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ਤੇਲ ਜਲੇ ਬਾਤੀ ਠਹਰਾਨੀ ਸੂੰਨਾ ਮੰਦਰੁ ਹੋਈ ॥੧॥
जब प्राण रूपी तेल जल जाता है अर्थात शरीर में से प्राण निकल जाते हैं तो सुरति रूपी बाती बुझ जाती है। चारों ओर अंधेरा होने से शरीर रूपी मंदिर सुनसान हो जाता है॥ १॥
ਰੇ ਬਉਰੇ ਤੁਹਿ ਘਰੀ ਨ ਰਾਖੈ ਕੋਈ ॥
हे बावरे मनुष्य ! तेरे प्राण पखेरू उड़ने के उपरांत तुझे एक घड़ी भर के लिए भी कोई रखने को तैयार नहीं होता।
ਤੂੰ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਜਪਿ ਸੋਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
इसलिए तू राम-नाम का भजन-सिमरन कर ले॥ १॥ रहाउ ॥
ਕਾ ਕੀ ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਕਹੁ ਕਾ ਕੋ ਕਵਨ ਪੁਰਖ ਕੀ ਜੋਈ ॥
बता ! मृत्यु के बाद कौन सोचता है कि यह शव किसका था? माँ का, पिता का, या जीवनसाथी का?
ਘਟ ਫੂਟੇ ਕੋਊ ਬਾਤ ਨ ਪੂਛੈ ਕਾਢਹੁ ਕਾਢਹੁ ਹੋਈ ॥੨॥
जब प्राणी रूपी घड़ा फूट जाता है अर्थात् देहांत होने पर कोई बात नहीं पूछता। हर कोई यही कहता है मृतक शरीर को घर से शीघ्र ही बाहर निकाल दो॥ २॥
ਦੇਹੁਰੀ ਬੈਠੀ ਮਾਤਾ ਰੋਵੈ ਖਟੀਆ ਲੇ ਗਏ ਭਾਈ ॥
बरामदे में बैठी हुई माता रोती है और भाई अर्थी उठाकर श्मशान घाट ले जाते हैं।
ਲਟ ਛਿਟਕਾਏ ਤਿਰੀਆ ਰੋਵੈ ਹੰਸੁ ਇਕੇਲਾ ਜਾਈ ॥੩॥
बिखरे बालों में लिपटी मृतक की पत्नी फूट-फूट कर रोती है और आत्मा अकेली ही चली जाती है।॥ ३॥
ਕਹਤ ਕਬੀਰ ਸੁਨਹੁ ਰੇ ਸੰਤਹੁ ਭੈ ਸਾਗਰ ਕੈ ਤਾਈ ॥
कबीर जी कहते हैं कि हे संतजनों ! इस भवसागर संबंधी सुन लो।
ਇਸੁ ਬੰਦੇ ਸਿਰਿ ਜੁਲਮੁ ਹੋਤ ਹੈ ਜਮੁ ਨਹੀ ਹਟੈ ਗੁਸਾਈ ॥੪॥੯॥
हे गुसाई ! यह मनुष्य अपने कर्मों के कारण बहुत अत्याचार सहन करता है और यमदूत उसका पीछा नहीं छोड़ते ॥ ४॥ ६ ॥
ਦੁਤੁਕੇ॥
दो वाक्यांश छंद
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਆਸਾ ਸ੍ਰੀ ਕਬੀਰ ਜੀਉ ਕੇ ਚਉਪਦੇ ਇਕਤੁਕੇ ॥
कबीर जी का राग आसा, चौ-पद, इक-तुक : ॥
ਸਨਕ ਸਨੰਦ ਅੰਤੁ ਨਹੀ ਪਾਇਆ ॥
ब्रह्मा के चार पुत्रों सनक, सनन्दन, सनातन एवं सनत कुमार ने बड़े ज्ञानी होते हुए भी प्रभु का अन्त नहीं पाया।
ਬੇਦ ਪੜੇ ਪੜਿ ਬ੍ਰਹਮੇ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ॥੧॥
