ਸੋਈ ॥ जिन गुरुमुख को तुम बड़ाई प्रदान करते हो, वही अपने हरि प्रभु को पा लेता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਨਕ ਆਰਾਧਿਆ ਸਭਿ ਆਖਹੁ ਧੰਨੁ ਧੰਨੁ ਧੰਨੁ ਗੁਰੁ ਸੋਈ ॥੨੯॥੧॥ ਸੁਧੁ हे नानक ! गुरु ने हरि-नाम की आराधना की है, सभी तन-मन से कहो, वह गुरु धन्य-धन्य-धन्य है॥२६॥१॥ शुद्ध
ਰਾਗੁ ਸੋਰਠਿ ਬਾਣੀ ਭਗਤ ਕਬੀਰ ਜੀ ਕੀ ਘਰੁ ੧ रागु सोरठि बाणी भगत कबीर जी की घरु १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਬੁਤ ਪੂਜਿ ਪੂਜਿ ਹਿੰਦੂ ਮੂਏ ਤੁਰਕ ਮੂਏ ਸਿਰੁ ਨਾਈ ॥ हिन्दू तो अपने देवताओं की मूर्तियों की पूजा-उपासना कर-करके मर गए हैं और मुसलमान भी सिर झुका-झुका कर अर्थात् सिजदा करते हुए मर गए हैं।
ਓਇ ਲੇ ਜਾਰੇ ਓਇ ਲੇ ਗਾਡੇ ਤੇਰੀ ਗਤਿ ਦੁਹੂ ਨ ਪਾਈ ॥੧॥ हिन्दू मरणोपरांत पार्थिव देह को श्मशान घाट में ले जाकर जला देते हैं और मुसलमान मृतक को भूमि में दफन कर देते हैं। हे ईश्वर ! इन हिन्दू एवं मुसलमानों दोनों को ही तेरी महिमा का पता नहीं लगा ॥१॥
ਮਨ ਰੇ ਸੰਸਾਰੁ ਅੰਧ ਗਹੇਰਾ ॥ हे मेरे मन ! इस समूचे संसार में तो गहरा अन्धेरा ही विद्यमान है और
ਚਹੁ ਦਿਸ ਪਸਰਿਓ ਹੈ ਜਮ ਜੇਵਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ चारों दिशाओं में मृत्यु का जाल फैला हुआ है ॥१॥ रहाउ ॥
ਕਬਿਤ ਪੜੇ ਪੜਿ ਕਬਿਤਾ ਮੂਏ ਕਪੜ ਕੇਦਾਰੈ ਜਾਈ ॥ कई कवि कविताएँ पढ़-पढ़कर व्यर्थ ही मर गए हैं और गुदड़ी धारण करने वाले कई साधु केदारनाथ तीर्थ पर जाकर ही मर गए हैं।
ਜਟਾ ਧਾਰਿ ਧਾਰਿ ਜੋਗੀ ਮੂਏ ਤੇਰੀ ਗਤਿ ਇਨਹਿ ਨ ਪਾਈ ॥੨॥ कई जटाधारी योगी पर्वतों की चोटियों में व्यर्थ ही मर गए है। परन्तु हे ईश्वर ! तेरी गति इन्हें भी ज्ञात नहीं हुई॥२॥
ਦਰਬੁ ਸੰਚਿ ਸੰਚਿ ਰਾਜੇ ਮੂਏ ਗਡਿ ਲੇ ਕੰਚਨ ਭਾਰੀ ॥ कई प्रसिद्ध राजा भी धन-दौलत को संचित कर-करके सोने-चांदी के भार को दबाते ही मर गए हैं।
ਬੇਦ ਪੜੇ ਪੜਿ ਪੰਡਿਤ ਮੂਏ ਰੂਪੁ ਦੇਖਿ ਦੇਖਿ ਨਾਰੀ ॥੩॥ पण्डित भी वेदों को पढ़-पढ़कर मर गए हैं और कई सुन्दर नारियाँ भी अपना सुन्दर रूप ही देख-देख कर मर गई हैं॥३॥
