Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 528

Page 528

ਲੋਕਨ ਕੀ ਚਤੁਰਾਈ ਉਪਮਾ ਤੇ ਬੈਸੰਤਰਿ ਜਾਰਿ ॥ लोकन की चतुराई उपमा ते बैसंतरि जारि ॥ मैंने सारी सांसारिक चतुराई और भौतिक वैभव को ऐसे भुला दिया है, मानो उन्हें अग्नि में समर्पित कर दिया हो।
ਕੋਈ ਭਲਾ ਕਹਉ ਭਾਵੈ ਬੁਰਾ ਕਹਉ ਹਮ ਤਨੁ ਦੀਓ ਹੈ ਢਾਰਿ ॥੧॥ कोई भला कहउ भावै बुरा कहउ हम तनु दीओ है ढारि ॥१॥ अब कोई चाहे मुझे भला कहे अथवा बुरा कहे, मैंने तो अपना तन प्रभु को न्यौछावर कर दिया है ॥१॥
ਜੋ ਆਵਤ ਸਰਣਿ ਠਾਕੁਰ ਪ੍ਰਭੁ ਤੁਮਰੀ ਤਿਸੁ ਰਾਖਹੁ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰਿ ॥ जो आवत सरणि ठाकुर प्रभु तुमरी तिसु राखहु किरपा धारि ॥ हे ठाकुर प्रभु ! जो कोई भी आपकी शरण में आता है, कृपा करके आप उसकी रक्षा करो।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਸਰਣਿ ਤੁਮਾਰੀ ਹਰਿ ਜੀਉ ਰਾਖਹੁ ਲਾਜ ਮੁਰਾਰਿ ॥੨॥੪॥ जन नानक सरणि तुमारी हरि जीउ राखहु लाज मुरारि ॥२॥४॥ हे पूज्य परमेश्वर ! दास नानक ने आपकी ही शरण ली है, आप उसकी लाज-प्रतिष्ठा बनाए रखना ॥ २॥ ४॥
ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ॥ देवगंधारी ॥ राग देवगंधारी, ॥
ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਹਉ ਤਿਸੁ ਬਲਿਹਾਰੀ ॥ हरि गुण गावै हउ तिसु बलिहारी ॥ जो हरि का गुणगान करता है, मैं उस पर बलिहारी जाता हूँ।
ਦੇਖਿ ਦੇਖਿ ਜੀਵਾ ਸਾਧ ਗੁਰ ਦਰਸਨੁ ਜਿਸੁ ਹਿਰਦੈ ਨਾਮੁ ਮੁਰਾਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ देखि देखि जीवा साध गुर दरसनु जिसु हिरदै नामु मुरारी ॥१॥ रहाउ ॥ मैं उस साधु गुरुदेव के दर्शन देख-देखकर जीवित हूँ, जिसके हृदय में परमात्मा का नाम बसा हुआ है ॥ १॥ रहाउ॥
ਤੁਮ ਪਵਿਤ੍ਰ ਪਾਵਨ ਪੁਰਖ ਪ੍ਰਭ ਸੁਆਮੀ ਹਮ ਕਿਉ ਕਰਿ ਮਿਲਹ ਜੂਠਾਰੀ ॥ तुम पवित्र पावन पुरख प्रभ सुआमी हम किउ करि मिलह जूठारी ॥ हे स्वामी-प्रभु ! आप पवित्र-पावन सद्पुरुष हो लेकिन मैं अपवित्र आपको कैसे मिल सकता हूँ?
