Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 389

Page 389

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਤੂ ਮੇਰਾ ਤਰੰਗੁ ਹਮ ਮੀਨ ਤੁਮਾਰੇ ॥ हे भगवान् ! आप अनंत सागर हैं और मैं उस सागर में तैरती एक छोटी सी मछली हूं।
ਤੂ ਮੇਰਾ ਠਾਕੁਰੁ ਹਮ ਤੇਰੈ ਦੁਆਰੇ ॥੧॥ आप मेरे ठाकुर हैं और हम आपके द्वार पर आए हैं।॥ १॥
ਤੂੰ ਮੇਰਾ ਕਰਤਾ ਹਉ ਸੇਵਕੁ ਤੇਰਾ ॥ हे हरि ! आप मेरे रचयिता हैं और मैं आपका सेवक हूँ।
ਸਰਣਿ ਗਹੀ ਪ੍ਰਭ ਗੁਨੀ ਗਹੇਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे गुणी गंभीर प्रभु ! मैंने आपकी ही शरण ली है॥ १ ॥ रहाउ॥
ਤੂ ਮੇਰਾ ਜੀਵਨੁ ਤੂ ਆਧਾਰੁ ॥ आप ही मेरा जीवन है और आप ही मेरा आधार है।
ਤੁਝਹਿ ਪੇਖਿ ਬਿਗਸੈ ਕਉਲਾਰੁ ॥੨॥ आपको देखने से मेरा हृदय कमल खिल जाता है॥ २॥
ਤੂ ਮੇਰੀ ਗਤਿ ਪਤਿ ਤੂ ਪਰਵਾਨੁ ॥ हे प्रभु, आप ही मेरे आत्मिक जीवन और मान-सम्मान के रक्षक हो; आप जो भी करें, मुझे वह पूर्णतया स्वीकार है।
ਤੂ ਸਮਰਥੁ ਮੈ ਤੇਰਾ ਤਾਣੁ ॥੩॥ हे गोविन्द !आप सर्वकला समर्थ है और मुझे आपका ही बल है। ३॥
ਅਨਦਿਨੁ ਜਪਉ ਨਾਮ ਗੁਣਤਾਸਿ ॥ हे गुणों के भण्डार परमात्मा ! मैं रात-दिन आपका नाम ही जपता रहूँ
ਨਾਨਕ ਕੀ ਪ੍ਰਭ ਪਹਿ ਅਰਦਾਸਿ ॥੪॥੨੩॥੭੪॥ नानक की यही प्रार्थना है॥४॥२३॥७४॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਰੋਵਨਹਾਰੈ ਝੂਠੁ ਕਮਾਨਾ ॥ किसी की मृत्यु पर रोने वाला भी झूठा ही विलाप करता है।
ਹਸਿ ਹਸਿ ਸੋਗੁ ਕਰਤ ਬੇਗਾਨਾ ॥੧॥ अपरिचित मनुष्य हँस-हँस कर मरने वाले का शोक करता है॥ १॥
ਕੋ ਮੂਆ ਕਾ ਕੈ ਘਰਿ ਗਾਵਨੁ ॥ दुनिया में हर्षशोक का चक्र चलायमान है, जहाँ कोई मरता है तो वहाँ शोक हो रहा है और किसी के घर में किसी हर्षोल्लास के कारण गाना-बजाना हो रहा है।
ਕੋ ਰੋਵੈ ਕੋ ਹਸਿ ਹਸਿ ਪਾਵਨੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ कोई विलाप करता है और कोई खिलखिला कर हँसता है॥ १॥ रहाउ॥
ਬਾਲ ਬਿਵਸਥਾ ਤੇ ਬਿਰਧਾਨਾ ॥ बाल्यावस्था से वृद्धावस्था तक
ਪਹੁਚਿ ਨ ਮੂਕਾ ਫਿਰਿ ਪਛੁਤਾਨਾ ॥੨॥ मनुष्य अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँचता और अंततः पश्चाताप करता है॥ २॥
ਤ੍ਰਿਹੁ ਗੁਣ ਮਹਿ ਵਰਤੈ ਸੰਸਾਰਾ ॥ यह दुनिया माया के तीन गुणों अर्थात् रजो गुण, तमो गुण एवं सतो गुण के वश में है।
