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                    ਬਿਆਪਤ ਹਰਖ ਸੋਗ ਬਿਸਥਾਰ ॥
                   
                    
                                              
                        माया का सुख-दुःख में प्रसार है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਬਿਆਪਤ ਸੁਰਗ ਨਰਕ ਅਵਤਾਰ ॥
                   
                    
                                              
                        वह स्वर्ग में जन्म लेने वाले जीवों को सुख रूप में तथा नरक के जीवों को दुःख रूप में प्रभावित करती है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਬਿਆਪਤ ਧਨ ਨਿਰਧਨ ਪੇਖਿ ਸੋਭਾ ॥
                   
                    
                                              
                        यह धनवानों, निर्धनों एवं शोभावानों पर प्रभाव करती देखी जाती है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮੂਲੁ ਬਿਆਧੀ ਬਿਆਪਸਿ ਲੋਭਾ ॥੧॥
                   
                    
                                              
                        यह लोभ रूप में जीवों में फैली हुई है और सभी रोगों की जड़ है। ॥१॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮਾਇਆ ਬਿਆਪਤ ਬਹੁ ਪਰਕਾਰੀ ॥
                   
                    
                                              
                        माया अनेक विधियों से प्रभावित करती है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸੰਤ ਜੀਵਹਿ ਪ੍ਰਭ ਓਟ ਤੁਮਾਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
                   
                    
                                              
                        हे प्रभु! आपकी शरण में साधु-संत इसके प्रभाव के बिना ही अपना जीवन व्यतीत करते हैं। १॥ रहाउ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਬਿਆਪਤ ਅਹੰਬੁਧਿ ਕਾ ਮਾਤਾ ॥
                   
                    
                                              
                        माया उससे लिपटी हुई है जो अहंबुद्धि से मदहोश हुआ है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਬਿਆਪਤ ਪੁਤ੍ਰ ਕਲਤ੍ਰ ਸੰਗਿ ਰਾਤਾ ॥
                   
                    
                                              
                        अपने पुत्रों एवं भार्या के प्रेम में अनुरक्त हुआ है, माया उससे भी लिपटी हुई है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਬਿਆਪਤ ਹਸਤਿ ਘੋੜੇ ਅਰੁ ਬਸਤਾ ॥
                   
                    
                                              
                        मोहिनी रूपी माया उससे लिपटी हुई है जो हाथियों, घोड़ों एवं सुन्दर वस्त्रों में लीन है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਬਿਆਪਤ ਰੂਪ ਜੋਬਨ ਮਦ ਮਸਤਾ ॥੨॥
                   
                    
                                              
                        यह (मोहिनी) उस पुरुष से लिपटी हुई है जो सुन्दरता एवं यौवन के नशे में मस्त हुआ है। ॥२॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਬਿਆਪਤ ਭੂਮਿ ਰੰਕ ਅਰੁ ਰੰਗਾ ॥
                   
                    
                                              
                        माया धरती के स्वामियों, निर्धनों एवं भोग-विलासियों से लिपटी हुई है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਬਿਆਪਤ ਗੀਤ ਨਾਦ ਸੁਣਿ ਸੰਗਾ ॥
                   
                    
                                              
                        यह सभाओं में गीत एवं राग श्रवण करने वालों में व्याप्त है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਬਿਆਪਤ ਸੇਜ ਮਹਲ ਸੀਗਾਰ ॥
                   
                    
                                              
                        यह सेज, हार-श्रृंगार, महलों में व्याप्त हुई है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਪੰਚ ਦੂਤ ਬਿਆਪਤ ਅੰਧਿਆਰ ॥੩॥
                   
                    
                                              
                        यह मोह के अन्धेरे में कामादिक पांचों दूत बनकर प्रभाव डाल रही है॥ ३॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਬਿਆਪਤ ਕਰਮ ਕਰੈ ਹਉ ਫਾਸਾ ॥
                   
                    
                                              
                        यह मोहिनी उसके भीतर व्याप्त हुई है जो अहंकार में फंसकर अपना कर्म करता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਬਿਆਪਤਿ ਗਿਰਸਤ ਬਿਆਪਤ ਉਦਾਸਾ ॥
                   
                    
                                              
                        गृहस्थ में भी यह हम पर प्रभाव डालती है और त्याग में भी प्रभावित करती है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਆਚਾਰ ਬਿਉਹਾਰ ਬਿਆਪਤ ਇਹ ਜਾਤਿ ॥
                   
                    
                                              
                        हमारे चरित्र, कामकाज और जाति द्वारा मोहिनी हम पर आक्रमण करती हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਭ ਕਿਛੁ ਬਿਆਪਤ ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਰੰਗ ਰਾਤ ॥੪॥
                   
