Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 349

Page 349

ਕੀਮਤਿ ਪਾਇ ਨ ਕਹਿਆ ਜਾਇ ॥ कीमति पाइ न कहिआ जाइ ॥ वास्तव में उस सर्गुण स्वरूप परमात्मा की न तो कोई कीमत आंक सकता है और न ही उसका कोई अंत कह सकता है, क्योंकि वह अनन्त व असीम है।
ਕਹਣੈ ਵਾਲੇ ਤੇਰੇ ਰਹੇ ਸਮਾਇ ॥੧॥ कहणै वाले तेरे रहे समाइ ॥१॥ जिन्होंने आपकी महिमा का अंत पाया है अर्थात् आपके सच्चिदानन्द स्वरूप को जाना है वे स्वयं को खोकर आप में ही विलीन हो जाते हैं।॥ १॥
ਵਡੇ ਮੇਰੇ ਸਾਹਿਬਾ ਗਹਿਰ ਗੰਭੀਰਾ ਗੁਣੀ ਗਹੀਰਾ ॥ वडे मेरे साहिबा गहिर ग्मभीरा गुणी गहीरा ॥ हे मेरे अकालपुरुष ! आप सर्वोच्च हो, स्वभाव में स्थिर व गुणों के निधान हो।
ਕੋਈ ਨ ਜਾਣੈ ਤੇਰਾ ਕੇਤਾ ਕੇਵਡੁ ਚੀਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ कोई न जाणै तेरा केता केवडु चीरा ॥१॥ रहाउ ॥ आपका कितना विस्तार है, इस तथ्य का ज्ञान किसी को भी नहीं है॥ १॥ रहाउ ॥
ਸਭਿ ਸੁਰਤੀ ਮਿਲਿ ਸੁਰਤਿ ਕਮਾਈ ॥ सभि सुरती मिलि सुरति कमाई ॥ समस्त ध्यान-मग्न होने वाले व्यक्तियों ने मिलकर अपनी वृति लगाई।
ਸਭ ਕੀਮਤਿ ਮਿਲਿ ਕੀਮਤਿ ਪਾਈ ॥ सभ कीमति मिलि कीमति पाई ॥ समस्त विद्वानों ने मिलकर आपका अन्त जानने की कोशिश की।
ਗਿਆਨੀ ਧਿਆਨੀ ਗੁਰ ਗੁਰ ਹਾਈ ॥ गिआनी धिआनी गुर गुर हाई ॥ शास्त्रवेता, प्राणायामी, गुरु व गुरुओं के भी गुरु
ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਈ ਤੇਰੀ ਤਿਲੁ ਵਡਿਆਈ ॥੨॥ कहणु न जाई तेरी तिलु वडिआई ॥२॥ आपकी महिमा का तिनका मात्र भी व्याख्यान नहीं कर सकते॥ २॥
ਸਭਿ ਸਤ ਸਭਿ ਤਪ ਸਭਿ ਚੰਗਿਆਈਆ ॥ सभि सत सभि तप सभि चंगिआईआ ॥ सभी शुभ-गुण, सभी तप और सभी शुभ कर्म;"
ਸਿਧਾ ਪੁਰਖਾ ਕੀਆ ਵਡਿਆਈਆਂ ॥ सिधा पुरखा कीआ वडिआईआं ॥ सिद्ध-पुरुषों और कुशल प्राणियों की सारी महानताएँ,;
ਤੁਧੁ ਵਿਣੁ ਸਿਧੀ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਈਆ ॥ तुधु विणु सिधी किनै न पाईआ ॥ आपकीनकृपा के बिना पूर्वोक्त गुणों की जो सिद्धियाँ हैं वे किसी ने भी प्राप्त नहीं की।
ਕਰਮਿ ਮਿਲੈ ਨਾਹੀ ਠਾਕਿ ਰਹਾਈਆ ॥੩॥ करमि मिलै नाही ठाकि रहाईआ ॥३॥ यदि परमेश्वर की कृपा से ये शुभ-गुण प्राप्त हो जाएँ तो फिर किसी के रोके रुक नहीं सकते ॥ | ३॥
ਆਖਣ ਵਾਲਾ ਕਿਆ ਬੇਚਾਰਾ ॥ आखण वाला किआ बेचारा ॥ यदि कोई कहे किं हे अकालपुरुष ! मैं आपकी महिमा कथन कर सकता हूँ तो वह बेचारा क्या कह सकता है।
