Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 376

Page 376

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਣ ਗਾਈਅਹਿ ਨੀਤ ॥ हे नानक ! नित्य ही भगवान् के गुण गाने चाहिए,"
ਮੁਖ ਊਜਲ ਹੋਇ ਨਿਰਮਲ ਚੀਤ ॥੪॥੧੯॥ क्योंकि गुणगान करने से सत्य के दरबार में मुख उज्ज्वल तथा चित्त निर्मल हो जाता है।॥ ४॥ १६॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਨਉ ਨਿਧਿ ਤੇਰੈ ਸਗਲ ਨਿਧਾਨ ॥ हे जगत के मालिक ! आपके घर में नवनिधियाँ एवं समस्त भण्डार हैं।
ਇਛਾ ਪੂਰਕੁ ਰਖੈ ਨਿਦਾਨ ॥੧॥ आप जीवों की इच्छाएँ पूरी करने वाले एवं उनकी रक्षा करने वाले हैं॥ १॥
ਤੂੰ ਮੇਰੋ ਪਿਆਰੋ ਤਾ ਕੈਸੀ ਭੂਖਾ ॥ जब आप मेरे प्रियतम है तो कैसी भूख रहेगी।
ਤੂੰ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਲਗੈ ਨ ਦੂਖਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जब आप मेरे हृदय में निवास करते हैं तो कोई भी दु:ख मुझे स्पर्श नहीं कर सकता ॥ १॥ रहाउ ॥
ਜੋ ਤੂੰ ਕਰਹਿ ਸੋਈ ਪਰਵਾਣੁ ॥ जो कुछ आप करते हो वही मुझे स्वीकार है।
ਸਾਚੇ ਸਾਹਿਬ ਤੇਰਾ ਸਚੁ ਫੁਰਮਾਣੁ ॥੨॥ हे शाश्वत स्वामी, आपकी आज्ञा भी शाश्वत और अटल है॥ २॥
ਜਾ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਤਾ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਉ ॥ हे हरि ! जब तुझे अच्छा लगता है तो मैं आपका गुणगान करता हूँ।
ਤੇਰੈ ਘਰਿ ਸਦਾ ਸਦਾ ਹੈ ਨਿਆਉ ॥੩॥ आपके घर में सदैव ही न्याय है॥ ३॥
ਸਾਚੇ ਸਾਹਿਬ ਅਲਖ ਅਭੇਵ ॥ हे सच्चे मालिक ! आप अलक्ष्य एवं अपरंपार है।
ਨਾਨਕ ਲਾਇਆ ਲਾਗਾ ਸੇਵ ॥੪॥੨੦॥ आपके द्वारा प्रेरित नानक आपकी सेवा भक्ति में लगा हुआ है॥ ४ ॥ २०॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਨਿਕਟਿ ਜੀਅ ਕੈ ਸਦ ਹੀ ਸੰਗਾ ॥ भगवान् जीव के बिल्कुल निकट है और सदैव ही उसके साथ रहते हैं।
ਕੁਦਰਤਿ ਵਰਤੈ ਰੂਪ ਅਰੁ ਰੰਗਾ ॥੧॥ उसकी कुदरत समस्त रूपों एवं रंगों में कार्यशील है॥ १॥
ਕਰ੍ਹੈ ਨ ਝੁਰੈ ਨਾ ਮਨੁ ਰੋਵਨਹਾਰਾ ॥ मेरा मन न तो दुःखी होता है, न ही पश्चाताप करता और न ही रोता है क्योंकि
