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ਨਾਨਕ ਸਬਦਿ ਮਿਲੈ ਭਉ ਭੰਜਨੁ ਹਰਿ ਰਾਵੈ ਮਸਤਕਿ ਭਾਗੋ ॥੩॥
नानक सबदि मिलै भउ भंजनु हरि रावै मसतकि भागो ॥३॥
हे नानक ! जिसे पूर्व जन्मों का लेख मिला है, वही गुरु के शब्द के द्वारा उस परम भय-नाशक भगवान का अनुभव करता है और उसे सदा के लिए अपने हृदय में वास देता है।॥ ३॥
ਖੇਤੀ ਵਣਜੁ ਸਭੁ ਹੁਕਮੁ ਹੈ ਹੁਕਮੇ ਮੰਨਿ ਵਡਿਆਈ ਰਾਮ ॥
खेती वणजु सभु हुकमु है हुकमे मंनि वडिआई राम ॥
भगवान् के आदेश को स्वीकार करना उत्तम खेती एवं सर्वोत्तम व्यापार है, प्रभु आज्ञा को स्वीकार करने से जीव को मान-सम्मान मिलता है।
ਗੁਰਮਤੀ ਹੁਕਮੁ ਬੂਝੀਐ ਹੁਕਮੇ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਈ ਰਾਮ ॥
गुरमती हुकमु बूझीऐ हुकमे मेलि मिलाई राम ॥
गुरु की मति द्वारा ही परमात्मा के आदेश को समझा जाता है और उसके आदेश द्वारा ही प्रभु से मिलन होता है।
ਹੁਕਮਿ ਮਿਲਾਈ ਸਹਜਿ ਸਮਾਈ ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਅਪਾਰਾ ॥
हुकमि मिलाई सहजि समाई गुर का सबदु अपारा ॥
परमात्मा के आदेश में ही जीव सहजता से उसमें विलीन हो जाता है। गुरु का शब्द अपरम्पार है, (क्योंकि)"
ਸਚੀ ਵਡਿਆਈ ਗੁਰ ਤੇ ਪਾਈ ਸਚੁ ਸਵਾਰਣਹਾਰਾ ॥
सची वडिआई गुर ते पाई सचु सवारणहारा ॥
गुरु के द्वारा ही सच्ची प्रतिष्ठा प्राप्त होती है और मनुष्य सत्य से सुशोभित हो जाता है।
ਭਉ ਭੰਜਨੁ ਪਾਇਆ ਆਪੁ ਗਵਾਇਆ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਈ ॥
भउ भंजनु पाइआ आपु गवाइआ गुरमुखि मेलि मिलाई ॥
जीव अपना अहंकार मिटाकर भयनाशक परमात्मा को प्राप्त कर लेता है और गुरु के माध्यम से ही उसका मिलन होता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਅਗਮੁ ਅਗੋਚਰੁ ਹੁਕਮੇ ਰਹਿਆ ਸਮਾਈ ॥੪॥੨॥
कहु नानक नामु निरंजनु अगमु अगोचरु हुकमे रहिआ समाई ॥४॥२॥
नानक कहते हैं कि परमात्मा का पावन नाम अगम्य एवं अगोचर है और वह अपनी इच्छा से सर्वत्र व्याप्त है। ॥४॥२॥
ਵਡਹੰਸੁ ਮਹਲਾ ੩ ॥
वडहंसु महला ३ ॥
राग वदाहंस, तीसरे गुरु: ३ ॥
ਮਨ ਮੇਰਿਆ ਤੂ ਸਦਾ ਸਚੁ ਸਮਾਲਿ ਜੀਉ ॥
मन मेरिआ तू सदा सचु समालि जीउ ॥
हे मेरे मन ! तू सर्वदा ही सच्चे परमेश्वर को अपने अन्तर्मन में बसाकर रख।
ਆਪਣੈ ਘਰਿ ਤੂ ਸੁਖਿ ਵਸਹਿ ਪੋਹਿ ਨ ਸਕੈ ਜਮਕਾਲੁ ਜੀਉ ॥
आपणै घरि तू सुखि वसहि पोहि न सकै जमकालु जीउ ॥
ऐसा करने से भीतर एक गहरी शांति स्थापित हो जाती है, और मृत्यु का भय मन को विचलित नहीं कर पाता।
ਕਾਲੁ ਜਾਲੁ ਜਮੁ ਜੋਹਿ ਨ ਸਾਕੈ ਸਾਚੈ ਸਬਦਿ ਲਿਵ ਲਾਏ ॥
कालु जालु जमु जोहि न साकै साचै सबदि लिव लाए ॥
सच्चे शब्द में सुरति लगाने से मृत्यु रूपी जाल एवं यमदूत प्राणी को तंग नहीं कर सकते।
ਸਦਾ ਸਚਿ ਰਤਾ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਆਵਣੁ ਜਾਣੁ ਰਹਾਏ ॥
सदा सचि रता मनु निरमलु आवणु जाणु रहाए ॥
सत्य-नाम में लीन हुआ मन हमेशा निर्मल है और जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है।
ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਭਰਮਿ ਵਿਗੁਤੀ ਮਨਮੁਖਿ ਮੋਹੀ ਜਮਕਾਲਿ ॥
दूजै भाइ भरमि विगुती मनमुखि मोही जमकालि ॥
मनमुख दुनिया द्वैतभाव एवं भ्रम में फँसकर नाश हो रही है और इसे यमदूत ने मोह लिया है।
ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਸੁਣਿ ਮਨ ਮੇਰੇ ਤੂ ਸਦਾ ਸਚੁ ਸਮਾਲਿ ॥੧॥
कहै नानकु सुणि मन मेरे तू सदा सचु समालि ॥१॥
नानक कहते हैं कि हे मेरे मन ! ध्यानपूर्वक सुन, तू सर्वदा सच्चे परमेश्वर की आराधना कर ॥१॥
ਮਨ ਮੇਰਿਆ ਅੰਤਰਿ ਤੇਰੈ ਨਿਧਾਨੁ ਹੈ ਬਾਹਰਿ ਵਸਤੁ ਨ ਭਾਲਿ ॥
मन मेरिआ अंतरि तेरै निधानु है बाहरि वसतु न भालि ॥
हे मेरे मन ! तेरे भीतर परमात्मा के नाम का भण्डार है, इसलिए तू अनमोल वस्तु को बाहर मत खोज।
ਜੋ ਭਾਵੈ ਸੋ ਭੁੰਚਿ ਤੂ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲਿ ॥
जो भावै सो भुंचि तू गुरमुखि नदरि निहालि ॥
जो कुछ प्रभु को अच्छा लगता है, उसे सहर्ष ग्रहण कर और गुरुमुख बनकर उसकी कृपा-दृष्टि से कृतार्थ हो जा।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲਿ ਮਨ ਮੇਰੇ ਅੰਤਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਖਾਈ ॥
गुरमुखि नदरि निहालि मन मेरे अंतरि हरि नामु सखाई ॥
हे मेरे मन ! गुरुमुख बन और कृपादृष्टि से निहाल हो जा, क्योंकि तेरे सहायक हरि-नाम तेरे अन्तर्मन में ही है।
ਮਨਮੁਖ ਅੰਧੁਲੇ ਗਿਆਨ ਵਿਹੂਣੇ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਖੁਆਈ ॥
मनमुख अंधुले गिआन विहूणे दूजै भाइ खुआई ॥
मनमुख व्यक्ति मोह-माया में अन्धे एवं ज्ञानविहीन हैं और द्वैतभाव ने इन्हें नष्ट कर दिया है।
ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਕੋ ਛੂਟੈ ਨਾਹੀ ਸਭ ਬਾਧੀ ਜਮਕਾਲਿ ॥
बिनु नावै को छूटै नाही सभ बाधी जमकालि ॥
परमात्मा के नाम के बिना किसी की भी मुक्ति नहीं होती; यमदूतों ने सारी दुनिया को जकड़ा हुआ है।
ਨਾਨਕ ਅੰਤਰਿ ਤੇਰੈ ਨਿਧਾਨੁ ਹੈ ਤੂ ਬਾਹਰਿ ਵਸਤੁ ਨ ਭਾਲਿ ॥੨॥
नानक अंतरि तेरै निधानु है तू बाहरि वसतु न भालि ॥२॥
नानक कहते हैं कि तेरे भीतर परमात्मा के नाम का भण्डार है, इसलिए तू इस अनमोल वस्तु को बाहर मत खोज ॥ २॥
ਮਨ ਮੇਰਿਆ ਜਨਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਪਾਇ ਕੈ ਇਕਿ ਸਚਿ ਲਗੇ ਵਾਪਾਰਾ ॥
मन मेरिआ जनमु पदारथु पाइ कै इकि सचि लगे वापारा ॥
हे मेरे मन ! अमूल्य मनुष्य जन्म के पदार्थ को प्राप्त करके कुछ लोग सत्यनाम के व्यापार में क्रियाशील हैं।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਨਿ ਆਪਣਾ ਅੰਤਰਿ ਸਬਦੁ ਅਪਾਰਾ ॥
सतिगुरु सेवनि आपणा अंतरि सबदु अपारा ॥
वे अपने सतगुरु की सेवा करते हैं और उनके अन्तर में अपार शब्द विद्यमान है।
ਅੰਤਰਿ ਸਬਦੁ ਅਪਾਰਾ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਪਿਆਰਾ ਨਾਮੇ ਨਉ ਨਿਧਿ ਪਾਈ ॥
अंतरि सबदु अपारा हरि नामु पिआरा नामे नउ निधि पाई ॥
उनके भीतर अपार शब्द है; हरि-परमेश्वर का नाम उन्हें प्यारा लगता है और नाम के फलस्वरूप वे नवनिधियाँ प्राप्त कर लेते हैं।
