Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 522

Page 522

ਭਗਤ ਤੇਰੇ ਦਇਆਲ ਓਨ੍ਹ੍ਹਾ ਮਿਹਰ ਪਾਇ ॥ भगत तेरे दइआल ओन्हा मिहर पाइ ॥ हे दयानिधि ! ये भक्त आपके ही हैं, उन पर अपनी मेहर करेंं।
ਦੂਖੁ ਦਰਦੁ ਵਡ ਰੋਗੁ ਨ ਪੋਹੇ ਤਿਸੁ ਮਾਇ ॥ दूखु दरदु वड रोगु न पोहे तिसु माइ ॥ दुःख, दर्द, बड़ा रोग एवं माया उनको स्पर्श नहीं कर सकती।
ਭਗਤਾ ਏਹੁ ਅਧਾਰੁ ਗੁਣ ਗੋਵਿੰਦ ਗਾਇ ॥ भगता एहु अधारु गुण गोविंद गाइ ॥ गोविन्द का गुणगान ही भक्तों के जीवन का आधार है।
ਸਦਾ ਸਦਾ ਦਿਨੁ ਰੈਣਿ ਇਕੋ ਇਕੁ ਧਿਆਇ ॥ सदा सदा दिनु रैणि इको इकु धिआइ ॥ वे सदा-सर्वदा दिन-रात एक ईश्वर का ही ध्यान करते रहते हैं और
ਪੀਵਤਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਜਨ ਨਾਮੇ ਰਹੇ ਅਘਾਇ ॥੧੪॥ पीवति अम्रित नामु जन नामे रहे अघाइ ॥१४॥ अमृत-नाम का पान करके नाम में ही तृप्त रहते हैं।॥ १४॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੫ ॥ सलोक मः ५ ॥ श्लोक, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਕੋਟਿ ਬਿਘਨ ਤਿਸੁ ਲਾਗਤੇ ਜਿਸ ਨੋ ਵਿਸਰੈ ਨਾਉ ॥ कोटि बिघन तिसु लागते जिस नो विसरै नाउ ॥ जिसे ईश्वर का नाम भूल जाता है, उसे (पथ में) करोड़ों ही विघ्न लग जाते हैं।
ਨਾਨਕ ਅਨਦਿਨੁ ਬਿਲਪਤੇ ਜਿਉ ਸੁੰਞੈ ਘਰਿ ਕਾਉ ॥੧॥ नानक अनदिनु बिलपते जिउ सुंञै घरि काउ ॥१॥ हे नानक ! ऐसे लोग रात-दिन यूं विलाप करते हैं जैसे सूने घर में कौआ कांव-कांव करता है॥ १॥
ਮਃ ੫ ॥ मः ५ ॥ पांचवें गुरु:५॥
ਪਿਰੀ ਮਿਲਾਵਾ ਜਾ ਥੀਐ ਸਾਈ ਸੁਹਾਵੀ ਰੁਤਿ ॥ पिरी मिलावा जा थीऐ साई सुहावी रुति ॥ वही ऋतु सुन्दर है, जब प्रियतम-प्रभु से मिलन होता है।
ਘੜੀ ਮੁਹਤੁ ਨਹ ਵੀਸਰੈ ਨਾਨਕ ਰਵੀਐ ਨਿਤ ॥੨॥ घड़ी मुहतु नह वीसरै नानक रवीऐ नित ॥२॥ हे नानक ! उसे नित्य ही याद करते रहना चाहिए और एक घड़ी एवं मुहूर्त भर के लिए भी भुलाना नहीं चाहिए॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी॥
ਸੂਰਬੀਰ ਵਰੀਆਮ ਕਿਨੈ ਨ ਹੋੜੀਐ ॥ ਫਉਜ ਸਤਾਣੀ ਹਾਠ ਪੰਚਾ ਜੋੜੀਐ ॥ सूरबीर वरीआम किनै न होड़ीऐ ॥फउज सताणी हाठ पंचा जोड़ीऐ ॥ काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार इतने शूरवीर एवं पराक्रमी हैं कि इन्होंने शक्तिशाली एवं हठीली सेना एकत्र कर ली है।
