Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 200

Page 200

ਅਹੰਬੁਧਿ ਮਨ ਪੂਰਿ ਥਿਧਾਈ ॥ जिस व्यक्ति का मन अहंकारी बुद्धि की चिकनाई से भरा हुआ होता है,
ਸਾਧ ਧੂਰਿ ਕਰਿ ਸੁਧ ਮੰਜਾਈ ॥੧॥ संतों के चरणों की धूलि से साफ करके शुद्ध हो जाता है॥ १॥
ਅਨਿਕ ਜਲਾ ਜੇ ਧੋਵੈ ਦੇਹੀ ॥ यदि शरीर को अनेक जलों से धोया जाए,
ਮੈਲੁ ਨ ਉਤਰੈ ਸੁਧੁ ਨ ਤੇਹੀ ॥੨॥ उससे इसकी मलिनता नहीं उतरती और यह शुद्ध नहीं होता।॥ २॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟਿਓ ਸਦਾ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ॥ मुझे सदैव ही कृपा का घर सतिगुरु मिल गया है,
ਹਰਿ ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਕਾਟਿਆ ਭਉ ਕਾਲ ॥੩॥ और भगवान का सिमरन करने से मैंने मृत्यु के भय को निवृत कर दिया है॥ ३॥
ਮੁਕਤਿ ਭੁਗਤਿ ਜੁਗਤਿ ਹਰਿ ਨਾਉ ॥ भगवान का नाम ही मुक्ति, भुक्ति एवं युक्ति है।
ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤਿ ਨਾਨਕ ਗੁਣ ਗਾਉ ॥੪॥੧੦੦॥੧੬੯॥ हे नानक ! प्रेमा-भक्ति से ईश्वर की गुणस्तुति करते रहो॥ ४॥ १००॥ १६६॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गउड़ी महला ५ ॥
ਜੀਵਨ ਪਦਵੀ ਹਰਿ ਕੇ ਦਾਸ ॥ ईश्वर के सेवक (नाम सिमरन करके) जीवन पदवी प्राप्त कर लेते हैं।
ਜਿਨ ਮਿਲਿਆ ਆਤਮ ਪਰਗਾਸੁ ॥੧॥ उन्हें मिलने से आत्मा को (ज्ञान का) प्रकाश मिलता है॥ १॥
ਹਰਿ ਕਾ ਸਿਮਰਨੁ ਸੁਨਿ ਮਨ ਕਾਨੀ ॥ हे नश्वर प्राणी ! अपने मन से ध्यानपूर्वक भगवान का सिमरन सुनो,
ਸੁਖੁ ਪਾਵਹਿ ਹਰਿ ਦੁਆਰ ਪਰਾਨੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ तुझे प्रभु के द्वार पर सुख प्राप्त होगा ॥ १॥ रहाउ॥
ਆਠ ਪਹਰ ਧਿਆਈਐ ਗੋਪਾਲੁ ॥ हे नानक ! हमें आठ प्रहर भगवान का ध्यान करना चाहिए,
ਨਾਨਕ ਦਰਸਨੁ ਦੇਖਿ ਨਿਹਾਲੁ ॥੨॥੧੦੧॥੧੭੦॥ जिसके फलस्वरूप भगवान के दर्शन करने से मनुष्य का मन कृतार्थ हो जाता है ॥२॥१०१॥ १७०॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गउड़ी महला ५ ॥
ਸਾਂਤਿ ਭਈ ਗੁਰ ਗੋਬਿਦਿ ਪਾਈ ॥ गोविन्द गुरु ने जिस व्यक्ति को नाम की देन प्रदान की है, उसे शांति प्राप्त हो गई है।
ਤਾਪ ਪਾਪ ਬਿਨਸੇ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे मेरे भाई ! उस व्यक्ति की जलन एवं पाप नष्ट हो गए हैं॥ १॥ रहाउ॥
ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਨਿਤ ਰਸਨ ਬਖਾਨ ॥ अपनी जिव्हा से नित्य ही राम के नाम का बखान करते रहो ।
ਬਿਨਸੇ ਰੋਗ ਭਏ ਕਲਿਆਨ ॥੧॥ तेरे समस्त रोग दूर हो जाएँगे और तुझे मुक्ति प्राप्त होगी॥ १॥
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਗੁਣ ਅਗਮ ਬੀਚਾਰ ॥ अगम्य पारब्रह्म के गुणों का चिन्तन करते रहो।
ਸਾਧੂ ਸੰਗਮਿ ਹੈ ਨਿਸਤਾਰ ॥੨॥ संतों की संगति में रहने से कल्याण की प्राप्ति होती है॥ २॥
ਨਿਰਮਲ ਗੁਣ ਗਾਵਹੁ ਨਿਤ ਨੀਤ ॥ हे मेरे मित्र ! जो मनुष्य सदैव हरि की पवित्र महिमा गायन करता है,
ਗਈ ਬਿਆਧਿ ਉਬਰੇ ਜਨ ਮੀਤ ॥੩॥ उसके रोग दूर हो जाते हैं और वह भवसागर से बच जाता है।॥ ३॥
ਮਨ ਬਚ ਕ੍ਰਮ ਪ੍ਰਭੁ ਅਪਨਾ ਧਿਆਈ ॥ मन, वचन एवं कर्म से मैं अपने प्रभु की आराधना करता रहता हूँ।
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਤੇਰੀ ਸਰਣਾਈ ॥੪॥੧੦੨॥੧੭੧॥ हे प्रभु ! दास नानक ने तेरी ही शरण ली है॥ ४॥ १०२॥ १७१॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गउड़ी महला ५ ॥
ਨੇਤ੍ਰ ਪ੍ਰਗਾਸੁ ਕੀਆ ਗੁਰਦੇਵ ॥ गुरदेव ने ज्ञान नेत्र दिए हैं।