ਨਰਕ ਸੁਰਗ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਅਉਤਾਰਾ ॥੩॥ इसलिए प्राणी बार-बार नरक-स्वर्ग में जन्म लेता है॥ ३॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜੋ ਲਾਇਆ ਨਾਮ ॥ हे नानक ! जिसे प्रभु ने अपने नाम सिमरन के साथ लगाया है
ਸਫਲ ਜਨਮੁ ਤਾ ਕਾ ਪਰਵਾਨ ॥੪॥੨੪॥੭੫॥ उस मनुष्य का जन्म सफल है और वही सत्य के दरबार में स्वीकार होता है ॥ ४॥ २४॥ ७५ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਸੋਇ ਰਹੀ ਪ੍ਰਭ ਖਬਰਿ ਨ ਜਾਨੀ ॥ हे सखी ! जीव रूपी नारी रात भर अज्ञानता की नींद में सोई रही और उसने अपने प्रभु-पति के सन्देश को नहीं जाना।
ਭੋਰੁ ਭਇਆ ਬਹੁਰਿ ਪਛੁਤਾਨੀ ॥੧॥ जब सूर्योदय हुआ अर्थात् सारी उम्र बीत गई और चलने का समय आ गया तो वह पश्चाताप करती है॥ १॥
ਪ੍ਰਿਅ ਪ੍ਰੇਮ ਸਹਜਿ ਮਨਿ ਅਨਦੁ ਧਰਉ ਰੀ ॥ हे जीव रूपी नारी ! अपने प्रियतम प्रभु के प्रेम द्वारा तुझे अपने मन में सहज ही सुख प्राप्त हो जाएगा।
ਪ੍ਰਭ ਮਿਲਬੇ ਕੀ ਲਾਲਸਾ ਤਾ ਤੇ ਆਲਸੁ ਕਹਾ ਕਰਉ ਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जब तेरी अन्तरात्मा में प्रभु-मिलन की लालसा है तो तू क्यों आलस्य करती है॥ १॥ रहाउ ॥
ਕਰ ਮਹਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਆਣਿ ਨਿਸਾਰਿਓ ॥ उसके पति-प्रभु ने आकर उसके हाथ में अमृत दिया था
ਖਿਸਰਿ ਗਇਓ ਭੂਮ ਪਰਿ ਡਾਰਿਓ ॥੨॥ परन्तु यह फिसल गया और भूमि पर गिर गया।॥ २॥
ਸਾਦਿ ਮੋਹਿ ਲਾਦੀ ਅਹੰਕਾਰੇ ॥ हे सखी ! जीव रूपी नारी स्वयं ही विषय विकारों के आस्वादन, मोह एवं अहंकार में दबी रहती है फिर
ਦੋਸੁ ਨਾਹੀ ਪ੍ਰਭ ਕਰਣੈਹਾਰੇ ॥੩॥ इसमें जग के रचयिता प्रभु का कोई दोष नहीं है। ३॥
ਸਾਧਸੰਗਿ ਮਿਟੇ ਭਰਮ ਅੰਧਾਰੇ ॥ हे नानक ! सत्संगति में आकर जिसके भ्रम का अन्धकार मिट जाता है,"
ਨਾਨਕ ਮੇਲੀ ਸਿਰਜਣਹਾਰੇ ॥੪॥੨੫॥੭੬॥3 रचयिता प्रभु उसे अपने साथ मिला लेता है॥ ४॥ २५॥ ७६॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਚਰਨ ਕਮਲ ਕੀ ਆਸ ਪਿਆਰੇ ॥ हे प्रिय प्रभु ! मुझे तेरे चरण-कमल की आशा है।
ਜਮਕੰਕਰ ਨਸਿ ਗਏ ਵਿਚਾਰੇ ॥੧॥ यमदूत बेचारे तो मेरे पास से भाग गए हैं।॥१॥
