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ਨਾਨਕ ਭਏ ਪੁਨੀਤ ਹਰਿ ਤੀਰਥਿ ਨਾਇਆ ॥੨੬॥
हे नानक ! जिन्होंने हरि-नाम रूपी तीर्थ में स्नान किया है, वे पवित्र पावन हो गए हैं॥२६॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੪ ॥
श्लोक महला ४॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਅੰਤਰਿ ਸਾਂਤਿ ਹੈ ਮਨਿ ਤਨਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਇ ॥
गुरुमुख के मन में शांति है और उसका मन एवं तन नाम में ही समाया रहता है।
ਨਾਮੋ ਚਿਤਵੈ ਨਾਮੁ ਪੜੈ ਨਾਮਿ ਰਹੈ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥
वह नाम को ही याद करता है, नाम को ही पढ़ता है और नाम में ही सुरति लगाकर रखता है।
ਨਾਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਪਾਇਆ ਚਿੰਤਾ ਗਈ ਬਿਲਾਇ ॥
अमूल्य नाम-पदार्थ को पा कर उसकी तमाम चिन्ता मिट गई है।
ਸਤਿਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਨਾਮੁ ਊਪਜੈ ਤਿਸਨਾ ਭੁਖ ਸਭ ਜਾਇ ॥
गुरु के मिलाप से ही मन में नाम उत्पन्न होता है और इससे तृष्णा की तमाम भूख दूर हो जाती है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੇ ਰਤਿਆ ਨਾਮੋ ਪਲੈ ਪਾਇ ॥੧॥
हे नानक ! परमात्मा के नाम में मग्न होने से वह अपने दामन में ही नाम को प्राप्त करता है॥१॥
ਮਃ ੪ ॥
महला ४॥
ਸਤਿਗੁਰ ਪੁਰਖਿ ਜਿ ਮਾਰਿਆ ਭ੍ਰਮਿ ਭ੍ਰਮਿਆ ਘਰੁ ਛੋਡਿ ਗਇਆ ॥
जिस व्यक्ति को महापुरुष सतगुरु ने धिक्कार दिया है, वह अपना घर त्याग कर हमेशा ही भटकता रहता है।
ਓਸੁ ਪਿਛੈ ਵਜੈ ਫਕੜੀ ਮੁਹੁ ਕਾਲਾ ਆਗੈ ਭਇਆ ॥
उसके बाद उसकी बहुत ही निन्दा होती है और आगे परलोक में भी उसका मुँह काला ही होता है।
ਓਸੁ ਅਰਲੁ ਬਰਲੁ ਮੁਹਹੁ ਨਿਕਲੈ ਨਿਤ ਝਗੂ ਸੁਟਦਾ ਮੁਆ ॥
उसके मुँह से उल्टी-सीधी व्यर्थ बातें ही निकलती हैं और वह नित्य ही मुँह से झाग निकालता हुआ अर्थात् निन्दित कर्म करता हुए प्राण त्याग देता है।
ਕਿਆ ਹੋਵੈ ਕਿਸੈ ਹੀ ਦੈ ਕੀਤੈ ਜਾਂ ਧੁਰਿ ਕਿਰਤੁ ਓਸ ਦਾ ਏਹੋ ਜੇਹਾ ਪਇਆ ॥
किसी के कुछ करने से क्या संभव हो सकता है? जबकि उसके पूर्व कर्मों के कारण उसका ऐसा ही भाग्य लिखा था।
ਜਿਥੈ ਓਹੁ ਜਾਇ ਤਿਥੈ ਓਹੁ ਝੂਠਾ ਕੂੜੁ ਬੋਲੇ ਕਿਸੈ ਨ ਭਾਵੈ ॥
वह जिधर भी जाता है, वहाँ झूठ ही बोलता है और झूठा ही माना जाता है। उसका झूठ बोलना किसी को भी अच्छा नहीं लगता।