                    
                                              
                        उनके अतिरिक्त जो परमेश्वर के प्रेम में अनुरक्त है, यह प्रत्येक पदार्थ में व्याप्त है। ॥४॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸੰਤਨ ਕੇ ਬੰਧਨ ਕਾਟੇ ਹਰਿ ਰਾਇ ॥
                   
                    
                                              
                        संतों के बन्धन प्रभु ने काट दिए हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਤਾ ਕਉ ਕਹਾ ਬਿਆਪੈ ਮਾਇ ॥
                   
                    
                                              
                        मोहिनी रूपी माया उनको किस तरह प्रभावित कर सकती है ?
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਿਨਿ ਧੂਰਿ ਸੰਤ ਪਾਈ ॥
                   
                    
                                              
                        हे नानक ! जिसको संतों की चरण-धूलि प्राप्त हुई है
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਤਾ ਕੈ ਨਿਕਟਿ ਨ ਆਵੈ ਮਾਈ ॥੫॥੧੯॥੮੮॥
                   
                    
                                              
                        मोहिनी रूपी माया उनके निकट नहीं आती ।॥५॥१९॥८८॥     
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
                   
                    
                                              
                        राग गौड़ी ग्वरायरी, पंचम गुरु: ५ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨੈਨਹੁ ਨੀਦ ਪਰ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਵਿਕਾਰ ॥
                   
                    
                                              
                        पराई नारी के सौन्दर्य को कामवासना रूपी विकृत दृष्टि से देखने से नेत्र निद्रा में सोए हुए हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸ੍ਰਵਣ ਸੋਏ ਸੁਣਿ ਨਿੰਦ ਵੀਚਾਰ ॥
                   
                    
                                              
                        परनिन्दा के विचारों को सुनकर कान सोए हुए हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਰਸਨਾ ਸੋਈ ਲੋਭਿ ਮੀਠੈ ਸਾਦਿ ॥
                   
                    
                                              
                        मीठे पदार्थों के स्वाद की तृष्णा-लालसा में जिह्वा सोई हुई है। 
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮਨੁ ਸੋਇਆ ਮਾਇਆ ਬਿਸਮਾਦਿ ॥੧॥
                   
                    
                                              
                        मन माया की आश्चर्यजनक लीला को देखकर सोया हुआ है। ॥१॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਇਸੁ ਗ੍ਰਿਹ ਮਹਿ ਕੋਈ ਜਾਗਤੁ ਰਹੈ ॥
                   
                    
                                              
                        शरीर रूपी घर में कोई विरला पुरुष ही जागता रहता है 
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਾਬਤੁ ਵਸਤੁ ਓਹੁ ਅਪਨੀ ਲਹੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
                   
                    
                                              
                        और वह अपनी पूँजी सुरक्षित पा लेता है। १ ॥ रहाउ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਗਲ ਸਹੇਲੀ ਅਪਨੈ ਰਸ ਮਾਤੀ ॥
                   
                    
                                              
                        मन की सखियां पाँच ज्ञानेन्द्रियां अपने स्वाद में मस्त हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗ੍ਰਿਹ ਅਪੁਨੇ ਕੀ ਖਬਰਿ ਨ ਜਾਤੀ ॥
                   
                    
                                              
                        वह अपने घर की रक्षा करनी नहीं जानती।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮੁਸਨਹਾਰ ਪੰਚ ਬਟਵਾਰੇ ॥
                   
                    
                                              
                        पांचों दुष्ट विकार अपहरणकर्ता एवं लुटेरे हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸੂਨੇ ਨਗਰਿ ਪਰੇ ਠਗਹਾਰੇ ॥੨॥
                   
                    
                                              
                        लुटेरे सुनसान नगर में आ जाते हैं। ॥२॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਉਨ ਤੇ ਰਾਖੈ ਬਾਪੁ ਨ ਮਾਈ ॥
                   
                    
                                              
                        उनसे माता-पिता बचा नहीं सकते।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਉਨ ਤੇ ਰਾਖੈ ਮੀਤੁ ਨ ਭਾਈ ॥
                   
                    
                                              
                        मित्र एवं भाई भी उनसे रक्षा नहीं कर सकते।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਦਰਬਿ ਸਿਆਣਪ ਨਾ ਓਇ ਰਹਤੇ ॥
                   
                    
                                              
                        दौलत एवं चतुरता से वे नहीं रुकते।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਾਧਸੰਗਿ ਓਇ ਦੁਸਟ ਵਸਿ ਹੋਤੇ ॥੩॥
                   
