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ਅਨਦਿਨੁ ਸਹਸਾ ਕਦੇ ਨ ਚੂਕੈ ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਦੁਖੁ ਪਾਏ ॥
अनदिनु सहसा कदे न चूकै बिनु सबदै दुखु पाए ॥
गुरु के वचन पर विचार न करने वाला व्यक्ति संदेह में जीता है, जो कभी समाप्त नहीं होता, और इस कारण वह सदा दुःख भोगता है।
ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਲੋਭੁ ਅੰਤਰਿ ਸਬਲਾ ਨਿਤ ਧੰਧਾ ਕਰਤ ਵਿਹਾਏ ॥
कामु क्रोधु लोभु अंतरि सबला नित धंधा करत विहाए ॥
काम, क्रोध लोभ, इत्यादि प्रचंड विकार रहते हैं और उसकी आयु नित्य ही सांसारिक कार्य करते हुए व्यतीत हो जाती है।
ਚਰਣ ਕਰ ਦੇਖਤ ਸੁਣਿ ਥਕੇ ਦਿਹ ਮੁਕੇ ਨੇੜੈ ਆਏ ॥
चरण कर देखत सुणि थके दिह मुके नेड़ै आए ॥
उसके हाथ, पैर, नेत्र (देख-देखकर) तथा कान (सुन-सुनकर) थक चुके हैं, उसके जीवन के दिन समाप्त हो गए हैं और मृत्यु निकट आ गई है।
ਸਚਾ ਨਾਮੁ ਨ ਲਗੋ ਮੀਠਾ ਜਿਤੁ ਨਾਮਿ ਨਵ ਨਿਧਿ ਪਾਏ ॥
सचा नामु न लगो मीठा जितु नामि नव निधि पाए ॥
उसे परमात्मा का सच्चा नाम मीठा नहीं लगता जिस नाम से नवनिधियाँ प्राप्त हो जाती है।
ਜੀਵਤੁ ਮਰੈ ਮਰੈ ਫੁਨਿ ਜੀਵੈ ਤਾਂ ਮੋਖੰਤਰੁ ਪਾਏ ॥
जीवतु मरै मरै फुनि जीवै तां मोखंतरु पाए ॥
यदि वह जीवित ही अपने अहंकार को नष्ट कर दे और अपने अहंकार को मार कर नम्रता से जीवन बिताए तो वह मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
ਧੁਰਿ ਕਰਮੁ ਨ ਪਾਇਓ ਪਰਾਣੀ ਵਿਣੁ ਕਰਮਾ ਕਿਆ ਪਾਏ ॥
धुरि करमु न पाइओ पराणी विणु करमा किआ पाए ॥
यदि प्राणी को प्रभु का कर्म प्राप्त नहीं हुआ तो बिना कर्म से वह क्या प्राप्त कर सकता है?
ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਸਮਾਲਿ ਤੂ ਮੂੜੇ ਗਤਿ ਮਤਿ ਸਬਦੇ ਪਾਏ ॥
गुर का सबदु समालि तू मूड़े गति मति सबदे पाए ॥
हे विमूढ़ जीव ! तू गुरु के शब्द का मन में चिंतन कर, गुरु-शब्द द्वारा तुझे मोक्ष एवं सुमति प्राप्त हो जाएँगे।
ਨਾਨਕ ਸਤਿਗੁਰੁ ਤਦ ਹੀ ਪਾਏ ਜਾਂ ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਗਵਾਏ ॥੨॥
नानक सतिगुरु तद ही पाए जां विचहु आपु गवाए ॥२॥
हे नानक ! यदि जीव अपने अन्तर्मन से अहंकार को मिटा दे तो सच्चा गुरु तभी प्राप्त हो जाएगा ॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पौड़ी॥
ਜਿਸ ਦੈ ਚਿਤਿ ਵਸਿਆ ਮੇਰਾ ਸੁਆਮੀ ਤਿਸ ਨੋ ਕਿਉ ਅੰਦੇਸਾ ਕਿਸੈ ਗਲੈ ਦਾ ਲੋੜੀਐ ॥
जिस दै चिति वसिआ मेरा सुआमी तिस नो किउ अंदेसा किसै गलै दा लोड़ीऐ ॥
जिस के चित्त में मेरे स्वामी निवास कर गए हैं, उसे किसी बात की चिन्ता नहीं करनी चाहिए।
ਹਰਿ ਸੁਖਦਾਤਾ ਸਭਨਾ ਗਲਾ ਕਾ ਤਿਸ ਨੋ ਧਿਆਇਦਿਆ ਕਿਵ ਨਿਮਖ ਘੜੀ ਮੁਹੁ ਮੋੜੀਐ ॥
हरि सुखदाता सभना गला का तिस नो धिआइदिआ किव निमख घड़ी मुहु मोड़ीऐ ॥
परमेश्वर समस्त पदार्थों का सुखदाता है, फिर उसकी आराधना करने में हम घड़ी भर भी मुँह क्यों मोड़ें?
ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਧਿਆਇਆ ਤਿਸ ਨੋ ਸਰਬ ਕਲਿਆਣ ਹੋਏ ਨਿਤ ਸੰਤ ਜਨਾ ਕੀ ਸੰਗਤਿ ਜਾਇ ਬਹੀਐ ਮੁਹੁ ਜੋੜੀਐ ॥
जिनि हरि धिआइआ तिस नो सरब कलिआण होए नित संत जना की संगति जाइ बहीऐ मुहु जोड़ीऐ ॥
जिसने भी भगवान् का ध्यान किया है, उसका सर्व कल्याण हुआ है, इसलिए हमें नित्य ही संतजनों की सभा में विराजमान होना चाहिए तथा मिलकर भगवान् का गुणगान करना चाहिए।
ਸਭਿ ਦੁਖ ਭੁਖ ਰੋਗ ਗਏ ਹਰਿ ਸੇਵਕ ਕੇ ਸਭਿ ਜਨ ਕੇ ਬੰਧਨ ਤੋੜੀਐ ॥
सभि दुख भुख रोग गए हरि सेवक के सभि जन के बंधन तोड़ीऐ ॥
परमेश्वर के सेवक के सारे दु:ख, भूख एवं रोग मिट गए हैं और उसके सभी बन्धन टूट गए हैं।
ਹਰਿ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਹੋਆ ਹਰਿ ਭਗਤੁ ਹਰਿ ਭਗਤ ਜਨਾ ਕੈ ਮੁਹਿ ਡਿਠੈ ਜਗਤੁ ਤਰਿਆ ਸਭੁ ਲੋੜੀਐ ॥੪॥
हरि किरपा ते होआ हरि भगतु हरि भगत जना कै मुहि डिठै जगतु तरिआ सभु लोड़ीऐ ॥४॥
हरि की कृपा से ही जीव हरि का भक्त बनता है तथा हरि के भक्तजनों के दर्शन मात्र से ही समूचा जगत पार हो जाता है और सब कुछ प्राप्त कर लेता है॥ ४॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥
सलोक मः ३ ॥
श्लोक, तृतीय गुरु:३ ॥
