Page 463
ਮਹਲਾ ੨ ॥
श्लोक, द्वितीय गुरु: २॥
ਜੇ ਸਉ ਚੰਦਾ ਉਗਵਹਿ ਸੂਰਜ ਚੜਹਿ ਹਜਾਰ ॥
यदि सौ चन्द्रमा उदित हो जाएँ और हजारों ही सूर्य का उजाला हो जाए तो भी
ਏਤੇ ਚਾਨਣ ਹੋਦਿਆਂ ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਘੋਰ ਅੰਧਾਰ ॥੨॥
संसार में इतना प्रकाश होते हुए भी गुरु के बिना घोर अंधकार ही होगा ॥ २॥
ਮਃ ੧ ॥
श्लोक, प्रथम गुरु: १॥
ਨਾਨਕ ਗੁਰੂ ਨ ਚੇਤਨੀ ਮਨਿ ਆਪਣੈ ਸੁਚੇਤ ॥
हे नानक ! जो मनुष्य अपने गुरु को याद नहीं करते और अपने मन में चतुर होने का दावा करते हैं,
ਛੁਟੇ ਤਿਲ ਬੂਆੜ ਜਿਉ ਸੁੰਞੇ ਅੰਦਰਿ ਖੇਤ ॥
वे निरर्थक तिलों की भाँति व्यर्थ समझकर सूने खेतों में, फेंक दिए जाते हैं।
ਖੇਤੈ ਅੰਦਰਿ ਛੁਟਿਆ ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸਉ ਨਾਹ ॥
गुरु नानक कहते हैं कि वे निरर्थक तिल खेत में छोड़ दिए जाते हैं और उनके सौ स्वामी बन जाते हैं।
ਫਲੀਅਹਿ ਫੁਲੀਅਹਿ ਬਪੁੜੇ ਭੀ ਤਨ ਵਿਚਿ ਸੁਆਹ ॥੩॥
वे बेचारे फलते-फूलते हैं परन्तु फिर भी उनके तन में राख ही होती है।॥ ३॥
ਪਉੜੀ ॥
पौड़ी॥
ਆਪੀਨ੍ਹ੍ਹੈ ਆਪੁ ਸਾਜਿਓ ਆਪੀਨ੍ਹ੍ਹੈ ਰਚਿਓ ਨਾਉ ॥
भगवान् स्वयंभू है, उसने स्वयं ही अपने आपको बनाया तथा स्वयं ही उसने अपना नाम रचा है।
ਦੁਯੀ ਕੁਦਰਤਿ ਸਾਜੀਐ ਕਰਿ ਆਸਣੁ ਡਿਠੋ ਚਾਉ ॥
दूसरा उन्होंने सृष्टि की रचना की और इसमें व्यााप्त होकर प्रसन्नता से अपना जगत प्रसार देखते हैं।
ਦਾਤਾ ਕਰਤਾ ਆਪਿ ਤੂੰ ਤੁਸਿ ਦੇਵਹਿ ਕਰਹਿ ਪਸਾਉ ॥
हे भगवान् ! हे प्रभु, आप समस्त प्राणियों के स्रष्टा और दाता हैं, और प्रसन्न होकर उन पर कृपा बरसाते हैं।
ਤੂੰ ਜਾਣੋਈ ਸਭਸੈ ਦੇ ਲੈਸਹਿ ਜਿੰਦੁ ਕਵਾਉ ॥
हे प्रभु ! आप सबको जानने वाले हैं, अपनी इच्छाानुसार आप जीवों को प्राण देते एवं प्राण लेते है।
ਕਰਿ ਆਸਣੁ ਡਿਠੋ ਚਾਉ ॥੧॥
आप सृष्टि के भीतर व्याप्त होकर उत्सुकता से (संसार का) खेल देख रहे हैं। ॥ १॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥
श्लोक, प्रथम गुरु: १॥
ਸਚੇ ਤੇਰੇ ਖੰਡ ਸਚੇ ਬ੍ਰਹਮੰਡ ॥
हे प्रभु ! आपकी रचना के समस्त खंड-ब्रह्माण्ड सत्य हैं।
ਸਚੇ ਤੇਰੇ ਲੋਅ ਸਚੇ ਆਕਾਰ ॥
आपकी रचना के चौदह लोक सत्य हैं और आपकी कुदरत के आकार (सूर्य, चन्द्रमा, तारे) भी सत्य हैं।