ਸਿਫਤੀ ਭਰੇ ਤੇਰੇ ਭੰਡਾਰਾ ॥ सिफती भरे तेरे भंडारा ॥ क्योंकि हे परमेश्वर ! आपकी स्तुति के भण्डार तो वेदों, ग्रंथों व तेरे भक्तों के हृदय में भरे पड़े हैं।
ਜਿਸੁ ਤੂੰ ਦੇਹਿ ਤਿਸੈ ਕਿਆ ਚਾਰਾ ॥ जिसु तूं देहि तिसै किआ चारा ॥ जिन को आप अपनी स्तुति करने की बुद्धि प्रदान करते हो, उनके साथ किसी का क्या जोर चल सकता है।
ਨਾਨਕ ਸਚੁ ਸਵਾਰਣਹਾਰਾ ॥੪॥੧॥ नानक सचु सवारणहारा ॥४॥१॥ गुरु नानक जी कहते हैं कि वह सत्यस्वरूप परमात्मा ही सबको शोभायमान करने वाले हैं॥ ४ ॥ १॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥ आसा महला १ ॥ राग आसा, प्रथम गुरु : १ ॥
ਆਖਾ ਜੀਵਾ ਵਿਸਰੈ ਮਰਿ ਜਾਉ ॥ आखा जीवा विसरै मरि जाउ ॥ जब मुझे यह नाम विस्मृत हो जाता है तो मैं स्वयं को मृत समझता हूँ ; अर्थात् मैं प्रभु के नाम में ही-सुख अनुभव करता हूँ, वरन् मैं दुःखी होता हूँ।
ਆਖਣਿ ਅਉਖਾ ਸਾਚਾ ਨਾਉ ॥ आखणि अउखा साचा नाउ ॥ किंतु यह सत्य नाम कथन करना बहुत कठिन है।
ਸਾਚੇ ਨਾਮ ਕੀ ਲਾਗੈ ਭੂਖ ॥ साचे नाम की लागै भूख ॥ यदि प्रभु के सत्य नाम की (भूख) चाहत हो तो
ਤਿਤੁ ਭੂਖੈ ਖਾਇ ਚਲੀਅਹਿ ਦੂਖ ॥੧॥ तितु भूखै खाइ चलीअहि दूख ॥१॥ वह चाहत ही समस्त दुःखों को नष्ट कर देती हैl ॥१॥
ਸੋ ਕਿਉ ਵਿਸਰੈ ਮੇਰੀ ਮਾਇ ॥ सो किउ विसरै मेरी माइ ॥ सो हे माता जी ! ऐसा नाम फिर मुझे विस्मृत क्यों हो।
ਸਾਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਸਾਚੈ ਨਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ साचा साहिबु साचै नाइ ॥१॥ रहाउ ॥ वह स्वामी सत्य है और उसका नाम भी सत्य है ॥१॥ रहाउ ॥
ਸਾਚੇ ਨਾਮ ਕੀ ਤਿਲੁ ਵਡਿਆਈ ॥ साचे नाम की तिलु वडिआई ॥ परमात्मा के सत्य नाम की तिनका मात्र महिमाः
ਆਖਿ ਥਕੇ ਕੀਮਤਿ ਨਹੀ ਪਾਈ ॥ आखि थके कीमति नही पाई ॥ "(व्यासादि मुनि) कह कर थक गए हैं, किंतु वे उसके महत्व को नहीं जान पाए हैं।
ਜੇ ਸਭਿ ਮਿਲਿ ਕੈ ਆਖਣ ਪਾਹਿ ॥ जे सभि मिलि कै आखण पाहि ॥ यदि सृष्टि के समस्त जीव मिलकर परमेश्वर की स्तुति करने लगें तो
ਵਡਾ ਨ ਹੋਵੈ ਘਾਟਿ ਨ ਜਾਇ ॥੨॥ वडा न होवै घाटि न जाइ ॥२॥ वह स्तुति करने से न बड़ा होता है और न निन्दा करने से घटता है॥ २ ॥
ਨਾ ਓਹੁ ਮਰੈ ਨ ਹੋਵੈ ਸੋਗੁ ॥ ना ओहु मरै न होवै सोगु ॥ वह निरंकार न तो कभी मरता है और न ही उसे कभी शोक होता है।
ਦੇਂਦਾ ਰਹੈ ਨ ਚੂਕੈ ਭੋਗੁ ॥ देंदा रहै न चूकै भोगु ॥ वह निरंतर देते रहते हैं, फिर भी उसके भंडार कभी खाली नहीं होते।
