Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 434

Page 434

ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਭ ਸਾਰੀ ਕੀਤੇ ਪਾਸਾ ਢਾਲਣਿ ਆਪਿ ਲਗਾ ॥੨੬॥ सभी जीव-जंतु इस खेल में मोहरे के समान हैं, और स्वयं भगवान् ही वह खिलाड़ी हैं जो यह पासा फेंकते हैं।॥ २६॥
ਭਭੈ ਭਾਲਹਿ ਸੇ ਫਲੁ ਪਾਵਹਿ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹ ਕਉ ਭਉ ਪਇਆ ॥ भ-गुरु की कृपा से जिनके मन में प्रभु का भय टिक जाता है, वह खोजते हुए फल के तौर पर उसे पा लेते हैं।
ਮਨਮੁਖ ਫਿਰਹਿ ਨ ਚੇਤਹਿ ਮੂੜੇ ਲਖ ਚਉਰਾਸੀਹ ਫੇਰੁ ਪਇਆ ॥੨੭॥ स्वेच्छाचारी मूर्ख मनुष्य भटकते फिरते हैं और प्रभु को याद नहीं करते, परिणामस्वरूप वे चौरासी लाख योनियों के चक्र में पड़े रहते हैं॥ २७ ॥
ਮੰਮੈ ਮੋਹੁ ਮਰਣੁ ਮਧੁਸੂਦਨੁ ਮਰਣੁ ਭਇਆ ਤਬ ਚੇਤਵਿਆ ॥ म-दुनिया के मोह के कारण जीव को मृत्यु एवं मधुसूदन याद नहीं आते लेकिन जब मृत्यु का समय आता है, तभी प्राणी में प्रभु स्मरण का विचार उत्पन्न होता है।
ਕਾਇਆ ਭੀਤਰਿ ਅਵਰੋ ਪੜਿਆ ਮੰਮਾ ਅਖਰੁ ਵੀਸਰਿਆ ॥੨੮॥ जब तक काया में प्राण है, वह दूसरी बातें पढ़ता रहता है और ‘म' अक्षर मृत्यु एवं मधुसूदन को विस्मृत कर देता है॥ २८ ॥
ਯਯੈ ਜਨਮੁ ਨ ਹੋਵੀ ਕਦ ਹੀ ਜੇ ਕਰਿ ਸਚੁ ਪਛਾਣੈ ॥ य-यदि मनुष्य सत्य को पहचान ले तो वह दोबारा कदाचित् जन्म नहीं लेता।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਆਖੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੂਝੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਏਕੋ ਜਾਣੈ ॥੨੯॥ गुरुमुख बनकर ही प्रभु के बारे में कहा जा सकता है, गुरुमुख बनकर ही मनुष्य उसके भेद को समझता है और गुरुमुख ही एक ईश्वर को जानता है ॥२९॥
ਰਾਰੈ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਸਭ ਅੰਤਰਿ ਜੇਤੇ ਕੀਏ ਜੰਤਾ ॥ र-परमात्मा ने जितने भी जीव पैदा किए, वह सब जीवों के अन्तर में बस रहा है।
ਜੰਤ ਉਪਾਇ ਧੰਧੈ ਸਭ ਲਾਏ ਕਰਮੁ ਹੋਆ ਤਿਨ ਨਾਮੁ ਲਇਆ ॥੩੦॥ प्रभु ने जीवों को उत्पन्न करके उन्हें जगत् के कामकाज में लगा दिया है। जिन पर ईश्वर की करुणा होती है, वे उसका नाम-स्मरण करते हैं॥ ३० ॥
