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ਤਾ ਕੇ ਰੂਪ ਨ ਜਾਹੀ ਲਖਣੇ ਕਿਆ ਕਰਿ ਆਖਿ ਵੀਚਾਰੀ ॥੨॥
उनके अनन्त स्वरूपों को समझ पाना असंभव है; मैं उनका वर्णन या चिन्तन कैसे करूँ? ॥ २॥
ਤੀਨਿ ਗੁਣਾ ਤੇਰੇ ਜੁਗ ਹੀ ਅੰਤਰਿ ਚਾਰੇ ਤੇਰੀਆ ਖਾਣੀ ॥
हे स्वामी ! इस सृष्टि में तीन गुण (सतव,रजस,तमस) और सृष्टि रचना के चार स्रोत आपके द्वारा ही उत्पादित हैं।
ਕਰਮੁ ਹੋਵੈ ਤਾ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਈਐ ਕਥੇ ਅਕਥ ਕਹਾਣੀ ॥੩॥
यदि आप दयालु हो जाओ तो ही मनुष्य परम पदवी प्राप्त करता है और आपकी अकथनीय कहानी को कथन करता है॥ ३॥
ਤੂੰ ਕਰਤਾ ਕੀਆ ਸਭੁ ਤੇਰਾ ਕਿਆ ਕੋ ਕਰੇ ਪਰਾਣੀ ॥
हे भगवान् ! आप जगत् के रचयिता हैं। सब कुछ आपका ही किया हुआ है, कोई प्राणी क्या कर सकता है?
ਜਾ ਕਉ ਨਦਰਿ ਕਰਹਿ ਤੂੰ ਅਪਣੀ ਸਾਈ ਸਚਿ ਸਮਾਣੀ ॥੪॥
हे परमेश्वर ! जिस मनुष्य पर आप कृपादृष्टि करते हैं केवल वही सत्य में समा जाता है॥ ४॥
ਨਾਮੁ ਤੇਰਾ ਸਭੁ ਕੋਈ ਲੇਤੁ ਹੈ ਜੇਤੀ ਆਵਣ ਜਾਣੀ ॥
प्रत्येक जीव जो जन्म-मरण के चक्र में पड़ा है, वह आपके नाम का जाप करता है।
ਜਾ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਤਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੂਝੈ ਹੋਰ ਮਨਮੁਖਿ ਫਿਰੈ ਇਆਣੀ ॥੫॥
यदि आपको भला लगे तभी गुरुमुख आपको समझता है। शेष स्वेच्छाचारी मूर्ख प्राणी भटकते ही रहते हैं।॥ ५॥
ਚਾਰੇ ਵੇਦ ਬ੍ਰਹਮੇ ਕਉ ਦੀਏ ਪੜਿ ਪੜਿ ਕਰੇ ਵੀਚਾਰੀ ॥
परमेश्वर ने ब्रह्मा को चारों वेदों का संकलन करने की प्रेरणा दी। ब्रह्मा ने वेदों का श्रद्धापूर्वक अध्ययन किया और उन पर गंभीर विचार करते रहे।
ਤਾ ਕਾ ਹੁਕਮੁ ਨ ਬੂਝੈ ਬਪੁੜਾ ਨਰਕਿ ਸੁਰਗਿ ਅਵਤਾਰੀ ॥੬॥
वह बेचारा प्रभु के आदेश को नहीं समझता और नरक-स्वर्ग में जन्म लेता है॥ ६॥
ਜੁਗਹ ਜੁਗਹ ਕੇ ਰਾਜੇ ਕੀਏ ਗਾਵਹਿ ਕਰਿ ਅਵਤਾਰੀ ॥
युग-युग में ईश्वर ने राम, कृष्ण इत्यादि राजा उत्पन्न किए जिन्हें लोग अवतार मान कर गुणस्तुति करते आ रहे हैं।
ਤਿਨ ਭੀ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਇਆ ਤਾ ਕਾ ਕਿਆ ਕਰਿ ਆਖਿ ਵੀਚਾਰੀ ॥੭॥
लेकिन वे भी उसका अन्त नहीं पा सके, फिर मैं क्या कहकर उसके गुणों का विचार कर सकता हूँ॥ ७ ॥
ਤੂੰ ਸਚਾ ਤੇਰਾ ਕੀਆ ਸਭੁ ਸਾਚਾ ਦੇਹਿ ਤ ਸਾਚੁ ਵਖਾਣੀ ॥
हे प्रभु! आप शाश्वत हैं, और यह सम्पूर्ण सृष्टि आपके नित्य स्वरूप की साक्षी है। यदि आप मुझे अपने नाम का अनुग्रह देंगे, तभी मैं आपके शाश्वत नाम का स्मरण कर सकूँगा।
