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ਗੁਣ ਮਹਿ ਗੁਣੀ ਸਮਾਏ ਜਿਸੁ ਆਪਿ ਬੁਝਾਏ ਲਾਹਾ ਭਗਤਿ ਸੈਸਾਰੇ ॥
गुण महि गुणी समाए जिसु आपि बुझाए लाहा भगति सैसारे ॥
जिसे वह स्वयं सूझ प्रदान करता है, वही गुणवान प्राणी गुणों के मालिक में लीन रहता है और इस नश्वर दुनिया में परमात्मा की भक्ति का ही वह लाभ प्राप्त करता है।
ਬਿਨੁ ਭਗਤੀ ਸੁਖੁ ਨ ਹੋਈ ਦੂਜੈ ਪਤਿ ਖੋਈ ਗੁਰਮਤਿ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੇ ॥
बिनु भगती सुखु न होई दूजै पति खोई गुरमति नामु अधारे ॥
परमात्मा की भक्ति के बिना कहीं सुख प्राप्त नहीं होता, द्वैतभाव में फँसकर वह अपनी प्रतिष्ठा गंवा देता है और गुरु की मति द्वारा नाम ही आधार बनता है।
ਵਖਰੁ ਨਾਮੁ ਸਦਾ ਲਾਭੁ ਹੈ ਜਿਸ ਨੋ ਏਤੁ ਵਾਪਾਰਿ ਲਾਏ ॥
वखरु नामु सदा लाभु है जिस नो एतु वापारि लाए ॥
ईश्वर जिसे इस नाम-व्यापार में लगाते हैं, वह नाम के व्यापार का सर्वदा लाभ प्राप्त करता है।
ਰਤਨ ਪਦਾਰਥ ਵਣਜੀਅਹਿ ਜਾਂ ਸਤਿਗੁਰੁ ਦੇਇ ਬੁਝਾਏ ॥੧॥
रतन पदारथ वणजीअहि जां सतिगुरु देइ बुझाए ॥१॥
जब सतगुरु सूझ प्रदान करते हैं तो ही जीव नाम रूपी रत्न पदार्थ का व्यापार करता है॥ १ ॥
ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਸਭੁ ਦੁਖੁ ਹੈ ਖੋਟਾ ਇਹੁ ਵਾਪਾਰਾ ਰਾਮ ॥
माइआ मोहु सभु दुखु है खोटा इहु वापारा राम ॥
माया का मोह सब दुःख-संताप ही है और यह व्यापार बड़ा झूठा है।
ਕੂੜੁ ਬੋਲਿ ਬਿਖੁ ਖਾਵਣੀ ਬਹੁ ਵਧਹਿ ਵਿਕਾਰਾ ਰਾਮ ॥
कूड़ु बोलि बिखु खावणी बहु वधहि विकारा राम ॥
मनुष्य झूठ बोल-बोलकर माया रूपी विष ही खाता है और इसके फलस्वरूप उसके अन्दर बहुत सारे विकार बढ़ जाते हैं।
ਬਹੁ ਵਧਹਿ ਵਿਕਾਰਾ ਸਹਸਾ ਇਹੁ ਸੰਸਾਰਾ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਪਤਿ ਖੋਈ ॥
बहु वधहि विकारा सहसा इहु संसारा बिनु नावै पति खोई ॥
इस प्रकार पाप बहुत बढ़ गए हैं और संसार में संशय बना रहता है। परमात्मा के नाम के बिना मनुष्य अपनी प्रतिष्ठा गंवा देता है।
ਪੜਿ ਪੜਿ ਪੰਡਿਤ ਵਾਦੁ ਵਖਾਣਹਿ ਬਿਨੁ ਬੂਝੇ ਸੁਖੁ ਨ ਹੋਈ ॥
पड़ि पड़ि पंडित वादु वखाणहि बिनु बूझे सुखु न होई ॥
पण्डित ग्रंथ पढ़-पढ़कर वाद-विवाद करते हैं परन्तु ज्ञान के बिना उन्हें भी सुख प्राप्त नहीं होता।
ਆਵਣ ਜਾਣਾ ਕਦੇ ਨ ਚੂਕੈ ਮਾਇਆ ਮੋਹ ਪਿਆਰਾ ॥
आवण जाणा कदे न चूकै माइआ मोह पिआरा ॥
उन्हें तो मोह-माया से ही प्रेम है, इसलिए उनका जन्म-मरण का चक्र कदापि नहीं मिटता।
ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਸਭੁ ਦੁਖੁ ਹੈ ਖੋਟਾ ਇਹੁ ਵਾਪਾਰਾ ॥੨॥
माइआ मोहु सभु दुखु है खोटा इहु वापारा ॥२॥
माया का मोह सब दुःख-संताप ही है और यह व्यापार बड़ा झूठा तथा खोटा है॥ २॥
ਖੋਟੇ ਖਰੇ ਸਭਿ ਪਰਖੀਅਨਿ ਤਿਤੁ ਸਚੇ ਕੈ ਦਰਬਾਰਾ ਰਾਮ ॥
खोटे खरे सभि परखीअनि तितु सचे कै दरबारा राम ॥
उस सच्चे परमेश्वर के दरबार में सभी बुरे एवं भले जीव परखे जाते हैं।
ਖੋਟੇ ਦਰਗਹ ਸੁਟੀਅਨਿ ਊਭੇ ਕਰਨਿ ਪੁਕਾਰਾ ਰਾਮ ॥
खोटे दरगह सुटीअनि ऊभे करनि पुकारा राम ॥
बुरे जीव प्रभु के दरबार से बाहर निकाल दिए जाते हैं और वे खड़े होकर हमेशा रोते रहते हैं।
ਊਭੇ ਕਰਨਿ ਪੁਕਾਰਾ ਮੁਗਧ ਗਵਾਰਾ ਮਨਮੁਖਿ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ॥
ऊभे करनि पुकारा मुगध गवारा मनमुखि जनमु गवाइआ ॥
विमूढ़ एवं गंवार खड़े होकर विलाप करते हैं। इस प्रकार ऐसे मनमुख व्यक्ति अपना अमूल्य जीवन विनष्ट कर लेते हैं।
ਬਿਖਿਆ ਮਾਇਆ ਜਿਨਿ ਜਗਤੁ ਭੁਲਾਇਆ ਸਾਚਾ ਨਾਮੁ ਨ ਭਾਇਆ ॥
बिखिआ माइआ जिनि जगतु भुलाइआ साचा नामु न भाइआ ॥
माया रूपी विष ने समूचे संसार को भुला दिया है और उसे सच्चे परमेश्वर का नाम अच्छा नहीं लगता।
ਮਨਮੁਖ ਸੰਤਾ ਨਾਲਿ ਵੈਰੁ ਕਰਿ ਦੁਖੁ ਖਟੇ ਸੰਸਾਰਾ ॥
मनमुख संता नालि वैरु करि दुखु खटे संसारा ॥
मनमुख व्यक्ति संतजनों से वैर करके दुनिया में दुःख ही प्राप्त करते हैं।
ਖੋਟੇ ਖਰੇ ਪਰਖੀਅਨਿ ਤਿਤੁ ਸਚੈ ਦਰਵਾਰਾ ਰਾਮ ॥੩॥
खोटे खरे परखीअनि तितु सचै दरवारा राम ॥३॥
उस सच्चे परमेश्वर के दरबार में खोटे एवं भले जीवों की परख की जाती है।॥ ३॥
ਆਪਿ ਕਰੇ ਕਿਸੁ ਆਖੀਐ ਹੋਰੁ ਕਰਣਾ ਕਿਛੂ ਨ ਜਾਈ ਰਾਮ ॥
आपि करे किसु आखीऐ होरु करणा किछू न जाई राम ॥
जब ईश्वर ही मनुष्य के अच्छे या बुरे स्वभाव का कारण है, तो फिर किसी से शिकायत कैसी? इसलिए जो कुछ भी है, वही स्वीकार करना पड़ता है।
ਜਿਤੁ ਭਾਵੈ ਤਿਤੁ ਲਾਇਸੀ ਜਿਉ ਤਿਸ ਦੀ ਵਡਿਆਈ ਰਾਮ ॥
जितु भावै तितु लाइसी जिउ तिस दी वडिआई राम ॥
ईश्वर ही मनुष्य को अपनी इच्छा के अनुसार मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है, क्योंकि उसी में उसकी प्रसन्नता निहित होती है।
ਜਿਉ ਤਿਸ ਦੀ ਵਡਿਆਈ ਆਪਿ ਕਰਾਈ ਵਰੀਆਮੁ ਨ ਫੁਸੀ ਕੋਈ ॥
जिउ तिस दी वडिआई आपि कराई वरीआमु न फुसी कोई ॥
ईश्वर की महानता यही है कि वह सभी से अपनी इच्छा के अनुसार आचरण कराता है; कोई अपने बल से न बहादुर होता है, न अपने भय से कायर, सब उसी की प्रेरणा से चलते हैं।