ਲਲੈ ਲਾਇ ਧੰਧੈ ਜਿਨਿ ਛੋਡੀ ਮੀਠਾ ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਕੀਆ ॥ ल-प्रभु ने जीवों की उत्पत्ति करके उन्हें विभिन्न कार्यों में लगा दिया है, उन्होंने उनके लिए माया का मोह मीठा बना दिया है।
ਖਾਣਾ ਪੀਣਾ ਸਮ ਕਰਿ ਸਹਣਾ ਭਾਣੈ ਤਾ ਕੈ ਹੁਕਮੁ ਪਇਆ ॥੩੧॥ वह जीवों को खाने-पीने के पदार्थ देते हैं। जो कुछ भी होता है, वह ईश्वर की इच्छा से होता है। इसलिए सुख-दुःख को एक समान समझना चाहिए॥ ३१॥
ਵਵੈ ਵਾਸੁਦੇਉ ਪਰਮੇਸਰੁ ਵੇਖਣ ਕਉ ਜਿਨਿ ਵੇਸੁ ਕੀਆ ॥ व-यह स्वयं परमेश्वर ही है, जिसने अपनी लीला को देखने के लिए यह संसार रचा है।
ਵੇਖੈ ਚਾਖੈ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਜਾਣੈ ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ॥੩੨॥ वह सभी जीवों का पालन-पोषण करता है और प्रत्येक के बारे में सब कुछ जानता है; वह सबके भीतर और बाहर, दोनों जगह व्याप्त है। ३२ ॥
ੜਾੜੈ ਰਾੜਿ ਕਰਹਿ ਕਿਆ ਪ੍ਰਾਣੀ ਤਿਸਹਿ ਧਿਆਵਹੁ ਜਿ ਅਮਰੁ ਹੋਆ ॥ ड़ - हे प्राणी ! तुम क्यों वाद - विवाद करते हो, इसका कोई लाभ नहीं इसलिए उस परमात्मा को याद करो जो अमर है।
ਤਿਸਹਿ ਧਿਆਵਹੁ ਸਚਿ ਸਮਾਵਹੁ ਓਸੁ ਵਿਟਹੁ ਕੁਰਬਾਣੁ ਕੀਆ ॥੩੩॥ उसका ध्यान - मनन करो और सत्य में समां जाओ और उस पर बलिहारी होवो।
ਹਾਹੈ ਹੋਰੁ ਨ ਕੋਈ ਦਾਤਾ ਜੀਅ ਉਪਾਇ ਜਿਨਿ ਰਿਜਕੁ ਦੀਆ ॥ ह-प्रभु के अतिरिक्त दूसरा कोई दाता नहीं जो जीवों को उत्पन्न करके उन्हें अजीविका प्रदान करके उनका भरण-पोषण करते हैं।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵਹੁ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਵਹੁ ਅਨਦਿਨੁ ਲਾਹਾ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਲੀਆ ॥੩੪॥ हरि-नाम का ध्यान करो, हरि के नाम में समा जाओ और रात-दिन हरि नाम का लाभ प्राप्त करो।। ३४ ।।
ਆਇੜੈ ਆਪਿ ਕਰੇ ਜਿਨਿ ਛੋਡੀ ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਰਣਾ ਸੁ ਕਰਿ ਰਹਿਆ ॥ जिस परमात्मा ने आप ही दुनिया की रचना की है, वह जो कुछ करना चाहता है, वही कुछ कर रहा है।
ਕਰੇ ਕਰਾਏ ਸਭ ਕਿਛੁ ਜਾਣੈ ਨਾਨਕ ਸਾਇਰ ਇਵ ਕਹਿਆ ॥੩੫॥੧॥ कवि नानक ने यही कहा है कि प्रभु स्वयं ही सबकुछ करते और जीवों से करवाते हैं। वह सबकुछ जानते हैं॥ ३५॥ १॥
