Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 279

Page 279

ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਨ ਆਵੈ ਮਾਇਆ ਪਾਛੈ ਪਾਵੈ ॥ धन-दौलत की खोज में उसकी तृप्ति नहीं होती।
ਅਨਿਕ ਭੋਗ ਬਿਖਿਆ ਕੇ ਕਰੈ ॥ मनुष्य अधिकतर विषय-विकारों के भोग में लगा रहता है,
ਨਹ ਤ੍ਰਿਪਤਾਵੈ ਖਪਿ ਖਪਿ ਮਰੈ ॥ परन्तु वह तृप्त नहीं होता और उसकी अभिलाषा करता हुआ मर मिटता है।
ਬਿਨਾ ਸੰਤੋਖ ਨਹੀ ਕੋਊ ਰਾਜੈ ॥ संतोष के बिना किसी को तृप्ति नहीं होती।
ਸੁਪਨ ਮਨੋਰਥ ਬ੍ਰਿਥੇ ਸਭ ਕਾਜੈ ॥ उसके सब कार्य स्वप्न के मनोरथ की भाँति व्यर्थ हैं।
ਨਾਮ ਰੰਗਿ ਸਰਬ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ॥ भगवान् के नाम रंग द्वारा सर्व सुख प्राप्त हो जाते हैं।
ਬਡਭਾਗੀ ਕਿਸੈ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ॥ किसी भाग्यशाली पुरुष को ही नाम की प्राप्ति होती है।
ਕਰਨ ਕਰਾਵਨ ਆਪੇ ਆਪਿ ॥ प्रभु स्वयं सब कुछ करने तथा जीवों से कराने में समर्थ है।
ਸਦਾ ਸਦਾ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਜਾਪਿ ॥੫॥ हे नानक ! हरि के नाम का जाप सदैव करो ॥५॥
ਕਰਨ ਕਰਾਵਨ ਕਰਨੈਹਾਰੁ ॥ केवल परमात्मा ही करने एवं कराने वाला है।
ਇਸ ਕੈ ਹਾਥਿ ਕਹਾ ਬੀਚਾਰੁ ॥ विचार कर देख लो, प्राणी के वश में कुछ नहीं।
ਜੈਸੀ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਕਰੇ ਤੈਸਾ ਹੋਇ ॥ जैसी दृष्टि परमात्मा धारण करता है, मनुष्य वैसा ही हो जाता है।
ਆਪੇ ਆਪਿ ਆਪਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਇ ॥ वह प्रभु स्वयं ही सब कुछ है।
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕੀਨੋ ਸੁ ਅਪਨੈ ਰੰਗਿ ॥ जो कुछ उसने किया है, वह उसकी इच्छा के अनुकूल है।
ਸਭ ਤੇ ਦੂਰਿ ਸਭਹੂ ਕੈ ਸੰਗਿ ॥ वह सबसे दूर है, फिर भी सबके साथ है।
ਬੂਝੈ ਦੇਖੈ ਕਰੈ ਬਿਬੇਕ ॥ वह समझता, देखता और निर्णय करता है।
ਆਪਹਿ ਏਕ ਆਪਹਿ ਅਨੇਕ ॥ परमात्मा स्वयं ही एक है और स्वयं ही अनेक रूप है।
ਮਰੈ ਨ ਬਿਨਸੈ ਆਵੈ ਨ ਜਾਇ ॥ परमात्मा न ही मरता है और न ही नाश होता है, वह न ही आता है और न ही जाता है।
ਨਾਨਕ ਸਦ ਹੀ ਰਹਿਆ ਸਮਾਇ ॥੬॥ हे नानक ! परमात्मा सदा सब में समाया हुआ है ॥६॥
ਆਪਿ ਉਪਦੇਸੈ ਸਮਝੈ ਆਪਿ ॥ वह स्वयं ही उपदेश देता है और स्वयं ही समझता है।
ਆਪੇ ਰਚਿਆ ਸਭ ਕੈ ਸਾਥਿ ॥ परमात्मा स्वयं ही सबके साथ मिला हुआ है।
ਆਪਿ ਕੀਨੋ ਆਪਨ ਬਿਸਥਾਰੁ ॥ अपना विस्तार उसने स्वयं ही किया है।
ਸਭੁ ਕਛੁ ਉਸ ਕਾ ਓਹੁ ਕਰਨੈਹਾਰੁ ॥ प्रत्येक वस्तु उसकी है, वह सृजनहार है।
ਉਸ ਤੇ ਭਿੰਨ ਕਹਹੁ ਕਿਛੁ ਹੋਇ ॥ बताओ, उससे अलग कुछ हो सकता है?