ਰਾਮ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਸਭੈ ਬਿਗੂਤੇ ਦੇਖਹੁ ਨਿਰਖਿ ਸਰੀਰਾ ॥ हे मानव ! अपने मन में भली भांति निरीक्षण करके देख लो, राम-नाम के बिना सभी नष्ट हो गए हैं।
ਹਰਿ ਕੇ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਕਿਨਿ ਗਤਿ ਪਾਈ ਕਹਿ ਉਪਦੇਸੁ ਕਬੀਰਾ ॥੪॥੧॥ कबीर तो यही उपदेश करता है कि हरि-नाम के बिना किसे मोक्ष की प्राप्ति हुई है ॥४॥१॥
ਜਬ ਜਰੀਐ ਤਬ ਹੋਇ ਭਸਮ ਤਨੁ ਰਹੈ ਕਿਰਮ ਦਲ ਖਾਈ ॥ जब मनुष्य प्राण त्याग देता है तो उसका शरीर जला दिया जाता है और जलकर राख हो जाता है। यदि मृत शरीर को दफना दिया जाए तो उसे कीड़ों का दल ही खा जाता है।
ਕਾਚੀ ਗਾਗਰਿ ਨੀਰੁ ਪਰਤੁ ਹੈ ਇਆ ਤਨ ਕੀ ਇਹੈ ਬਡਾਈ ॥੧॥ जैसे मिट्टी की कच्ची गागर जल डालने से टूट जाती है, वैसे ही इस कोमल तन की बड़ाई है, जितना गागर का महत्व है।॥१॥
ਕਾਹੇ ਭਈਆ ਫਿਰਤੌ ਫੂਲਿਆ ਫੂਲਿਆ ॥ हे भाई ! तू क्यों घमण्ड में अकड़ा हुआ फिर रहा है ?
ਜਬ ਦਸ ਮਾਸ ਉਰਧ ਮੁਖ ਰਹਤਾ ਸੋ ਦਿਨੁ ਕੈਸੇ ਭੂਲਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ वे दिन तुझे कैसे भूल गए हैं, जब तू दस महीने माता के गर्भ में उल्टे मुँह लटका हुआ था ? ॥१॥ रहाउ ॥
ਜਿਉ ਮਧੁ ਮਾਖੀ ਤਿਉ ਸਠੋਰਿ ਰਸੁ ਜੋਰਿ ਜੋਰਿ ਧਨੁ ਕੀਆ ॥ जैसे मधुमक्खी शहद इकठ्ठा करती रहती है, वैसे ही मूर्ख मनुष्य जीवन भर धन-दौलत ही संचित करता रहता है।
ਮਰਤੀ ਬਾਰ ਲੇਹੁ ਲੇਹੁ ਕਰੀਐ ਭੂਤੁ ਰਹਨ ਕਿਉ ਦੀਆ ॥੨॥ जब मनुष्य प्राण त्याग देता है तो सभी कहते हैं कि इस मृत शरीर को श्मशान ले जाओ, ले जाओ और इस भूत को क्यों यहाँ पर रखा हुआ है ?॥२॥
ਦੇਹੁਰੀ ਲਉ ਬਰੀ ਨਾਰਿ ਸੰਗਿ ਭਈ ਆਗੈ ਸਜਨ ਸੁਹੇਲਾ ॥ उस मृतक व्यक्ति की पत्नी घर की दहलीज तक उसके साथ जाती है और आगे उसके सभी सज्जन एवं संबंधी जाते हैं।
ਮਰਘਟ ਲਉ ਸਭੁ ਲੋਗੁ ਕੁਟੰਬੁ ਭਇਓ ਆਗੈ ਹੰਸੁ ਅਕੇਲਾ ॥੩॥ सारा परिवार एवं सभी लोग शमशान जाते हैं और उसके उपरांत आत्मा अकेली ही रह जाती है।॥३॥