ਰਾਗੁ ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੩ ਪਟੀ राग आसा, तीसरे गुरु, पते - वर्णमाला:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਅਯੋ ਅੰਙੈ ਸਭੁ ਜਗੁ ਆਇਆ ਕਾਖੈ ਘੰਙੈ ਕਾਲੁ ਭਇਆ ॥ सारा संसार, जो अस्तित्व में आया है, नष्ट हो जाएगा।
ਰੀਰੀ ਲਲੀ ਪਾਪ ਕਮਾਣੇ ਪੜਿ ਅਵਗਣ ਗੁਣ ਵੀਸਰਿਆ ॥੧॥ री री लली का अर्थ यह वर्णित है कि नश्वर प्राणी पाप कर्म करता जा रहा है और अवगुणों में फंसकर गुणों को विस्मृत किए जा रहा है॥ १॥
ਮਨ ਐਸਾ ਲੇਖਾ ਤੂੰ ਕੀ ਪੜਿਆ ॥ हे मेरे मन ! तूने भला ऐसा लेखा क्यों पढ़ा है,
ਲੇਖਾ ਦੇਣਾ ਤੇਰੈ ਸਿਰਿ ਰਹਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ क्योंकि तेरे सिर पर लेखा देना अभी भी शेष है॥ १॥ रहाउ ॥
ਸਿਧੰਙਾਇਐ ਸਿਮਰਹਿ ਨਾਹੀ ਨੰਨੈ ਨਾ ਤੁਧੁ ਨਾਮੁ ਲਇਆ ॥ सिघंडाइऐ - हे जीव ! तुम प्रभु को याद नहीं करते। न-न ही तुम उसका नाम लेते हो।
ਛਛੈ ਛੀਜਹਿ ਅਹਿਨਿਸਿ ਮੂੜੇ ਕਿਉ ਛੂਟਹਿ ਜਮਿ ਪਾਕੜਿਆ ॥੨॥ छ - हे मूर्ख जीव ! तुम रात दिन नाश होते जा रहे हो अर्थात अपना समय गवां रहे हो। जब यमदूत ने तुझे पकड़ लिया तो फिर कैसे मुक्त होवोगे। ॥२॥
ਬਬੈ ਬੂਝਹਿ ਨਾਹੀ ਮੂੜੇ ਭਰਮਿ ਭੁਲੇ ਤੇਰਾ ਜਨਮੁ ਗਇਆ ॥ व-हे मूर्ख ! तुम सन्मार्ग नहीं समझते और भ्रम में कुमार्गगामी होकर तुम अपना जन्म व्यर्थ गंवा रहे हो।
ਅਣਹੋਦਾ ਨਾਉ ਧਰਾਇਓ ਪਾਧਾ ਅਵਰਾ ਕਾ ਭਾਰੁ ਤੁਧੁ ਲਇਆ ॥੩॥ तुमने निरर्थक ही अपना नाम पण्डित (पांधा) रखवाया है, जबकि दूसरों का भार अपने सिर पर लादा हुआ है।॥ ३॥
ਜਜੈ ਜੋਤਿ ਹਿਰਿ ਲਈ ਤੇਰੀ ਮੂੜੇ ਅੰਤਿ ਗਇਆ ਪਛੁਤਾਵਹਿਗਾ ॥ ज-हे मूर्ख ! तेरी सुमति मोह-माया ने छीन ली है, अन्तिम समय जब संसार से गमन करोगे तो पश्चाताप करोगे।
ਏਕੁ ਸਬਦੁ ਤੂੰ ਚੀਨਹਿ ਨਾਹੀ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਜੂਨੀ ਆਵਹਿਗਾ ॥੪॥ एक शब्द (अर्थात् परमात्मा के नाम) की तुम पहचान नहीं करते जिसके परिणामस्वरूप बार-बार योनियों में आते रहोगे ॥ ४ ॥
ਤੁਧੁ ਸਿਰਿ ਲਿਖਿਆ ਸੋ ਪੜੁ ਪੰਡਿਤ ਅਵਰਾ ਨੋ ਨ ਸਿਖਾਲਿ ਬਿਖਿਆ ॥ हे पण्डित ! जो तेरे सिर पर भाग्य का लेख लिखा हुआ है, उसे पढ़ और दूसरों को विष रूपी माया का लेखा मत पढ़ा ।


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