ਜਗਜੀਵਨੁ ਦਾਤਾ ਕਰਮਿ ਬਿਧਾਤਾ ਆਪੇ ਬਖਸੇ ਸੋਈ ॥
जगजीवनु दाता करमि बिधाता आपे बखसे सोई ॥
दाता परमेश्वर जगत् को जीवन प्रदान करने वाले एवं कर्म-विधाता है और वह स्वयं ही क्षमा करते हैं।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਆਪੁ ਗਵਾਈਐ ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਪਤਿ ਪਾਈ ॥
गुर परसादी आपु गवाईऐ नानक नामि पति पाई ॥
हे नानक ! गुरु की कृपा से ही अहंकार निवृत्त होता है और परमात्मा के नाम के फलस्वरूप मान-सम्मान प्राप्त होता है। परमेश्वर स्वयं ही जीवों को अच्छा बुरा बनाता है।
ਆਪਿ ਕਰੇ ਕਿਸੁ ਆਖੀਐ ਹੋਰੁ ਕਰਣਾ ਕਿਛੂ ਨ ਜਾਈ ॥੪॥੪॥
आपि करे किसु आखीऐ होरु करणा किछू न जाई ॥४॥४॥
इसलिए किसी से शिकायत नहीं कर सकते क्योंकि उस प्रभु के अतिरिक्त अन्य कोई कुछ नहीं कर सकता ॥ ४॥ ४॥
ਵਡਹੰਸੁ ਮਹਲਾ ੩ ॥
वडहंसु महला ३ ॥
राग वदाहंस, तीसरे गुरु: ३ ॥
ਸਚਾ ਸਉਦਾ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਹੈ ਸਚਾ ਵਾਪਾਰਾ ਰਾਮ ॥
सचा सउदा हरि नामु है सचा वापारा राम ॥
हरि का नाम ही सच्चा सौदा है और यही सच्चा व्यापार है।
ਗੁਰਮਤੀ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਵਣਜੀਐ ਅਤਿ ਮੋਲੁ ਅਫਾਰਾ ਰਾਮ ॥
गुरमती हरि नामु वणजीऐ अति मोलु अफारा राम ॥
गुरु के उपदेश द्वारा ही हरि के नाम का व्यापार करना चाहिए और इस सच्चे नाम का व्यापार अत्यंत मूल्यवान एवं महान् है।
ਅਤਿ ਮੋਲੁ ਅਫਾਰਾ ਸਚ ਵਾਪਾਰਾ ਸਚਿ ਵਾਪਾਰਿ ਲਗੇ ਵਡਭਾਗੀ ॥
अति मोलु अफारा सच वापारा सचि वापारि लगे वडभागी ॥
इस सच्चे व्यापार का मूल्य अनन्त एवं बहुमूल्य है, जो लोग इस सच्चे व्यापार में क्रियाशील हैं, वे बड़े भाग्यशाली हैं।
ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਭਗਤੀ ਰਾਤੇ ਸਚਿ ਨਾਮਿ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ॥
अंतरि बाहरि भगती राते सचि नामि लिव लागी ॥
भीतर एवं बाहर से ऐसे प्राणी परमात्मा की भक्ति में लीन रहते हैं और सच्चे नाम में उनकी सुरति लगी रहती है।
ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਸੋਈ ਸਚੁ ਪਾਏ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰਾ ॥
नदरि करे सोई सचु पाए गुर कै सबदि वीचारा ॥
जो गुरु के शब्द का चिंतन करता है और जिस पर परमात्मा कृपा-दृष्टि करते हैं, उसे ही सत्य की प्राप्ति होती है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਤਿਨ ਹੀ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਸਾਚੈ ਕੇ ਵਾਪਾਰਾ ॥੧॥