ਤੂ ਚਿਤਿ ਆਵਹਿ ਤੇਰੀ ਮਇਆ ॥ हे भगवान् ! यह तो आपकी ही कृपा है कि कोई आपका स्मरण कर पाता है।
ਸਿਮਰਤ ਨਾਮ ਸਗਲ ਰੋਗ ਖਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ आपका नाम-सिमरन करने से सभी दुःख-क्लेश मिट गए हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਅਨਿਕ ਦੂਖ ਦੇਵਹਿ ਅਵਰਾ ਕਉ ॥ हे प्रभु ! यमदूत दूसरों को अत्यंत पीड़ित करता है परन्तु
ਪਹੁਚਿ ਨ ਸਾਕਹਿ ਜਨ ਤੇਰੇ ਕਉ ॥੨॥ वे आपके भक्त के समीप नहीं आ सकता॥ २॥
ਦਰਸ ਤੇਰੇ ਕੀ ਪਿਆਸ ਮਨਿ ਲਾਗੀ ॥ हे वाहेगुरु ! मेरे मन में आपके दर्शनों की प्यास लगी हुई है,"
ਸਹਜ ਅਨੰਦ ਬਸੈ ਬੈਰਾਗੀ ॥੩॥ इसलिए आपके प्रेम में भीगकर सहज आनंद एवं वैराग्य में बसता हूँ॥ ३॥
ਨਾਨਕ ਕੀ ਅਰਦਾਸਿ ਸੁਣੀਜੈ ॥ हे परमेश्वर ! नानक की प्रार्थना सुनिए,"
ਕੇਵਲ ਨਾਮੁ ਰਿਦੇ ਮਹਿ ਦੀਜੈ ॥੪॥੨੬॥੭੭॥ केवल अपना नाम ही हृदय में बसा दीजिए॥ ४॥ २६॥ ७७ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਮਨੁ ਤ੍ਰਿਪਤਾਨੋ ਮਿਟੇ ਜੰਜਾਲ ॥ हे भाई ! मेरा मन तृप्त हो गया है और मेरे माया के जंजाल मिट गए हैं
ਪ੍ਰਭੁ ਅਪੁਨਾ ਹੋਇਆ ਕਿਰਪਾਲ ॥੧॥ क्योकि मेरे प्रभु मुझ पर कृपालु हो गए हैं। १॥
ਸੰਤ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਭਲੀ ਬਨੀ ॥ संतों की दया से (भाग्योदय होने से) मेरा भला हो गया है।
ਜਾ ਕੈ ਗ੍ਰਿਹਿ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਹੈ ਪੂਰਨੁ ਸੋ ਭੇਟਿਆ ਨਿਰਭੈ ਧਨੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मैं उस निर्भय प्रभु से मिल गया हूँ जिसका घर समस्त पदार्थों से भरपूर है॥ १॥ रहाउ॥
ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਆ ਸਾਧ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ॥ कृपालु संत ने मेरे अन्तर्मन में प्रभु का नाम बसा दिया है।
ਮਿਟਿ ਗਈ ਭੂਖ ਮਹਾ ਬਿਕਰਾਲ ॥੨॥ अब मेरी महाविकराल भूख मिट गई है॥ २॥
ਠਾਕੁਰਿ ਅਪੁਨੈ ਕੀਨੀ ਦਾਤਿ ॥ मेरे ठाकुर ने मुझे एक देन प्रदान की है
ਜਲਨਿ ਬੁਝੀ ਮਨਿ ਹੋਈ ਸਾਂਤਿ ॥੩॥ जिसके फलस्वरुप मेरी जलन बुझ गई हैं और मन शांत हो गया है॥ ३ ॥
ਮਿਟਿ ਗਈ ਭਾਲ ਮਨੁ ਸਹਜਿ ਸਮਾਨਾ ॥3 मेरी खोज मिट गई है और मेरा मन सहज आनंद में लीन हो गया है।


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