ਥਾਨ ਥਨੰਤਰਿ ਏਕੈ ਸੋਇ ॥ एक ईश्वर स्थानों एवं उनकी सीमाओं पर सर्वत्र उपस्थित है।
ਅਪੁਨੇ ਚਲਿਤ ਆਪਿ ਕਰਣੈਹਾਰ ॥ अपनी लीलाओं को वह स्वयं ही करने वाला है।
ਕਉਤਕ ਕਰੈ ਰੰਗ ਆਪਾਰ ॥ वह कौतुक रचता है और उसके रंग अनन्त हैं।
ਮਨ ਮਹਿ ਆਪਿ ਮਨ ਅਪੁਨੇ ਮਾਹਿ ॥ "(जीवों के) मन में स्वयं वास कर रहा है, (जीवों को) अपने मन में स्थिर किए बैठा है।
ਨਾਨਕ ਕੀਮਤਿ ਕਹਨੁ ਨ ਜਾਇ ॥੭॥ हे नानक ! उस (परमात्मा) का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता ॥ ७॥
ਸਤਿ ਸਤਿ ਸਤਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸੁਆਮੀ ॥ जगत् का स्वामी परमात्मा सदैव सत्य है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਕਿਨੈ ਵਖਿਆਨੀ ॥ यह बात गुरु की कृपा से किसी दुर्लभ व्यक्ति ने ही वर्णित की है।
ਸਚੁ ਸਚੁ ਸਚੁ ਸਭੁ ਕੀਨਾ ॥ परमात्मा जिसने सबकी रचना की है, वह भी सत्य है।
ਕੋਟਿ ਮਧੇ ਕਿਨੈ ਬਿਰਲੈ ਚੀਨਾ ॥ करोड़ों में कोई दुर्लभ व्यक्ति ही उसको जानता है।
ਭਲਾ ਭਲਾ ਭਲਾ ਤੇਰਾ ਰੂਪ ॥ हे प्रभु ! तेरा रूप कितना भला-सुन्दर है।
ਅਤਿ ਸੁੰਦਰ ਅਪਾਰ ਅਨੂਪ ॥ हे ईश्वर ! तुम अत्यंत सुन्दर, अपार एवं अनूप हो।
ਨਿਰਮਲ ਨਿਰਮਲ ਨਿਰਮਲ ਤੇਰੀ ਬਾਣੀ ॥ हे परमात्मा ! तेरी वाणी अति पवित्र, निर्मल एवं मधुर है।
ਘਟਿ ਘਟਿ ਸੁਨੀ ਸ੍ਰਵਨ ਬਖ੍ਯ੍ਯਾਣੀ ॥ प्रत्येक व्यक्ति इसको कानों से सुनता एवं व्याख्या करता है।
ਪਵਿਤ੍ਰ ਪਵਿਤ੍ਰ ਪਵਿਤ੍ਰ ਪੁਨੀਤ ॥ वह पवित्र पावन हो जाता है
ਨਾਮੁ ਜਪੈ ਨਾਨਕ ਮਨਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥੮॥੧੨॥ हे नानक ! जो व्यक्ति अपने मन में प्रेम से भगवान् के नाम का जाप करता है। ॥ ८ ॥ १२ ॥
ਸਲੋਕੁ ॥ शलोक॥
ਸੰਤ ਸਰਨਿ ਜੋ ਜਨੁ ਪਰੈ ਸੋ ਜਨੁ ਉਧਰਨਹਾਰ ॥ जो व्यक्ति संतों की शरण में आता है, उस व्यक्ति का उद्धार हो जाता है।
ਸੰਤ ਕੀ ਨਿੰਦਾ ਨਾਨਕਾ ਬਹੁਰਿ ਬਹੁਰਿ ਅਵਤਾਰ ॥੧॥ हे नानक ! संतों की निन्दा करने से प्राणी पुनः पुनः जन्म लेता रहता है॥ १॥
ਅਸਟਪਦੀ ॥ अष्टपदी॥
ਸੰਤ ਕੈ ਦੂਖਨਿ ਆਰਜਾ ਘਟੈ ॥ संत को दु:खी करने से मनुष्य की आयु कम हो जाती है।