ਦਸ ਨਾਰੀ ਅਉਧੂਤ ਦੇਨਿ ਚਮੋੜੀਐ ॥ दस नारी अउधूत देनि चमोड़ीऐ ॥ ये पाँचों विकार किसी के रोकने पर भी नहीं रुकते।
ਜਿਣਿ ਜਿਣਿ ਲੈਨ੍ਹ੍ਹਿ ਰਲਾਇ ਏਹੋ ਏਨਾ ਲੋੜੀਐ ॥ जिणि जिणि लैन्हि रलाइ एहो एना लोड़ीऐ ॥ दस इन्द्रियाँ वैरागी पुरुषों को भी विषयों विकारों में लगाए रखती हैं।
ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਇਨ ਕੈ ਵਸਿ ਕਿਨੈ ਨ ਮੋੜੀਐ ॥ त्रै गुण इन कै वसि किनै न मोड़ीऐ ॥ सभी पर विजय पाकर ये अपने साथ मिलाते जाते हैं और ये इसी बात की लालसा करते हैं।
ਭਰਮੁ ਕੋਟੁ ਮਾਇਆ ਖਾਈ ਕਹੁ ਕਿਤੁ ਬਿਧਿ ਤੋੜੀਐ ॥ भरमु कोटु माइआ खाई कहु कितु बिधि तोड़ीऐ ॥ त्रिगुणात्मक संसार उनके वश में है और कोई भी उनसे संघर्ष नहीं कर सकता।
ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਆਰਾਧਿ ਬਿਖਮ ਦਲੁ ਫੋੜੀਐ ॥ गुरु पूरा आराधि बिखम दलु फोड़ीऐ ॥ भ्रम रूपी किला एवं माया की खाई को बताओ किस विधि से तोड़ा जा सकता है?
ਹਉ ਤਿਸੁ ਅਗੈ ਦਿਨੁ ਰਾਤਿ ਰਹਾ ਕਰ ਜੋੜੀਐ ॥੧੫॥ हउ तिसु अगै दिनु राति रहा कर जोड़ीऐ ॥१५॥ पूर्ण गुरु की कृपा और सतत ईश्वर-स्मरण के माध्यम से भीतर की विकराल वृत्तियों को नियंत्रित किया जा सकता है।
ਸਲੋਕ ਮਃ ੫ ॥ सलोक मः ५ ॥ मैं रात-दिन उस गुरु के समक्ष हाथ जोड़कर खड़ा रहता हूँ॥ १५॥
ਕਿਲਵਿਖ ਸਭੇ ਉਤਰਨਿ ਨੀਤ ਨੀਤ ਗੁਣ ਗਾਉ ॥ किलविख सभे उतरनि नीत नीत गुण गाउ ॥ श्लोक, पांचवें गुरु: ५॥
ਕੋਟਿ ਕਲੇਸਾ ਊਪਜਹਿ ਨਾਨਕ ਬਿਸਰੈ ਨਾਉ ॥੧॥ कोटि कलेसा ऊपजहि नानक बिसरै नाउ ॥१॥ नित्य ही परमात्मा का गुणगान करने से सभी पाप उतर जाते हैं।
ਮਃ ੫ ॥ मः ५ ॥ हे नानक ! यदि परमात्मा का नाम भूल जाए तो करोड़ों ही दुःख-क्लेश उत्पन्न हो जाते हैं।॥ १॥
ਨਾਨਕ ਸਤਿਗੁਰਿ ਭੇਟਿਐ ਪੂਰੀ ਹੋਵੈ ਜੁਗਤਿ ॥ नानक सतिगुरि भेटिऐ पूरी होवै जुगति ॥ पांचवें गुरु:५॥
ਹਸੰਦਿਆ ਖੇਲੰਦਿਆ ਪੈਨੰਦਿਆ ਖਾਵੰਦਿਆ ਵਿਚੇ ਹੋਵੈ ਮੁਕਤਿ ॥੨॥ हसंदिआ खेलंदिआ पैनंदिआ खावंदिआ विचे होवै मुकति ॥२॥ हे नानक ! सच्चे गुरु से भेंट होने पर जीवन से मुक्ति पाने की युक्ति मिल जाती है और