ਗੁਣੁ ਏਹੋ ਹੋਰੁ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ॥ गुणु एहो होरु नाही कोइ ॥ दानेश्वर परमात्मा जैसा गुण केवल उसी में ही है, अन्य किसी में नहीं।
ਨਾ ਕੋ ਹੋਆ ਨਾ ਕੋ ਹੋਇ ॥੩॥ ना को होआ ना को होइ ॥३॥ ऐसे परमेश्वर जैसा न पहले कभी हुआ है और न ही आगे कोई होगा ॥ ३॥
ਜੇਵਡੁ ਆਪਿ ਤੇਵਡ ਤੇਰੀ ਦਾਤਿ ॥ जेवडु आपि तेवड तेरी दाति ॥ हे प्रभु, जैसे आप महान हैं, वैसे ही आपके वरदान भी महान हैं।
ਜਿਨਿ ਦਿਨੁ ਕਰਿ ਕੈ ਕੀਤੀ ਰਾਤਿ ॥ जिनि दिनु करि कै कीती राति ॥ जिसने दिन बनाकर फिर रात की रचना की है।
ਖਸਮੁ ਵਿਸਾਰਹਿ ਤੇ ਕਮਜਾਤਿ ॥ खसमु विसारहि ते कमजाति ॥ ऐसे परमेश्वर को जो विस्मृत कर दे वह नीच है।
ਨਾਨਕ ਨਾਵੈ ਬਾਝੁ ਸਨਾਤਿ ॥੪॥੨॥ नानक नावै बाझु सनाति ॥४॥२॥ गुरु नानक जी कहते हैं कि परमात्मा के नाम-सिमरन के बिना मनुष्य संकीर्ण जाति का होता है।ll ४॥ २॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥ आसा महला १ ॥ राग आसा, प्रथम गुरु : १ ॥
ਜੇ ਦਰਿ ਮਾਂਗਤੁ ਕੂਕ ਕਰੇ ਮਹਲੀ ਖਸਮੁ ਸੁਣੇ ॥ जे दरि मांगतु कूक करे महली खसमु सुणे ॥ यदि कोई भिखारी प्रभु के द्वार पर पुकार करे तो महल का मालिक प्रभु उसकी पुकार को सुन लेता है।
ਭਾਵੈ ਧੀਰਕ ਭਾਵੈ ਧਕੇ ਏਕ ਵਡਾਈ ਦੇਇ ॥੧॥ भावै धीरक भावै धके एक वडाई देइ ॥१॥ ईश्वर साधक की मांग पूरी करे या न करे, उसकी प्रार्थना को स्वीकार कर लेना ही साधक के लिए सबसे बड़ा सम्मान है। ॥ १॥
ਜਾਣਹੁ ਜੋਤਿ ਨ ਪੂਛਹੁ ਜਾਤੀ ਆਗੈ ਜਾਤਿ ਨ ਹੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जाणहु जोति न पूछहु जाती आगै जाति न हे ॥१॥ रहाउ ॥ प्रत्येक प्राणी में ईश्वर का दिव्य प्रकाश देखो, न कि उसकी जाति या सामाजिक स्थिति — क्योंकि प्रभु के दरबार में इनका कोई मूल्य नहीं है। ॥१॥ रहाउ॥
ਆਪਿ ਕਰਾਏ ਆਪਿ ਕਰੇਇ ॥ आपि कराए आपि करेइ ॥ ईश्वर स्वयं ही सबकुछ करते हैं और स्वयं ही जीवों से करवाते हैं।
ਆਪਿ ਉਲਾਮ੍ਹ੍ਹੇ ਚਿਤਿ ਧਰੇਇ ॥ आपि उलाम्हे चिति धरेइ ॥ वह स्वयं ही भक्तों की शिकायत की ओर ध्यान देते हैं।
ਜਾ ਤੂੰ ਕਰਣਹਾਰੁ ਕਰਤਾਰੁ ॥ जा तूं करणहारु करतारु ॥ हे कर्तार ! जब आप ही करने वाले हो तो
ਕਿਆ ਮੁਹਤਾਜੀ ਕਿਆ ਸੰਸਾਰੁ ॥੨॥ किआ मुहताजी किआ संसारु ॥२॥ मैं संसार का मोहताज क्यों बनूं और किसके लिए होऊँ ? ॥ २॥
