Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 453

Page 453

ਬਿਖਮੋ ਬਿਖਮੁ ਅਖਾੜਾ ਮੈ ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਜੀਤਾ ਰਾਮ ॥ गुरु से मिलकर मैंने विषम जगत रूपी अखाड़ा जीत लिया है।
ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਜੀਤਾ ਹਰਿ ਹਰਿ ਕੀਤਾ ਤੂਟੀ ਭੀਤਾ ਭਰਮ ਗੜਾ ॥ मैंने यह जगत रूपी अखाड़ा गुरु से मिलकर जीत लिया है। जब मैंने परमात्मा का नाम याद किया तो मेरे मन में बनी भ्रम के किले की दीवार टूट गई।
ਪਾਇਆ ਖਜਾਨਾ ਬਹੁਤੁ ਨਿਧਾਨਾ ਸਾਣਥ ਮੇਰੀ ਆਪਿ ਖੜਾ ॥ मुझे अनेक खजानों की निधि (दौलत) प्राप्त हो गई है और प्रभु स्वयं मेरी सहायता के लिए खड़ा हुए हैं।
ਸੋਈ ਸੁਗਿਆਨਾ ਸੋ ਪਰਧਾਨਾ ਜੋ ਪ੍ਰਭਿ ਅਪਨਾ ਕੀਤਾ ॥ वही पुरुष श्रेष्ठ ज्ञानी एवं सर्वोच्च है, जिसे प्रभु ने अपना बना लिया है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਾਂ ਵਲਿ ਸੁਆਮੀ ਤਾ ਸਰਸੇ ਭਾਈ ਮੀਤਾ ॥੪॥੧॥ हे नानक ! जब स्वामी पक्षधर हो जाते हैं तो उसके सभी मित्र एवं भाई भी खुश हो जाते हैं। ॥ ४॥ १ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਅਕਥਾ ਹਰਿ ਅਕਥ ਕਥਾ ਕਿਛੁ ਜਾਇ ਨ ਜਾਣੀ ਰਾਮ ॥ हरि की कथा अकथनीय है और हम अपनी अहंकारी चतुराई से भगवान के गुणों को तनिक भी नहीं समझ सकते।
ਸੁਰਿ ਨਰ ਸੁਰਿ ਨਰ ਮੁਨਿ ਜਨ ਸਹਜਿ ਵਖਾਣੀ ਰਾਮ ॥ देवताओं, मनुष्यों और मुनिजनों ने बड़ा सहजता से हरि-कथा का वर्णन किया है।
ਸਹਜੇ ਵਖਾਣੀ ਅਮਿਉ ਬਾਣੀ ਚਰਣ ਕਮਲ ਰੰਗੁ ਲਾਇਆ ॥ जिन्होंने भगवान् के सुन्दर चरणों से प्रेम लगाया है, उन्होंने सहज ही अमृत वाणी का वर्णन किया है।
ਜਪਿ ਏਕੁ ਅਲਖੁ ਪ੍ਰਭੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਮਨ ਚਿੰਦਿਆ ਫਲੁ ਪਾਇਆ ॥ एक अलक्ष्य एवं निरंजन प्रभु का जाप करने से उन्होंने मनोवांछित फल पा लिया है।
ਤਜਿ ਮਾਨੁ ਮੋਹੁ ਵਿਕਾਰੁ ਦੂਜਾ ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਸਮਾਣੀ ॥ अभिमान, मोह, द्वैतभाव एवं विकारों को त्याग कर वे ज्योति ज्योत समा गए हैं।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦੀ ਸਦਾ ਹਰਿ ਰੰਗੁ ਮਾਣੀ ॥੧॥ नानक प्रार्थना करते हैं कि गुरु की कृपा से वे सर्वदा हरि रंग का आनंद लेते रहते हैं।॥ १॥
ਹਰਿ ਸੰਤਾ ਹਰਿ ਸੰਤ ਸਜਨ ਮੇਰੇ ਮੀਤ ਸਹਾਈ ਰਾਮ ॥ हरि के संतजन ही मेरे सज्जन, मित्र एवं साथी हैं।
ਵਡਭਾਗੀ ਵਡਭਾਗੀ ਸਤਸੰਗਤਿ ਪਾਈ ਰਾਮ ॥ हे राम ! बड़े सौभाग्य से मुझे सत्संगति प्राप्त हुई है।
ਵਡਭਾਗੀ ਪਾਏ ਨਾਮੁ ਧਿਆਏ ਲਾਥੇ ਦੂਖ ਸੰਤਾਪੈ ॥ सौभाग्य से मुझे सत्संगति मिली है और मैंने प्रभु का नाम सिमरन किया है तथा मेरे दुःख एवं संताप निवृत्त हो गए हैं।
ਗੁਰ ਚਰਣੀ ਲਾਗੇ ਭ੍ਰਮ ਭਉ ਭਾਗੇ ਆਪੁ ਮਿਟਾਇਆ ਆਪੈ ॥ मैं गुरु के चरणों से लगा हूँ, जिससे मेरा भ्रम एवं भय भाग गए हैं। परमात्मा ने स्वयं मेरा अहंकार मिटा दिया है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਮੇਲੇ ਪ੍ਰਭਿ ਅਪੁਨੈ ਵਿਛੁੜਿ ਕਤਹਿ ਨ ਜਾਈ ॥ प्रभु ने कृपा-दृष्टि करके मुझे अपने साथ मिला लिया है और अब मैं न अलग होऊँगा और न ही कहीं जाऊँगा।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਦਾਸੁ ਤੇਰਾ ਸਦਾ ਹਰਿ ਸਰਣਾਈ ॥੨॥ नानक वन्दना करते हैं कि हे हरि ! मैं आपका दास हूँ और सदा अपनी शरण में रखो ॥ २॥