ਸਚੇ ਤੇਰੇ ਕਰਣੇ ਸਰਬ ਬੀਚਾਰ ॥
आपके समस्त कार्य एवं सर्व विचार सत्य हैं।
ਸਚਾ ਤੇਰਾ ਅਮਰੁ ਸਚਾ ਦੀਬਾਣੁ ॥
आपकी आज्ञा सच्ची है और आपका न्याय सच्चा है।
ਸਚਾ ਤੇਰਾ ਹੁਕਮੁ ਸਚਾ ਫੁਰਮਾਣੁ ॥
आपकी इच्छा और आदेश – दोनों ही परम सत्य हैं।
ਸਚਾ ਤੇਰਾ ਕਰਮੁ ਸਚਾ ਨੀਸਾਣੁ ॥
हे प्रभु ! आपकी दया और वरदान – दोनों ही सच्चे हैं, आपकी कृपा ही पहचान है।
ਸਚੇ ਤੁਧੁ ਆਖਹਿ ਲਖ ਕਰੋੜਿ ॥
लाखों-करोड़ों ही आपको सत्य कहते हैं।
ਸਚੈ ਸਭਿ ਤਾਣਿ ਸਚੈ ਸਭਿ ਜੋਰਿ ॥
सत्य (प्रभु) में ही समस्त बल एवं समस्त शक्ति है।
ਸਚੀ ਤੇਰੀ ਸਿਫਤਿ ਸਚੀ ਸਾਲਾਹ ॥
आपकी महिमा और शोभा दोनों ही सत्य है।
ਸਚੀ ਤੇਰੀ ਕੁਦਰਤਿ ਸਚੇ ਪਾਤਿਸਾਹ ॥
हे सच्चे पातशाह ! आपकी यह कुदरत सत्य है।
ਨਾਨਕ ਸਚੁ ਧਿਆਇਨਿ ਸਚੁ ॥
हे नानक ! जो परम सत्य प्रभु का ध्यान करते हैं, वे भी सत्य हैं।
ਜੋ ਮਰਿ ਜੰਮੇ ਸੁ ਕਚੁ ਨਿਕਚੁ ॥੧॥
लेकिन जो जीव जन्मते और मरते रहते हैं वे बिल्कुल कच्चे हैं।॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥
प्रथम गुरु: १
ਵਡੀ ਵਡਿਆਈ ਜਾ ਵਡਾ ਨਾਉ ॥
उस परमात्मा की महिमा बहुत बड़ी है, जिसका नाम सारे विश्व में बहुत बड़ा है।
ਵਡੀ ਵਡਿਆਈ ਜਾ ਸਚੁ ਨਿਆਉ ॥
भगवान् की उपमा बहुत बड़ी है, जिसका न्याय सत्य है।
ਵਡੀ ਵਡਿਆਈ ਜਾ ਨਿਹਚਲ ਥਾਉ ॥
उस स्वामी की महानता इसलिए भी महान है, क्योंकि उनका आसन अटल है।
ਵਡੀ ਵਡਿਆਈ ਜਾਣੈ ਆਲਾਉ ॥
उसकी महानता इसलिए भी बड़ी है क्योंकि वह अपने भक्तों की बात को जानता है।
ਵਡੀ ਵਡਿਆਈ ਬੁਝੈ ਸਭਿ ਭਾਉ ॥
प्रभु का बड़प्पन इसलिए भी बड़ा है क्योंकि वह समस्त लोगों की प्रेम-भावना जान लेते हैं।
ਵਡੀ ਵਡਿਆਈ ਜਾ ਪੁਛਿ ਨ ਦਾਤਿ ॥
प्रभु की प्रशंसा बहुत बड़ी है क्योंकि वह किसी से परामर्श किए बिना अपनी देन प्रदान करता है।
ਵਡੀ ਵਡਿਆਈ ਜਾ ਆਪੇ ਆਪਿ ॥
उसकी बड़ाई इसलिए भी बड़ी है क्योंकि सब कुछ वह आप ही है।
ਨਾਨਕ ਕਾਰ ਨ ਕਥਨੀ ਜਾਇ ॥
हे नानक ! उस प्रभु के कार्यों की व्याख्या नहीं की जा सकती।
ਕੀਤਾ ਕਰਣਾ ਸਰਬ ਰਜਾਇ ॥੨॥
जो कुछ परमात्मा ने किया है, कर रहा है अथवा जो कुछ करेगा सब उनकी अपनी इच्छा है॥ २॥
ਮਹਲਾ ੨ ॥
द्वितीय गुरु: २॥