ਵੇਖਹੁ ਭਾਈ ਵਡਿਆਈ ਹਰਿ ਸੰਤਹੁ ਸੁਆਮੀ ਅਪੁਨੇ ਕੀ ਜੈਸਾ ਕੋਈ ਕਰੈ ਤੈਸਾ ਕੋਈ ਪਾਵੈ ॥
हे भाई ! हे संतजनो ! अपने स्वामी प्रभु का बड़प्पन देखो, जैसा कोई कर्म करता है, उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है।
ਏਹੁ ਬ੍ਰਹਮ ਬੀਚਾਰੁ ਹੋਵੈ ਦਰਿ ਸਾਚੈ ਅਗੋ ਦੇ ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਆਖਿ ਸੁਣਾਵੈ ॥੨॥
सत्य के दरबार में यही ब्रह्म -विचार होता है, इसलिए नानक इसे पूर्व ही कह कर सुना रहा है॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी॥
ਗੁਰਿ ਸਚੈ ਬਧਾ ਥੇਹੁ ਰਖਵਾਲੇ ਗੁਰਿ ਦਿਤੇ ॥
सच्चे गुरु ने सत्संगति रूपी एक उत्तम गांव का निर्माण किया है और उस गांव के लिए स्वयं ही रखवाले दिए हैं।
ਪੂਰਨ ਹੋਈ ਆਸ ਗੁਰ ਚਰਣੀ ਮਨ ਰਤੇ ॥
गुरु के चरणों में मन को मग्न करने से हमारी आशा पूर्ण हो गई है।
ਗੁਰਿ ਕ੍ਰਿਪਾਲਿ ਬੇਅੰਤਿ ਅਵਗੁਣ ਸਭਿ ਹਤੇ ॥
हमारा गुरु बेअन्त कृपालु है, जिसने हमारे सभी अवगुण नाश कर दिए हैं।
ਗੁਰਿ ਅਪਣੀ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰਿ ਅਪਣੇ ਕਰਿ ਲਿਤੇ ॥
गुरु ने अपनी कृपा करके हमें अपना बना लिया।
ਨਾਨਕ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰ ਜਿਸੁ ਗੁਰ ਕੇ ਗੁਣ ਇਤੇ ॥੨੭॥
नानक तो सदैव ही उस पर बलिहारी जाता है, जिस गुरु के भीतर इतने अनन्त गुण हैं।॥२७॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥
श्लोक महला १॥
ਤਾ ਕੀ ਰਜਾਇ ਲੇਖਿਆ ਪਾਇ ਅਬ ਕਿਆ ਕੀਜੈ ਪਾਂਡੇ ॥
हे पण्डित ! अब क्या कर सकते हैं ? चूंकि उस परमात्मा की इच्छानुसार जो लिखा है, वही प्राप्त होना है।
ਹੁਕਮੁ ਹੋਆ ਹਾਸਲੁ ਤਦੇ ਹੋਇ ਨਿਬੜਿਆ ਹੰਢਹਿ ਜੀਅ ਕਮਾਂਦੇ ॥੧॥
जब उसका हुक्म हुआ था, तो तेरी किस्मत का निर्णय हो गया था और उसके हुक्म अनुसार ही जीव अपना जीवन-आचरण करता है॥१॥
ਮਃ ੨ ॥
महला २॥
ਨਕਿ ਨਥ ਖਸਮ ਹਥ ਕਿਰਤੁ ਧਕੇ ਦੇ ॥
सृष्टि के प्रत्येक प्राणी की नाक में उस मालिक की हुक्म रूपी नुकेल पड़ी हुई है, सब कुछ उसके ही वश में है और जीव के किए हुए कर्म ही उसे धकेलते हैं।
ਜਹਾ ਦਾਣੇ ਤਹਾਂ ਖਾਣੇ ਨਾਨਕਾ ਸਚੁ ਹੇ ॥੨॥
हे नानक ! केवल यही सत्य है कि जहाँ भी जीव का भोजन-निर्वाह है, वहीं वह इसे खाने के लिए जाता है।॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी॥
ਸਭੇ ਗਲਾ ਆਪਿ ਥਾਟਿ ਬਹਾਲੀਓਨੁ ॥
जगत-रचना की सब योजनाएँ परमात्मा ने स्वयं बनाकर नियत कर रखी हैं।