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ फिर हँसते, खेलते, पहनते, खाते-पीते हुए भी विकारों से मुक्ति मिल जाती है।॥ २॥
ਸੋ ਸਤਿਗੁਰੁ ਧਨੁ ਧੰਨੁ ਜਿਨਿ ਭਰਮ ਗੜੁ ਤੋੜਿਆ ॥ सो सतिगुरु धनु धंनु जिनि भरम गड़ु तोड़िआ ॥ पौड़ी॥
ਸੋ ਸਤਿਗੁਰੁ ਵਾਹੁ ਵਾਹੁ ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਸਿਉ ਜੋੜਿਆ ॥ सो सतिगुरु वाहु वाहु जिनि हरि सिउ जोड़िआ ॥ वह सतगुरु धन्य-धन्य है, जिसने भ्रम का दुर्ग ध्वस्त कर दिया है।
ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਅਖੁਟੁ ਗੁਰੁ ਦੇਇ ਦਾਰੂਓ ॥ नामु निधानु अखुटु गुरु देइ दारूओ ॥ वह सतगुरु स्तुति-योग्य है, जिसने मुझे भगवान् से मिला दिया है।
ਮਹਾ ਰੋਗੁ ਬਿਕਰਾਲ ਤਿਨੈ ਬਿਦਾਰੂਓ ॥ महा रोगु बिकराल तिनै बिदारूओ ॥ प्रभु-नाम का अक्षय भण्डार गुरु ने मुझे औषधि के रूप में दिया है और
ਪਾਇਆ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਬਹੁਤੁ ਖਜਾਨਿਆ ॥ पाइआ नामु निधानु बहुतु खजानिआ ॥ उसने इस औषधि से महाविकराल रोग दूर कर दिया है।
ਜਿਤਾ ਜਨਮੁ ਅਪਾਰੁ ਆਪੁ ਪਛਾਨਿਆ ॥ जिता जनमु अपारु आपु पछानिआ ॥ मुझे प्रभु नाम-धन रूपी बहुत बड़ा खजाना प्राप्त हो गया है
ਮਹਿਮਾ ਕਹੀ ਨ ਜਾਇ ਗੁਰ ਸਮਰਥ ਦੇਵ ॥ महिमा कही न जाइ गुर समरथ देव ॥ जिससे अपार जन्म का महत्व पहचान लिया है।
ਗੁਰ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪਰਮੇਸੁਰ ਅਪਰੰਪਰ ਅਲਖ ਅਭੇਵ ॥੧੬॥ गुर पारब्रहम परमेसुर अपर्मपर अलख अभेव ॥१६॥ सर्वकला समर्थ गुरुदेव की महिमा वर्णन नहीं की जा सकती क्योंकि
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੫ ॥ सलोकु मः ५ ॥ गुरू आप ही परब्रह्म-परमेश्वर अपरंपार, अलक्ष्य एवं अभेद सत्य का रूप है ॥१६॥
ਉਦਮੁ ਕਰੇਦਿਆ ਜੀਉ ਤੂੰ ਕਮਾਵਦਿਆ ਸੁਖ ਭੁੰਚੁ ॥ उदमु करेदिआ जीउ तूं कमावदिआ सुख भुंचु ॥ श्लोक, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਧਿਆਇਦਿਆ ਤੂੰ ਪ੍ਰਭੂ ਮਿਲੁ ਨਾਨਕ ਉਤਰੀ ਚਿੰਤ ॥੧॥ धिआइदिआ तूं प्रभू मिलु नानक उतरी चिंत ॥१॥ हे जीव ! तू नाम-सिमरन का उद्यम करते हुए अपना जीवन व्यतीत कर, इस साधना से तू सुख भोगेगा।
