Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 533

Page 533

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ देवगंधारी महला ५ ॥ राग देवगंधारी, पंचम गुरु: ५ ॥
ਅਪੁਨੇ ਸਤਿਗੁਰ ਪਹਿ ਬਿਨਉ ਕਹਿਆ ॥ अपुने सतिगुर पहि बिनउ कहिआ ॥ जब मैंने अपने सच्चे गुरु के पास विनती की तो
ਭਏ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਦਇਆਲ ਦੁਖ ਭੰਜਨ ਮੇਰਾ ਸਗਲ ਅੰਦੇਸਰਾ ਗਇਆ ॥ ਰਹਾਉ ॥ भए क्रिपाल दइआल दुख भंजन मेरा सगल अंदेसरा गइआ ॥ रहाउ ॥ दुःखनाशक परमात्मा दयालु एवं कृपालु हो गए और मेरे सभी डर मिट गए॥ रहाउ॥
ਹਮ ਪਾਪੀ ਪਾਖੰਡੀ ਲੋਭੀ ਹਮਰਾ ਗੁਨੁ ਅਵਗੁਨੁ ਸਭੁ ਸਹਿਆ ॥ हम पापी पाखंडी लोभी हमरा गुनु अवगुनु सभु सहिआ ॥ हे प्राणी ! हम कितने पापी, पाखंडी एवं लोभी हैं किन्तु फिर भी दयावान प्रभु हमारे गुण-अवगुण सभी सहन करते हैं।
ਕਰੁ ਮਸਤਕਿ ਧਾਰਿ ਸਾਜਿ ਨਿਵਾਜੇ ਮੁਏ ਦੁਸਟ ਜੋ ਖਇਆ ॥੧॥ करु मसतकि धारि साजि निवाजे मुए दुसट जो खइआ ॥१॥ प्रभु ने (हमें रचकर) अपना हाथ हमारे मस्तक पर रखकर गौरव प्रदान किया है, जो दुष्ट हमें मारना चाहते थे, स्वयं ही मर गए हैं ॥१॥
ਪਰਉਪਕਾਰੀ ਸਰਬ ਸਧਾਰੀ ਸਫਲ ਦਰਸਨ ਸਹਜਇਆ ॥ परउपकारी सरब सधारी सफल दरसन सहजइआ ॥ परमात्मा बड़ा परोपकारी एवं सभी को आधार देने वाला है, उसके दर्शन ही फलदायक हैं जो शांति का पुंज है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਨਿਰਗੁਣ ਕਉ ਦਾਤਾ ਚਰਣ ਕਮਲ ਉਰ ਧਰਿਆ ॥੨॥੨੪॥ कहु नानक निरगुण कउ दाता चरण कमल उर धरिआ ॥२॥२४॥ हे नानक ! परमात्मा निर्गुणों के भी दाता है, उसके चरण-कमल मैंने हृदय में बसाए हुए है॥ २॥ २४॥
ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ देवगंधारी महला ५ ॥ राग देवगंधारी, पंचम गुरु: ५ ॥
ਅਨਾਥ ਨਾਥ ਪ੍ਰਭ ਹਮਾਰੇ ॥ अनाथ नाथ प्रभ हमारे ॥ हे मेरे प्रभु ! आप अनाथो के नाथ है।
ਸਰਨਿ ਆਇਓ ਰਾਖਨਹਾਰੇ ॥ ਰਹਾਉ ॥ सरनि आइओ राखनहारे ॥ रहाउ ॥ हे दुनिया के रखवाले ! मैं आपकी शरण में आया हूँ॥ रहाउ॥
ਸਰਬ ਪਾਖ ਰਾਖੁ ਮੁਰਾਰੇ ॥ सरब पाख राखु मुरारे ॥ हे मुरारि प्रभु! हर तरफ से मेरी रक्षा करो,
ਆਗੈ ਪਾਛੈ ਅੰਤੀ ਵਾਰੇ ॥੧॥ आगै पाछै अंती वारे ॥१॥ लोक परलोक एवं जिन्दगी के अन्तिम क्षण तक मेरी रक्षा करते रहना ॥ १॥
ਜਬ ਚਿਤਵਉ ਤਬ ਤੁਹਾਰੇ ॥ जब चितवउ तब तुहारे ॥ हे मालिक ! जब भी आपको याद करता हूँ तो आपके गुण ही याद करता हूँ।