ਸੰਤ ਕੈ ਦੂਖਨਿ ਜਮ ਤੇ ਨਹੀ ਛੁਟੈ ॥ संत को दुःखी करने से मनुष्य यमदूतों से नहीं बच सकता।
ਸੰਤ ਕੈ ਦੂਖਨਿ ਸੁਖੁ ਸਭੁ ਜਾਇ ॥ संत को दु:खी करने से मनुष्य के समस्त सुख नाश हो जाते हैं।
ਸੰਤ ਕੈ ਦੂਖਨਿ ਨਰਕ ਮਹਿ ਪਾਇ ॥ संत को दु:खी करने से मनुष्य नरक में जाता है।
ਸੰਤ ਕੈ ਦੂਖਨਿ ਮਤਿ ਹੋਇ ਮਲੀਨ ॥ संत को दु:खी करने से बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है।
ਸੰਤ ਕੈ ਦੂਖਨਿ ਸੋਭਾ ਤੇ ਹੀਨ ॥ संत को दु:खी करने से मनुष्य की शोभा समाप्त हो जाती है।
ਸੰਤ ਕੇ ਹਤੇ ਕਉ ਰਖੈ ਨ ਕੋਇ ॥ संत से तिरस्कृत पुरुष की कोई भी रक्षा नहीं कर सकता।
ਸੰਤ ਕੈ ਦੂਖਨਿ ਥਾਨ ਭ੍ਰਸਟੁ ਹੋਇ ॥ संत को दु:खी करने से स्थान भ्रष्ट हो जाता है।
ਸੰਤ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਕ੍ਰਿਪਾ ਜੇ ਕਰੈ ॥ यदि कृपा के घर संत स्वयं कृपा करे तो
ਨਾਨਕ ਸੰਤਸੰਗਿ ਨਿੰਦਕੁ ਭੀ ਤਰੈ ॥੧॥ हे नानक ! सत्संगति में निंदक भी (भवसागर से) पार हो जाता है॥ १॥
ਸੰਤ ਕੇ ਦੂਖਨ ਤੇ ਮੁਖੁ ਭਵੈ ॥ संत को दु:खी करने से मुख अष्ट हो जाता है।
ਸੰਤਨ ਕੈ ਦੂਖਨਿ ਕਾਗ ਜਿਉ ਲਵੈ ॥ संत को दु:खी करने वाला पुरुष कौए के समान निन्दा करता रहता है।
ਸੰਤਨ ਕੈ ਦੂਖਨਿ ਸਰਪ ਜੋਨਿ ਪਾਇ ॥ संत को दु:खी करने से मनुष्य सर्पयोनि में पड़ता है।
ਸੰਤ ਕੈ ਦੂਖਨਿ ਤ੍ਰਿਗਦ ਜੋਨਿ ਕਿਰਮਾਇ ॥ संत को दु:खी करने वाला मनुष्य कीड़े इत्यादि की त्रिगद योनि में भटकता है।
ਸੰਤਨ ਕੈ ਦੂਖਨਿ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਮਹਿ ਜਲੈ ॥ संत को दु:खी करने वाला मनुष्य तृष्णा की अग्नि में जलता रहता है।
ਸੰਤ ਕੈ ਦੂਖਨਿ ਸਭੁ ਕੋ ਛਲੈ ॥ संत को दु:खी करने वाला सबके साथ छल-कपट करता रहता है।
ਸੰਤ ਕੈ ਦੂਖਨਿ ਤੇਜੁ ਸਭੁ ਜਾਇ ॥ संत को दु:खी करने से मनुष्य का सारा तेज-प्रताप नाश हो जाता है।
ਸੰਤ ਕੈ ਦੂਖਨਿ ਨੀਚੁ ਨੀਚਾਇ ॥ संत को दु:खी करने से मनुष्य नीचों से भी नीच महानीच हो जाता है।
ਸੰਤ ਦੋਖੀ ਕਾ ਥਾਉ ਕੋ ਨਾਹਿ ॥ संत के दोषी का कोई सुख का सहारा नहीं रहता।
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