Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 527

Page 527

ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरप्रसादि ॥ केवल एक ही ईश्वर है, जिसका नाम 'अनंत अस्तित्व' है। वही इस ब्रह्मांड का रचयिता है; वह सर्वव्यापी, निर्भय, निष्पक्ष, कालातीत, जन्म-मृत्यु के बंधन से परे और स्वयंप्रकाशित है। उसका साक्षात्कार केवल सद्गुरु की कृपा से ही संभव है।
ਰਾਗੁ ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ਘਰੁ ੧ ॥ रागु देवगंधारी महला ४ घरु १ ॥ राग देवगंधारी, चतुर्थ गुरु, प्रथम ताल: १ ॥
ਸੇਵਕ ਜਨ ਬਨੇ ਠਾਕੁਰ ਲਿਵ ਲਾਗੇ ॥ सेवक जन बने ठाकुर लिव लागे ॥ जो लोग ठाकुर जी के सेवक बन गए हैं, उनकी लगन उसमें ही लग गई है।
ਜੋ ਤੁਮਰਾ ਜਸੁ ਕਹਤੇ ਗੁਰਮਤਿ ਤਿਨ ਮੁਖ ਭਾਗ ਸਭਾਗੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जो तुमरा जसु कहते गुरमति तिन मुख भाग सभागे ॥१॥ रहाउ ॥ हे मालिक ! जो व्यक्ति गुरु-उपदेश द्वारा आपका यश गाते हैं, उनके मुख भाग्यवान बन गए हैं।॥ १॥ रहाउ ॥
ਟੂਟੇ ਮਾਇਆ ਕੇ ਬੰਧਨ ਫਾਹੇ ਹਰਿ ਰਾਮ ਨਾਮ ਲਿਵ ਲਾਗੇ ॥ टूटे माइआ के बंधन फाहे हरि राम नाम लिव लागे ॥ परमेश्वर के नाम में लगन लगाने से मोह-माया के बन्धन-जाल कट जाते हैं।
ਹਮਰਾ ਮਨੁ ਮੋਹਿਓ ਗੁਰ ਮੋਹਨਿ ਹਮ ਬਿਸਮ ਭਈ ਮੁਖਿ ਲਾਗੇ ॥੧॥ हमरा मनु मोहिओ गुर मोहनि हम बिसम भई मुखि लागे ॥१॥ मन को मुग्ध करने वाले गुरु ने हमारा मन मोह लिया है तथा उसके दर्शन करके हम आश्चर्यचकित हो गए हैं॥ १॥
ਸਗਲੀ ਰੈਣਿ ਸੋਈ ਅੰਧਿਆਰੀ ਗੁਰ ਕਿੰਚਤ ਕਿਰਪਾ ਜਾਗੇ ॥ सगली रैणि सोई अंधिआरी गुर किंचत किरपा जागे ॥ मैं अपनी जीवन रूपी सारी रात्रि में मोह-माया के अन्धकार में ही सोई रही किन्तु गुरु की थोड़ी-सी कृपा से अब जाग चुकी हूँ।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕੇ ਪ੍ਰਭ ਸੁੰਦਰ ਸੁਆਮੀ ਮੋਹਿ ਤੁਮ ਸਰਿ ਅਵਰੁ ਨ ਲਾਗੇ ॥੨॥੧॥ जन नानक के प्रभ सुंदर सुआमी मोहि तुम सरि अवरु न लागे ॥२॥१॥ हे नानक के प्रभु सुन्दर स्वामी ! मुझे आपके जैसा कोई दिखाई नहीं देता ॥ २ ॥ १॥
ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ॥ देवगंधारी ॥ राग देवगंधारी, ॥
ਮੇਰੋ ਸੁੰਦਰੁ ਕਹਹੁ ਮਿਲੈ ਕਿਤੁ ਗਲੀ ॥ मेरो सुंदरु कहहु मिलै कितु गली ॥ हे हरि के संतजनो ! मुझे बताओ, मेरा सुन्दर प्रभु किस गली में मिलेंगे ?
ਹਰਿ ਕੇ ਸੰਤ ਬਤਾਵਹੁ ਮਾਰਗੁ ਹਮ ਪੀਛੈ ਲਾਗਿ ਚਲੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हरि के संत बतावहु मारगु हम पीछै लागि चली ॥१॥ रहाउ ॥ मेरा मार्गदर्शन करो, ताकि मैं भी तुम्हारे पीछे-पीछे चलती जाऊँ॥ १॥ रहाउ॥
ਪ੍ਰਿਅ ਕੇ ਬਚਨ ਸੁਖਾਨੇ ਹੀਅਰੈ ਇਹ ਚਾਲ ਬਨੀ ਹੈ ਭਲੀ ॥ प्रिअ के बचन सुखाने हीअरै इह चाल बनी है भली ॥ मेरे प्रिय प्रभु के वचन मन को मीठे लगते हैं, अब यही युक्ति भली बनी है।
ਲਟੁਰੀ ਮਧੁਰੀ ਠਾਕੁਰ ਭਾਈ ਓਹ ਸੁੰਦਰਿ ਹਰਿ ਢੁਲਿ ਮਿਲੀ ॥੧॥ लटुरी मधुरी ठाकुर भाई ओह सुंदरि हरि ढुलि मिली ॥१॥ भले ही इस आत्मा-दुल्हन में पहले कोई विशेषता न थी, लेकिन जब वह भगवान् को प्रसन्न करती है, तो वही आत्मा एक विनम्र और आध्यात्मिक सौंदर्य से परिपूर्ण दुल्हन बन जाती है।॥ १॥