वेदों के ज्ञाता ब्रह्मा ने भी वेद पढ़-पढ़ कर अपना अमूल्य जन्म गंवा लिया। अर्थात् वह भी भगवान् का अन्त न पा सके।॥१॥
ਹਰਿ ਕਾ ਬਿਲੋਵਨਾ ਬਿਲੋਵਹੁ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ॥
हे मेरे भाई ! हरि का बिलोना बिलोवो अर्थात् जैसे दूध का मंथन किया जाता है, वैसे ही बार-बार हरि का जाप करो।
ਸਹਜਿ ਬਿਲੋਵਹੁ ਜੈਸੇ ਤਤੁ ਨ ਜਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जैसे दूध का धीरे-धीरे मंथन करने से मक्खन दूध में नहीं मिलता, वैसे ही सहज अवस्था में हरि का नाम जपो, चूंकि सिमरन का फल परम तत्व प्रभु प्राप्त हो जाए॥ १॥ रहाउ ॥
ਤਨੁ ਕਰਿ ਮਟੁਕੀ ਮਨ ਮਾਹਿ ਬਿਲੋਈ ॥
अपने तन को मटकी बनाओ और उसमें अपने मन में नाम चिंतन करो।
ਇਸੁ ਮਟੁਕੀ ਮਹਿ ਸਬਦੁ ਸੰਜੋਈ ॥੨॥
इस मटकी के भीतर शब्द रूपी दही को संचित करो ॥ २॥
ਹਰਿ ਕਾ ਬਿਲੋਵਨਾ ਮਨ ਕਾ ਬੀਚਾਰਾ ॥
हरि नाम का मंथन मन से उसका सिमरन करना है।
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਪਾਵੈ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਧਾਰਾ ॥੩॥
गुरु की कृपा से मनुष्य नाम रूपी अमृत धारा को प्राप्त कर लेता है॥ ३॥
ਕਹੁ ਕਬੀਰ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਜੇ ਮੀਰਾ ॥
हे कबीर ! यदि प्रभु-बादशाह दया-दृष्टि धारण करे तो
ਰਾਮ ਨਾਮ ਲਗਿ ਉਤਰੇ ਤੀਰਾ ॥੪॥੧॥੧੦॥
मनुष्य राम के नाम से लगकर भवसागर से पार होकर किनारे पहुँच जाता है॥ ४॥ १॥ १०॥
ਆਸਾ ॥
राग, आसा ॥
ਬਾਤੀ ਸੂਕੀ ਤੇਲੁ ਨਿਖੂਟਾ ॥
शरीर रूपी दीपक में से प्राण रूपी तेल समाप्त हो गया है अर्थात् शरीर में से प्राण पखेरू उड़ गए हैं। सुरति रूपी बाती सूख गई है अर्थात् जीव की सुरति नष्ट हो गई है।
ਮੰਦਲੁ ਨ ਬਾਜੈ ਨਟੁ ਪੈ ਸੂਤਾ ॥੧॥
जीव रूपी नट सदा की नींद सो गया है और अब ढोल-मंजीरा भी नहीं बज रहा अर्थात् जीव का सारा कामकाज बंद हो गया है॥ १॥
ਬੁਝਿ ਗਈ ਅਗਨਿ ਨ ਨਿਕਸਿਓ ਧੂੰਆ ॥
तृष्णा रूपी अग्नि बुझ गई है और संकल्प-विकल्प रूपी धुंआ नहीं निकल रहा।
ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਏਕੁ ਅਵਰੁ ਨਹੀ ਦੂਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
एक प्रभु ही सारे जगत् में व्याप्त है, दूसरा अन्य कोई भी नहीं ॥ १॥ रहाउ ॥
ਟੂਟੀ ਤੰਤੁ ਨ ਬਜੈ ਰਬਾਬੁ ॥
