Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 416

Page 416

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥ राग आसा, प्रथम गुरु: १ ॥
ਤਨੁ ਬਿਨਸੈ ਧਨੁ ਕਾ ਕੋ ਕਹੀਐ ॥ जब किसी मनुष्य की मृत्यु नाश हो जाती है तो उसके द्वारा संचित धन किसका कहा जा सकता है ?
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਕਤ ਲਹੀਐ ॥ गुरु के बिना राम का नाम कैसे प्राप्त हो सकता है ?
ਰਾਮ ਨਾਮ ਧਨੁ ਸੰਗਿ ਸਖਾਈ ॥ राम नाम का धन ही सच्चा साथी एवं सहायक है।
ਅਹਿਨਿਸਿ ਨਿਰਮਲੁ ਹਰਿ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥੧॥ जो मनुष्य दिन-रात अपनी वृत्ति हरि के साथ लगाकर रखता है, वह निर्मल है॥ १॥
ਰਾਮ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਕਵਨੁ ਹਮਾਰਾ ॥ राम के नाम बिना हमारा कौन है ?
ਸੁਖ ਦੁਖ ਸਮ ਕਰਿ ਨਾਮੁ ਨ ਛੋਡਉ ਆਪੇ ਬਖਸਿ ਮਿਲਾਵਣਹਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सुख-दुःख को एक समान समझकर मैं नाम को नहीं छोड़ता। प्रभु क्षमा करके स्वयं ही अपने साथ मिला लेते हैं॥ १॥ रहाउ॥
ਕਨਿਕ ਕਾਮਨੀ ਹੇਤੁ ਗਵਾਰਾ ॥ मूर्ख हैं वे जो माया और वासना के मोह में पड़े रहते हैं,
ਦੁਬਿਧਾ ਲਾਗੇ ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਰਾ ॥ और द्वैत में आसक्त होकर उसने नाम को भुला दिया है।
ਜਿਸੁ ਤੂੰ ਬਖਸਹਿ ਨਾਮੁ ਜਪਾਇ ॥ जिसे प्रभु क्षमा कर देते हैं, उससे वह अपने नाम का जाप करवाते हैं।
ਦੂਤੁ ਨ ਲਾਗਿ ਸਕੈ ਗੁਨ ਗਾਇ ॥੨॥ जो प्रभु के गुण गाता है, यमदूत उसे स्पर्श नहीं कर सकता॥ २॥
ਹਰਿ ਗੁਰੁ ਦਾਤਾ ਰਾਮ ਗੁਪਾਲਾ ॥ हे हरि ! हे गोपाल ! आप ही मेरे गुरु, दाता एवं राम है।
ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਉ ਰਾਖੁ ਦਇਆਲਾ ॥ हे दयालु प्रभु ! जैसे तुझे उपयुक्त लगता है, वैसे ही आप मेरी रक्षा करो।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਰਾਮੁ ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਭਾਇਆ ॥ गुरु के उपदेश से राम मेरे मन को भला लगा है।
ਰੋਗ ਮਿਟੇ ਦੁਖੁ ਠਾਕਿ ਰਹਾਇਆ ॥੩॥ राम द्वारा मेरे रोग मिट गए हैं और दुःख भी दूर हो गए हैं।॥ ३॥
ਅਵਰੁ ਨ ਅਉਖਧੁ ਤੰਤ ਨ ਮੰਤਾ ॥ रोगों से बचने के लिए नाम के अतिरिक्त अन्य कोई औषधि, तंत्र एवं मंत्र नहीं।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਸਿਮਰਣੁ ਕਿਲਵਿਖ ਹੰਤਾ ॥ हरि-प्रभु का सिमरन पापों का नाश कर देता है।