ਹਮਰੈ ਜੀਇ ਹੋਰੁ ਮੁਖਿ ਹੋਰੁ ਹੋਤ ਹੈ ਹਮ ਕਰਮਹੀਣ ਕੂੜਿਆਰੀ ॥੧॥ हमरै जीइ होरु मुखि होरु होत है हम करमहीण कूड़िआरी ॥१॥ हमारे अन्तर्मन में कुछ और ही होता है तथा मुँह में कुछ और ही होता है, हम अभागे लोग सदैव मिथ्या सांसारिक धन प्राप्त करने में रुचि रखते हैं। ॥ १॥
ਹਮਰੀ ਮੁਦ੍ਰ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਸੁਆਮੀ ਰਿਦ ਅੰਤਰਿ ਦੁਸਟ ਦੁਸਟਾਰੀ ॥ हमरी मुद्र नामु हरि सुआमी रिद अंतरि दुसट दुसटारी ॥ हे मेरे स्वामी हरि ! बाहरी दिखावे के तौर पर मैं आपका नाम-सिमरन करता हूँ परन्तु अपने हृदय के भीतर मैंने दुष्टों जैसी दुष्टता धारण की हुई है।
ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਉ ਰਾਖਹੁ ਸੁਆਮੀ ਜਨ ਨਾਨਕ ਸਰਣਿ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੀ ॥੨॥੫॥ जिउ भावै तिउ राखहु सुआमी जन नानक सरणि तुम्हारी ॥२॥५॥ हे स्वामी ! नानक ने आपकी ही शरण ली है, जैसे आपको भला लगता है, वैसे ही उसकी रक्षा करो ॥ २॥ ५ ॥
ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ॥ देवगंधारी ॥ राग देवगंधारी ॥
ਹਰਿ ਕੇ ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਸੁੰਦਰਿ ਹੈ ਨਕਟੀ ॥ हरि के नाम बिना सुंदरि है नकटी ॥ हरि-नाम के बिना सुन्दर व्यक्ति भी नकटा अथवा निर्लज्ज कहलाता है।
ਜਿਉ ਬੇਸੁਆ ਕੇ ਘਰਿ ਪੂਤੁ ਜਮਤੁ ਹੈ ਤਿਸੁ ਨਾਮੁ ਪਰਿਓ ਹੈ ਧ੍ਰਕਟੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जिउ बेसुआ के घरि पूतु जमतु है तिसु नामु परिओ है ध्रकटी ॥१॥ रहाउ ॥ जैसे एक वेश्या के घर कोई पुत्र जन्म लेता है तो उसका नाम धिक्कार योग्य नाजायज कहलाता है।॥ १॥ रहाउ॥
ਜਿਨ ਕੈ ਹਿਰਦੈ ਨਾਹਿ ਹਰਿ ਸੁਆਮੀ ਤੇ ਬਿਗੜ ਰੂਪ ਬੇਰਕਟੀ ॥ जिन कै हिरदै नाहि हरि सुआमी ते बिगड़ रूप बेरकटी ॥ जिनके हृदय में हरि-स्वामी का निवास नहीं, वे कुरूप एवं कोढ़ी हैं।
ਜਿਉ ਨਿਗੁਰਾ ਬਹੁ ਬਾਤਾ ਜਾਣੈ ਓਹੁ ਹਰਿ ਦਰਗਹ ਹੈ ਭ੍ਰਸਟੀ ॥੧॥ जिउ निगुरा बहु बाता जाणै ओहु हरि दरगह है भ्रसटी ॥१॥ गुरु के बिना कोई व्यक्ति चाहे जितना भी ज्ञान अर्जित कर ले, फिर भी हरि के दरबार में दुराचारी ही है॥ १॥
ਜਿਨ ਕਉ ਦਇਆਲੁ ਹੋਆ ਮੇਰਾ ਸੁਆਮੀ ਤਿਨਾ ਸਾਧ ਜਨਾ ਪਗ ਚਕਟੀ ॥ जिन कउ दइआलु होआ मेरा सुआमी तिना साध जना पग चकटी ॥ मेरे स्वामी जिन पर दयालु हो जाते हैं, वे साधुजनों के चरण-स्पर्श करते रहते हैं।
ਨਾਨਕ ਪਤਿਤ ਪਵਿਤ ਮਿਲਿ ਸੰਗਤਿ ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਪਾਛੈ ਛੁਕਟੀ ॥੨॥੬॥ ਛਕਾ ੧ नानक पतित पवित मिलि संगति गुर सतिगुर पाछै छुकटी ॥२॥६॥ छका १ हे नानक ! सत्संगति में मिलकर पतित मनुष्य भी पवित्र पावन बन जाते हैं और सच्चे गुरु के मार्गदर्शन पर चलकर जन्म-मरण से छूट जाते हैं।॥ २॥ ६॥ छका १॥ (छ: पंक्तियों का जोड़)
ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੨ देवगंधारी महला ५ घरु २ राग देवगणधारी, पंचम गुरु, द्वितीय ताल: २
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਮਾਈ ਗੁਰ ਚਰਣੀ ਚਿਤੁ ਲਾਈਐ ॥ माई गुर चरणी चितु लाईऐ ॥ हे मेरी माता ! सदा गुरु-चरणों में चित्त लगाना चाहिए।
