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ਕਰਹੁ ਅਨੁਗ੍ਰਹੁ ਸੁਆਮੀ ਮੇਰੇ ਮਨ ਤੇ ਕਬਹੁ ਨ ਡਾਰਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
करहु अनुग्रहु सुआमी मेरे मन ते कबहु न डारउ ॥१॥ रहाउ ॥
हे मेरे स्वामी ! मुझ पर अनुग्रह कीजिए चूंकि अपने मन से आपको कभी भी न भुलाऊँ ॥१॥ रहाउ॥
ਸਾਧੂ ਧੂਰਿ ਲਾਈ ਮੁਖਿ ਮਸਤਕਿ ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਬਿਖੁ ਜਾਰਉ ॥
साधू धूरि लाई मुखि मसतकि काम क्रोध बिखु जारउ ॥
साधु की चरण-धूलि अपने चेहरे एवं मस्तक पर लगाकर काम, क्रोध जैसे विष को जला दूँ।
ਸਭ ਤੇ ਨੀਚੁ ਆਤਮ ਕਰਿ ਮਾਨਉ ਮਨ ਮਹਿ ਇਹੁ ਸੁਖੁ ਧਾਰਉ ॥੧॥
सभ ते नीचु आतम करि मानउ मन महि इहु सुखु धारउ ॥१॥
मैं अपने आपको सबसे निम्न वर्ग का समझता हूँ और मन में यही सुख धारण करता हूँ॥ १॥
ਗੁਨ ਗਾਵਹ ਠਾਕੁਰ ਅਬਿਨਾਸੀ ਕਲਮਲ ਸਗਲੇ ਝਾਰਉ ॥
गुन गावह ठाकुर अबिनासी कलमल सगले झारउ ॥
मैं अविनाशी ठाकुर का गुणानुवाद करता हुआ अपने समस्त पाप दूर करता हूँ।
ਨਾਮ ਨਿਧਾਨੁ ਨਾਨਕ ਦਾਨੁ ਪਾਵਉ ਕੰਠਿ ਲਾਇ ਉਰਿ ਧਾਰਉ ॥੨॥੧੯॥
नाम निधानु नानक दानु पावउ कंठि लाइ उरि धारउ ॥२॥१९॥
हे नानक ! मैं नाम के भण्डार का दान प्राप्त करता हूँ और इसे अपने गले से लगाकर हृदय में धारण करता हूँ ॥२॥१६॥
ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
देवगंधारी महला ५ ॥
राग देवगंधारी, पंचम गुरु: ५ ॥
ਪ੍ਰਭ ਜੀਉ ਪੇਖਉ ਦਰਸੁ ਤੁਮਾਰਾ ॥
प्रभ जीउ पेखउ दरसु तुमारा ॥
हे प्रभु जी ! मैं हमेशा आपके दर्शन करने की अभिलाषा रखता हूँ।
ਸੁੰਦਰ ਧਿਆਨੁ ਧਾਰੁ ਦਿਨੁ ਰੈਨੀ ਜੀਅ ਪ੍ਰਾਨ ਤੇ ਪਿਆਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सुंदर धिआनु धारु दिनु रैनी जीअ प्रान ते पिआरा ॥१॥ रहाउ ॥
मैं दिन-रात आपके सुन्दर दर्शन का ध्यान धारण करता हूँ और आपके दर्शन मुझे अपनी आत्मा एवं प्राणों से भी प्रिय हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਸਾਸਤ੍ਰ ਬੇਦ ਪੁਰਾਨ ਅਵਿਲੋਕੇ ਸਿਮ੍ਰਿਤਿ ਤਤੁ ਬੀਚਾਰਾ ॥
सासत्र बेद पुरान अविलोके सिम्रिति ततु बीचारा ॥
मैंने शास्त्र, वेद, पुराण एवं स्मृतियों को पढ़कर देखा तथा तत्व पर विचार किया है कि
ਦੀਨਾ ਨਾਥ ਪ੍ਰਾਨਪਤਿ ਪੂਰਨ ਭਵਜਲ ਉਧਰਨਹਾਰਾ ॥੧॥
दीना नाथ प्रानपति पूरन भवजल उधरनहारा ॥१॥
हे दीनानाथ ! हे प्राणपति ! हे पूर्ण प्रभु ! एक आप ही जीवों को भवसागर से पार करवाने में समर्थवान है॥ १॥
ਆਦਿ ਜੁਗਾਦਿ ਭਗਤ ਜਨ ਸੇਵਕ ਤਾ ਕੀ ਬਿਖੈ ਅਧਾਰਾ ॥
आदि जुगादि भगत जन सेवक ता की बिखै अधारा ॥
