Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 216

Page 216

ਭਰਮ ਮੋਹ ਕਛੁ ਸੂਝਸਿ ਨਾਹੀ ਇਹ ਪੈਖਰ ਪਏ ਪੈਰਾ ॥੨॥ भ्रम एवं मोहवश उसको कुछ भी दिखाई नहीं देता। मोह-माया की जंजीर उसके पैरों को पड़ी हुई है॥ २॥
ਤਬ ਇਹੁ ਕਹਾ ਕਮਾਵਨ ਪਰਿਆ ਜਬ ਇਹੁ ਕਛੂ ਨ ਹੋਤਾ ॥ तब यह मनुष्य क्या कर्म करता था, जब इसका अस्तित्व ही नहीं था ?
ਜਬ ਏਕ ਨਿਰੰਜਨ ਨਿਰੰਕਾਰ ਪ੍ਰਭ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਆਪਹਿ ਕਰਤਾ ॥੩॥ जब निरंजन एवं निरंकार प्रभु स्वयं ही था, तब वह सब कुछ स्वयं ही करता था॥ ३॥
ਅਪਨੇ ਕਰਤਬ ਆਪੇ ਜਾਨੈ ਜਿਨਿ ਇਹੁ ਰਚਨੁ ਰਚਾਇਆ ॥ जिस परमात्मा ने इस सृष्टि की रचना की है, अपनी लीलाओं को वह स्वयं ही जानता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਕਰਣਹਾਰੁ ਹੈ ਆਪੇ ਸਤਿਗੁਰਿ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਇਆ ॥੪॥੫॥੧੬੩॥ हे नानक ! ईश्वर स्वयं ही सब कुछ करने वाला है। सतिगुरु ने मेरा भ्रम दूर कर दिया है। ४॥ ५॥ १६३॥
ਗਉੜੀ ਮਾਲਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गउड़ी माला महला ५ ॥
ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਅਵਰ ਕ੍ਰਿਆ ਬਿਰਥੇ ॥ भगवान के सिमरन के सिवाय अन्य सभी कार्य व्यर्थ हैं।
ਜਪ ਤਪ ਸੰਜਮ ਕਰਮ ਕਮਾਣੇ ਇਹਿ ਓਰੈ ਮੂਸੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ आडम्बरपूर्ण जाप, तपस्या, संयम एवं दूसरे संस्कारों का करना यह सब निकट ही छीन लिए जाते हैं। १॥ रहाउ ॥
ਬਰਤ ਨੇਮ ਸੰਜਮ ਮਹਿ ਰਹਤਾ ਤਿਨ ਕਾ ਆਢੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥ प्राणी व्रतों एवं संयमों के नियम में क्रियाशील रहता है परन्तु उन प्रयासों का फल उसे एक कौड़ी भी नहीं मिलता।
ਆਗੈ ਚਲਣੁ ਅਉਰੁ ਹੈ ਭਾਈ ਊਂਹਾ ਕਾਮਿ ਨ ਆਇਆ ॥੧॥ हे सज्जन ! प्राणी के साथ परलोक निभाने वाला पदार्थ दूसरा है, व्रत, नियम एवं संयम में से कोई भी परलोक में काम नहीं आता ॥ १॥
ਤੀਰਥਿ ਨਾਇ ਅਰੁ ਧਰਨੀ ਭ੍ਰਮਤਾ ਆਗੈ ਠਉਰ ਨ ਪਾਵੈ ॥ जो व्यक्ति तीर्थों पर स्नान करता है और धरती पर भ्रमण करता रहता है, उसको भी परलोक में कोई सुख का निवास नहीं मिलता।
ਊਹਾ ਕਾਮਿ ਨ ਆਵੈ ਇਹ ਬਿਧਿ ਓਹੁ ਲੋਗਨ ਹੀ ਪਤੀਆਵੈ ॥੨॥ वहाँ यह विधि काम नहीं आती। इससे वह केवल लोगों को ही धार्मिक होने की भ्रान्ति ही कराता है॥ २ ॥
ਚਤੁਰ ਬੇਦ ਮੁਖ ਬਚਨੀ ਉਚਰੈ ਆਗੈ ਮਹਲੁ ਨ ਪਾਈਐ ॥ चारों ही वेदों का मौखिक पाठ करने से मनुष्य आगे प्रभु के दरबार को प्राप्त नहीं होता।
ਬੂਝੈ ਨਾਹੀ ਏਕੁ ਸੁਧਾਖਰੁ ਓਹੁ ਸਗਲੀ ਝਾਖ ਝਖਾਈਐ ॥੩॥ जो मनुष्य प्रभु के पवित्र नाम का बोध नहीं करता, वह सब व्यर्थ की बकवास करता है॥ ३॥
ਨਾਨਕੁ ਕਹਤੋ ਇਹੁ ਬੀਚਾਰਾ ਜਿ ਕਮਾਵੈ ਸੁ ਪਾਰ ਗਰਾਮੀ ॥ नानक यह एक विचार की बात व्यक्त करता है, जो इस बात पर अनुसरण करता है, वह भवसागर से पार हो जाता है।
ਗੁਰੁ ਸੇਵਹੁ ਅਰੁ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵਹੁ ਤਿਆਗਹੁ ਮਨਹੁ ਗੁਮਾਨੀ ॥੪॥੬॥੧੬੪॥ वह बात यह है कि गुरु की सेवा करो और प्रभु के नाम का ध्यान करो तथा अपने मन का अहंत्व त्याग दो॥ ४॥ ६॥ १६४॥