ਪ੍ਰਭੁ ਹੋਇ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਕਮਲੁ ਪਰਗਾਸੇ ਸਦਾ ਸਦਾ ਹਰਿ ਧਿਆਈਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ प्रभु होइ क्रिपालु कमलु परगासे सदा सदा हरि धिआईऐ ॥१॥ रहाउ ॥ जब प्रभु कृपालु हो जाते हैं तो हृदय कमल खिल जाता है, हमें सदा-सर्वदा ही हरि का ध्यान करते रहना चाहिए ॥ १॥ रहाउ॥
ਅੰਤਰਿ ਏਕੋ ਬਾਹਰਿ ਏਕੋ ਸਭ ਮਹਿ ਏਕੁ ਸਮਾਈਐ ॥ अंतरि एको बाहरि एको सभ महि एकु समाईऐ ॥ एक परमात्मा ही जीवों के मन में रहता है और वही सारी दुनिया में निवास करता है, सत्य तो यही है कि एक ईश्वर ही सबके हृदय में समाया हुआ है।
ਘਟਿ ਅਵਘਟਿ ਰਵਿਆ ਸਭ ਠਾਈ ਹਰਿ ਪੂਰਨ ਬ੍ਰਹਮੁ ਦਿਖਾਈਐ ॥੧॥ घटि अवघटि रविआ सभ ठाई हरि पूरन ब्रहमु दिखाईऐ ॥१॥ घर में एवं घर से बाहर हर जगह सर्वव्यापक पूर्ण ब्रह्म हरि ही दृष्टिगत होता है।॥ १॥
ਉਸਤਤਿ ਕਰਹਿ ਸੇਵਕ ਮੁਨਿ ਕੇਤੇ ਤੇਰਾ ਅੰਤੁ ਨ ਕਤਹੂ ਪਾਈਐ ॥ उसतति करहि सेवक मुनि केते तेरा अंतु न कतहू पाईऐ ॥ हे प्रभु! बहुत सारे सेवक एवं मुनिजन भी आपकी ही स्तुति करते हैं परन्तु कोई भी आपका अन्त नहीं जानता।
ਸੁਖਦਾਤੇ ਦੁਖ ਭੰਜਨ ਸੁਆਮੀ ਜਨ ਨਾਨਕ ਸਦ ਬਲਿ ਜਾਈਐ ॥੨॥੧॥ सुखदाते दुख भंजन सुआमी जन नानक सद बलि जाईऐ ॥२॥१॥ हे सुखों के दाता ! हे दुःखनाशक स्वामी ! नानक सदैव ही आप पर बलिहारी जाता है॥ २॥ १॥
ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ॥ देवगंधारी ॥ राग देवगंधारी ॥
ਮਾਈ ਹੋਨਹਾਰ ਸੋ ਹੋਈਐ ॥ माई होनहार सो होईऐ ॥ हे मेरी माता! जो कुछ दुनिया में होता है, परमात्मा के आदेश अनुसार ही होता है
ਰਾਚਿ ਰਹਿਓ ਰਚਨਾ ਪ੍ਰਭੁ ਅਪਨੀ ਕਹਾ ਲਾਭੁ ਕਹਾ ਖੋਈਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ राचि रहिओ रचना प्रभु अपनी कहा लाभु कहा खोईऐ ॥१॥ रहाउ ॥ प्रभु अपनी जगत-रचना में सक्रिय है, वह मानव को कहीं लाभ पहुँचा रहा है और किसी से कुछ छीन रहा है अर्थात् मानव के अपने कर्मों का ही लेन-देन है॥ १ ॥ रहाउ॥
ਕਹ ਫੂਲਹਿ ਆਨੰਦ ਬਿਖੈ ਸੋਗ ਕਬ ਹਸਨੋ ਕਬ ਰੋਈਐ ॥ कह फूलहि आनंद बिखै सोग कब हसनो कब रोईऐ ॥ किसी समय मानव आनंद में प्रफुल्लित रहता है व किसी समय वह विषयादि विकारों से दुःखी होता है, कभी वह हँसता है और कभी वह रुदन करता है।
ਕਬਹੂ ਮੈਲੁ ਭਰੇ ਅਭਿਮਾਨੀ ਕਬ ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਧੋਈਐ ॥੧॥ कबहू मैलु भरे अभिमानी कब साधू संगि धोईऐ ॥१॥ कभी अभिमानी मानव अभिमान की मैल से भरा हुआ होता है और कभी वह सत्संगति में सम्मिलित होकर मैल को धोकर पावन हो जाता है।॥१॥
ਕੋਇ ਨ ਮੇਟੈ ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਕੀਆ ਦੂਸਰ ਨਾਹੀ ਅਲੋਈਐ ॥ कोइ न मेटै प्रभ का कीआ दूसर नाही अलोईऐ ॥ ईश्वर के किए हुए को कोई भी जीव मिटा नहीं सकता, मुझे उस ईश्वर के समान कोई दूसरा दिखाई नहीं देता।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਗੁਰ ਬਲਿਹਾਰੀ ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਸੁਖਿ ਸੋਈਐ ॥੨॥੨॥ कहु नानक तिसु गुर बलिहारी जिह प्रसादि सुखि सोईऐ ॥२॥२॥ हे नानक ! मैं उस गुरु पर बलिहारी जाता हूँ, जिसकी कृपा से सुखपूर्वक रहा जा सकता है॥ २॥ २॥


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