Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 534

Page 534

ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਕੀ ਸਰਨੀ ਪਰੀਐ ਚਰਣ ਰੇਨੁ ਮਨੁ ਬਾਛੈ ॥੧॥ साधसंगति की सरनी परीऐ चरण रेनु मनु बाछै ॥१॥ इसलिए साधसंगत की शरण में ही आना चाहिए और मेरा मन उनकी ही चरण-धूलि की कामना करता है॥ १॥
ਜੁਗਤਿ ਨ ਜਾਨਾ ਗੁਨੁ ਨਹੀ ਕੋਈ ਮਹਾ ਦੁਤਰੁ ਮਾਇ ਆਛੈ ॥ जुगति न जाना गुनु नही कोई महा दुतरु माइ आछै ॥ न ही मैं कोई युक्ति जानता हूँ और न ही मुझ में कोई गुण विद्यमान है, इस माया रूपी संसार सागर से पार होना बहुत दुर्गम है।
ਆਇ ਪਇਓ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਚਰਨੀ ਤਉ ਉਤਰੀ ਸਗਲ ਦੁਰਾਛੈ ॥੨॥੨॥੨੮॥ आइ पइओ नानक गुर चरनी तउ उतरी सगल दुराछै ॥२॥२॥२८॥ हे नानक ! अब जब मैं गुरु-चरणों में आ गया हूँ तो मेरी दुर्वासना का नाश हो गया है॥ ॥२॥२॥२८॥
ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ੫ ॥ देवगंधारी ५ ॥ देवगंधारी ५ ॥
ਅੰਮ੍ਰਿਤਾ ਪ੍ਰਿਅ ਬਚਨ ਤੁਹਾਰੇ ॥ अम्रिता प्रिअ बचन तुहारे ॥ राग देवगंधारी, पंचम गुरु: ५ ॥
ਅਤਿ ਸੁੰਦਰ ਮਨਮੋਹਨ ਪਿਆਰੇ ਸਭਹੂ ਮਧਿ ਨਿਰਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ अति सुंदर मनमोहन पिआरे सभहू मधि निरारे ॥१॥ रहाउ ॥ अम्रिता प्रिअ बचन तुहारे ॥
ਰਾਜੁ ਨ ਚਾਹਉ ਮੁਕਤਿ ਨ ਚਾਹਉ ਮਨਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਚਰਨ ਕਮਲਾਰੇ ॥ राजु न चाहउ मुकति न चाहउ मनि प्रीति चरन कमलारे ॥ हे प्रिय ! तुम्हारे वचन अमृत की तरह हैं।
ਬ੍ਰਹਮ ਮਹੇਸ ਸਿਧ ਮੁਨਿ ਇੰਦ੍ਰਾ ਮੋਹਿ ਠਾਕੁਰ ਹੀ ਦਰਸਾਰੇ ॥੧॥ ब्रहम महेस सिध मुनि इंद्रा मोहि ठाकुर ही दरसारे ॥१॥ हे प्यारे प्रभु ! आप बहुत ही सुन्दर है और मन को मुग्ध करने वाला है, आप सब में व्याप्त हैं और सबसे निराले हैं॥ १॥ रहाउ॥
ਦੀਨੁ ਦੁਆਰੈ ਆਇਓ ਠਾਕੁਰ ਸਰਨਿ ਪਰਿਓ ਸੰਤ ਹਾਰੇ ॥ दीनु दुआरै आइओ ठाकुर सरनि परिओ संत हारे ॥ हे प्रभु ! न ही मुझे राजपाठ की चाहत है और न ही मुझ में मुक्ति की अभिलाषा है, मेरे मन को तो केवल आपके सुन्दर चरण-कमल के प्रेम की ही तीव्र लालसा बनी हुई है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਮਿਲੇ ਮਨੋਹਰ ਮਨੁ ਸੀਤਲ ਬਿਗਸਾਰੇ ॥੨॥੩॥੨੯॥ कहु नानक प्रभ मिले मनोहर मनु सीतल बिगसारे ॥२॥३॥२९॥ अन्य लोग ब्रह्मा, शिव, इंदिरा, या ऋषि-मुनियों और सिद्धों के दर्शन की लालसा रखते हैं, लेकिन मुझे तो केवल अपने गुरु-भगवान् के पावन दर्शन की ही अभिलाषा है। ॥ १॥
ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ देवगंधारी महला ५ ॥ हे ठाकुर जी ! मैं दीन आपके द्वार पर आया हूँ तथा हार-थक कर आपके संतों की शरण में आया हूँ।
ਹਰਿ ਜਪਿ ਸੇਵਕੁ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰਿਓ ॥ हरि जपि सेवकु पारि उतारिओ ॥ हे नानक ! मुझे मनोहर प्रभु मिल गए हैं जिसके फलस्वरूप मेरा मन शीतल हो गया है एवं फूल की तरह खिल गया है॥ २॥ ३॥ २६ ॥
ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਭਏ ਪ੍ਰਭ ਅਪਨੇ ਬਹੁੜਿ ਜਨਮਿ ਨਹੀ ਮਾਰਿਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ दीन दइआल भए प्रभ अपने बहुड़ि जनमि नही मारिओ ॥१॥ रहाउ ॥ राग देवगंधारी, पंचम गुरु: ५ ॥
ਸਾਧਸੰਗਮਿ ਗੁਣ ਗਾਵਹ ਹਰਿ ਕੇ ਰਤਨ ਜਨਮੁ ਨਹੀ ਹਾਰਿਓ ॥ साधसंगमि गुण गावह हरि के रतन जनमु नही हारिओ ॥ हरि का नाम जप कर उसका सेवक भवसागर से मुक्त हो गया है।
ਪ੍ਰਭ ਗੁਨ ਗਾਇ ਬਿਖੈ ਬਨੁ ਤਰਿਆ ਕੁਲਹ ਸਮੂਹ ਉਧਾਰਿਓ ॥੧॥ प्रभ गुन गाइ बिखै बनु तरिआ कुलह समूह उधारिओ ॥१॥ दयालु भगवान् उस भक्त को अपना बना लेते हैं और उसे जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त कर देते हैं। ॥ १॥ रहाउ ॥
ਚਰਨ ਕਮਲ ਬਸਿਆ ਰਿਦ ਭੀਤਰਿ ਸਾਸਿ ਗਿਰਾਸਿ ਉਚਾਰਿਓ ॥ चरन कमल बसिआ रिद भीतरि सासि गिरासि उचारिओ ॥ जो साधसंगत में हरि का गुणगान करता है, वह अपना हीरे जैसा अमूल्य-जन्म नहीं हारता।
ਨਾਨਕ ਓਟ ਗਹੀ ਜਗਦੀਸੁਰ ਪੁਨਹ ਪੁਨਹ ਬਲਿਹਾਰਿਓ ॥੨॥੪॥੩੦॥ नानक ओट गही जगदीसुर पुनह पुनह बलिहारिओ ॥२॥४॥३०॥ प्रभु का यशोगान करने से वह विषय-विकारों के सागर से पार हो जाता है और अपनी वंशावली का भी उद्धार कर लेता है॥१॥
ਰਾਗੁ ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੪॥ रागु देवगंधारी महला ५ घरु ४ प्रभु के चरण-कमल उसके हृदय में बसते हैं और अपने प्रत्येक श्वास एवं ग्रास से वह प्रभु-नाम का उच्चारण करता है।
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ हे नानक ! मैंने तो उस जगदीश्वर की शरण ली है और पुनः पुनः उन पर बलिहारी जाता हूँ॥ २॥ ४॥ ३०॥
ਕਰਤ ਫਿਰੇ ਬਨ ਭੇਖ ਮੋਹਨ ਰਹਤ ਨਿਰਾਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ करत फिरे बन भेख मोहन रहत निरार ॥१॥ रहाउ ॥ राग देवगंधारी, पंचम गुरु: चतुर्थ ताल ४
ਕਥਨ ਸੁਨਾਵਨ ਗੀਤ ਨੀਕੇ ਗਾਵਨ ਮਨ ਮਹਿ ਧਰਤੇ ਗਾਰ ॥੧॥ कथन सुनावन गीत नीके गावन मन महि धरते गार ॥१॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਅਤਿ ਸੁੰਦਰ ਬਹੁ ਚਤੁਰ ਸਿਆਨੇ ਬਿਦਿਆ ਰਸਨਾ ਚਾਰ ॥੨॥ अति सुंदर बहु चतुर सिआने बिदिआ रसना चार ॥२॥ जो लोग केवल पवित्र वेश धारण कर जंगलों में भटकते रहते हैं, उनके पास भगवान् नहीं आते। ॥ १॥ रहाउ॥