ਅਵਿਨਾਸੀ ਅਵਿਗਤੁ ਅਗੋਚਰੁ ਸਦਾ ਸਲਾਮਤਿ ਖਸਮੁ ਹਮਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मेरा स्वामी अदृश्य है, अनश्वर है और सबसे परे है, वह संसार की किसी भी विपत्ति से भयभीत नहीं होता - क्योंकि वह जानता है कि वह सदा-सुरक्षित है।॥ १॥ रहाउ॥
ਤੇਰੇ ਦਾਸਰੇ ਕਉ ਕਿਸ ਕੀ ਕਾਣਿ ॥ हे मेरे मालिक ! आपके तुच्छ दास को किसी के आश्रय की आवश्यकता नहीं रहती।
ਜਿਸ ਕੀ ਮੀਰਾ ਰਾਖੈ ਆਣਿ ॥੨॥ हे मेरे मालिक ! उसकी मान-प्रतिष्ठा की आप स्वयं रक्षा करते हैं॥ २॥
ਜੋ ਲਉਡਾ ਪ੍ਰਭਿ ਕੀਆ ਅਜਾਤਿ ॥ जिस सेवक को मालिक ने जाति-पाति के बन्धनों से रहित कर दिया है,"
ਤਿਸੁ ਲਉਡੇ ਕਉ ਕਿਸ ਕੀ ਤਾਤਿ ॥੩॥ उस सेवक को किसी की इर्ष्या का डर नहीं रहता॥ ३॥
ਵੇਮੁਹਤਾਜਾ ਵੇਪਰਵਾਹੁ ॥ ईश्वर किसी पर निर्भर नहीं है; वह स्वयं में पूर्ण है और समस्त चिंताओं से परे है।
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਕਹਹੁ ਗੁਰ ਵਾਹੁ ॥੪॥੨੧॥ हे नानक ! उस सर्वोच्च परमेश्वर की स्तुति करो॥ ४॥ २१॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਹਰਿ ਰਸੁ ਛੋਡਿ ਹੋਛੈ ਰਸਿ ਮਾਤਾ ॥ मनुष्य हरि-रस को त्यागकर तुच्छ रसों में मस्त रहता है।
ਘਰ ਮਹਿ ਵਸਤੁ ਬਾਹਰਿ ਉਠਿ ਜਾਤਾ ॥੧॥ नाम रूपी वस्तु उसके हृदय-घर में ही व्याप्त है परन्तु उसे खोजने हेतु बाहर भागता रहता है॥ १॥
ਸੁਨੀ ਨ ਜਾਈ ਸਚੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਕਾਥਾ ॥ ऐसे मनुष्य से सत्य की अमृत कथा सुनी नहीं जाती।
ਰਾਰਿ ਕਰਤ ਝੂਠੀ ਲਗਿ ਗਾਥਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ वह तो झूठी कहानियों से जुड़कर झगड़ा करता रहता है॥ १॥ रहाउ॥
ਵਜਹੁ ਸਾਹਿਬ ਕਾ ਸੇਵ ਬਿਰਾਨੀ ॥ विकारी मनुष्य ऐसा है जो खाता तो परमात्मा का दिया हुआ परन्तु सेवा किसी दूसरे की करता है।
ਐਸੇ ਗੁਨਹ ਅਛਾਦਿਓ ਪ੍ਰਾਨੀ ॥੨॥ ऐसे गुनाहों से प्राणी आच्छादित रहता है॥ २॥
ਤਿਸੁ ਸਿਉ ਲੂਕ ਜੋ ਸਦ ਹੀ ਸੰਗੀ ॥ वह अपनी भूलें उससे छिपाता है, जो हमेशा ही उसके साथ है।
ਕਾਮਿ ਨ ਆਵੈ ਸੋ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਮੰਗੀ ॥੩॥ जो उसके किसी काम नहीं, उसकी वह बार-बार माँग करता है॥ ३॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਦੀਨ ਦਇਆਲਾ ॥ नानक कहते हैं कि हे दीनदयाल प्रभु !
ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਉ ਕਰਿ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਾ ॥੪॥੨੨॥ जैसे आपको अच्छा लगता है, वैसे ही मेरा पोषण करो॥ ४॥ २२॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु:५ ॥
ਜੀਅ ਪ੍ਰਾਨ ਧਨੁ ਹਰਿ ਕੋ ਨਾਮੁ ॥ हरि का नाम ही मन तथा प्राणों हेतु सच्या धन है।
ਈਹਾ ਊਹਾਂ ਉਨ ਸੰਗਿ ਕਾਮੁ ॥੧॥ लोक-परलोक में यही धन जीव के काम आता है॥ १॥
ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਨਾਮ ਅਵਰੁ ਸਭੁ ਥੋਰਾ ॥ हरि के नाम बिना अन्य सब कुछ थोड़ा ही है क्योंकि
ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਅਘਾਵੈ ਹਰਿ ਦਰਸਨਿ ਮਨੁ ਮੋਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मेरा मन हरि के दर्शन करने से तृप्त एवं संतुष्ट हो जाता है॥ १॥ रहाउ॥
ਭਗਤਿ ਭੰਡਾਰ ਗੁਰਬਾਣੀ ਲਾਲ ॥ गुरुवाणी प्रभु-भक्ति के रत्नों का भण्डार है।
ਗਾਵਤ ਸੁਨਤ ਕਮਾਵਤ ਨਿਹਾਲ ॥੨॥ इसको गाने, सुनने एवं उसके अनुरूप आचरण करने से मनुष्य प्रसन्न हो जाता है॥ २॥
ਚਰਣ ਕਮਲ ਸਿਉ ਲਾਗੋ ਮਾਨੁ ॥ मेरा मन तो हरि के चरण-कमल से ही लगा हुआ है।
ਸਤਿਗੁਰਿ ਤੂਠੈ ਕੀਨੋ ਦਾਨੁ ॥੩॥ मुझ पर अपनी प्रसन्नता द्वारा सतगुरु ने मुझे यह दान दिया है॥ ३॥
ਨਾਨਕ ਕਉ ਗੁਰਿ ਦੀਖਿਆ ਦੀਨ੍ਹ੍ਹ ॥ नानक को गुरु ने यह दीक्षा दी है कि
ਪ੍ਰਭ ਅਬਿਨਾਸੀ ਘਟਿ ਘਟਿ ਚੀਨ੍ਹ੍ਹ ॥੪॥੨੩॥ उस अविनाशी प्रभु को प्रत्येक हृदय में देख॥ ४॥ २३॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਅਨਦ ਬਿਨੋਦ ਭਰੇਪੁਰਿ ਧਾਰਿਆ ॥ संसार के समस्त लीला सर्वव्यापक प्रभु ने रचे हुए हैं।
ਅਪੁਨਾ ਕਾਰਜੁ ਆਪਿ ਸਵਾਰਿਆ ॥੧॥ वह अपना कार्य स्वयं ही संवारता है॥ १॥
ਪੂਰ ਸਮਗ੍ਰੀ ਪੂਰੇ ਠਾਕੁਰ ਕੀ ॥ पूर्ण ठाकुर की यह सृष्टि रूपी सामग्री भी पूर्ण है।
ਭਰਿਪੁਰਿ ਧਾਰਿ ਰਹੀ ਸੋਭ ਜਾ ਕੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ उसकी शोभा दुनिया में भरपूर होकर हर जगह फैली हुई है॥ १॥ रहाउ॥
ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਜਾ ਕੀ ਨਿਰਮਲ ਸੋਇ ॥ जिस परमात्मा की शोभा बड़ी निर्मल है, उसका नाम जीवों के लिए खजाना है।
ਆਪੇ ਕਰਤਾ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥੨॥ प्रभु स्वयं ही दुनिया के रचयिता हैं, दूसरा कोई भी नहीं है॥ २॥
ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਭਿ ਤਾ ਕੈ ਹਾਥਿ ॥ सृष्टि के समस्त जीव-जन्तु उसके वश में हैं।
ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਪ੍ਰਭੁ ਸਭ ਕੈ ਸਾਥਿ ॥੩॥ प्रभु सर्वव्यापी है और प्रत्येक जीव-जन्तु के साथ है॥ ३॥


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