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ਨਾਰਦ ਸਾਰਦ ਕਰਹਿ ਖਵਾਸੀ ॥
नारद मुनि हो अथवा सरस्वती देवी, सभी उस हरि की सेवा-भक्ति में लीन हैं।
ਪਾਸਿ ਬੈਠੀ ਬੀਬੀ ਕਵਲਾ ਦਾਸੀ ॥੨॥
हरि के पास उनकी दासी देवी लक्ष्मी भी विराजमान है। २ ॥
ਕੰਠੇ ਮਾਲਾ ਜਿਹਵਾ ਰਾਮੁ ॥
जिह्वा में राम का नाम ही मेरी गले की माला है,
ਸਹੰਸ ਨਾਮੁ ਲੈ ਲੈ ਕਰਉ ਸਲਾਮੁ ॥੩॥
जिससे मैं उनके हजारों ही नाम उच्चारित करके प्रणाम करता हूँ॥ ३॥
ਕਹਤ ਕਬੀਰ ਰਾਮ ਗੁਨ ਗਾਵਉ ॥
कबीर जी कहते हैं कि मैं राम का गुणगान करता हूँ एवं
ਹਿੰਦੂ ਤੁਰਕ ਦੋਊ ਸਮਝਾਵਉ ॥੪॥੪॥੧੩॥
हिन्दू-मुसलमान दोनों को भी यही उपदेश देता हूँ॥४॥४॥१३॥
ਆਸਾ ਸ੍ਰੀ ਕਬੀਰ ਜੀਉ ਕੇ ਪੰਚਪਦੇ ੯ ਦੁਤੁਕੇ ੫॥
राग आसा, कबीर जी, 9 पंच-पद, 5 दो-तुक
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਪਾਤੀ ਤੋਰੈ ਮਾਲਿਨੀ ਪਾਤੀ ਪਾਤੀ ਜੀਉ ॥
हे मालिन ! तू पूजा-अर्चना हेतु पते तोड़ती है लेकिन समस्त फूल-पत्तों में प्राण हैं।
ਜਿਸੁ ਪਾਹਨ ਕਉ ਪਾਤੀ ਤੋਰੈ ਸੋ ਪਾਹਨ ਨਿਰਜੀਉ ॥੧॥
किन्तु जिस पत्थर की मूर्ति हेतु तू पत्ते तोड़ती है वह पत्थर की मूर्ति तो निर्जीव है॥ १॥
ਭੂਲੀ ਮਾਲਨੀ ਹੈ ਏਉ ॥
हे मालिन ! इस तरह तू भूल कर रही है
ਸਤਿਗੁਰੁ ਜਾਗਤਾ ਹੈ ਦੇਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
क्योंकि सच्चा गुरु ही सजीव देव है॥ ॥१॥रहाउ ॥
ਬ੍ਰਹਮੁ ਪਾਤੀ ਬਿਸਨੁ ਡਾਰੀ ਫੂਲ ਸੰਕਰਦੇਉ ॥
हे मालिन ! पूजा-अर्चना हेतु जो तू पते, डाली एवं फल तोड़ती है वह पते ब्रह्मा, विष्णु डालियाँ एवं शंकर देव फूल कके समान हैं।
ਤੀਨਿ ਦੇਵ ਪ੍ਰਤਖਿ ਤੋਰਹਿ ਕਰਹਿ ਕਿਸ ਕੀ ਸੇਉ ॥੨॥
इस तरह तू प्रत्यक्ष तौर पर त्रिदेवों-ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर को तोड़ती है। फिर तू किस की सेवा करती है ? ॥ २॥
ਪਾਖਾਨ ਗਢਿ ਕੈ ਮੂਰਤਿ ਕੀਨ੍ਹ੍ਹੀ ਦੇ ਕੈ ਛਾਤੀ ਪਾਉ ॥
पत्थर को गढ़कर मूर्तिकार-मूर्ति बनाता है और गढ़ते हुए वह उसकी छाती पर अपने पांव भी रख देता है।
ਜੇ ਏਹ ਮੂਰਤਿ ਸਾਚੀ ਹੈ ਤਉ ਗੜ੍ਹਣਹਾਰੇ ਖਾਉ ॥੩॥
यदि यह मूर्ति सच्ची है तो उसे पहले गढ़नेवाले मूर्तिकार को इस अपमान हेतु निगलना चाहिए॥ ३॥