हे प्रभु ! जगत् के आदि एवं युगों के प्रारम्भ से आप ही भक्तजनों एवं सेवकों का विषय-विकारों से बचने हेतु आधार बने हुए हैं।
ਤਿਨ ਜਨ ਕੀ ਧੂਰਿ ਬਾਛੈ ਨਿਤ ਨਾਨਕੁ ਪਰਮੇਸਰੁ ਦੇਵਨਹਾਰਾ ॥੨॥੨੦॥
तिन जन की धूरि बाछै नित नानकु परमेसरु देवनहारा ॥२॥२०॥
नानक नित्य ही उन भक्तजनों की चरण-धूलि की कामना करता है और परमेश्वर ही इस देन को देने वाले हैं॥ २॥ २०॥
ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
देवगंधारी महला ५ ॥
राग देवगंधारी, पंचम गुरु: ५ ॥
ਤੇਰਾ ਜਨੁ ਰਾਮ ਰਸਾਇਣਿ ਮਾਤਾ ॥
तेरा जनु राम रसाइणि माता ॥
हे राम ! आपका भक्त आपके नाम-रसायन का पान करके मस्त बना हुआ है।
ਪ੍ਰੇਮ ਰਸਾ ਨਿਧਿ ਜਾ ਕਉ ਉਪਜੀ ਛੋਡਿ ਨ ਕਤਹੂ ਜਾਤਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
प्रेम रसा निधि जा कउ उपजी छोडि न कतहू जाता ॥१॥ रहाउ ॥
जिसे प्रेम-रस की निधि प्राप्त होती है, वह इसे छोड़कर कहीं नहीं जाता॥ १॥ रहाउ॥
ਬੈਠਤ ਹਰਿ ਹਰਿ ਸੋਵਤ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਰਸੁ ਭੋਜਨੁ ਖਾਤਾ ॥
बैठत हरि हरि सोवत हरि हरि हरि रसु भोजनु खाता ॥
ऐसा भक्तजन बैठते हुए हरि-हरि ही जपता है और सोते समय भी हरि-हरि का चिन्तन करता है और हरि-रस को भोजन के रूप में खाता है।
ਅਠਸਠਿ ਤੀਰਥ ਮਜਨੁ ਕੀਨੋ ਸਾਧੂ ਧੂਰੀ ਨਾਤਾ ॥੧॥
अठसठि तीरथ मजनु कीनो साधू धूरी नाता ॥१॥
वह साधु की चरण-धूलि में नहाना ही अड़सठ तीर्थों के स्नान के बराबर समझता है॥ १॥
ਸਫਲੁ ਜਨਮੁ ਹਰਿ ਜਨ ਕਾ ਉਪਜਿਆ ਜਿਨਿ ਕੀਨੋ ਸਉਤੁ ਬਿਧਾਤਾ ॥
सफलु जनमु हरि जन का उपजिआ जिनि कीनो सउतु बिधाता ॥
हरि के भक्त का जन्म लेना सफल है जिसने विधाता को पुत्रवान बना दिया है।
ਸਗਲ ਸਮੂਹ ਲੈ ਉਧਰੇ ਨਾਨਕ ਪੂਰਨ ਬ੍ਰਹਮੁ ਪਛਾਤਾ ॥੨॥੨੧॥
सगल समूह लै उधरे नानक पूरन ब्रहमु पछाता ॥२॥२१॥
हे नानक ! जिसने पूर्ण ब्रह्म को पहचान लिया है, वह अपने संगी-साथियों को साथ लेकर भवसागर से पार हो गया है ॥ २ ॥ २१ ॥
ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
देवगंधारी महला ५ ॥
राग देवगंधारी, पंचम गुरु: ५ ॥
ਮਾਈ ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਗਿਆਨੁ ਨ ਪਾਈਐ ॥
माई गुर बिनु गिआनु न पाईऐ ॥
हे माँ ! गुरु के बिना ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती।
ਅਨਿਕ ਪ੍ਰਕਾਰ ਫਿਰਤ ਬਿਲਲਾਤੇ ਮਿਲਤ ਨਹੀ ਗੋਸਾਈਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अनिक प्रकार फिरत बिललाते मिलत नही गोसाईऐ ॥१॥ रहाउ ॥