                    
                                              
                        लेकिन सत्संग में वे दुष्ट वश में आ जाते हैं। ॥३॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਮੋਹਿ ਸਾਰਿੰਗਪਾਣਿ ॥
                   
                    
                                              
                        हे सारिंगपाणि प्रभु! मुझ पर कृपा कीजिए।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸੰਤਨ ਧੂਰਿ ਸਰਬ ਨਿਧਾਨ ॥
                   
                    
                                              
                        मुझे संतों की चरण-धूलि प्रदान कीजिए चूंकि मेरे लिए यह चरण-धूलि ही सर्वनिधि है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਾਬਤੁ ਪੂੰਜੀ ਸਤਿਗੁਰ ਸੰਗਿ ॥
                   
                    
                                              
                        सतगुरु की संगति में नाम रूपी पूँजी सुरक्षित रहती है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਾਨਕੁ ਜਾਗੈ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਕੈ ਰੰਗਿ ॥੪॥
                   
                    
                                              
                        नानक पारब्रह्म प्रभु के प्रेम में जागता है॥ ४॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸੋ ਜਾਗੈ ਜਿਸੁ ਪ੍ਰਭੁ ਕਿਰਪਾਲੁ ॥
                   
                    
                                              
                        केवल वही जागता है जिस पर प्रभु दयालु है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਇਹ ਪੂੰਜੀ ਸਾਬਤੁ ਧਨੁ ਮਾਲੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ਦੂਜਾ ॥੨੦॥੮੯॥
                   
                    
                                              
                        ये पूँजी, पदार्थ और सम्पति फिर बचे रहते हैं। १॥ रहाउ दूजा ॥२०॥८९॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
                   
                    
                                              
                        राग गौड़ी ग्वरायरी, पंचम गुरु: ५ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਜਾ ਕੈ ਵਸਿ ਖਾਨ ਸੁਲਤਾਨ ॥
                   
                    
                                              
                        हे प्राणी ! जिस प्रभु के वश में सरदार और सुल्तान हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਜਾ ਕੈ ਵਸਿ ਹੈ ਸਗਲ ਜਹਾਨ ॥
                   
                    
                                              
                        जिसके अधीन सारा संसार है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਜਾ ਕਾ ਕੀਆ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਹੋਇ ॥
                   
                    
                                              
                        जिसके करने से सब कुछ हो रहा है,
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਤਿਸ ਤੇ ਬਾਹਰਿ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ॥੧॥
                   
                    
                                              
                        उससे बाहर कुछ भी नहीं ॥ १ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਕਹੁ ਬੇਨੰਤੀ ਅਪੁਨੇ ਸਤਿਗੁਰ ਪਾਹਿ ॥
                   
                    
                                              
                        हे प्राणी ! अपने सतगुरु के पास विनती कर।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਕਾਜ ਤੁਮਾਰੇ ਦੇਇ ਨਿਬਾਹਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
                   
                    
                                              
                        वह तेरे समस्त कार्य सम्पूर्ण कर देगें। १॥ रहाउ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਭ ਤੇ ਊਚ ਜਾ ਕਾ ਦਰਬਾਰੁ ॥
                   
                    
                                              
                        उस प्रभु का दरबार सबसे ऊँचा है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਗਲ ਭਗਤ ਜਾ ਕਾ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੁ ॥
                   
                    
                                              
                        उसका नाम उसके समस्त भक्तों का आधार है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਰਬ ਬਿਆਪਿਤ ਪੂਰਨ ਧਨੀ ॥
                   
                    
                                              
                        जगत् का स्वामी प्रभु सबमें विद्यमान है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਜਾ ਕੀ ਸੋਭਾ ਘਟਿ ਘਟਿ ਬਨੀ ॥੨॥
                   
                    
                                              
                        उसकी शोभा समस्त जीवों के हृदय में प्रकट है। ॥२॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਜਿਸੁ ਸਿਮਰਤ ਦੁਖ ਡੇਰਾ ਢਹੈ ॥
                   
                    
                                              
                        जिस प्रभु का सिमरन करने से दुःखों का पहाड़ नष्ट हो जाता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਜਿਸੁ ਸਿਮਰਤ ਜਮੁ ਕਿਛੂ ਨ ਕਹੈ ॥
                   
                    
                                              
                        जिसका सिमरन करने से यमदूत तुझे दुःख नहीं देता।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਜਿਸੁ ਸਿਮਰਤ ਹੋਤ ਸੂਕੇ ਹਰੇ ॥
                   
                    
                                              
                        जिसकी आराधना करने से नीरस मन में प्रफुल्लित हो जाते हैं।