ਇਹੁ ਜਗੁ ਸਚੈ ਕੀ ਹੈ ਕੋਠੜੀ ਸਚੇ ਕਾ ਵਿਚਿ ਵਾਸੁ ॥
यह जगत सच्चे प्रभु का घर है और उस परम सत्य का ही इसमें निवास है।
ਇਕਨ੍ਹ੍ਹਾ ਹੁਕਮਿ ਸਮਾਇ ਲਏ ਇਕਨ੍ਹ੍ਹਾ ਹੁਕਮੇ ਕਰੇ ਵਿਣਾਸੁ ॥
कुछ जीवों को वह अपने आदेश द्वारा स्वयं में लीन कर लेता है और कई जीवों का अपने आदेश द्वारा नाश कर देता है।
ਇਕਨ੍ਹ੍ਹਾ ਭਾਣੈ ਕਢਿ ਲਏ ਇਕਨ੍ਹ੍ਹਾ ਮਾਇਆ ਵਿਚਿ ਨਿਵਾਸੁ ॥
अपनी इच्छा से कुछ जीवों को वह माया से बाहर निकाल लेता है और कुछ लोगों का माया के जंजाल में निवास कर देता है।
ਏਵ ਭਿ ਆਖਿ ਨ ਜਾਪਈ ਜਿ ਕਿਸੈ ਆਣੇ ਰਾਸਿ ॥
यह भी कहा नहीं जा सकता कि वह किसे संवार देगा।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਣੀਐ ਜਾ ਕਉ ਆਪਿ ਕਰੇ ਪਰਗਾਸੁ ॥੩॥
हे नानक ! यह भेद गुरु द्वारा ही जाना जाता है, जिसे परमात्मा स्वयं ज्ञान का प्रकाश करता है॥ ३॥
ਪਉੜੀ ॥
पौड़ी ॥
ਨਾਨਕ ਜੀਅ ਉਪਾਇ ਕੈ ਲਿਖਿ ਨਾਵੈ ਧਰਮੁ ਬਹਾਲਿਆ ॥
हे नानक ! ईश्वर ने जीवों को उत्पन्न करके उनको कर्मों का लेखा-जोखा करने के लिए धर्मराज को नियुक्त किया है।
ਓਥੈ ਸਚੇ ਹੀ ਸਚਿ ਨਿਬੜੈ ਚੁਣਿ ਵਖਿ ਕਢੇ ਜਜਮਾਲਿਆ ॥
वहाँ धर्मराज के समक्ष सत्यानुसार ही निर्णय होता है और दुष्ट पापियों को चुनकर अलग कर दिया जाता है।
ਥਾਉ ਨ ਪਾਇਨਿ ਕੂੜਿਆਰ ਮੁਹ ਕਾਲ੍ਹ੍ਹੈ ਦੋਜਕਿ ਚਾਲਿਆ ॥
झूठों को वहाँ स्थान नहीं मिलता और मुँह काला करके उन्हें नरक में धकेल दिया जाता है।
ਤੇਰੈ ਨਾਇ ਰਤੇ ਸੇ ਜਿਣਿ ਗਏ ਹਾਰਿ ਗਏ ਸਿ ਠਗਣ ਵਾਲਿਆ ॥
हे प्रभु ! जो मनुष्य तेरे नाम में अनुरक्त हैं, वे जीत जाते हैं और जो ठग हैं वे हार जाते हैं।
ਲਿਖਿ ਨਾਵੈ ਧਰਮੁ ਬਹਾਲਿਆ ॥੨॥
प्रभु ने धर्मराज को जीवों के कर्मों का लेखा लिखने हेतु नियुक्त किया है।॥ २॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥
श्लोक, प्रथम गुरु: १॥
ਵਿਸਮਾਦੁ ਨਾਦ ਵਿਸਮਾਦੁ ਵੇਦ ॥
हे प्रभु ! अद्भुत हैं अनेक ध्वनि धाराएँ, अद्भुत है वेदों का ज्ञान।
ਵਿਸਮਾਦੁ ਜੀਅ ਵਿਸਮਾਦੁ ਭੇਦ ॥
अद्भुत हैं प्राणी, अद्भुत हैं प्रजातियाँ।
ਵਿਸਮਾਦੁ ਰੂਪ ਵਿਸਮਾਦੁ ਰੰਗ ॥
विभिन्न प्रकार के रूप एवं रंग बड़े अदभुत हैं।
ਵਿਸਮਾਦੁ ਨਾਗੇ ਫਿਰਹਿਜੰਤ ॥
वे जीव जो नग्न घूमते हैं, सब विस्मयबोधी हैं।