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ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਰਸੁ ਚਾਖੁ ॥
हे प्राणी ! गुरु का शब्द अमृत रस है और इस अमृत रस का पान कर।
ਅਵਰਿ ਜਤਨ ਕਹਹੁ ਕਉਨ ਕਾਜ ॥
हे भाई! बताओ, तेरे अन्य प्रयास किस काम के हैं?
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਰਾਖੈ ਆਪਿ ਲਾਜ ॥੨॥
प्रभु स्वयं ही कृपा करके मनुष्य की लाज बचाता है। २॥
ਕਿਆ ਮਾਨੁਖ ਕਹਹੁ ਕਿਆ ਜੋਰੁ ॥
बेचारा मनुष्य क्या कर सकता है? बताइए, उसमें कौन-सा बल है?
ਝੂਠਾ ਮਾਇਆ ਕਾ ਸਭੁ ਸੋਰੁ ॥
धन-दौलत का शोर-शराबा सब झूठा है।
ਕਰਣ ਕਰਾਵਨਹਾਰ ਸੁਆਮੀ ॥
जगत् का स्वामी प्रभु स्वयं ही सब कुछ करने एवं कराने वाला है।
ਸਗਲ ਘਟਾ ਕੇ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥੩॥
अन्तर्यामी (प्रभु) सर्वज्ञाता है। ३॥
ਸਰਬ ਸੁਖਾ ਸੁਖੁ ਸਾਚਾ ਏਹੁ ॥
सर्व सुखों में सच्चा सुख यही है कि
ਗੁਰ ਉਪਦੇਸੁ ਮਨੈ ਮਹਿ ਲੇਹੁ ॥
गुरु की शिक्षा को अपने हृदय में स्मरण रखो।
ਜਾ ਕਉ ਰਾਮ ਨਾਮ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ॥
जिसकी वृत्ति राम नाम में लगी हुई है,"
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸੋ ਧੰਨੁ ਵਡਭਾਗੀ ॥੪॥੭॥੭੬॥
हे नानक ! वह बड़े धन्य एवं भाग्यवान हैं ॥४॥७॥७६॥
ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी गुआरेरी महला ५ ॥
ਸੁਣਿ ਹਰਿ ਕਥਾ ਉਤਾਰੀ ਮੈਲੁ ॥
जिन्होंने हरि की कथा सुनकर अपने मन की अहंत्व रूपी मैल उतार दी है,
ਮਹਾ ਪੁਨੀਤ ਭਏ ਸੁਖ ਸੈਲੁ ॥
वे बहुत ही पवित्र एवं सुखी हो गए हैं।
ਵਡੈ ਭਾਗਿ ਪਾਇਆ ਸਾਧਸੰਗੁ ॥
उन्हें बड़े भाग्य से संतों की संगति मिल गई है
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਸਿਉ ਲਾਗੋ ਰੰਗੁ ॥੧॥
और उनका पारब्रह्म से प्रेम पड़ गया है। १॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਜਨੁ ਤਾਰਿਓ ॥
हरि-परमेश्वर के नाम की आराधना करने वाले सेवक भवसागर से पार हो गए हैं।
ਅਗਨਿ ਸਾਗਰੁ ਗੁਰਿ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰਿਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरु जी ने उन्हें तृष्णा रूपी अग्नि-सागर से पार कर दिया है ॥१॥ रहाउ॥
ਕਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਮਨ ਸੀਤਲ ਭਏ ॥
प्रभु का कीर्तन करने से उनका हृदय शीतल हो गया है और
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਕਿਲਵਿਖ ਗਏ ॥
जन्म-जन्मांतरों के पाप धुल गए हैं।
ਸਰਬ ਨਿਧਾਨ ਪੇਖੇ ਮਨ ਮਾਹਿ ॥
समस्त खजाने उन्होंने अपने हृदय में देख लिए हैं।
ਅਬ ਢੂਢਨ ਕਾਹੇ ਕਉ ਜਾਹਿ ॥੨॥
अब वह सुखों को ढूँढने के लिए बाहर क्यों जाएँ? ॥ २॥
ਪ੍ਰਭ ਅਪੁਨੇ ਜਬ ਭਏ ਦਇਆਲ ॥
जब मेरा प्रभु दयालु हो गया तो
ਪੂਰਨ ਹੋਈ ਸੇਵਕ ਘਾਲ ॥
उसके सेवक की सेवा सम्पूर्ण हो गई है।
ਬੰਧਨ ਕਾਟਿ ਕੀਏ ਅਪਨੇ ਦਾਸ ॥
उसने (मोह-माया के) बंधन काट कर अपना दास बना लिया है।
ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਗੁਣਤਾਸ ॥੩॥
अब वे गुणों के भण्डार प्रभु का सिमरन करते रहते हैं। ३॥
ਏਕੋ ਮਨਿ ਏਕੋ ਸਭ ਠਾਇ ॥
केवल वही अंत:करण में है और केवल वही सर्वत्र विद्यमान है।
ਪੂਰਨ ਪੂਰਿ ਰਹਿਓ ਸਭ ਜਾਇ ॥
सम्पूर्ण प्रभु समस्त स्थानों को पूर्णतया भर रहा है।