ਭਾਤੁ ਪਹਿਤਿ ਅਰੁ ਲਾਪਸੀ ਕਰਕਰਾ ਕਾਸਾਰੁ ॥
भात (चावल), दाल, हलवा, माल-पूडे एवं पंजीरी इत्यादि स्वादिष्ट पदार्थों का भोग तो
ਭੋਗਨਹਾਰੇ ਭੋਗਿਆ ਇਸੁ ਮੂਰਤਿ ਕੇ ਮੁਖ ਛਾਰੁ ॥੪॥
मूर्ति का सहारा लेकर भोगने वाला पुजारी ही कर लेता है तथा इस मूर्ति के मुख में तो कुछ भी नहीं जाता॥ ४॥
ਮਾਲਿਨਿ ਭੂਲੀ ਜਗੁ ਭੁਲਾਨਾ ਹਮ ਭੁਲਾਨੇ ਨਾਹਿ ॥
मालिन भूली हुई है और समूचा जगत् भी भूला हुआ है लेकिन हम भूले हुए नहीं।
ਕਹੁ ਕਬੀਰ ਹਮ ਰਾਮ ਰਾਖੇ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਿ ਹਰਿ ਰਾਇ ॥੫॥੧॥੧੪॥
कबीर जी कहते हैं कि अपनी कृपा धारण करके भगवान् ने हमें सन्मार्ग दिखाकर भ्रम से बचा लिया है॥ ५ ॥ १॥ १४ ॥
ਆਸਾ ॥
राग, आसा ॥
ਬਾਰਹ ਬਰਸ ਬਾਲਪਨ ਬੀਤੇ ਬੀਸ ਬਰਸ ਕਛੁ ਤਪੁ ਨ ਕੀਓ ॥
जीव की आयु के पहले बारह वर्ष तो बाल्यावस्था में ही बीत जाते हैं तथा अगले बीस वर्ष कोई तपस्या नहीं करता।
ਤੀਸ ਬਰਸ ਕਛੁ ਦੇਵ ਨ ਪੂਜਾ ਫਿਰਿ ਪਛੁਤਾਨਾ ਬਿਰਧਿ ਭਇਓ ॥੧॥
अन्य तीस वर्ष वह कोई देव-पूजा भी नहीं करता तथा जब वृद्धावस्था आ जाती है तो वह पश्चाताप करता है।॥ १॥
ਮੇਰੀ ਮੇਰੀ ਕਰਤੇ ਜਨਮੁ ਗਇਓ ॥
उसका सारा जीवन मेरी-मेरी करते ही व्यतीत हो जाता है और
ਸਾਇਰੁ ਸੋਖਿ ਭੁਜੰ ਬਲਇਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
शरीर रूपी सरोवर सूखने पर भुजाबल भी क्षीण हो जाता है॥ १॥ रहाउ॥
ਸੂਕੇ ਸਰਵਰਿ ਪਾਲਿ ਬੰਧਾਵੈ ਲੂਣੈ ਖੇਤਿ ਹਥ ਵਾਰਿ ਕਰੈ ॥
इस अवस्था में पहुँचने पर वह अपने हाथों से सूखे हुए सरोवर के इर्द-गिर्द बांध बनाता है और कटे खेत के पास बाड़ करता है।
ਆਇਓ ਚੋਰੁ ਤੁਰੰਤਹ ਲੇ ਗਇਓ ਮੇਰੀ ਰਾਖਤ ਮੁਗਧੁ ਫਿਰੈ ॥੨॥
जब मृत्यु रूपी चोर आता है तो वह तुरंत ही उसे ले जाता है, जिसे मूर्ख मनुष्य अपने प्राण समझकर सँभालता फिरता था॥ २॥
ਚਰਨ ਸੀਸੁ ਕਰ ਕੰਪਨ ਲਾਗੇ ਨੈਨੀ ਨੀਰੁ ਅਸਾਰ ਬਹੈ ॥
बुढ़ापे में पैर, सिर एवं हाथ कांपने लग जाते हैं और नयनों से असार जल बहता है।
ਜਿਹਵਾ ਬਚਨੁ ਸੁਧੁ ਨਹੀ ਨਿਕਸੈ ਤਬ ਰੇ ਧਰਮ ਕੀ ਆਸ ਕਰੈ ॥੩॥
हे मूर्ख जीव ! जीभा से शुद्ध वचन नहीं निकलते। तब तुम धर्म की आशा करते हो? ॥ ३॥