नानक नामि रते तिन ही सुखु पाइआ साचै के वापारा ॥१॥
हे नानक ! जो सत्यनाम में लीन रहते हैं, उन्हें ही सुख प्राप्त होता है और वही सच्चे परमेश्वर के नाम के सच्चे व्यापारी हैं।॥१॥
ਹੰਉਮੈ ਮਾਇਆ ਮੈਲੁ ਹੈ ਮਾਇਆ ਮੈਲੁ ਭਰੀਜੈ ਰਾਮ ॥
हंउमै माइआ मैलु है माइआ मैलु भरीजै राम ॥
अहंकार माया की मैल है और यह माया की मैल जीव के मन में भर जाती है।
ਗੁਰਮਤੀ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲਾ ਰਸਨਾ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪੀਜੈ ਰਾਮ ॥
गुरमती मनु निरमला रसना हरि रसु पीजै राम ॥
गुरु की मति द्वारा मन से अहंकार की मैल दूर हो जाती है। अतः रसना द्वारा हरि रस पीते रहना चाहिए।
ਰਸਨਾ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪੀਜੈ ਅੰਤਰੁ ਭੀਜੈ ਸਾਚ ਸਬਦਿ ਬੀਚਾਰੀ ॥
रसना हरि रसु पीजै अंतरु भीजै साच सबदि बीचारी ॥
रसना द्वारा हरि रस पीने से जीव का हृदय परमेश्वर के प्रेम से भीग जाता है और सच्चे नाम का ही चिंतन करता रहता है।
ਅੰਤਰਿ ਖੂਹਟਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤਿ ਭਰਿਆ ਸਬਦੇ ਕਾਢਿ ਪੀਐ ਪਨਿਹਾਰੀ ॥
अंतरि खूहटा अम्रिति भरिआ सबदे काढि पीऐ पनिहारी ॥
जीवात्मा के अन्तर्मन में ही हरि के अमृत का सरोवर भरा हुआ है और नाम-सिमरन द्वारा पनिहारिन(जागृत चेतना) उस अमृत को बाहर लाती है और जीव आत्मा उसका रसास्वादन करती है।
ਜਿਸੁ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਸੋਈ ਸਚਿ ਲਾਗੈ ਰਸਨਾ ਰਾਮੁ ਰਵੀਜੈ ॥
जिसु नदरि करे सोई सचि लागै रसना रामु रवीजै ॥
जिस पर परमात्मा की कृपा-दृष्टि होती है, यही सत्य से लगता है और उसकी रसना परमात्मा के नाम का भजन करती है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਸੇ ਨਿਰਮਲ ਹੋਰ ਹਉਮੈ ਮੈਲੁ ਭਰੀਜੈ ॥੨॥
नानक नामि रते से निरमल होर हउमै मैलु भरीजै ॥२॥
हे नानक ! जो लोग परमात्मा के नाम में लीन रहते हैं, वही पवित्र-पावन हैं और शेष जीव अहंकार की मैल से भरपूर हैं।॥२॥
ਪੰਡਿਤ ਜੋਤਕੀ ਸਭਿ ਪੜਿ ਪੜਿ ਕੂਕਦੇ ਕਿਸੁ ਪਹਿ ਕਰਹਿ ਪੁਕਾਰਾ ਰਾਮ ॥
पंडित जोतकी सभि पड़ि पड़ि कूकदे किसु पहि करहि पुकारा राम ॥
सभी पण्डित एवं ज्योतिषी पढ़-पढ़कर उच्च स्वर में उपदेश देते हैं किन्तु ये उच्च स्वर में किसे सुना रहे हैं ?