ਸਾ ਰਸਨਾ ਜਲਿ ਜਾਉ ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਕਾ ਸੁਆਉ ਨ ਪਾਇਆ ॥
सा रसना जलि जाउ जिनि हरि का सुआउ न पाइआ ॥
वह रसना जल जाये जिसने हरी नाम का स्वाद प्राप्त नहीं किया।
ਨਾਨਕ ਰਸਨਾ ਸਬਦਿ ਰਸਾਇ ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਮੰਨਿ ਵਸਾਇਆ ॥੧॥
नानक रसना सबदि रसाइ जिनि हरि हरि मंनि वसाइआ ॥१॥
हे नानक ! वही रसना हरी के नाम स्वाद का आनंद लेती है, जिसने मन में परमेश्वर को बसाया है।॥ १ ॥
ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
तृतीय गुरु: ३ ॥
ਸਾ ਰਸਨਾ ਜਲਿ ਜਾਉ ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਉ ਵਿਸਾਰਿਆ ॥
सा रसना जलि जाउ जिनि हरि का नाउ विसारिआ ॥
वह जिह्वा जल जाए, जिसने हरि का नाम भुला दिया है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਰਸਨਾ ਹਰਿ ਜਪੈ ਹਰਿ ਕੈ ਨਾਇ ਪਿਆਰਿਆ ॥੨॥
नानक गुरमुखि रसना हरि जपै हरि कै नाइ पिआरिआ ॥२॥
हे नानक ! गुरुमुख पुरुष की जीभ हरि के नाम का जाप करती है और हरि के नाम से प्रेम करती है॥ २ ॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पौड़ी।
ਹਰਿ ਆਪੇ ਠਾਕੁਰੁ ਸੇਵਕੁ ਭਗਤੁ ਹਰਿ ਆਪੇ ਕਰੇ ਕਰਾਏ ॥
हरि आपे ठाकुरु सेवकु भगतु हरि आपे करे कराए ॥
परमेश्वर आप ही स्वामी, सेवक तथा भक्त है और आप ही सब कुछ करते एवं जीवों से करवाते हैं।
ਹਰਿ ਆਪੇ ਵੇਖੈ ਵਿਗਸੈ ਆਪੇ ਜਿਤੁ ਭਾਵੈ ਤਿਤੁ ਲਾਏ ॥
हरि आपे वेखै विगसै आपे जितु भावै तितु लाए ॥
वह आप ही देखता और आप ही प्रसन्न होता है, वह स्वयं हमें अपनी इच्छानुसार भिन्न-भिन्न कार्य सौंपते हैं।
ਹਰਿ ਇਕਨਾ ਮਾਰਗਿ ਪਾਏ ਆਪੇ ਹਰਿ ਇਕਨਾ ਉਝੜਿ ਪਾਏ ॥
हरि इकना मारगि पाए आपे हरि इकना उझड़ि पाए ॥
कुछ जीवों को वह स्वयं ही सन्मार्ग प्रदान करते हैं और कुछ जीवों को भयानक कुमार्ग प्रदान कर देते हैं।
ਹਰਿ ਸਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਸਚੁ ਤਪਾਵਸੁ ਕਰਿ ਵੇਖੈ ਚਲਤ ਸਬਾਏ ॥
हरि सचा साहिबु सचु तपावसु करि वेखै चलत सबाए ॥
परमेश्वर सच्चा मालिक है तथा उसका न्याय भी सच्चा है, वह अपने कौतुकों की रचना करते और देखते रहते है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਕਹੈ ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਹਰਿ ਸਚੇ ਕੇ ਗੁਣ ਗਾਏ ॥੫॥
गुर परसादि कहै जनु नानकु हरि सचे के गुण गाए ॥५॥
गुरु की कृपा से नानक उसकी ही महिमा कहता हुआ उस सच्चे परमेश्वर के ही गुण गाता है।॥५॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥
