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ਸੰਤਹੁ ਸੁਖੁ ਹੋਆ ਸਭ ਥਾਈ ॥
संतहु सुखु होआ सभ थाई ॥
हे संतो! वह व्यक्ति हर स्थान पर शांति का अनुभव करता है।
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਪੂਰਨ ਪਰਮੇਸਰੁ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਸਭਨੀ ਜਾਈ ॥ ਰਹਾਉ ॥
पारब्रहमु पूरन परमेसरु रवि रहिआ सभनी जाई ॥ रहाउ ॥
जो सर्वत्र व्याप्त पूर्ण परमात्मा का साक्षात अनुभव करता है। ॥ रहाउ॥
ਧੁਰ ਕੀ ਬਾਣੀ ਆਈ ॥
धुर की बाणी आई ॥
भगवान् की स्तुति के दिव्य शब्द जिसके अंतर्मन में निवास करते हैं,
ਤਿਨਿ ਸਗਲੀ ਚਿੰਤ ਮਿਟਾਈ ॥
तिनि सगली चिंत मिटाई ॥
उसने अपनी सारी चिंता मिटा दी है।
ਦਇਆਲ ਪੁਰਖ ਮਿਹਰਵਾਨਾ ॥ ਹਰਿ ਨਾਨਕ ਸਾਚੁ ਵਖਾਨਾ ॥੨॥੧੩॥੭੭॥
दइआल पुरख मिहरवाना ॥ हरि नानक साचु वखाना ॥२॥१३॥७७॥
हे नानक, जिस पर सर्वव्यापी दयालु भगवान् की अनुग्रह दृष्टि होती है, वह सदा शाश्वत भगवान् का नाम हर पल जपता है। ॥ २॥१३॥७७॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
राग सोरठ, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਐਥੈ ਓਥੈ ਰਖਵਾਲਾ ॥ ਪ੍ਰਭ ਸਤਿਗੁਰ ਦੀਨ ਦਇਆਲਾ ॥
ऐथै ओथै रखवाला ॥ प्रभ सतिगुर दीन दइआला ॥
प्रभु ही लोक-परलोक में हमारे रक्षक है, वह सतगुरु दीनदयाल है
ਦਾਸ ਅਪਨੇ ਆਪਿ ਰਾਖੇ ॥
दास अपने आपि राखे ॥
वह स्वयं ही अपने सेवकों की रक्षा करते हैं और
ਘਟਿ ਘਟਿ ਸਬਦੁ ਸੁਭਾਖੇ ॥੧॥
घटि घटि सबदु सुभाखे ॥१॥
गुरु के दिव्य शब्द हर दिल में गूंजते है।॥ १॥
ਗੁਰ ਕੇ ਚਰਣ ਊਪਰਿ ਬਲਿ ਜਾਈ ॥
गुर के चरण ऊपरि बलि जाई ॥
मैं अपने गुरु के चरणों पर बलिहारी जाता हूँ और
ਦਿਨਸੁ ਰੈਨਿ ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਸਮਾਲੀ ਪੂਰਨੁ ਸਭਨੀ ਥਾਈ ॥ ਰਹਾਉ ॥
दिनसु रैनि सासि सासि समाली पूरनु सभनी थाई ॥ रहाउ ॥
दिन-रात, श्वास-श्वास से उसका ही सिमरन करता हूँ जो (पूर्ण परमेश्वर) सर्वव्यापक है॥ रहाउ॥
ਆਪਿ ਸਹਾਈ ਹੋਆ ॥
आपि सहाई होआ ॥
प्रभु स्वयं ही मेरे सहायक बन गए हैं।
ਸਚੇ ਦਾ ਸਚਾ ਢੋਆ ॥
सचे दा सचा ढोआ ॥
मुझे उस सच्चे प्रभु का सच्चा सहारा प्राप्त है।
ਤੇਰੀ ਭਗਤਿ ਵਡਿਆਈ ॥ ਪਾਈ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਸਰਣਾਈ ॥੨॥੧੪॥੭੮॥
तेरी भगति वडिआई ॥ पाई नानक प्रभ सरणाई ॥२॥१४॥७८॥
नानक कहते हैं कि हे प्रभु ! यह आपकी भक्ति की ही बड़ाई है, जो आपकी शरण प्राप्त कर ली है॥ २॥ १४ ॥ ७८॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
राग सोरठ, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਸਤਿਗੁਰ ਪੂਰੇ ਭਾਣਾ ॥
सतिगुर पूरे भाणा ॥
जब पूर्ण सतगुरु को भला लगा तो ही
ਤਾ ਜਪਿਆ ਨਾਮੁ ਰਮਾਣਾ ॥
ता जपिआ नामु रमाणा ॥
मैंने सर्वव्यापी राम-नाम का जाप किया।