ਆਪੇ ਰਚਨੁ ਰਚਾਇ ਆਪੇ ਹੀ ਘਾਲਿਓਨੁ ॥
वह स्वयं ही जगत-रचना करके स्वयं ही इसका नाश कर देता है।
ਆਪੇ ਜੰਤ ਉਪਾਇ ਆਪਿ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਿਓਨੁ ॥
वह स्वयं ही सब जीवों को पैदा करके स्वयं ही उनका पालन-पोषण करता है।
ਦਾਸ ਰਖੇ ਕੰਠਿ ਲਾਇ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲਿਓਨੁ ॥
वह अपने सेवकों को अपने गले से लगाकर रखता है और कृपा-दृष्टि से उन्हें निहाल कर देता है।
ਨਾਨਕ ਭਗਤਾ ਸਦਾ ਅਨੰਦੁ ਭਾਉ ਦੂਜਾ ਜਾਲਿਓਨੁ ॥੨੮॥
हे नानक ! परमात्मा के भक्त सदैव ही आनंदित रहते हैं और दैतभाव को जला देते हैं॥२८ ॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੩ ॥
श्लोक महला ३॥
ਏ ਮਨ ਹਰਿ ਜੀ ਧਿਆਇ ਤੂ ਇਕ ਮਨਿ ਇਕ ਚਿਤਿ ਭਾਇ ॥
हे मन ! तू एकाग्रचित होकर सच्चे मन से भगवान का ध्यान कर।
ਹਰਿ ਕੀਆ ਸਦਾ ਸਦਾ ਵਡਿਆਈਆ ਦੇਇ ਨ ਪਛੋਤਾਇ ॥
उस परमेश्वर की महिमा सदैव महान् है, जो जीवों को देन देकर पश्चाताप नहीं करता।
ਹਉ ਹਰਿ ਕੈ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰਣੈ ਜਿਤੁ ਸੇਵਿਐ ਸੁਖੁ ਪਾਇ ॥
मैं तो उस ईश्वर पर सदैव बलिहारी जाता हूँ, जिसकी उपासना करने से सुख पाया जाता है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਿਲਿ ਰਹੈ ਹਉਮੈ ਸਬਦਿ ਜਲਾਇ ॥੧॥
हे नानक ! गुरुमुख शब्द द्वारा अपने आत्माभिमान को जलाकर सत्य में ही लीन रहते हैं ॥१॥
ਮਃ ੩ ॥
महला ३॥
ਆਪੇ ਸੇਵਾ ਲਾਇਅਨੁ ਆਪੇ ਬਖਸ ਕਰੇਇ ॥
परमात्मा ने स्वयं ही जीवों को अपनी सेवा में लगाया है और स्वयं ही उन पर अपनी कृपा करता है।
ਸਭਨਾ ਕਾ ਮਾ ਪਿਉ ਆਪਿ ਹੈ ਆਪੇ ਸਾਰ ਕਰੇਇ ॥
वह स्वयं ही सबका माता-पिता है और स्वयं ही सबकी देखभाल करता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਨਿ ਤਿਨ ਨਿਜ ਘਰਿ ਵਾਸੁ ਹੈ ਜੁਗੁ ਜੁਗੁ ਸੋਭਾ ਹੋਇ ॥੨॥
हे नानक ! जो भक्तजन नाम की आराधना करते हैं, उनका अपना वास्तविक घर प्रभु-चरणों में निवास हो जाता हैं और युगों-युगान्तरों में उनकी ही शोभा होती है॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी॥
ਤੂ ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਸਮਰਥੁ ਹਹਿ ਕਰਤੇ ਮੈ ਤੁਝ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥
हे सृजनहार प्रभु ! तू सब कुछ करने एवं कराने में समर्थ है और तेरे बिना मेरा कोई सहारा नहीं।