ਆਪਿ ਉਪਾਏ ਆਪੇ ਦੇਇ ॥ आपि उपाए आपे देइ ॥ हे प्रभु ! आप ने स्वयं जीवों को पैदा किया है और स्वयं ही सबकुछ देते हो।
ਆਪੇ ਦੁਰਮਤਿ ਮਨਹਿ ਕਰੇਇ ॥ आपे दुरमति मनहि करेइ ॥ हे ठाकुर ! आप स्वयं ही दुर्मति को रोकते हो।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਵਸੈ ਮਨਿ ਆਇ ॥ गुर परसादि वसै मनि आइ ॥ जब गुरु के प्रसाद से प्रभु आकर मनुष्य के हृदय में बसेरा कर लेता है
ਦੁਖੁ ਅਨ੍ਹ੍ਹੇਰਾ ਵਿਚਹੁ ਜਾਇ ॥੩॥ दुखु अन्हेरा विचहु जाइ ॥३॥ तो उसका दुःख एवं अन्धेरा भीतर से दौड़ जाते हैं।॥ ३॥
ਸਾਚੁ ਪਿਆਰਾ ਆਪਿ ਕਰੇਇ ॥ साचु पिआरा आपि करेइ ॥ वह स्वयं ही भीतर सत्य के लिए प्रेम उत्पन्न करता है।
ਅਵਰੀ ਕਉ ਸਾਚੁ ਨ ਦੇਇ ॥ अवरी कउ साचु न देइ ॥ दूसरों (स्वेच्छाचारी) को वह सत्य प्रदान नहीं करता।
ਜੇ ਕਿਸੈ ਦੇਇ ਵਖਾਣੈ ਨਾਨਕੁ ਆਗੈ ਪੂਛ ਨ ਲੇਇ ॥੪॥੩॥ जे किसै देइ वखाणै नानकु आगै पूछ न लेइ ॥४॥३॥ हे नानक ! यदि ईश्वर किसी व्यक्ति को नाम का उपहार देते हैं , तो उससे बाद में कर्मों का हिसाब-किताब नहीं माँगते॥ ४ ॥ ३॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥ आसा महला १ ॥ राग आसा, प्रथम गुरु : १ ॥
ਤਾਲ ਮਦੀਰੇ ਘਟ ਕੇ ਘਾਟ ॥ ताल मदीरे घट के घाट ॥ मन के संकल्प ताल एवं धुंघरुओं की भाँति हैं और
ਦੋਲਕ ਦੁਨੀਆ ਵਾਜਹਿ ਵਾਜ ॥ दोलक दुनीआ वाजहि वाज ॥ उनसे दुनिया का मोह रूपी ढोल रस बज रहा है।
ਨਾਰਦੁ ਨਾਚੈ ਕਲਿ ਕਾ ਭਾਉ ॥ नारदु नाचै कलि का भाउ ॥ कलियुग के प्रभाव से मन रूपी नारद नृत्य कर रहे हैं।
ਜਤੀ ਸਤੀ ਕਹ ਰਾਖਹਿ ਪਾਉ ॥੧॥ जती सती कह राखहि पाउ ॥१॥ फिर ब्रह्मचारी एवं सत्यवादी मनुष्य अपने पैर कहाँ रखें ? ॥ १॥
ਨਾਨਕ ਨਾਮ ਵਿਟਹੁ ਕੁਰਬਾਣੁ ॥ नानक नाम विटहु कुरबाणु ॥ हे नानक ! मैं प्रभु के नाम पर बलिहारी जाता हूँ।
ਅੰਧੀ ਦੁਨੀਆ ਸਾਹਿਬੁ ਜਾਣੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ अंधी दुनीआ साहिबु जाणु ॥१॥ रहाउ ॥ यह दुनिया (मोह-माया में फँसने के कारण) अन्धी (ज्ञानहीन) बनी हुई है परन्तु प्रभु सबकुछ जानने वाले हैं॥ १॥ रहाउ॥
ਗੁਰੂ ਪਾਸਹੁ ਫਿਰਿ ਚੇਲਾ ਖਾਇ ॥ गुरू पासहु फिरि चेला खाइ ॥ देखो, कैसी विपरीत रीति चल पड़ी है कि शिष्य गुरु की सेवा करने के बजाय अपने भरण-पोषण के लिए गुरु पर निर्भर रहता है।
ਤਾਮਿ ਪਰੀਤਿ ਵਸੈ ਘਰਿ ਆਇ ॥ तामि परीति वसै घरि आइ ॥ कुछ लोग केवल अपनी जीविका चलाने के लिए शिष्य बनते हैं।


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