ਏਕੋ ਪ੍ਰਿਉ ਸਖੀਆ ਸਭ ਪ੍ਰਿਅ ਕੀ ਜੋ ਭਾਵੈ ਪਿਰ ਸਾ ਭਲੀ ॥ एको प्रिउ सखीआ सभ प्रिअ की जो भावै पिर सा भली ॥ प्रियतम प्रभु तो एक ही है किन्तु उस प्रियतम की अनेक सखियाँ (जीव-स्त्रियाँ) हैं, जो प्रियतम को अच्छी लगती है वही भाग्यशालिनी है।
ਨਾਨਕੁ ਗਰੀਬੁ ਕਿਆ ਕਰੈ ਬਿਚਾਰਾ ਹਰਿ ਭਾਵੈ ਤਿਤੁ ਰਾਹਿ ਚਲੀ ॥੨॥੨॥ नानकु गरीबु किआ करै बिचारा हरि भावै तितु राहि चली ॥२॥२॥ नानक गरीब बेचारा क्या कर सकता है ? जो परमात्मा को अच्छा लगता है, वह उस मार्ग पर चल देता है॥ २॥ २ ॥
ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ॥ देवगंधारी ॥ राग देवगंधारी, ॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਮੁਖਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਬੋਲੀਐ ॥ मेरे मन मुखि हरि हरि हरि बोलीऐ ॥ हे मेरे मन ! मुख से हरि का ‘हरि-हरि' नाम ही बोलना चाहिए।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਰੰਗਿ ਚਲੂਲੈ ਰਾਤੀ ਹਰਿ ਪ੍ਰੇਮ ਭੀਨੀ ਚੋਲੀਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गुरमुखि रंगि चलूलै राती हरि प्रेम भीनी चोलीऐ ॥१॥ रहाउ ॥ गुरुमुख बनकर हरि-प्रेम में रंग गई हूँ और हरि-प्रेम में ही हृदय रूपी मेरी चोली भोगी हुई है॥ १॥ रहाउ॥
ਹਉ ਫਿਰਉ ਦਿਵਾਨੀ ਆਵਲ ਬਾਵਲ ਤਿਸੁ ਕਾਰਣਿ ਹਰਿ ਢੋਲੀਐ ॥ हउ फिरउ दिवानी आवल बावल तिसु कारणि हरि ढोलीऐ ॥ उस प्रियतम हरि के मिलन हेतु मैं दीवानी बावली होकर फिर रही हूँ।
ਕੋਈ ਮੇਲੈ ਮੇਰਾ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਪਿਆਰਾ ਹਮ ਤਿਸ ਕੀ ਗੁਲ ਗੋਲੀਐ ॥੧॥ कोई मेलै मेरा प्रीतमु पिआरा हम तिस की गुल गोलीऐ ॥१॥ जो कोई भी मुझे मेरे प्रियतम प्यारे से मिलाएगा, मैं उसकी दासियों की दासी बनी रहूँगी॥ १॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੁਰਖੁ ਮਨਾਵਹੁ ਅਪੁਨਾ ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀ ਝੋਲੀਐ ॥ सतिगुरु पुरखु मनावहु अपुना हरि अम्रितु पी झोलीऐ ॥ अपने सतगुरु महापुरुष को प्रसन्न कर लो और हरि-नाम रूपी अमृत का पान करके झूमो।
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਜਨ ਨਾਨਕ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਲਾਧਾ ਦੇਹ ਟੋਲੀਐ ॥੨॥੩॥ गुर प्रसादि जन नानक पाइआ हरि लाधा देह टोलीऐ ॥२॥३॥ गुरु की कृपा से नानक ने अपनी देहि में ही हरि को खोज कर प्राप्त कर लिया है ॥२॥३॥
ਦੇਵਗੰਧਾਰੀ ॥ देवगंधारी ॥ राग देवगंधारी, ॥
ਅਬ ਹਮ ਚਲੀ ਠਾਕੁਰ ਪਹਿ ਹਾਰਿ ॥ अब हम चली ठाकुर पहि हारि ॥ अब मैं हर प्रकार से हार कर अपने ठाकुर जी के पास आ गई हूँ।
ਜਬ ਹਮ ਸਰਣਿ ਪ੍ਰਭੂ ਕੀ ਆਈ ਰਾਖੁ ਪ੍ਰਭੂ ਭਾਵੈ ਮਾਰਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जब हम सरणि प्रभू की आई राखु प्रभू भावै मारि ॥१॥ रहाउ ॥ अब जब मैं प्रभु की शरण में आ गई हूँ तो हे प्रभु ! आप चाहे मुझे मार दे अथवा बचा लीजिए ॥ १॥ रहाउ ॥


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