ਹਰਿ ਜੀਉ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੈ ਲਿਵ ਲਾਵੈ ਲਾਹਾ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਲੀਓ ॥
यदि पूज्य परमेश्वर कृपा धारण करे तो मनुष्य की उससे वृत्ति लग जाती है और वह हरि-नाम का लाभ प्राप्त कर लेता है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਹਰਿ ਧਨੁ ਪਾਇਓ ਅੰਤੇ ਚਲਦਿਆ ਨਾਲਿ ਚਲਿਓ ॥੪॥
गुरु की कृपा से उसे हरि-नाम का धन मिल जाता है, जो अंततः परलोक को जाते समय उसके साथ जाता है॥ ४॥
ਕਹਤ ਕਬੀਰ ਸੁਨਹੁ ਰੇ ਸੰਤਹੁ ਅਨੁ ਧਨੁ ਕਛੂਐ ਲੈ ਨ ਗਇਓ ॥
कबीर जी कहते हैं कि हे संतजनो ! सुनो, कोई भी मनुष्य मृत्यु के समय अपना अन्न-धन साथ नहीं लेकर गया।
ਆਈ ਤਲਬ ਗੋਪਾਲ ਰਾਇ ਕੀ ਮਾਇਆ ਮੰਦਰ ਛੋਡਿ ਚਲਿਓ ॥੫॥੨॥੧੫॥
जब भगवान् का बुलावा आ जाता है तो वह धन-दौलत एवं मंदिरों को छोड़कर चला जाता ॥५॥२॥१५॥
ਆਸਾ ॥
राग, आसा ॥
ਕਾਹੂ ਦੀਨ੍ਹ੍ਹੇ ਪਾਟ ਪਟੰਬਰ ਕਾਹੂ ਪਲਘ ਨਿਵਾਰਾ ॥
भगवान् ने किसी को रेशमी वस्त्र प्रदान किए हुए हैं तथा किसी को निवार वाले पलंग दिए हुए हैं।
ਕਾਹੂ ਗਰੀ ਗੋਦਰੀ ਨਾਹੀ ਕਾਹੂ ਖਾਨ ਪਰਾਰਾ ॥੧॥
लेकिन किसी को जीर्ण गुदड़ी भी नहीं मिली तथा किसी के पास घास-फूस की झोंपड़ी है॥ १॥
ਅਹਿਰਖ ਵਾਦੁ ਨ ਕੀਜੈ ਰੇ ਮਨ ॥
हे मेरे मन ! किसी से ईर्ष्या एवं विवाद मत करो।
ਸੁਕ੍ਰਿਤੁ ਕਰਿ ਕਰਿ ਲੀਜੈ ਰੇ ਮਨ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
शुभ कर्म करने से ही कुछ (सुख) प्राप्त होता है॥ १॥ रहाउ॥
ਕੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੈ ਏਕ ਜੁ ਮਾਟੀ ਗੂੰਧੀ ਬਹੁ ਬਿਧਿ ਬਾਨੀ ਲਾਈ ॥
कुम्हार एक जैसी मिट्टी गूंथता है और अनेक विधियों से बर्तनों को रंग देता है।
ਕਾਹੂ ਮਹਿ ਮੋਤੀ ਮੁਕਤਾਹਲ ਕਾਹੂ ਬਿਆਧਿ ਲਗਾਈ ॥੨॥
किसी में वह मोती एवं मोतियों की माला डाल देता है और दूसरों में वह व्याधि वाली शराब डाल देता है॥ २॥
ਸੂਮਹਿ ਧਨੁ ਰਾਖਨ ਕਉ ਦੀਆ ਮੁਗਧੁ ਕਹੈ ਧਨੁ ਮੇਰਾ ॥
कंजूस आदमी को प्रभु ने धन संभालने हेतु अमानत के तौर पर दिया है परन्तु वह मूर्ख कहता है कि यह धन तो मेरा अपना है।