ਉਨ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਰਿ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਸਧਾਰੇ ॥੨॥ उन सम्हारि मेरा मनु सधारे ॥२॥ उन गुणों को धारण करने से मेरा मन शुद्ध हो जाता है॥ २॥
ਸੁਨਿ ਗਾਵਉ ਗੁਰ ਬਚਨਾਰੇ ॥ सुनि गावउ गुर बचनारे ॥ मैं गुरु के वचनों को सुनकर आपके ही गुण गाता रहता हूँ तथा
ਬਲਿ ਬਲਿ ਜਾਉ ਸਾਧ ਦਰਸਾਰੇ ॥੩॥ बलि बलि जाउ साध दरसारे ॥३॥ साधु (रूपी गुरु) के दर्शनों पर बार-बार बलिहारी जाता हूँ॥ ३॥
ਮਨ ਮਹਿ ਰਾਖਉ ਏਕ ਅਸਾਰੇ ॥ मन महि राखउ एक असारे ॥ मेरे मन में एक ईश्वर का ही सहारा है।
ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਮੇਰੇ ਕਰਨੈਹਾਰੇ ॥੪॥੨੫॥ नानक प्रभ मेरे करनैहारे ॥४॥२५॥ हे नानक ! मेरे प्रभु ही सबका रचयिता है॥ ४॥ २५॥
ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ देवगंधारी महला ५ ॥ राग देवगंधारी, पंचम गुरु: ५ ॥
ਪ੍ਰਭ ਇਹੈ ਮਨੋਰਥੁ ਮੇਰਾ ॥ प्रभ इहै मनोरथु मेरा ॥ हे प्रभु ! मेरा केवल यही मनोरथ है कि
ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧਾਨ ਦਇਆਲ ਮੋਹਿ ਦੀਜੈ ਕਰਿ ਸੰਤਨ ਕਾ ਚੇਰਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥ क्रिपा निधान दइआल मोहि दीजै करि संतन का चेरा ॥ रहाउ ॥ हे कृपानिधि ! हे दीनदयाल ! मुझे अपने संतजनों का सेवक बना दीजिए॥ रहाउ॥
ਪ੍ਰਾਤਹਕਾਲ ਲਾਗਉ ਜਨ ਚਰਨੀ ਨਿਸ ਬਾਸੁਰ ਦਰਸੁ ਪਾਵਉ ॥ प्रातहकाल लागउ जन चरनी निस बासुर दरसु पावउ ॥ मैं प्रातः काल संतजनों के चरण स्पर्श करता रहूँ और रात-दिन उनके दर्शन प्राप्त करता रहूँ।
ਤਨੁ ਮਨੁ ਅਰਪਿ ਕਰਉ ਜਨ ਸੇਵਾ ਰਸਨਾ ਹਰਿ ਗੁਨ ਗਾਵਉ ॥੧॥ तनु मनु अरपि करउ जन सेवा रसना हरि गुन गावउ ॥१॥ अपना तन-मन अर्पित करके मैं संतजनों की श्रद्धा से सेवा करता रहूँ और अपनी जिह्वा से आपका गुणानुवाद करता रहूँ॥ १॥
ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਸਿਮਰਉ ਪ੍ਰਭੁ ਅਪੁਨਾ ਸੰਤਸੰਗਿ ਨਿਤ ਰਹੀਐ ॥ सासि सासि सिमरउ प्रभु अपुना संतसंगि नित रहीऐ ॥ मैं श्वास-श्वास से अपने प्रभु का सिमरन करता रहूँ और नित्य ही संतों की संगत में मिला रहूँ।
ਏਕੁ ਅਧਾਰੁ ਨਾਮੁ ਧਨੁ ਮੋਰਾ ਅਨਦੁ ਨਾਨਕ ਇਹੁ ਲਹੀਐ ॥੨॥੨੬॥ एकु अधारु नामु धनु मोरा अनदु नानक इहु लहीऐ ॥२॥२६॥ हे नानक ! ईश्वर का नाम-धन ही मेरा जीवन का एकमात्र आधार है और इससे ही मैं आत्मिक आनंद प्राप्त करता रहूँ॥ २॥ २६॥
ਰਾਗੁ ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੩॥ रागु देवगंधारी महला ५ घरु ३ राग देवगंधारी, पंचम गुरु: तृतीय ताल ३
