Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 307

Page 307

ਅੰਤਰਿ ਹਰਿ ਗੁਰੂ ਧਿਆਇਦਾ ਵਡੀ ਵਡਿਆਈ ॥ अंतरि हरि गुरू धिआइदा वडी वडिआई ॥ गुरु की महिमा महान है, चूंकेि वह अपने अन्तर्मन में भगवान् का ध्यान करते रहते हैं।
ਤੁਸਿ ਦਿਤੀ ਪੂਰੈ ਸਤਿਗੁਰੂ ਘਟੈ ਨਾਹੀ ਇਕੁ ਤਿਲੁ ਕਿਸੈ ਦੀ ਘਟਾਈ ॥ तुसि दिती पूरै सतिगुरू घटै नाही इकु तिलु किसै दी घटाई ॥ परमात्मा ने प्रसन्न होकर यह महिमा प्रदान की है, इसलिए किसी के कम करने पर तिल मात्र भी कम नहीं होती।
ਸਚੁ ਸਾਹਿਬੁ ਸਤਿਗੁਰੂ ਕੈ ਵਲਿ ਹੈ ਤਾਂ ਝਖਿ ਝਖਿ ਮਰੈ ਸਭ ਲੋੁਕਾਈ ॥ सचु साहिबु सतिगुरू कै वलि है तां झखि झखि मरै सभ लोकाई ॥ जब अविनाशी परमात्मा और सर्वशक्तिमान स्वामी सतगुरु के पक्ष में है तो सारी दुनिया मिलकर भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती।
ਨਿੰਦਕਾ ਕੇ ਮੁਹ ਕਾਲੇ ਕਰੇ ਹਰਿ ਕਰਤੈ ਆਪਿ ਵਧਾਈ ॥ निंदका के मुह काले करे हरि करतै आपि वधाई ॥ सतगुरु की महिमा कर्तार ने स्वयं बढ़ाई है और दोषियों के मुँह काले किए हैं।
ਜਿਉ ਜਿਉ ਨਿੰਦਕ ਨਿੰਦ ਕਰਹਿ ਤਿਉ ਤਿਉ ਨਿਤ ਨਿਤ ਚੜੈ ਸਵਾਈ ॥ जिउ जिउ निंदक निंद करहि तिउ तिउ नित नित चड़ै सवाई ॥ ज्यों-ज्यों निंदक मनुष्य सतगुरु की निंदा करते, त्यों-त्यों सतगुरु की महिमा बढ़ती रहती है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਆਰਾਧਿਆ ਤਿਨਿ ਪੈਰੀ ਆਣਿ ਸਭ ਪਾਈ ॥੧॥ जन नानक हरि आराधिआ तिनि पैरी आणि सभ पाई ॥१॥ हे नानक ! सतगुरु ने जिस ईश्वर का स्मरण किया है, उसने सारा संसार लाकर गुरु के चरणों में रख दिया है॥ १॥
ਮਃ ੪ ॥ मः ४ ॥ श्लोक, चौथे गुरु:४ ॥
ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਤੀ ਗਣਤ ਜਿ ਰਖੈ ਹਲਤੁ ਪਲਤੁ ਸਭੁ ਤਿਸ ਕਾ ਗਇਆ ॥ सतिगुर सेती गणत जि रखै हलतु पलतु सभु तिस का गइआ ॥ जो मनुष्य सतगुरु के साथ वैर-विरोध करता है, उसका लोक-परलोक समूचे ही व्यर्थ जाते हैं।
ਨਿਤ ਝਹੀਆ ਪਾਏ ਝਗੂ ਸੁਟੇ ਝਖਦਾ ਝਖਦਾ ਝੜਿ ਪਇਆ ॥ नित झहीआ पाए झगू सुटे झखदा झखदा झड़ि पइआ ॥ उसका वश नहीं चलता इसलिए वह सदा क्षुब्ध होता है और दांत पीसता है।
ਨਿਤ ਉਪਾਵ ਕਰੈ ਮਾਇਆ ਧਨ ਕਾਰਣਿ ਅਗਲਾ ਧਨੁ ਭੀ ਉਡਿ ਗਇਆ ॥ नित उपाव करै माइआ धन कारणि अगला धनु भी उडि गइआ ॥ धन एवं पदार्थ हेतु वह निरन्तर ही प्रयास करता है परन्तु उसका पहला पदार्थ भी समाप्त हो जाता है।
ਕਿਆ ਓਹੁ ਖਟੇ ਕਿਆ ਓਹੁ ਖਾਵੈ ਜਿਸੁ ਅੰਦਰਿ ਸਹਸਾ ਦੁਖੁ ਪਇਆ ॥ किआ ओहु खटे किआ ओहु खावै जिसु अंदरि सहसा दुखु पइआ ॥ वह क्या कमाएगा और क्या खाएगा, जिसके हृदय में दुःख चिन्ता की पीड़ा है!