तार टूट गई है तथा वीणा बज नहीं रही अर्थात् परमात्मा से जीव की वृत्ति टूट गई है।
ਭੂਲਿ ਬਿਗਾਰਿਓ ਅਪਨਾ ਕਾਜੁ ॥੨॥
भूल से मनुष्य ने अपना कार्य बिगाड़ लिया है॥ २॥
ਕਥਨੀ ਬਦਨੀ ਕਹਨੁ ਕਹਾਵਨੁ ॥ ਸਮਝਿ ਪਰੀ ਤਉ ਬਿਸਰਿਓ ਗਾਵਨੁ ॥੩॥
जब मनुष्य को ज्ञान प्राप्त होता है तो वह उपदेश देना, डींगे मारना, विवाद करना (अर्थात् मौखिक बातें जो कहने-सुनने की थी)" तथा गाना-बजाना भूल जाता है॥ ३॥
ਕਹਤ ਕਬੀਰ ਪੰਚ ਜੋ ਚੂਰੇ ॥ ਤਿਨ ਤੇ ਨਾਹਿ ਪਰਮ ਪਦੁ ਦੂਰੇ ॥੪॥੨॥੧੧॥
कबीर जी कहते हैं कि जो मनुष्य कामादिक पाँच विकार नष्ट कर देता है,उससे परम पदवी (मोक्ष की प्राप्ति) दूर नहीं होती॥ ४॥ २॥ ११॥
ਆਸਾ ॥
राग, आसा ॥
ਸੁਤੁ ਅਪਰਾਧ ਕਰਤ ਹੈ ਜੇਤੇ ॥
पुत्र जितने भी अपराध करता है,
ਜਨਨੀ ਚੀਤਿ ਨ ਰਾਖਸਿ ਤੇਤੇ ॥੧॥
माता उसे अपने चित्त में नहीं रखती॥ १॥
ਰਾਮਈਆ ਹਉ ਬਾਰਿਕੁ ਤੇਰਾ ॥
हे मेरे राम ! मैं तेरा नादान बालक हूँ,
ਕਾਹੇ ਨ ਖੰਡਸਿ ਅਵਗਨੁ ਮੇਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
आप मेरे अवगुणों को नष्ट क्यों नहीं करते ?॥ १॥ रहाउ॥
ਜੇ ਅਤਿ ਕ੍ਰੋਪ ਕਰੇ ਕਰਿ ਧਾਇਆ ॥
यदि नासमझ पुत्र अत्यंत क्रोध में अपनी माता को मारने के लिए भाग कर भी आए
ਤਾ ਭੀ ਚੀਤਿ ਨ ਰਾਖਸਿ ਮਾਇਆ ॥੨॥
तो भी माता उसके इतने बड़े अपराध को अपने चित्त में नहीं रखती ॥ २ ॥
ਚਿੰਤ ਭਵਨਿ ਮਨੁ ਪਰਿਓ ਹਮਾਰਾ ॥
मेरा मन चिन्ता के भंवर में पड़ गया है।
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਕੈਸੇ ਉਤਰਸਿ ਪਾਰਾ ॥੩॥
प्रभु नाम के बिना यह कैसे पार हो सकता है? ॥ ३॥
ਦੇਹਿ ਬਿਮਲ ਮਤਿ ਸਦਾ ਸਰੀਰਾ ॥
हे प्रभु ! मेरे शरीर को सदैव निर्मल बुद्धि प्रदान कर ताकि
ਸਹਜਿ ਸਹਜਿ ਗੁਨ ਰਵੈ ਕਬੀਰਾ ॥੪॥੩॥੧੨॥
सहज-सहज कबीर तेरा गुणगान करता रहे॥ ४॥ ३॥ १२॥
ਆਸਾ ॥
राग, आसा ॥
ਹਜ ਹਮਾਰੀ ਗੋਮਤੀ ਤੀਰ ॥
"गोमती" नदी के तट पर "हज" या "तीर्थ" का स्थान इसी मन में है,
ਜਹਾ ਬਸਹਿ ਪੀਤੰਬਰ ਪੀਰ ॥੧॥
जहाँ पीताम्बर पीर (परमात्मा) निवास करते हैं॥ १॥
ਵਾਹੁ ਵਾਹੁ ਕਿਆ ਖੂਬੁ ਗਾਵਤਾ ਹੈ ॥
वाह ! वाह! मेरा मन कितना अद्भूत गाता है।
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਭਾਵਤਾ ਹੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि का नाम मेरे मन को बहुत लुभाता है॥ १॥ रहाउ ॥