ਜਾ ਕਉ ਸਚੁ ਬੁਝਾਵਹਿ ਅਪਣਾ ਸਹਜੇ ਨਾਮਿ ਸਮਾਣੀ ॥੮॥੧॥੨੩॥
हे भगवान् ! जिस मनुष्य को आप अपने सत्य की सूझ प्रदान करते हो, वह सहज ही आपके नाम में समा जाता है॥ ८॥ १॥ २३॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੩ ॥
राग आसा, तीसरे गुरु: ३ ॥
ਸਤਿਗੁਰ ਹਮਰਾ ਭਰਮੁ ਗਵਾਇਆ ॥
सच्चे गुरु ने मेरा भ्रम दूर कर दिया है;
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਮੰਨਿ ਵਸਾਇਆ ॥
उसने हरि का निरंजन नाम मेरे मन में बसा दिया है।
ਸਬਦੁ ਚੀਨਿ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥੧॥
शब्द की पहचान करने से मुझे सदैव सुख उपलब्ध हो गया है॥ १॥
ਸੁਣਿ ਮਨ ਮੇਰੇ ਤਤੁ ਗਿਆਨੁ ॥
हे मेरे मन ! तू तत्व ज्ञान को सुन।
ਦੇਵਣ ਵਾਲਾ ਸਭ ਬਿਧਿ ਜਾਣੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਈਐ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
देने वाला (परमात्मा) समस्त विधियाँ जानता है। गुरु की शरण में रहने से ही नाम का भण्डार प्राप्त होता है।॥ १॥ रहाउ॥
ਸਤਿਗੁਰ ਭੇਟੇ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ॥
सतगुरु से भेंट करने की यह बड़ाई है कि
ਜਿਨਿ ਮਮਤਾ ਅਗਨਿ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਬੁਝਾਈ ॥
उसने ममता एवं तृष्णाग्नि को बुझा दिया है और
ਸਹਜੇ ਮਾਤਾ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਈ ॥੨॥
मैं सहज अवस्था में रंगा हुआ हरि का गुणगान करता रहता हूँ॥ २॥
ਵਿਣੁ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਕੋਇ ਨ ਜਾਣੀ ॥
पूर्ण गुरु के बिना कोई भी जीव प्रभु को नहीं जानता।
ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਦੂਜੈ ਲੋਭਾਣੀ ॥
क्योंकि मनुष्य माया-मोह एवं व्यर्थ के लोभ में फँसा हुआ है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਮਿਲੈ ਹਰਿ ਬਾਣੀ ॥੩॥
गुरु के माध्यम से ही मनुष्य प्रभु का नाम एवं हरि की वाणी को पा लेता है॥ ३॥
ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਤਪਾਂ ਸਿਰਿ ਤਪੁ ਸਾਰੁ ॥
गुरु की सेवा समस्त तपस्याओं में महान् तपस्या एवं सार है।
ਹਰਿ ਜੀਉ ਮਨਿ ਵਸੈ ਸਭ ਦੂਖ ਵਿਸਾਰਣਹਾਰੁ ॥
तब पूज्य परमेश्वर मनुष्य के मन में बस जाते हैं और वह सारे दुःख दर्द को भुलाने वाले हैं।