लोग रोते हैं, विलाप करते हैं और अनेक अनुष्ठान करते रहते हैं, फिर भी उन्हें ईश्वर का सच्चा अनुभव नहीं हो पाता। ॥ १॥ रहाउ॥
ਮੋਹ ਰੋਗ ਸੋਗ ਤਨੁ ਬਾਧਿਓ ਬਹੁ ਜੋਨੀ ਭਰਮਾਈਐ ॥
मोह रोग सोग तनु बाधिओ बहु जोनी भरमाईऐ ॥
मानव-शरीर मोह, रोग एवं शोक इत्यादि से जकड़ा हुआ है, इसलिए वह अनेक योनियों में भटकता रहता है।
ਟਿਕਨੁ ਨ ਪਾਵੈ ਬਿਨੁ ਸਤਸੰਗਤਿ ਕਿਸੁ ਆਗੈ ਜਾਇ ਰੂਆਈਐ ॥੧॥
टिकनु न पावै बिनु सतसंगति किसु आगै जाइ रूआईऐ ॥१॥
साधसंगत के बिना उसे कहीं भी आश्रय नहीं मिलता, फिर किस के समक्ष जाकर अपने दु:खों का विलाप कर सकता है ?॥ १॥
ਕਰੈ ਅਨੁਗ੍ਰਹੁ ਸੁਆਮੀ ਮੇਰਾ ਸਾਧ ਚਰਨ ਚਿਤੁ ਲਾਈਐ ॥
करै अनुग्रहु सुआमी मेरा साध चरन चितु लाईऐ ॥
जब मेरे स्वामी अनुग्रह करता है तो प्राणी का साधु-चरणों में चित्त लग जाता है।
ਸੰਕਟ ਘੋਰ ਕਟੇ ਖਿਨ ਭੀਤਰਿ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਦਰਸਿ ਸਮਾਈਐ ॥੨॥੨੨॥
संकट घोर कटे खिन भीतरि नानक हरि दरसि समाईऐ ॥२॥२२॥
हे नानक ! उसके घोर संकट क्षण में ही नष्ट हो जाते हैं और वह हरि-दर्शन में ही लीन हुआ रहता है॥ २॥ २२॥
ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
देवगंधारी महला ५ ॥
राग देवगंधारी, पंचम गुरु: ५ ॥
ਠਾਕੁਰ ਹੋਏ ਆਪਿ ਦਇਆਲ ॥
ठाकुर होए आपि दइआल ॥
जगत् के ठाकुर आप दयालु हुऐ है।
ਭਈ ਕਲਿਆਣ ਅਨੰਦ ਰੂਪ ਹੋਈ ਹੈ ਉਬਰੇ ਬਾਲ ਗੁਪਾਲ ॥ ਰਹਾਉ ॥
भई कलिआण अनंद रूप होई है उबरे बाल गुपाल ॥ रहाउ ॥
और मेरा कल्याण हो गया है और मेरा मन आनंद का रूप बन गया है, पिता-परमेश्वर ने अपने बालक (जीव) का संसार-सागर से उद्धार कर दिया है॥ रहाउ॥
ਦੁਇ ਕਰ ਜੋੜਿ ਕਰੀ ਬੇਨੰਤੀ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਮਨਿ ਧਿਆਇਆ ॥
दुइ कर जोड़ि करी बेनंती पारब्रहमु मनि धिआइआ ॥
जब मैंने दोनों हाथ जोड़कर विनती की और अपने मन में पारब्रह्म का ध्यान किया तो
ਹਾਥੁ ਦੇਇ ਰਾਖੇ ਪਰਮੇਸੁਰਿ ਸਗਲਾ ਦੁਰਤੁ ਮਿਟਾਇਆ ॥੧॥
हाथु देइ राखे परमेसुरि सगला दुरतु मिटाइआ ॥१॥
अपना हाथ देकर परमेश्वर ने मेरी रक्षा की है और मेरे सारे पाप-विकार मिटा दिए॥ १॥
ਵਰ ਨਾਰੀ ਮਿਲਿ ਮੰਗਲੁ ਗਾਇਆ ਠਾਕੁਰ ਕਾ ਜੈਕਾਰੁ ॥
वर नारी मिलि मंगलु गाइआ ठाकुर का जैकारु ॥
वर-वधु मिलकर मंगल गीत गायन करते हैं और ठाकुर की जय-जयकार करते हैं।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਨ ਕਉ ਬਲਿ ਜਾਈਐ ਜੋ ਸਭਨਾ ਕਰੇ ਉਧਾਰੁ ॥੨॥੨੩॥
कहु नानक जन कउ बलि जाईऐ जो सभना करे उधारु ॥२॥२३॥
हे नानक ! मैं प्रभु के सेवक पर बलिहारी जाता हूँ, जो सभी का उद्धार करते हैं॥ २॥ २३॥