ਹਰਿ ਦਰੇ ਹਰਿ ਦਰਿ ਸੋਹਨਿ ਤੇਰੇ ਭਗਤ ਪਿਆਰੇ ਰਾਮ ॥ हे हरि ! आपके द्वार पर आपके प्यारे भक्त शोभा देते हैं।
ਵਾਰੀ ਤਿਨ ਵਾਰੀ ਜਾਵਾ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੇ ਰਾਮ ॥ हे राम ! मैं उन (भक्तों) पर सदा बलिहारी जाता हूँ।
ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੇ ਕਰਿ ਨਮਸਕਾਰੇ ਜਿਨ ਭੇਟਤ ਪ੍ਰਭੁ ਜਾਤਾ ॥ मैं उन्हें प्रणाम करता हूँ और सदा उन पर न्यौछावर जाता हूँ, जिन से भेंट करने से मैंने भगवान् को जान लिया है।
ਘਟਿ ਘਟਿ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਸਭ ਥਾਈ ਪੂਰਨ ਪੁਰਖੁ ਬਿਧਾਤਾ ॥ पूर्ण अकालपुरुष विधाता प्रत्येक हृदय में समाए हुए हैं।
ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਪਾਇਆ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ਜੂਐ ਜਨਮੁ ਨ ਹਾਰੇ ॥ जिसने पूर्ण गुरु को पाकर परमात्मा का नाम स्मरण किया है, वह अपना जीवन जुए में नहीं हारता।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਸਰਣਿ ਤੇਰੀ ਰਾਖੁ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੇ ॥੩॥ नानक प्रार्थना करते हैं-हे प्रभु ! मैंने आपकी शरण ली है, कृपा करके मेरी रक्षा करो।॥ ३॥
ਬੇਅੰਤਾ ਬੇਅੰਤ ਗੁਣ ਤੇਰੇ ਕੇਤਕ ਗਾਵਾ ਰਾਮ ॥ हे राम ! आपके गुण बेअंत हैं। फिर उनमें से कौन-से गुणों का गायन करूँ ?
ਤੇਰੇ ਚਰਣਾ ਤੇਰੇ ਚਰਣ ਧੂੜਿ ਵਡਭਾਗੀ ਪਾਵਾ ਰਾਮ ॥ आपके चरण एवं चरण-धूलि मुझे सौभाग्य से प्राप्त हुई है।
ਹਰਿ ਧੂੜੀ ਨ੍ਹ੍ਹਾਈਐ ਮੈਲੁ ਗਵਾਈਐ ਜਨਮ ਮਰਣ ਦੁਖ ਲਾਥੇ ॥ हरि की चरण-धूलि में स्नान करने से पापों की मैल धुल जाती है और जन्म-मरण का दुःख समाप्त हो जाता है।
ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਸਦਾ ਹਦੂਰੇ ਪਰਮੇਸਰੁ ਪ੍ਰਭੁ ਸਾਥੇ ॥ भीतर एवं बाहर परमेश्वर सदा जीव के साथ रहते हैं।
ਮਿਟੇ ਦੂਖ ਕਲਿਆਣ ਕੀਰਤਨ ਬਹੁੜਿ ਜੋਨਿ ਨ ਪਾਵਾ ॥ प्रभु का कीर्तन करने से कल्याण प्राप्त होता है, दुःख मिट जाते हैं और मनुष्य दोबारा योनियों के चक्र में नहीं आता।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਸਰਣਿ ਤਰੀਐ ਆਪਣੇ ਪ੍ਰਭ ਭਾਵਾ ॥੪॥੨॥ नानक प्रार्थना करते हैं कि गुरु की शरण में आने से मनुष्य का संसार सागर से उद्धार हो जाता है और अपने प्रभु को वह प्रिय लगने लगता है॥ ४॥ २॥
ਆਸਾ ਛੰਤ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੪॥ राग आसा, छंद, पंचम गुरु, चतुर्थ प्रहर: ४
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਹਰਿ ਚਰਨ ਕਮਲ ਮਨੁ ਬੇਧਿਆ ਕਿਛੁ ਆਨ ਨ ਮੀਠਾ ਰਾਮ ਰਾਜੇ ॥ मेरा मन हरि के चरण-कमलों में बिंध गया है, इसलिए प्रभु के अतिरिक्त मुझे अन्य कुछ भी मीठा (अच्छा) नहीं लगता।
ਮਿਲਿ ਸੰਤਸੰਗਤਿ ਆਰਾਧਿਆ ਹਰਿ ਘਟਿ ਘਟੇ ਡੀਠਾ ਰਾਮ ਰਾਜੇ ॥ संतों की संगति में मिलकर मैंने हरि की आराधना की है और सबके हृदय में प्रभु के दर्शन करता हूँ।
ਹਰਿ ਘਟਿ ਘਟੇ ਡੀਠਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤੋੁ ਵੂਠਾ ਜਨਮ ਮਰਨ ਦੁਖ ਨਾਠੇ ॥ मैं हरि को प्रत्येक हृदय में देखता हूँ और उसका नामामृत मुझ पर बरस गया है तथा जन्म-मरण का दु:ख मिट गया है।
ਗੁਣ ਨਿਧਿ ਗਾਇਆ ਸਭ ਦੂਖ ਮਿਟਾਇਆ ਹਉਮੈ ਬਿਨਸੀ ਗਾਠੇ ॥ गुणों के भण्डार परमात्मा का गुणगान करने से मेरे सभी दु:ख नाश हो गए हैं और मेरी अहंकार की गांठ खुल गई है।


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