ਗੋਬਿੰਦ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀ ॥ ਪ੍ਰਭਿ ਰਾਖੀ ਪੈਜ ਹਮਾਰੀ ॥੧॥
गोबिंद किरपा धारी ॥ प्रभि राखी पैज हमारी ॥१॥
गोविन्द ने जब मुझ पर कृपा की तो उसने हमारा सम्मान बचा लिया। ॥ १॥
ਹਰਿ ਕੇ ਚਰਨ ਸਦਾ ਸੁਖਦਾਈ ॥
हरि के चरन सदा सुखदाई ॥
भगवान् के सुन्दर चरण हमेशा ही सुखदायक हैं।
ਜੋ ਇਛਹਿ ਸੋਈ ਫਲੁ ਪਾਵਹਿ ਬਿਰਥੀ ਆਸ ਨ ਜਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जो इछहि सोई फलु पावहि बिरथी आस न जाई ॥१॥ रहाउ ॥
प्राणी जैसी भी इच्छा करता है, उसे वही फल मिल जाता है और उसकी आशा निष्फल नहीं जाती ॥१॥ रहाउ ॥
ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੇ ਜਿਸੁ ਪ੍ਰਾਨਪਤਿ ਦਾਤਾ ਸੋਈ ਸੰਤੁ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ॥
क्रिपा करे जिसु प्रानपति दाता सोई संतु गुण गावै ॥
जिस पर प्राणपति दाता अपनी कृपा करता है वही संत उसका गुणगान करता है।
ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤਿ ਤਾ ਕਾ ਮਨੁ ਲੀਣਾ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਮਨਿ ਭਾਵੈ ॥੨॥
प्रेम भगति ता का मनु लीणा पारब्रहम मनि भावै ॥२॥
जब पारब्रह्म प्रभु के मन को अच्छा लगता है तो ही मन प्रेम-भक्ति में लीन होता है॥ २॥
ਆਠ ਪਹਰ ਹਰਿ ਕਾ ਜਸੁ ਰਵਣਾ ਬਿਖੈ ਠਗਉਰੀ ਲਾਥੀ ॥
आठ पहर हरि का जसु रवणा बिखै ठगउरी लाथी ॥
आठ प्रहर भगवान् का यशोगान करने से माया की विषैली ठगौरी का असर नष्ट हो गया है।
ਸੰਗਿ ਮਿਲਾਇ ਲੀਆ ਮੇਰੈ ਕਰਤੈ ਸੰਤ ਸਾਧ ਭਏ ਸਾਥੀ ॥੩॥
संगि मिलाइ लीआ मेरै करतै संत साध भए साथी ॥३॥
मेरे प्रभु ने मुझे अपने साथ मिला लिया है एवं साधु-संत मेरे साथी बन गए हैं।॥ ३॥
ਕਰੁ ਗਹਿ ਲੀਨੇ ਸਰਬਸੁ ਦੀਨੇ ਆਪਹਿ ਆਪੁ ਮਿਲਾਇਆ ॥
करु गहि लीने सरबसु दीने आपहि आपु मिलाइआ ॥
प्रभु ने मुझे हाथ से पकड़ कर सर्वस्व प्रदान करके अपने साथ विलीन कर लिया है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸਰਬ ਥੋਕ ਪੂਰਨ ਪੂਰਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ॥੪॥੧੫॥੭੯॥
कहु नानक सरब थोक पूरन पूरा सतिगुरु पाइआ ॥४॥१५॥७९॥
हे नानक ! मैंने पूर्ण सतगुरु को पा लिया है, जिनके द्वारा मेरे सभी कार्य सम्पूर्ण हो गए हैं।॥ ४॥ १५॥ ७६ ॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
राग सोरठ, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਗਰੀਬੀ ਗਦਾ ਹਮਾਰੀ ॥
गरीबी गदा हमारी ॥
नम्रता हमारी गदा है और
ਖੰਨਾ ਸਗਲ ਰੇਨੁ ਛਾਰੀ ॥
खंना सगल रेनु छारी ॥
सबके चरणों की धूल बनना हमारा खण्डा है।
ਇਸੁ ਆਗੈ ਕੋ ਨ ਟਿਕੈ ਵੇਕਾਰੀ ॥
इसु आगै को न टिकै वेकारी ॥
इन शस्त्रों के समक्ष कोई विकारों से ग्रस्त दुराचारी टिक नहीं सकता,"
ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਏਹ ਗਲ ਸਾਰੀ ॥੧॥
गुर पूरे एह गल सारी ॥१॥