ਦਰਿ ਸਾਚੈ ਦੀਸੈ ਸਚਿਆਰੁ ॥੪॥
वह सत्य के दरबार में सत्यवादी दिखाई देता है॥ ४॥
ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਤੇ ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਸੋਝੀ ਹੋਇ ॥
गुरु की सेवा करने से मनुष्य को तीन लोकों की सूझ प्राप्त हो जाती है और
ਆਪੁ ਪਛਾਣਿ ਹਰਿ ਪਾਵੈ ਸੋਇ ॥
अपने आत्मस्वरूप को पहचान कर वह उस प्रभु को प्राप्त कर लेता है।
ਸਾਚੀ ਬਾਣੀ ਮਹਲੁ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ॥੫॥
सच्ची गुरुवाणी के माध्यम से प्राणी प्रभु के दरबार को प्राप्त कर लेता है॥ ५॥
ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਤੇ ਸਭ ਕੁਲ ਉਧਾਰੇ ॥
गुरु की सेवा करने से मनुष्य अपनी कुल (वंश) का उद्धार कर लेता है और
ਨਿਰਮਲ ਨਾਮੁ ਰਖੈ ਉਰਿ ਧਾਰੇ ॥
निर्मल नाम को अपने हृदय में बसा कर रखता है।
ਸਾਚੀ ਸੋਭਾ ਸਾਚਿ ਦੁਆਰੇ ॥੬॥
सत्य के दरबार में वह सत्य की शोभा से शोभायमान होता है॥ ६॥
ਸੇ ਵਡਭਾਗੀ ਜਿ ਗੁਰਿ ਸੇਵਾ ਲਾਏ ॥
वे पुरूष बड़े भाग्यशाली हैं, जिन्हें गुरु अपनी सेवा में लगाते हैं।
ਅਨਦਿਨੁ ਭਗਤਿ ਸਚੁ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਏ ॥
वे दिन-रात प्रभु-भक्ति में प्रवृत्त रहते हैं और सत्य नाम को बसाकर रखते हैं।
ਨਾਮੇ ਉਧਰੇ ਕੁਲ ਸਬਾਏ ॥੭॥
प्रभु-नाम के माध्यम से समूचे कुल का उद्धार हो जाता है॥ ७॥
ਨਾਨਕੁ ਸਾਚੁ ਕਹੈ ਵੀਚਾਰੁ ॥
नानक सत्य का विचार करके कहते हैं कि
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਰਖਹੁ ਉਰਿ ਧਾਰਿ ॥
भगवान् का नाम अपने हृदय में बसाकर रख।
ਹਰਿ ਭਗਤੀ ਰਾਤੇ ਮੋਖ ਦੁਆਰੁ ॥੮॥੨॥੨੪॥
हरि की भक्ति में मग्न होने से मोक्ष द्वार प्राप्त हो जाता है॥ ८ ॥ २॥ २४॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੩ ॥
राग आसा, तीसरे गुरु : ३ ॥
ਆਸਾ ਆਸ ਕਰੇ ਸਭੁ ਕੋਈ ॥
प्रत्येक जीव आशा एवं इच्छा ही करता रहता है लेकिन
ਹੁਕਮੈ ਬੂਝੈ ਨਿਰਾਸਾ ਹੋਈ ॥
जो प्रभु के आदेश को समझ लेता है, वह इच्छा रहित हो जाता है।
ਆਸਾ ਵਿਚਿ ਸੁਤੇ ਕਈ ਲੋਈ ॥
बहुत सारे लोग आशा में सोए हुए हैं।
ਸੋ ਜਾਗੈ ਜਾਗਾਵੈ ਸੋਈ ॥੧॥
वही प्राणी जागता है, जिसे प्रभु स्वयं जगाते हैं॥ १॥
ਸਤਿਗੁਰਿ ਨਾਮੁ ਬੁਝਾਇਆ ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਭੁਖ ਨ ਜਾਈ ॥
सतगुरु ने नाम का भेद बताया है। नाम के बिना भूख दूर नहीं होती।