Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 429

Page 429

ਸਹਜੇ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈਐ ਗਿਆਨੁ ਪਰਗਟੁ ਹੋਇ ॥੧॥ सहजता से प्रभु नाम का ध्यान करने से ज्ञान प्रगट हो जाता है। १ ।
ਏ ਮਨ ਮਤ ਜਾਣਹਿ ਹਰਿ ਦੂਰਿ ਹੈ ਸਦਾ ਵੇਖੁ ਹਦੂਰਿ ॥ हे मेरे मन ! हरि को दूर मत समझ, अपितु उसे सदा अपने आसपास ही देख।
ਸਦ ਸੁਣਦਾ ਸਦ ਵੇਖਦਾ ਸਬਦਿ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ प्रभु सदा सुनता है, सदा ही देखता है और गुरु के शब्द में वह सदा भरपूर रहता है। १ ॥ रहाउ ॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਆਪੁ ਪਛਾਣਿਆ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹੀ ਇਕ ਮਨਿ ਧਿਆਇਆ ॥ गुरुमुख जीव-स्त्रियाँ अपने आपको पहचानती हैं। चूंकि वह एक मन से प्रभु का ध्यान-मनन करती हैं।
ਸਦਾ ਰਵਹਿ ਪਿਰੁ ਆਪਣਾ ਸਚੈ ਨਾਮਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥੨॥ वे सदा ही अपने पति-परमेश्वर के साथ रमण करती हैं और सत्यनाम के कारण वे आत्मिक सुख प्राप्त करती हैं। ।।२।।
ਏ ਮਨ ਤੇਰਾ ਕੋ ਨਹੀ ਕਰਿ ਵੇਖੁ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰੁ ॥ हे मेरे मन ! प्रभु के अतिरिक्त तेरा कोई (सखा) नहीं। गुरु के शब्द को विचार कर चाहे देख ले।
ਹਰਿ ਸਰਣਾਈ ਭਜਿ ਪਉ ਪਾਇਹਿ ਮੋਖ ਦੁਆਰੁ ॥੩॥ तू भाग कर हरि की शरण प्राप्त कर, तुझे मोक्ष का द्वार प्राप्त हो जाएगा। ३॥
ਸਬਦਿ ਸੁਣੀਐ ਸਬਦਿ ਬੁਝੀਐ ਸਚਿ ਰਹੈ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥ तू गुरु के शब्द को सुन और शब्द के भेद को ही समझ तथा सत्य के साथ अपनी वृत्ति लगाकर रख।
ਸਬਦੇ ਹਉਮੈ ਮਾਰੀਐ ਸਚੈ ਮਹਲਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇ ॥੪॥ गुरु के शब्द द्वारा अपना अहंकार मिटा कर प्रभु के महल में सुख प्राप्त कर ॥ ४॥
ਇਸੁ ਜੁਗ ਮਹਿ ਸੋਭਾ ਨਾਮ ਕੀ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਸੋਭ ਨ ਹੋਇ ॥ इस युग में प्रभु नाम की ही शोभा है। नाम के बिना मनुष्य को शोभा प्राप्त नहीं होती।
ਇਹ ਮਾਇਆ ਕੀ ਸੋਭਾ ਚਾਰਿ ਦਿਹਾੜੇ ਜਾਦੀ ਬਿਲਮੁ ਨ ਹੋਇ ॥੫॥ यह माया की शोभा सिर्फ चार दिन ही रहती है और लुप्त होते इसे देरी नहीं होती। ५॥
ਜਿਨੀ ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਰਿਆ ਸੇ ਮੁਏ ਮਰਿ ਜਾਹਿ ॥ जो लोग नाम को भूल जाते हैं, वे मरते हैं और मरते ही रहेंगे।
ਹਰਿ ਰਸ ਸਾਦੁ ਨ ਆਇਓ ਬਿਸਟਾ ਮਾਹਿ ਸਮਾਹਿ ॥੬॥ उन्हें हरि रस का स्वाद नहीं मिलता और विष्टा में ही नष्ट हो जाते हैं। ६ ।