ਮਾਨ ਮੋਹ ਮੇਰ ਤੇਰ ਬਿਬਰਜਿਤ ਏਹੁ ਮਾਰਗੁ ਖੰਡੇ ਧਾਰ ॥੩॥ मान मोह मेर तेर बिबरजित एहु मारगु खंडे धार ॥३॥ वे कथन करते एवं उपदेश सुनाते हैं तथा मधुर गीत गायन करते हैं किन्तु उनके मन में विकारों की मैल व्याप्त है॥ १॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਤਿਨਿ ਭਵਜਲੁ ਤਰੀਅਲੇ ਪ੍ਰਭ ਕਿਰਪਾ ਸੰਤ ਸੰਗਾਰ ॥੪॥੧॥੩੧॥ कहु नानक तिनि भवजलु तरीअले प्रभ किरपा संत संगार ॥४॥१॥३१॥ वास्तव में जो व्यक्ति विद्या के फलस्वरुप मधुरभाषी एवं सूक्ष्म वक्ता है, वही अति सुन्दर, बहुत चतुर एवं बुद्धिमान है ॥२॥
ਰਾਗੁ ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੫॥ रागु देवगंधारी महला ५ घरु ५ अभिमान, भावनात्मक लगाव और 'मेरा-तेरा' की भावना से मुक्त रहना अत्यंत कठिन है — यह मानो तलवार की धार पर चलने जैसा है।॥ ३॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ हे नानक ! प्रभु की कृपा से जो व्यक्ति संतों की संगत में रहते हैं, वे भवसागर से पार हो जाते हैं॥ ४ ॥ १॥ ३१ ॥
ਮੈ ਪੇਖਿਓ ਰੀ ਊਚਾ ਮੋਹਨੁ ਸਭ ਤੇ ਊਚਾ ॥ मै पेखिओ री ऊचा मोहनु सभ ते ऊचा ॥ राग देवगणधारी, पंचम गुरु, पंचम ताल: ५
ਆਨ ਨ ਸਮਸਰਿ ਕੋਊ ਲਾਗੈ ਢੂਢਿ ਰਹੇ ਹਮ ਮੂਚਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ आन न समसरि कोऊ लागै ढूढि रहे हम मूचा ॥१॥ रहाउ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਬਹੁ ਬੇਅੰਤੁ ਅਤਿ ਬਡੋ ਗਾਹਰੋ ਥਾਹ ਨਹੀ ਅਗਹੂਚਾ ॥ बहु बेअंतु अति बडो गाहरो थाह नही अगहूचा ॥ हे सखी ! उस मोहन प्रभु को मैंने सबसे ऊँचा ही देखा है।
ਤੋਲਿ ਨ ਤੁਲੀਐ ਮੋਲਿ ਨ ਮੁਲੀਐ ਕਤ ਪਾਈਐ ਮਨ ਰੂਚਾ ॥੧॥ तोलि न तुलीऐ मोलि न मुलीऐ कत पाईऐ मन रूचा ॥१॥ मैं बहुत ढूंढता रहा, लेकिन दुनिया में उनकी तुलना दूसरा कोई भी नहीं कर सकता ॥ १॥ रहाउ॥
ਖੋਜ ਅਸੰਖਾ ਅਨਿਕ ਤਪੰਥਾ ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਨਹੀ ਪਹੂਚਾ ॥ खोज असंखा अनिक तपंथा बिनु गुर नही पहूचा ॥ वह प्रभु बेअंत, बहुत बड़ा गहरा तथा अथाह है, वह पहुँच से परे ऊँचे है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਕਿਰਪਾ ਕਰੀ ਠਾਕੁਰ ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਰਸ ਭੂੰਚਾ ॥੨॥੧॥੩੨॥ कहु नानक किरपा करी ठाकुर मिलि साधू रस भूंचा ॥२॥१॥३२॥ उस परमात्मा का मूल्य आँका नहीं जा सकता, वह नितांत अमूल्य है। हम यह भी नहीं जानते कि उस हृदय-मोहक भगवान् की अनुभूति हमें कैसे हो सकती है।? ॥ १॥


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