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਸਭੁ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਇਆ ॥
पूर्ण गुरु ने समस्त भ्रम निवृत्त कर दिए हैं।
ਹਰਿ ਸਿਮਰਤ ਨਾਨਕ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥੪॥੮॥੭੭॥
हे नानक ! हरि का सिमरन करके उसने सुख प्राप्त किया है ॥४॥८॥७७॥
ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी गुआरेरी महला ५ ॥
ਅਗਲੇ ਮੁਏ ਸਿ ਪਾਛੈ ਪਰੇ ॥
हमारे जो पूर्वज प्राण त्याग चुके हैं, वह हमें भूल गए हैं।
ਜੋ ਉਬਰੇ ਸੇ ਬੰਧਿ ਲਕੁ ਖਰੇ ॥
जो बच गए हैं, वह कमर बांधकर धन एकत्रित करने के लिए खड़े हैं।
ਜਿਹ ਧੰਧੇ ਮਹਿ ਓਇ ਲਪਟਾਏ ॥
वह उन काम-धंधों में व्यस्त होते हैं, जिन में पूर्वज लीन हुए थे।
ਉਨ ਤੇ ਦੁਗੁਣ ਦਿੜੀ ਉਨ ਮਾਏ ॥੧॥
उनके मुकाबले में वह धन को दुगुणी शक्ति से जोड़ते हैं। १॥
ਓਹ ਬੇਲਾ ਕਛੁ ਚੀਤਿ ਨ ਆਵੈ ॥
मृत्यु के उस समय को मनुष्य स्मरण नहीं करता।
ਬਿਨਸਿ ਜਾਇ ਤਾਹੂ ਲਪਟਾਵੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
वह उससे चिपकता है, जिसने नाश हो जाना है। ॥१॥ रहाउ॥
ਆਸਾ ਬੰਧੀ ਮੂਰਖ ਦੇਹ ॥
मूर्ख इन्सान का शरीर तृष्णाओं ने बांधा हुआ है।
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਲਪਟਿਓ ਅਸਨੇਹ ॥
वह काम, क्रोध एवं सांसारिक मोह में फँसा रहता है।
ਸਿਰ ਊਪਰਿ ਠਾਢੋ ਧਰਮ ਰਾਇ ॥
उसके सिर पर धर्मराज खड़ा है।
ਮੀਠੀ ਕਰਿ ਕਰਿ ਬਿਖਿਆ ਖਾਇ ॥੨॥
मूर्ख इन्सान माया रूपी विष को मीठा समझकर खाता है। ॥२॥
ਹਉ ਬੰਧਉ ਹਉ ਸਾਧਉ ਬੈਰੁ ॥
(मूर्ख अहंकार में बातें करता है कि) मैं अपने शत्रु को बांध लुंगा और उसे पछाड़ दूंगा।
ਹਮਰੀ ਭੂਮਿ ਕਉਣੁ ਘਾਲੈ ਪੈਰੁ ॥
मेरी धरती पर कौन चरण रख सकता है।
ਹਉ ਪੰਡਿਤੁ ਹਉ ਚਤੁਰੁ ਸਿਆਣਾ ॥
मैं विद्वान हूँ, मैं चतुर एवं बुद्धिमान हूँ।
ਕਰਣੈਹਾਰੁ ਨ ਬੁਝੈ ਬਿਗਾਨਾ ॥੩॥
लेकिन मूर्ख इन्सान अपने कर्तार को नहीं जानता। ॥३॥
ਅਪੁਨੀ ਗਤਿ ਮਿਤਿ ਆਪੇ ਜਾਨੈ ॥
(परन्तु इन्सान के वश में क्या) अपनी गति एवं मूल्य प्रभु स्वयं ही जानता है।
ਕਿਆ ਕੋ ਕਹੈ ਕਿਆ ਆਖਿ ਵਖਾਨੈ ॥
कोई क्या कह सकता है ? इन्सान किस तरह उसको कथन एवं वर्णन कर सकता है ?
ਜਿਤੁ ਜਿਤੁ ਲਾਵਹਿ ਤਿਤੁ ਤਿਤੁ ਲਗਨਾ ॥
जिस किसी से हरि इन्सान को मिलाता है, उसी से वह मिल जाता है।
ਅਪਨਾ ਭਲਾ ਸਭ ਕਾਹੂ ਮੰਗਨਾ ॥੪॥
हरेक इन्सान अपनी भलाई माँगता है॥ ४ ॥
ਸਭ ਕਿਛੁ ਤੇਰਾ ਤੂੰ ਕਰਣੈਹਾਰੁ ॥
हे प्रभु! तू सूजनहार है, सब कुछ तेरे वश में है।
ਅੰਤੁ ਨਾਹੀ ਕਿਛੁ ਪਾਰਾਵਾਰੁ ॥
तेरे गुणों का कोई अन्त नहीं, तेरे स्वरूप का ओर-छोर नहीं मिल सकता।
ਦਾਸ ਅਪਨੇ ਕਉ ਦੀਜੈ ਦਾਨੁ ॥
हे प्रभु! अपने दास को नाम का दान दीजिए।
ਕਬਹੂ ਨ ਵਿਸਰੈ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ॥੫॥੯॥੭੮॥
हे नानक ! मुझे प्रभु का नाम कभी विस्मृत न हो ॥५॥९॥७८॥
ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी गुआरेरी महला ५ ॥
ਅਨਿਕ ਜਤਨ ਨਹੀ ਹੋਤ ਛੁਟਾਰਾ ॥
अनेक यत्नों से भी (माया के बंधनों से) मुक्ति नहीं होती।
ਬਹੁਤੁ ਸਿਆਣਪ ਆਗਲ ਭਾਰਾ ॥
अधिक चतुराई करने से पापों का बोझ सिर पर और भी बढ़ता है।
ਹਰਿ ਕੀ ਸੇਵਾ ਨਿਰਮਲ ਹੇਤ ॥
जो व्यक्ति निर्मल मन एवं प्रेम से भगवान की सेवा करता है,
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਦਰਗਹ ਸੋਭਾ ਸੇਤ ॥੧॥
वह प्रभु के दरबार में शोभा का पात्र बन जाता है॥ १॥