ਤੂੰ ਆਪਿ ਭੁਲਾਵਹਿ ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਰਿ ॥ हे प्रभु ! आप स्वयं जीवों को कुमार्गगामी करते हैं और वह आपके नाम को भुला देते हैं।
ਤੂੰ ਆਪੇ ਰਾਖਹਿ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰਿ ॥੪॥ आप स्वयं ही अपनी कृपा करके अनेक जीवों की रक्षा करता है॥ ४॥
ਰੋਗੁ ਭਰਮੁ ਭੇਦੁ ਮਨਿ ਦੂਜਾ ॥ मन को दुविधा, भेदभाव एवं द्वैतवाद का रोग लगा हुआ है।
ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਭਰਮਿ ਜਪਹਿ ਜਪੁ ਦੂਜਾ ॥ गुरु के बिना जीव भ्रम में भटकता है और दूसरों का जाप जपता है।
ਆਦਿ ਪੁਰਖ ਗੁਰ ਦਰਸ ਨ ਦੇਖਹਿ ॥ उन्हें आदिपुरुष गुरु के दर्शन नहीं होते।
ਵਿਣੁ ਗੁਰ ਸਬਦੈ ਜਨਮੁ ਕਿ ਲੇਖਹਿ ॥੫॥ गुरु शब्द के बिना मनुष्य का जीवन व्यर्थ है;। ५॥
ਦੇਖਿ ਅਚਰਜੁ ਰਹੇ ਬਿਸਮਾਦਿ ॥ प्रभु की आश्चर्यजनक लीला को देखकर मैं बहुत चकित हुआ हूँ।
ਘਟਿ ਘਟਿ ਸੁਰ ਨਰ ਸਹਜ ਸਮਾਧਿ ॥ सहज समाधि में वह सबके हृदय में देवताओं एवं मनुष्यों के भीतर समाया हुआ है।
ਭਰਿਪੁਰਿ ਧਾਰਿ ਰਹੇ ਮਨ ਮਾਹੀ ॥ पूर्ण व्यापक प्रभु को मैंने अपने मन में बसाया है।
ਤੁਮ ਸਮਸਰਿ ਅਵਰੁ ਕੋ ਨਾਹੀ ॥੬॥ हे प्रभु ! आपके बराबर का दूसरा कोई नहीं ॥ ६ ॥
ਜਾ ਕੀ ਭਗਤਿ ਹੇਤੁ ਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ॥ ਸੰਤ ਭਗਤ ਕੀ ਸੰਗਤਿ ਰਾਮੁ ॥ जो भक्ति से प्रेम करता है, उसके मुख में प्रभु का नाम है। संतों एवं भक्तों की संगति में राम का निवास है।
ਬੰਧਨ ਤੋਰੇ ਸਹਜਿ ਧਿਆਨੁ ॥ अपने बंधन तोड़कर मनुष्य को प्रभु में सहज ही ध्यान लगाना चाहिए
ਛੂਟੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਗੁਰ ਗਿਆਨੁ ॥੭॥ गुरु-परमात्मा के ज्ञान द्वारा गुरुमुख मुक्त हो जाते हैं।॥ ७ ॥
ਨਾ ਜਮਦੂਤ ਦੂਖੁ ਤਿਸੁ ਲਾਗੈ ॥ उसे यमदूत एवं कोई भी दुःख स्पर्श नहीं करता।
ਜੋ ਜਨੁ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਲਿਵ ਜਾਗੈ ॥ मनुष्य राम के नाम में ध्यान लगाकर जागता है,
ਭਗਤਿ ਵਛਲੁ ਭਗਤਾ ਹਰਿ ਸੰਗਿ ॥ भक्तवत्सल प्रभु अपने भक्तों के साथ रहते हैं।