ਇਕਿ ਆਪੇ ਬਖਸਿ ਮਿਲਾਇਅਨੁ ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੇ ਲਾਇ ॥ कुछ जीवों को परमात्मा स्वयं रात-दिन नाम के साथ लगाकर रखते हैं और उन्हें क्षमादान देकर अपने साथ मिला लेते हैं।
ਸਚੁ ਕਮਾਵਹਿ ਸਚਿ ਰਹਹਿ ਸਚੇ ਸਚਿ ਸਮਾਹਿ ॥੭॥ वे सत्य की कमाई करते हैं, सत्य में ही रहते हैं और सत्यवादी होने के कारण सत्य में ही समा जाते हैं। ७ ।
ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਸੁਣੀਐ ਨ ਦੇਖੀਐ ਜਗੁ ਬੋਲਾ ਅੰਨ੍ਹ੍ਹਾ ਭਰਮਾਇ ॥ शब्द के बिना जगत् को कुछ भी सुनाई एवं दिखाई नहीं देता। बहरे एवं अन्धे होने के कारण यह कुमार्गगामी होकर भटकता रहता है।
ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਦੁਖੁ ਪਾਇਸੀ ਨਾਮੁ ਮਿਲੈ ਤਿਸੈ ਰਜਾਇ ॥੮॥ प्रभु नाम के बिना यह (जगत्) दु:ख ही प्राप्त करता है क्योंकि प्रभु-नाम उसकी इच्छा से ही मिल सकता है। ८ ॥
ਜਿਨ ਬਾਣੀ ਸਿਉ ਚਿਤੁ ਲਾਇਆ ਸੇ ਜਨ ਨਿਰਮਲ ਪਰਵਾਣੁ ॥ वे भक्तजन निर्मल एवं स्वीकृत हैं जो अपने चित्त को गुरु की वाणी के साथ लगाते हैं।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹਾ ਕਦੇ ਨ ਵੀਸਰੈ ਸੇ ਦਰਿ ਸਚੇ ਜਾਣੁ ॥੯॥੧੩॥੩੫॥ हे नानक ! उन्हें नाम कदाचित विस्मृत नहीं होता जो सत्य के दरबार में सत्यवादी जाने जाते हैं। ॥ ६॥ १३॥ ३५॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੩ ॥ राग आसा, तीसरे गुरु: ३ ॥
ਸਬਦੌ ਹੀ ਭਗਤ ਜਾਪਦੇ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹ ਕੀ ਬਾਣੀ ਸਚੀ ਹੋਇ ॥ जो भक्त भगवान् की स्तुति के दिव्य शब्द बोलते हैं, वे संसार में प्रसिद्ध हो जाते हैं।
ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਗਇਆ ਨਾਉ ਮੰਨਿਆ ਸਚਿ ਮਿਲਾਵਾ ਹੋਇ ॥੧॥ उनके अन्तर से अहंत्व निवृत्त हो जाता है, वे नाम को ही मन से याद करते हैं और सत्य से उनका मिलन हो जाता है॥ १॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਨ ਕੀ ਪਤਿ ਹੋਇ ॥ हरि-प्रभु के नाम से भक्तजनों को मान-सम्मान प्राप्त होता है।
ਸਫਲੁ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹਾ ਕਾ ਜਨਮੁ ਹੈ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹ ਮਾਨੈ ਸਭੁ ਕੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ उनका इस संसार में जन्म सफल हो जाता है और हर कोई उनका आदर-सम्मान करता है॥ १॥रहाउ ॥
ਹਉਮੈ ਮੇਰਾ ਜਾਤਿ ਹੈ ਅਤਿ ਕ੍ਰੋਧੁ ਅਭਿਮਾਨੁ ॥ अहंकार, द्वैतवाद, अत्यंत क्रोध एवं अभिमान मनुष्य की जातियाँ हैं।