ਨਿਰਵੈਰੈ ਨਾਲਿ ਜਿ ਵੈਰੁ ਰਚਾਏ ਸਭੁ ਪਾਪੁ ਜਗਤੈ ਕਾ ਤਿਨਿ ਸਿਰਿ ਲਇਆ ॥ निरवैरै नालि जि वैरु रचाए सभु पापु जगतै का तिनि सिरि लइआ ॥ जो निर्वैर से शत्रुता करता है, वह संसार के समस्त पाप अपने सिर पर ले लेता है।
ਓਸੁ ਅਗੈ ਪਿਛੈ ਢੋਈ ਨਾਹੀ ਜਿਸੁ ਅੰਦਰਿ ਨਿੰਦਾ ਮੁਹਿ ਅੰਬੁ ਪਇਆ ॥ ओसु अगै पिछै ढोई नाही जिसु अंदरि निंदा मुहि अंबु पइआ ॥ जिसके मुँह में मिठास हो किंतु उसका हृदय निन्दा करता हो , उसे लोक-परलोक में कोई सहारा नहीं देता।
ਜੇ ਸੁਇਨੇ ਨੋ ਓਹੁ ਹਥੁ ਪਾਏ ਤਾ ਖੇਹੂ ਸੇਤੀ ਰਲਿ ਗਇਆ ॥ जे सुइने नो ओहु हथु पाए ता खेहू सेती रलि गइआ ॥ ऐसा खोटा मनुष्य यदि सोने को हाथ डाले तो वह भी राख हो जाता है।
ਜੇ ਗੁਰ ਕੀ ਸਰਣੀ ਫਿਰਿ ਓਹੁ ਆਵੈ ਤਾ ਪਿਛਲੇ ਅਉਗਣ ਬਖਸਿ ਲਇਆ ॥ जे गुर की सरणी फिरि ओहु आवै ता पिछले अउगण बखसि लइआ ॥ फिर भी यदि वह गुरु की शरण ले तो उसके पहले पाप क्षमा हो जाते हैं।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ਹਰਿ ਸਿਮਰਤ ਕਿਲਵਿਖ ਪਾਪ ਗਇਆ ॥੨॥ जन नानक अनदिनु नामु धिआइआ हरि सिमरत किलविख पाप गइआ ॥२॥ हे नानक ! जो मनुष्य (गुरु की शरण लेकर) प्रतिदिन नाम-स्मरण करता है, ईश्वर का सिमरन करते हुए उसके अपराध मिट जाते हैं।॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी॥
ਤੂਹੈ ਸਚਾ ਸਚੁ ਤੂ ਸਭ ਦੂ ਉਪਰਿ ਤੂ ਦੀਬਾਣੁ ॥ तूहै सचा सचु तू सभ दू उपरि तू दीबाणु ॥ हे सत्यस्वरूप परमेश्वर ! आप सदैव सत्य है। आपकी कचहरी सर्वोपरि है।
ਜੋ ਤੁਧੁ ਸਚੁ ਧਿਆਇਦੇ ਸਚੁ ਸੇਵਨਿ ਸਚੇ ਤੇਰਾ ਮਾਣੁ ॥ जो तुधु सचु धिआइदे सचु सेवनि सचे तेरा माणु ॥ हे सत्य के पुंज ! जो तेरा ध्यान करते हैं, आपकी सेवा भक्ति करते हैं, उन्हें आपका ही मान है।
ਓਨਾ ਅੰਦਰਿ ਸਚੁ ਮੁਖ ਉਜਲੇ ਸਚੁ ਬੋਲਨਿ ਸਚੇ ਤੇਰਾ ਤਾਣੁ ॥ ओना अंदरि सचु मुख उजले सचु बोलनि सचे तेरा ताणु ॥ हे सत्य प्रभु! उनके हृदय में सत्य है इसलिए उनके चेहरे उज्ज्वल रहते हैं, वे सत्य बोलते हैं और उन्हें आपका ही आश्रय है।