इस बात की सूझ पूर्ण गुरु ने प्रदान की है ॥ १॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸੰਤਨ ਕੀ ਓਟਾ ॥
हरि हरि नामु संतन की ओटा ॥
परमेश्वर का नाम संतों का सशक्त सहारा है।
ਜੋ ਸਿਮਰੈ ਤਿਸ ਕੀ ਗਤਿ ਹੋਵੈ ਉਧਰਹਿ ਸਗਲੇ ਕੋਟਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जो सिमरै तिस की गति होवै उधरहि सगले कोटा ॥१॥ रहाउ ॥
जो नाम-स्मरण करता है, उसकी मुक्ति हो जाती है और प्रभु का नाम-स्मरण करने से करोड़ों जीवों का उद्धार हो गया है॥ १॥ रहाउ॥
ਸੰਤ ਸੰਗਿ ਜਸੁ ਗਾਇਆ ॥
संत संगि जसु गाइआ ॥
संतों के संग भगवान् का यशोगान किया है और
ਇਹੁ ਪੂਰਨ ਹਰਿ ਧਨੁ ਪਾਇਆ ॥
इहु पूरन हरि धनु पाइआ ॥
हरि-नाम रूपी यह पूर्ण धन हमें प्राप्त हो गया है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਆਪੁ ਮਿਟਾਇਆ ॥
कहु नानक आपु मिटाइआ ॥
नानक कहते हैं कि जब से हमने अपना आत्माभिमान मिटाया है तो
ਸਭੁ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਨਦਰੀ ਆਇਆ ॥੨॥੧੬॥੮੦॥
सभु पारब्रहमु नदरी आइआ ॥२॥१६॥८०॥
सर्वत्र पारब्रह्म ही व्याप्त दिखते हैं॥ २॥ १६ ॥ ८० ॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
राग सोरठ, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਪੂਰੀ ਕੀਨੀ ॥
गुरि पूरै पूरी कीनी ॥
पूर्ण गुरु ने प्रत्येक कार्य पूर्ण किया है और
ਬਖਸ ਅਪੁਨੀ ਕਰਿ ਦੀਨੀ ॥
बखस अपुनी करि दीनी ॥
मुझ पर अपनी कृपा कर दी है।
ਨਿਤ ਅਨੰਦ ਸੁਖ ਪਾਇਆ ॥ ਥਾਵ ਸਗਲੇ ਸੁਖੀ ਵਸਾਇਆ ॥੧॥
नित अनंद सुख पाइआ ॥ थाव सगले सुखी वसाइआ ॥१॥
मैं हमेशा आनंद एवं सुख प्राप्त करता हूँ। गुरु ने मुझे समस्त स्थानों पर सुखी बसा दिया है॥ १॥
ਹਰਿ ਕੀ ਭਗਤਿ ਫਲ ਦਾਤੀ ॥
हरि की भगति फल दाती ॥
भगवान् की भक्ति समस्त फल प्रदान करने वाली है।
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਕਿਰਪਾ ਕਰਿ ਦੀਨੀ ਵਿਰਲੈ ਕਿਨ ਹੀ ਜਾਤੀ ॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरि पूरै किरपा करि दीनी विरलै किन ही जाती ॥ रहाउ ॥
पूर्ण गुरु ने कृपा करके भक्ति की देन प्रदान की है और कोई विरला पुरुष ही भक्ति के महत्व को समझता है।॥ रहाउ ॥
ਗੁਰਬਾਣੀ ਗਾਵਹ ਭਾਈ ॥
गुरबाणी गावह भाई ॥
हे भाई ! मधुर गुरु वाणी का गायन करो,
ਓਹ ਸਫਲ ਸਦਾ ਸੁਖਦਾਈ ॥
ओह सफल सदा सुखदाई ॥
क्योंकि यह हमेशा ही फलदायक एवं सुख देने वाली है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ॥ ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਿਆ ਪਾਇਆ ॥੨॥੧੭॥੮੧॥
नानक नामु धिआइआ ॥ पूरबि लिखिआ पाइआ ॥२॥१७॥८१॥
हे नानक ! जिसने भगवान् का नाम-सिमरन किया है, उसे वही प्राप्त हो गया है जो पूर्व ही उसके भाग्य में लिखा हुआ था॥२॥१७॥८१॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
राग सोरठ, पाँचवें गुरु: ५ ॥