ਮਃ ੫ ॥ मः ५ ॥ हे नानक ! नाम की आराधना करने से प्रभु मिल जाएगा और तेरी चिंता दूर हो जाएगी॥ १॥
ਸੁਭ ਚਿੰਤਨ ਗੋਬਿੰਦ ਰਮਣ ਨਿਰਮਲ ਸਾਧੂ ਸੰਗ ॥ सुभ चिंतन गोबिंद रमण निरमल साधू संग ॥ पांचवें गुरु: ५॥
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਨ ਵਿਸਰਉ ਇਕ ਘੜੀ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਭਗਵੰਤ ॥੨॥ नानक नामु न विसरउ इक घड़ी करि किरपा भगवंत ॥२॥ हे गोविन्द ! मुझे शुभ चिंतन, सिमरन एवं निर्मल साधु-संगति की देन प्रदान कीजिए।
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ हे भगवान् ! नानक पर ऐसी कृपा करो कि वह आपके नाम को एक घड़ी भर के लिए भी न भूले ॥२॥
ਤੇਰਾ ਕੀਤਾ ਹੋਇ ਤ ਕਾਹੇ ਡਰਪੀਐ ॥ तेरा कीता होइ त काहे डरपीऐ ॥ पौड़ी॥
ਜਿਸੁ ਮਿਲਿ ਜਪੀਐ ਨਾਉ ਤਿਸੁ ਜੀਉ ਅਰਪੀਐ ॥ जिसु मिलि जपीऐ नाउ तिसु जीउ अरपीऐ ॥ हे स्वामी ! जब सब कुछ आपका किया ही घटित होता है तो हम क्यों डर अनुभव करें?
ਆਇਐ ਚਿਤਿ ਨਿਹਾਲੁ ਸਾਹਿਬ ਬੇਸੁਮਾਰ ॥ आइऐ चिति निहालु साहिब बेसुमार ॥ जिसके साथ मिलकर नाम-सिमरन किया जाता है उसे अपने प्राण अर्पण कर देने चाहिए।
ਤਿਸ ਨੋ ਪੋਹੇ ਕਵਣੁ ਜਿਸੁ ਵਲਿ ਨਿਰੰਕਾਰ ॥ तिस नो पोहे कवणु जिसु वलि निरंकार ॥ जब हमारे हृदय में अनंत भगवान् की उपस्थिति का अनुभव होता है, तो आत्मा आनंद से भर उठती है।
ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਤਿਸ ਕੈ ਵਸਿ ਨ ਕੋਈ ਬਾਹਰਾ ॥ सभु किछु तिस कै वसि न कोई बाहरा ॥ जिसके साथ निरंकार परमात्मा है, उसे कोई दुःख स्पर्श नहीं कर सकता।
ਸੋ ਭਗਤਾ ਮਨਿ ਵੁਠਾ ਸਚਿ ਸਮਾਹਰਾ ॥ सो भगता मनि वुठा सचि समाहरा ॥ सब कुछ उसके वश में है और कोई भी उसके आदेश से बाहर नहीं।
ਤੇਰੇ ਦਾਸ ਧਿਆਇਨਿ ਤੁਧੁ ਤੂੰ ਰਖਣ ਵਾਲਿਆ ॥ तेरे दास धिआइनि तुधु तूं रखण वालिआ ॥ वह परम-सत्य प्रभु भक्तों के मन में निवास करते हैं और उनकी अन्तरात्मा में समा जाता है।


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