ਭਰਮ ਗਏ ਪੂਰਨ ਭਈ ਸੇਵ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जिससे मेरे भ्रम दूर हो गए हैं और मेरी साधना सफल हो गई है॥ १॥ रहाउ॥
ਸੀਤਲਾ ਤੇ ਰਖਿਆ ਬਿਹਾਰੀ ॥ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪ੍ਰਭ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀ ॥੧॥ हे दयालु प्रभु ! तूने ही दया करके सीतला से बचाया है।पारब्रह्म प्रभु ने अपनी कृपा धारण की है॥ १॥
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਜਪੈ ਸੋ ਜੀਵੈ ॥ हे नानक ! जो प्रभु के नाम का जाप करता है, उसे ही जीवन प्राप्त होता है।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਵੈ ॥੨॥੧੦੩॥੧੭੨॥ संतों की संगति में रहकर वह हरि अमृत का पान करता है ॥२॥१०३॥१७२॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गउड़ी महला ५ ॥
ਧਨੁ ਓਹੁ ਮਸਤਕੁ ਧਨੁ ਤੇਰੇ ਨੇਤ ॥ हे ईश्वर ! वह मस्तक धन्य है (जो तेरे समक्ष झुकता है), वे नेत्र भी धन्य हैं जो तेरे दर्शन करते हैं।
ਧਨੁ ਓਇ ਭਗਤ ਜਿਨ ਤੁਮ ਸੰਗਿ ਹੇਤ ॥੧॥ वह भक्त धन्य हैं जिनका तेरे साथ अनुराग बना रहता है॥ १॥
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਕੈਸੇ ਸੁਖੁ ਲਹੀਐ ॥ प्रभु के नाम-स्मरण के बिना कभी सुख नहीं मिल सकता।
ਰਸਨਾ ਰਾਮ ਨਾਮ ਜਸੁ ਕਹੀਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हमें अपनी रसना से राम नाम का ही यश बखान करना चाहिए॥ १॥ रहाउ॥
ਤਿਨ ਊਪਰਿ ਜਾਈਐ ਕੁਰਬਾਣੁ ॥ हमें उन पर सर्वदा ही कुर्बान होना चाहिए
ਨਾਨਕ ਜਿਨਿ ਜਪਿਆ ਨਿਰਬਾਣੁ ॥੨॥੧੦੪॥੧੭੩॥ हे नानक ! जिन्होंने निर्लिप्त प्रभु के नाम का जाप किया है, ॥२॥१०४॥१७३॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गउड़ी महला ५ ॥
ਤੂੰਹੈ ਮਸਲਤਿ ਤੂੰਹੈ ਨਾਲਿ ॥ हे भगवान ! तू ही मेरा सलाहकार हैं और तू ही मेरे साथ रहता है।
ਤੂਹੈ ਰਾਖਹਿ ਸਾਰਿ ਸਮਾਲਿ ॥੧॥ तू ही ध्यानपूर्वक मेरी रक्षा करता है॥ १॥
ਐਸਾ ਰਾਮੁ ਦੀਨ ਦੁਨੀ ਸਹਾਈ ॥ हे मेरे भाई ! ऐसा है मेरा राम जो इहलोक एवं परलोक में मेरा सहायक है।
ਦਾਸ ਕੀ ਪੈਜ ਰਖੈ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ वह अपने सेवक की लाज-प्रतिष्ठा रखता है॥ १॥ रहाउ॥
ਆਗੈ ਆਪਿ ਇਹੁ ਥਾਨੁ ਵਸਿ ਜਾ ਕੈ ॥ जिस प्रभु के वश में यह लोक है, वही स्वयं परलोक में भी रक्षक है।
ਆਠ ਪਹਰ ਮਨੁ ਹਰਿ ਕਉ ਜਾਪੈ ॥੨॥ यह मन दिन-रात भगवान के नाम का जाप करता रहता है॥ २ ॥
ਪਤਿ ਪਰਵਾਣੁ ਸਚੁ ਨੀਸਾਣੁ ॥ ਜਾ ਕਉ ਆਪਿ ਕਰਹਿ ਫੁਰਮਾਨੁ ॥੩॥ उसकी प्रतिष्ठा स्वीकृत होती है और उसको ही सत्यनाम का चिन्ह लगता है,जिसके लिए प्रभु स्वयं हुक्म लागू करता है॥ ३॥
ਆਪੇ ਦਾਤਾ ਆਪਿ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਿ ॥ ईश्वर स्वयं दाता है और स्वयं ही पालनहार है।
ਨਿਤ ਨਿਤ ਨਾਨਕ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਸਮਾਲਿ ॥੪॥੧੦੫॥੧੭੪॥ हे नानक ! हमेशा ही प्रभु के नाम की आराधना करते रहो ॥ ४॥ १०५॥ १७४॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गउड़ी महला ५ ॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਭਇਆ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ॥ जब पूर्ण सतिगुरु जी कृपा के घर में आ जाते हैं तो
ਹਿਰਦੈ ਵਸਿਆ ਸਦਾ ਗੁਪਾਲੁ ॥੧॥ जगत् का मालिक गोपाल मनुष्य के हृदय में हमेशा के लिए निवास कर लेता है॥ १॥
ਰਾਮੁ ਰਵਤ ਸਦ ਹੀ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥ राम का चिन्तन करने से मुझे सदैव सुख प्राप्त हो गया है।


© 2017 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top