ਗਉੜੀ ਮਾਲਾ ੫ ॥ गउड़ी माला महला ५ ॥
ਮਾਧਉ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਮੁਖਿ ਕਹੀਐ ॥ हे माधो ! हे हरि-परमेश्वर ! ऐसी कृपा करो कि हम अपने मुख से तेरा हरिनाम ही उच्चरित करते रहें।
ਹਮ ਤੇ ਕਛੂ ਨ ਹੋਵੈ ਸੁਆਮੀ ਜਿਉ ਰਾਖਹੁ ਤਿਉ ਰਹੀਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे जगत् के स्वामी ! हम से कुछ भी नहीं हो सकता। जैसे तू हम जीवों को रखता है, वैसे ही हम रहते हैं। १॥ रहाउ ॥
ਕਿਆ ਕਿਛੁ ਕਰੈ ਕਿ ਕਰਣੈਹਾਰਾ ਕਿਆ ਇਸੁ ਹਾਥਿ ਬਿਚਾਰੇ ॥ प्राणी बेचारा क्या कर सकता है, वह क्या करने योग्य है और इस विनीत प्राणी के वश में क्या है?
ਜਿਤੁ ਤੁਮ ਲਾਵਹੁ ਤਿਤ ਹੀ ਲਾਗਾ ਪੂਰਨ ਖਸਮ ਹਮਾਰੇ ॥੧॥ हे हमारे सर्वव्यापक मालिक ! प्राणी उस तरफ लगा रहता है, जिस तरफ तू उसे लगा देता है॥ १॥
ਕਰਹੁ ਕ੍ਰਿਪਾ ਸਰਬ ਕੇ ਦਾਤੇ ਏਕ ਰੂਪ ਲਿਵ ਲਾਵਹੁ ॥ हे समस्त जीवों के दाता! मुझ पर कृपा करो और केवल अपने स्वरूप के साथ ही मेरी वृति लगाओ।
ਨਾਨਕ ਕੀ ਬੇਨੰਤੀ ਹਰਿ ਪਹਿ ਅਪੁਨਾ ਨਾਮੁ ਜਪਾਵਹੁ ॥੨॥੭॥੧੬੫॥ मुझ नानक की भगवान के समक्ष यही विनती है कि हे प्रभु! मुझसे अपने नाम का जाप करवाओ ॥ २ ॥ ७ ॥ १६५ ॥
ਰਾਗੁ ਗਉੜੀ ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ रागु गउड़ी माझ महला ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਦਮੋਦਰ ਰਾਇਆ ਜੀਉ ॥ हे दीनदयाल ! हे पूज्य दमोदर !
ਕੋਟਿ ਜਨਾ ਕਰਿ ਸੇਵ ਲਗਾਇਆ ਜੀਉ ॥ तूने करोड़ों ही लोगों को अपनी भक्ति सेवा में लगाया हुआ है।
ਭਗਤ ਵਛਲੁ ਤੇਰਾ ਬਿਰਦੁ ਰਖਾਇਆ ਜੀਉ ॥ तेरा विरद् भक्तवत्सल है अर्थात तुम अपने भक्तों के प्रिय हो और यहीं विरद तूने धारण किया हुआ है।
ਪੂਰਨ ਸਭਨੀ ਜਾਈ ਜੀਉ ॥੧॥ हे प्रभु ! तू सर्वव्यापक है॥ १॥
ਕਿਉ ਪੇਖਾ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਕਵਣ ਸੁਕਰਣੀ ਜੀਉ ॥ मैं अपने प्रियतम को किस तरह देखेंगी ? वह कौन-सा शुभ कर्म है?
ਸੰਤਾ ਦਾਸੀ ਸੇਵਾ ਚਰਣੀ ਜੀਉ ॥ संतों की दासी बनकर उनके चरणों की सेवा कर।
ਇਹੁ ਜੀਉ ਵਤਾਈ ਬਲਿ ਬਲਿ ਜਾਈ ਜੀਉ ॥ में अपनी यह आत्मा उन पर न्योछावर करती हूँ और तन-मन से उन पर बलिहारी जाती हूँ।
ਤਿਸੁ ਨਿਵਿ ਨਿਵਿ ਲਾਗਉ ਪਾਈ ਜੀਉ ॥੨॥ मैं झुक-झुक कर उनके चरण स्पर्श करती हूँ॥ २॥
ਪੋਥੀ ਪੰਡਿਤ ਬੇਦ ਖੋਜੰਤਾ ਜੀਉ ॥ पण्डित ग्रंथों एवं वेदों का अध्ययन करता है।
ਹੋਇ ਬੈਰਾਗੀ ਤੀਰਥਿ ਨਾਵੰਤਾ ਜੀਉ ॥ कोई व्यक्ति त्यागी होकर तीर्थ-स्थान पर स्नान करता है।
ਗੀਤ ਨਾਦ ਕੀਰਤਨੁ ਗਾਵੰਤਾ ਜੀਉ ॥ कोई गीत एवं मधुर भजन का गायन करता है।
ਹਰਿ ਨਿਰਭਉ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈ ਜੀਉ ॥੩॥ किन्तु मैं निर्भय हरि के नाम का ही ध्यान करती हूँ॥ ३॥
ਭਏ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਸੁਆਮੀ ਮੇਰੇ ਜੀਉ ॥ मेरा प्रभु मुझ पर दयालु हो गया है।
ਪਤਿਤ ਪਵਿਤ ਲਗਿ ਗੁਰ ਕੇ ਪੈਰੇ ਜੀਉ ॥ गुरु जी के चरण स्पर्श करके मैं पतित से पवित्र हो गई हूँ।


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