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਮੀਤਾ ਐਸੇ ਹਰਿ ਜੀਉ ਪਾਏ ॥ मीता ऐसे हरि जीउ पाए ॥ मैंने मित्र रूपी ऐसा भगवान् पा लिया है,
ਛੋਡਿ ਨ ਜਾਈ ਸਦ ਹੀ ਸੰਗੇ ਅਨਦਿਨੁ ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਗਾਏ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ छोडि न जाई सद ही संगे अनदिनु गुर मिलि गाए ॥१॥ रहाउ ॥ जो मुझे छोड़कर नहीं जाते और हमेशा ही मेरे साथ रहते हैं, गुरु से मिलकर मैं रात-दिन उनका यशोगान करता रहता हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਮਿਲਿਓ ਮਨੋਹਰੁ ਸਰਬ ਸੁਖੈਨਾ ਤਿਆਗਿ ਨ ਕਤਹੂ ਜਾਏ ॥ मिलिओ मनोहरु सरब सुखैना तिआगि न कतहू जाए ॥ मुझे सर्व सुख देने वाला मनोहर प्रभु मिल गया है और वह मुझे छोड़कर कहीं नहीं जाता।
ਅਨਿਕ ਅਨਿਕ ਭਾਤਿ ਬਹੁ ਪੇਖੇ ਪ੍ਰਿਅ ਰੋਮ ਨ ਸਮਸਰਿ ਲਾਏ ॥੧॥ अनिक अनिक भाति बहु पेखे प्रिअ रोम न समसरि लाए ॥१॥ मैंने विविधि प्रकार के लोग देखे हैं किन्तु वे मेरे प्रिय-प्रभु के एक रोम की समानता भी नहीं कर सकते॥१॥
ਮੰਦਰਿ ਭਾਗੁ ਸੋਭ ਦੁਆਰੈ ਅਨਹਤ ਰੁਣੁ ਝੁਣੁ ਲਾਏ ॥ मंदरि भागु सोभ दुआरै अनहत रुणु झुणु लाए ॥ उसका मन्दिर बड़ा कीर्तिमान तथा द्वार बहुत शोभावान है, जिसमें मधुर अनहद ध्वनि गूंजती रहती है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸਦਾ ਰੰਗੁ ਮਾਣੇ ਗ੍ਰਿਹ ਪ੍ਰਿਅ ਥੀਤੇ ਸਦ ਥਾਏ ॥੨॥੧॥੨੭॥ कहु नानक सदा रंगु माणे ग्रिह प्रिअ थीते सद थाए ॥२॥१॥२७॥ हे नानक ! मैं सदा आनंद भोगता हूँ, क्योंकि प्रिय-प्रभु के घर में मुझे सदैव स्थिर स्थान मिल गया है॥ २ ॥ १॥ २७ ॥
ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ੫ ॥ देवगंधारी ५ ॥ राग देवगंधारी, पंचम गुरु: ५ ॥
ਦਰਸਨ ਨਾਮ ਕਉ ਮਨੁ ਆਛੈ ॥ दरसन नाम कउ मनु आछै ॥ मेरा मन प्रभु के दर्शन एवं नाम का अभिलाषी है और
ਭ੍ਰਮਿ ਆਇਓ ਹੈ ਸਗਲ ਥਾਨ ਰੇ ਆਹਿ ਪਰਿਓ ਸੰਤ ਪਾਛੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ भ्रमि आइओ है सगल थान रे आहि परिओ संत पाछै ॥१॥ रहाउ ॥ सभी स्थानों पर भटक कर अब संतों के चरणों में लग गया है॥ १॥ रहाउ ॥
ਕਿਸੁ ਹਉ ਸੇਵੀ ਕਿਸੁ ਆਰਾਧੀ ਜੋ ਦਿਸਟੈ ਸੋ ਗਾਛੈ ॥ किसु हउ सेवी किसु आराधी जो दिसटै सो गाछै ॥ में किसकी सेवा करूँ और किसकी आराधना करूँ, क्योंकि जो कुछ भी दिखाई दे रहा है, वह नाशवान है।


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