ਮਨਮੁਖ ਮਾਇਆ ਮੋਹ ਵਿਆਪੇ ਦੂਖਿ ਸੰਤਾਪੇ ਦੂਜੈ ਪਤਿ ਗਵਾਈ ॥
मनमुख माइआ मोह विआपे दूखि संतापे दूजै पति गवाई ॥
मनमुख प्राणी तो माया के मोह में ही लीन हैं, उससे वे दु:खी होते हैं और दुविधा में फँसकर अपनी प्रतिष्ठा गंवा लेते हैं।
ਹਉਮੈ ਮਾਰਿ ਸਚਿ ਸਬਦਿ ਸਮਾਣੇ ਸਚਿ ਰਤੇ ਅਧਿਕਾਈ ॥
हउमै मारि सचि सबदि समाणे सचि रते अधिकाई ॥
जो अपने अहंकार को मार कर सच्चे शब्द में लीन होते हैं; वे अधिकतर सत्य में ही लीन रहते हैं।
ਨਾਨਕ ਮਾਣਸ ਜਨਮੁ ਦੁਲੰਭੁ ਹੈ ਸਤਿਗੁਰਿ ਬੂਝ ਬੁਝਾਈ ॥੩॥
नानक माणस जनमु दुल्मभु है सतिगुरि बूझ बुझाई ॥३॥
हे नानक ! यह मानव जन्म बड़ा दुर्लभ है और सतगुरु ही इस भेद को समझाता है॥ ३॥
ਮਨ ਮੇਰੇ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਨਿ ਆਪਣਾ ਸੇ ਜਨ ਵਡਭਾਗੀ ਰਾਮ ॥
मन मेरे सतिगुरु सेवनि आपणा से जन वडभागी राम ॥
हे मेरे मन ! वे लोग बड़े भाग्यवान हैं, जो अपने सतगुरु की श्रद्धापूर्वक सेवा करते हैं।
ਜੋ ਮਨੁ ਮਾਰਹਿ ਆਪਣਾ ਸੇ ਪੁਰਖ ਬੈਰਾਗੀ ਰਾਮ ॥
जो मनु मारहि आपणा से पुरख बैरागी राम ॥
जो अपने मन को वश में कर लेता है, वही पुरुष वास्तव में वैरागी है।
ਸੇ ਜਨ ਬੈਰਾਗੀ ਸਚਿ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ਆਪਣਾ ਆਪੁ ਪਛਾਣਿਆ ॥
से जन बैरागी सचि लिव लागी आपणा आपु पछाणिआ ॥
जो सच्चे परमेश्वर के साथ सुरति लगाते हैं, वही विरक्त हैं और वे अपने आत्मस्वरूप को पहचान लेते हैं।
ਮਤਿ ਨਿਹਚਲ ਅਤਿ ਗੂੜੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਹਜੇ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣਿਆ ॥
मति निहचल अति गूड़ी गुरमुखि सहजे नामु वखाणिआ ॥
उनकी बुद्धि बड़ी अटल एवं अत्यंत गहरी है और गुरुमुख बनकर वे सहजता से परमात्मा के नाम की स्तुति करते हैं।
ਇਕ ਕਾਮਣਿ ਹਿਤਕਾਰੀ ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਪਿਆਰੀ ਮਨਮੁਖ ਸੋਇ ਰਹੇ ਅਭਾਗੇ ॥
इक कामणि हितकारी माइआ मोहि पिआरी मनमुख सोइ रहे अभागे ॥
कुछ लोग सुन्दर नारियों से प्रेम करते हैं एवं माया का मोह उन्हें मीठा लगता है, ऐसे भाग्यहीन मनमुख अज्ञानता की निद्रा में सोये रहते हैं।
ਨਾਨਕ ਸਹਜੇ ਸੇਵਹਿ ਗੁਰੁ ਅਪਣਾ ਸੇ ਪੂਰੇ ਵਡਭਾਗੇ ॥੪॥੩॥
नानक सहजे सेवहि गुरु अपणा से पूरे वडभागे ॥४॥३॥
हे नानक ! जो सहज-स्वभाव ही अपने गुरु की सेवा करते हैं, वे पूर्ण भाग्यशाली हैं।॥ ४॥ ३॥
ਵਡਹੰਸੁ ਮਹਲਾ ੩ ॥
वडहंसु महला ३ ॥
राग वदाहंस, तीसरे गुरु: ३ ॥
ਰਤਨ ਪਦਾਰਥ ਵਣਜੀਅਹਿ ਸਤਿਗੁਰਿ ਦੀਆ ਬੁਝਾਈ ਰਾਮ ॥
रतन पदारथ वणजीअहि सतिगुरि दीआ बुझाई राम ॥
हे जीव ! सतगुरु ने यही सूझ दी है कि परमात्मा के नाम रूपी रत्न पदार्थों का ही व्यापार करना चाहिए।
ਲਾਹਾ ਲਾਭੁ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਹੈ ਗੁਣ ਮਹਿ ਗੁਣੀ ਸਮਾਈ ਰਾਮ ॥
लाहा लाभु हरि भगति है गुण महि गुणी समाई राम ॥
हरि की भक्ति ही सर्वोत्तम लाभ है और गुणवान प्राणी गुणों के स्वामी परमात्मा में ही समाए रहते हैं।