ਸਬਦਿ ਮਰੈ ਤਾ ਜਾਤਿ ਜਾਇ ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਮਿਲੈ ਭਗਵਾਨੁ ॥੨॥ यदि मनुष्य गुरु के शब्द में समा जाए तो वह इस जाति से मुक्ति प्राप्त कर लेता है और उसकी ज्योति भगवान् की ज्योति के साथ मिल जाती है। २॥
ਪੂਰਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟਿਆ ਸਫਲ ਜਨਮੁ ਹਮਾਰਾ ॥ पूर्ण सतगुरु को मिलने से हमारा जन्म सफल हो गया है।
ਨਾਮੁ ਨਵੈ ਨਿਧਿ ਪਾਇਆ ਭਰੇ ਅਖੁਟ ਭੰਡਾਰਾ ॥੩॥ मुझे हरि नाम की नवनिधि प्राप्त हो गई है। हरि नाम के अनमोल धन से हमारे भण्डार भरे रहते हैं ॥३॥
ਆਵਹਿ ਇਸੁ ਰਾਸੀ ਕੇ ਵਾਪਾਰੀਏ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹਾ ਨਾਮੁ ਪਿਆਰਾ ॥ यहाँ इस नाम-धन के वही व्यापारी आते हैं, जिन्हें प्रभु नाम प्यारा लगता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਵੈ ਸੋ ਧਨੁ ਪਾਏ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹਾ ਅੰਤਰਿ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰਾ ॥੪॥ जो लोग गुरुमुख बन जाते हैं, वे इस नाम-धन को प्राप्त कर लेते हैं, क्योंकि उनके अन्तर्मन में शब्द का ही चिन्तन होता है।४ ॥
ਭਗਤੀ ਸਾਰ ਨ ਜਾਣਨ੍ਹ੍ਹੀ ਮਨਮੁਖ ਅਹੰਕਾਰੀ ॥ अहंकारी मनमुख व्यक्ति प्रभु-भक्ति का महत्व नहीं जानते।
ਧੁਰਹੁ ਆਪਿ ਖੁਆਇਅਨੁ ਜੂਐ ਬਾਜੀ ਹਾਰੀ ॥੫॥ प्रभु ने उन्हें स्वयं ही कुमार्गगामी किया हुआ है, वह जुए में अपनी जीवन की बाजी हार जाते हैं। ।।५।।
ਬਿਨੁ ਪਿਆਰੈ ਭਗਤਿ ਨ ਹੋਵਈ ਨਾ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ਸਰੀਰਿ ॥ यदि चित्त में प्रेम नहीं तो फिर भक्ति नहीं की जा सकती और न ही शरीर को सुख प्राप्त होता है।
ਪ੍ਰੇਮ ਪਦਾਰਥੁ ਪਾਈਐ ਗੁਰ ਭਗਤੀ ਮਨ ਧੀਰਿ ॥੬॥ प्रेम का धन गुरु से ही मिलता है और प्रभु-भक्ति से मन धैर्यवान बन जाता है। ६॥
ਜਿਸ ਨੋ ਭਗਤਿ ਕਰਾਏ ਸੋ ਕਰੇ ਗੁਰ ਸਬਦ ਵੀਚਾਰਿ ॥ गुरु के शब्द का चिन्तन करके वही प्राणी भगवान् की भक्ति कर सकता है, जिससे वह स्वयं अपनी भक्ति करवाते हैं।
ਹਿਰਦੈ ਏਕੋ ਨਾਮੁ ਵਸੈ ਹਉਮੈ ਦੁਬਿਧਾ ਮਾਰਿ ॥੭॥ फिर उसके हृदय में एक ईश्वर का नाम ही निवास करता है और वह अपनी दुविधा एवं अहंत्व का नाश कर देता है। ७ ॥
ਭਗਤਾ ਕੀ ਜਤਿ ਪਤਿ ਏਕੋੁ ਨਾਮੁ ਹੈ ਆਪੇ ਲਏ ਸਵਾਰਿ ॥ एक परमात्मा का नाम ही भक्तजनों की सामाजिक प्रतिष्ठा और सम्मान है;। वह स्वयं ही उन्हें संवार देते हैं।
ਸਦਾ ਸਰਣਾਈ ਤਿਸ ਕੀ ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਉ ਕਾਰਜੁ ਸਾਰਿ ॥੮॥ वह सदा उसकी शरण में रहते हैं और जैसे उसे अच्छा लगता है, वैसे ही वह भक्तों के कार्य संवारता है। ८ ॥


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