सलोक मः ३ ॥
श्लोक, तृतीय गुरु: ३ ॥
ਦਰਵੇਸੀ ਕੋ ਜਾਣਸੀ ਵਿਰਲਾ ਕੋ ਦਰਵੇਸੁ ॥
दरवेसी को जाणसी विरला को दरवेसु ॥
कोई विरला दरवेश(त्यागी) ही दरवेशी(त्यााग) की महत्ता को जानता है।
ਜੇ ਘਰਿ ਘਰਿ ਹੰਢੈ ਮੰਗਦਾ ਧਿਗੁ ਜੀਵਣੁ ਧਿਗੁ ਵੇਸੁ ॥
जे घरि घरि हंढै मंगदा धिगु जीवणु धिगु वेसु ॥
यदि दरवेश बनकर कोई घर घर जाकर दान भिक्षा माँगता रहता है तो उसके जीवन एवं वेश को महा धिक्कार है।
ਜੇ ਆਸਾ ਅੰਦੇਸਾ ਤਜਿ ਰਹੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਭਿਖਿਆ ਨਾਉ ॥
जे आसा अंदेसा तजि रहै गुरमुखि भिखिआ नाउ ॥
यदि वह आशा एवं चिन्ता को छोड़ देता है और गुरुमुख बनकर परमात्मा के नाम की भिक्षा माँगता है तो,
ਤਿਸ ਕੇ ਚਰਨ ਪਖਾਲੀਅਹਿ ਨਾਨਕ ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੈ ਜਾਉ ॥੧॥
तिस के चरन पखालीअहि नानक हउ बलिहारै जाउ ॥१॥
हे नानक ! हमें उसके चरणों को धोना चाहिए, हम उस पर बलिहारी जाते है ॥ १ ॥
ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
तृतीय गुरु:३ ॥
ਨਾਨਕ ਤਰਵਰੁ ਏਕੁ ਫਲੁ ਦੁਇ ਪੰਖੇਰੂ ਆਹਿ ॥
नानक तरवरु एकु फलु दुइ पंखेरू आहि ॥
हे नानक ! यह दुनिया एक ऐसा पेड़ है, जिस पर मोह-माया रूपी एक फल लगा हुआ है, इस पेड़ पर गुरमुख तथा मनमुख रूपी दो पक्षी बैठे है,
ਆਵਤ ਜਾਤ ਨ ਦੀਸਹੀ ਨਾ ਪਰ ਪੰਖੀ ਤਾਹਿ ॥
आवत जात न दीसही ना पर पंखी ताहि ॥
जिसके पंख भी नहीं है, और आते-जाते समय नज़र नहीं आते।
ਬਹੁ ਰੰਗੀ ਰਸ ਭੋਗਿਆ ਸਬਦਿ ਰਹੈ ਨਿਰਬਾਣੁ ॥
बहु रंगी रस भोगिआ सबदि रहै निरबाणु ॥
मनमुख बहुरंगी रस भोगता रहता है किन्तु गुरुमुख शब्द में निर्लिप्त रहता है।
ਹਰਿ ਰਸਿ ਫਲਿ ਰਾਤੇ ਨਾਨਕਾ ਕਰਮਿ ਸਚਾ ਨੀਸਾਣੁ ॥੨॥
हरि रसि फलि राते नानका करमि सचा नीसाणु ॥२॥
हे नानक ! परमेश्वर के करन (प्रारब्ध) द्वारा जिसके ललाट पर सच्चा चिन्ह लगा है, वह हरि के नाम रस रुपी फल में लीन रहते हैं।॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पौड़ी॥
ਆਪੇ ਧਰਤੀ ਆਪੇ ਹੈ ਰਾਹਕੁ ਆਪਿ ਜੰਮਾਇ ਪੀਸਾਵੈ ॥
आपे धरती आपे है राहकु आपि जमाइ पीसावै ॥
परमात्मा आप ही धरती है और आप ही उस धरती पर कृषि करने वाला कृषक है, वह आ ही अनाज को उगता है और आप ही पिसवाता है,
ਆਪਿ ਪਕਾਵੈ ਆਪਿ ਭਾਂਡੇ ਦੇਇ ਪਰੋਸੈ ਆਪੇ ਹੀ ਬਹਿ ਖਾਵੈ ॥
आपि पकावै आपि भांडे देइ परोसै आपे ही बहि खावै ॥
वह आप ही अन्न को पकाता है; आप है ही बर्तन देकर उन (बर्तनों) पर भोजन परोसता है और आप ही बैठकर भोजन खाता है।