ਸੇ ਭਗਤ ਜਿਨੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਲਾਹਿਆ ਸਚੁ ਸਬਦੁ ਨੀਸਾਣੁ ॥ से भगत जिनी गुरमुखि सालाहिआ सचु सबदु नीसाणु ॥ जो व्यक्ति गुरु के माध्यम से भगवान् की सराहना करते हैं, वही सच्चे भक्त हैं और उनके पास सच्चा शब्द रूपी चिन्ह है।
ਸਚੁ ਜਿ ਸਚੇ ਸੇਵਦੇ ਤਿਨ ਵਾਰੀ ਸਦ ਕੁਰਬਾਣੁ ॥੧੩॥ सचु जि सचे सेवदे तिन वारी सद कुरबाणु ॥१३॥ मैं उन पर न्यौछावर हूँ, बलिहारी हैं, जो सत्यस्वरूप ईश्वर की सेवा-भक्ति करते रहते हैं।॥ १३॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੪ ॥ सलोक मः ४ ॥ श्लोक, चौथे गुरुः द्वारा रचित ४॥
ਧੁਰਿ ਮਾਰੇ ਪੂਰੈ ਸਤਿਗੁਰੂ ਸੇਈ ਹੁਣਿ ਸਤਿਗੁਰਿ ਮਾਰੇ ॥ धुरि मारे पूरै सतिगुरू सेई हुणि सतिगुरि मारे ॥ जो आदि से ही पूर्ण सतगुरु द्वारा शापित हुए हैं, वे अब पुन: सतगुरु की ओर से तिरस्कृत हो गए हैं,
ਜੇ ਮੇਲਣ ਨੋ ਬਹੁਤੇਰਾ ਲੋਚੀਐ ਨ ਦੇਈ ਮਿਲਣ ਕਰਤਾਰੇ ॥ जे मेलण नो बहुतेरा लोचीऐ न देई मिलण करतारे ॥ यदि उन्हें गुरु के साथ मिलाप की तीव्र लालसा भी हो तो भी परमात्मा ऐसे शापितों को मिलने नहीं देते।
ਸਤਸੰਗਤਿ ਢੋਈ ਨਾ ਲਹਨਿ ਵਿਚਿ ਸੰਗਤਿ ਗੁਰਿ ਵੀਚਾਰੇ ॥ सतसंगति ढोई ना लहनि विचि संगति गुरि वीचारे ॥ उन्हें सत्संगति में भी आश्रय नहीं मिलता। गुरु ने भी संगति में यही विचार किया है।
ਕੋਈ ਜਾਇ ਮਿਲੈ ਹੁਣਿ ਓਨਾ ਨੋ ਤਿਸੁ ਮਾਰੇ ਜਮੁ ਜੰਦਾਰੇ ॥ कोई जाइ मिलै हुणि ओना नो तिसु मारे जमु जंदारे ॥ यदि कोई भी अब जाकर उनको मिलता है, उसे मृत्यु का निर्दयी यमदूत प्रताड़ित करता है।
ਗੁਰਿ ਬਾਬੈ ਫਿਟਕੇ ਸੇ ਫਿਟੇ ਗੁਰਿ ਅੰਗਦਿ ਕੀਤੇ ਕੂੜਿਆਰੇ ॥ गुरि बाबै फिटके से फिटे गुरि अंगदि कीते कूड़िआरे ॥ जिन लोगों को गुरु नानक देव जी ने भी धिक्कार दिया, उन तिरस्कृत व्यक्तियों को गुरु अंगद देव जी ने भी झूठा घोषित किया।
ਗੁਰਿ ਤੀਜੀ ਪੀੜੀ ਵੀਚਾਰਿਆ ਕਿਆ ਹਥਿ ਏਨਾ ਵੇਚਾਰੇ ॥ गुरि तीजी पीड़ी वीचारिआ किआ हथि एना वेचारे ॥ उस समय तीसरी पीढ़ी वाले श्री गुरु अमरदास जी ने विचार किया कि इन निर्धन लोगों के वश में क्या है?