ਨਾਨਕ ਮੁਕਤਿ ਭਏ ਹਰਿ ਰੰਗਿ ॥੮॥੯॥ हे नानक ! हरि के प्रेम द्वारा भक्तजन जन्म-मरण के चक्र से छूट गए हैं।॥ ८ ॥ ९॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ਇਕਤੁਕੀ ॥ राग आसा, इक-तुकी (एक पंक्ति), प्रथम गुरु: ॥
ਗੁਰੁ ਸੇਵੇ ਸੋ ਠਾਕੁਰ ਜਾਨੈ ॥ जो व्यक्ति गुरु की श्रद्धापूर्वक सेवा करता है, वह ठाकुर जी को जान लेता है।
ਦੂਖੁ ਮਿਟੈ ਸਚੁ ਸਬਦਿ ਪਛਾਨੈ ॥੧॥ वह शब्द द्वारा सत्य को पहचान लेता है और उसके सभी दु:ख मिट जाते हैं।॥ १॥
ਰਾਮੁ ਜਪਹੁ ਮੇਰੀ ਸਖੀ ਸਖੈਨੀ ॥ हे मेरी सखी-सहेली ! राम का नाम जपो।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਦੇਖਹੁ ਪ੍ਰਭੁ ਨੈਨੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सतगुरु की सेवा के फलस्वरूप तुझे अपने नयनों से प्रभु के दर्शन प्राप्त होंगे॥ १॥ रहाउ ॥
ਬੰਧਨ ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਸੰਸਾਰਿ ॥ ਬੰਧਨ ਸੁਤ ਕੰਨਿਆ ਅਰੁ ਨਾਰਿ ॥੨॥ नाम-सिमरन के बिना जगत में माता-पिता मोह के बंधन हैं। पुत्र, कन्या एवं नारी ये सभी मोह के बन्धन हैं।॥ २॥
ਬੰਧਨ ਕਰਮ ਧਰਮ ਹਉ ਕੀਆ ॥ अहंकारवश किए गए कर्म-धर्म भी बन्धन हैं।
ਬੰਧਨ ਪੁਤੁ ਕਲਤੁ ਮਨਿ ਬੀਆ ॥੩॥ पुत्र, पत्नी एवं मन में किसी दूसरे का प्रेम भी बन्धन है॥ ३॥
ਬੰਧਨ ਕਿਰਖੀ ਕਰਹਿ ਕਿਰਸਾਨ ॥ कृषकों द्वारा की गई कृषि भी बन्धन है।
ਹਉਮੈ ਡੰਨੁ ਸਹੈ ਰਾਜਾ ਮੰਗੈ ਦਾਨ ॥੪॥ क्योंकि राजा फसल पर कर मांगता है और यदि अहंकारवश किसान कर देने से इंकार कर देता है तो उसे दंड भुगतना पड़ता है। ॥ ४॥
ਬੰਧਨ ਸਉਦਾ ਅਣਵੀਚਾਰੀ ॥ भले-बुरे की विचार के बिना व्यापार एक बन्धन है।
ਤਿਪਤਿ ਨਾਹੀ ਮਾਇਆ ਮੋਹ ਪਸਾਰੀ ॥੫॥ माया-मोह के प्रसार से प्राणी तृप्त नहीं होता ॥ ५ ॥
ਬੰਧਨ ਸਾਹ ਸੰਚਹਿ ਧਨੁ ਜਾਇ ॥ साहूकार धन संचित करते हैं लेकिन यह धन भी अंतत: चला जाता है जो बन्धन ही है।
ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਨ ਪਵਈ ਥਾਇ ॥੬॥ हरि की भक्ति के बिना प्राणी स्वीकृत नहीं होता।॥ ६॥
ਬੰਧਨ ਬੇਦੁ ਬਾਦੁ ਅਹੰਕਾਰ ॥ वेद, धार्मिक वाद-विवाद एवं अहंकार बन्धन हैं।
ਬੰਧਨਿ ਬਿਨਸੈ ਮੋਹ ਵਿਕਾਰ ॥੭॥ मोह एवं विकारों के बन्धनों द्वारा मनुष्य का नाश हो रहा है॥ ७॥
ਨਾਨਕ ਰਾਮ ਨਾਮ ਸਰਣਾਈ ॥ नानक ने राम की शरण ली है।
ਸਤਿਗੁਰਿ ਰਾਖੇ ਬੰਧੁ ਨ ਪਾਈ ॥੮॥੧੦॥ सतगुरु ने उसकी रक्षा की है, अब उसे कोई बन्धन नहीं है॥ ८ ॥ १० ॥


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