ਕਹਤੁ ਕਬੀਰ ਸੁਨਹੁ ਰੇ ਪ੍ਰਾਨੀ ਪਰੇ ਕਾਲ ਗ੍ਰਸ ਕੂਆ ॥ कबीर जी कहते हैं कि हे प्राणी ! जरा ध्यानपूर्वक सुनो तुझे काल (मृत्यु) ने ग्रास बनाया हुआ है और अन्धे कुएँ में गिरे हुए हो।
ਝੂਠੀ ਮਾਇਆ ਆਪੁ ਬੰਧਾਇਆ ਜਿਉ ਨਲਨੀ ਭ੍ਰਮਿ ਸੂਆ ॥੪॥੨॥ जैसे तोता भ्रम में नलकी के संग फँसा रहता है, वैसे ही मनुष्य ने स्वयं को झूठी माया के बन्धन में फँसाया हुआ है।॥४॥२॥
ਬੇਦ ਪੁਰਾਨ ਸਭੈ ਮਤ ਸੁਨਿ ਕੈ ਕਰੀ ਕਰਮ ਕੀ ਆਸਾ ॥ वेदों एवं पुराणों के समस्त मत सुनकर हमें भी कर्म करने की आशा उत्पन्न हुई किन्तु
ਕਾਲ ਗ੍ਰਸਤ ਸਭ ਲੋਗ ਸਿਆਨੇ ਉਠਿ ਪੰਡਿਤ ਪੈ ਚਲੇ ਨਿਰਾਸਾ ॥੧॥ सभी चतुर लोगों को काल (मृत्यु) ग्रस्त देखकर पण्डितों से निराश होकर आ गए हैं।॥१॥
ਮਨ ਰੇ ਸਰਿਓ ਨ ਏਕੈ ਕਾਜਾ ॥ हे मन ! तुम्हारा तो एक भी कार्य सम्पूर्ण नहीं हो सका,
ਭਜਿਓ ਨ ਰਘੁਪਤਿ ਰਾਜਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ चूंकि तूने राम का भजन ही नहीं किया॥१॥ रहाउ ॥
ਬਨ ਖੰਡ ਜਾਇ ਜੋਗੁ ਤਪੁ ਕੀਨੋ ਕੰਦ ਮੂਲੁ ਚੁਨਿ ਖਾਇਆ ॥ कुछ लोग वनों में जाकर योग साधना एवं तपस्या करते हैं और कंदमूल चुन कर खाते हैं।
ਨਾਦੀ ਬੇਦੀ ਸਬਦੀ ਮੋਨੀ ਜਮ ਕੇ ਪਟੈ ਲਿਖਾਇਆ ॥੨॥ सिंगी का नाद बजाने वाले योगी , वेदों में बताए कर्मकाण्ड़ करने वाले वेदी ,अलख-अलख बोलने वाले साधु एवं मौनी मृत्यु के रजिस्टर में दर्ज हैं।॥२॥
ਭਗਤਿ ਨਾਰਦੀ ਰਿਦੈ ਨ ਆਈ ਕਾਛਿ ਕੂਛਿ ਤਨੁ ਦੀਨਾ ॥ प्रेमा-भक्ति तो मनुष्य के हृदय में प्रविष्ट नहीं हुई और उसने अपने तन को बना संवार कर ही मृत्यु को सौंप दिया है।
ਰਾਗ ਰਾਗਨੀ ਡਿੰਭ ਹੋਇ ਬੈਠਾ ਉਨਿ ਹਰਿ ਪਹਿ ਕਿਆ ਲੀਨਾ ॥੩॥ वह तो केवल राग-रागनियों को धारण करने वाला ढोंगी ही बनकर बैठता है किन्तु उसमें उसे प्रभु से क्या मिल सकता है?॥३॥
ਪਰਿਓ ਕਾਲੁ ਸਭੈ ਜਗ ਊਪਰ ਮਾਹਿ ਲਿਖੇ ਭ੍ਰਮ ਗਿਆਨੀ ॥ मौत का खौफ समूचे जगत के ऊपर मंडरा रहा है और भ्रम में पड़े हुए ज्ञानी भी मृत्यु के रजिस्टर में लिखे हुए हैं।


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