ਗੁਰੁ ਚਉਥੀ ਪੀੜੀ ਟਿਕਿਆ ਤਿਨਿ ਨਿੰਦਕ ਦੁਸਟ ਸਭਿ ਤਾਰੇ ॥ गुरु चउथी पीड़ी टिकिआ तिनि निंदक दुसट सभि तारे ॥ जिन सतगुरु ने चौथे स्थान पर गुरु नियुक्त किया था, उन्होंने सभी निंदक एवं दुष्टों का कल्याण कर दिया।
ਕੋਈ ਪੁਤੁ ਸਿਖੁ ਸੇਵਾ ਕਰੇ ਸਤਿਗੁਰੂ ਕੀ ਤਿਸੁ ਕਾਰਜ ਸਭਿ ਸਵਾਰੇ ॥ कोई पुतु सिखु सेवा करे सतिगुरू की तिसु कारज सभि सवारे ॥ कोई पुत्र अथवा सिक्ख जो कोई भी सतगुरु की सेवा करता है, उसके सारे काम गुरु जी संवार देते हैं।
ਜੋ ਇਛੈ ਸੋ ਫਲੁ ਪਾਇਸੀ ਪੁਤੁ ਧਨੁ ਲਖਮੀ ਖੜਿ ਮੇਲੇ ਹਰਿ ਨਿਸਤਾਰੇ ॥ जो इछै सो फलु पाइसी पुतु धनु लखमी खड़ि मेले हरि निसतारे ॥ पुत्र, धन, लक्ष्मी जिस भी वस्तु की वह इच्छा करे, वही फल उसे मिलता है। सतगुरु उसे ले जाकर ईश्वर से मिलवाते हैं और ईश्वर उसे पार कर देते हैं।
ਸਭਿ ਨਿਧਾਨ ਸਤਿਗੁਰੂ ਵਿਚਿ ਜਿਸੁ ਅੰਦਰਿ ਹਰਿ ਉਰ ਧਾਰੇ ॥ सभि निधान सतिगुरू विचि जिसु अंदरि हरि उर धारे ॥ जिस सतगुरु के हृदय में भगवान् का निवास है, उसमें सारे खजाने विद्यमान हैं।
ਸੋ ਪਾਏ ਪੂਰਾ ਸਤਿਗੁਰੂ ਜਿਸੁ ਲਿਖਿਆ ਲਿਖਤੁ ਲਿਲਾਰੇ ॥ सो पाए पूरा सतिगुरू जिसु लिखिआ लिखतु लिलारे ॥ केवल वही मनुष्य सतगुरु को पाता है जिसके माथे पर पूर्वकृत शुभ कर्मों के संस्कार रूप लेख लिखे हुए हैं।
ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਮਾਗੈ ਧੂੜਿ ਤਿਨ ਜੋ ਗੁਰਸਿਖ ਮਿਤ ਪਿਆਰੇ ॥੧॥ जनु नानकु मागै धूड़ि तिन जो गुरसिख मित पिआरे ॥१॥ नानक उनकी चरण-धूलि मांगते हैं, जो गुरसिक्ख मित्र प्यारे हैं।॥ १॥


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