Guru Granth Sahib Translation Project

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Page 57

ਤ੍ਰਿਭਵਣਿ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਜਾਣੀਐ ਸਾਚੋ ਸਾਚੈ ਨਾਇ ॥੫॥ प्रभु के सत्य नाम से जुड़े रहने पर जीव पाताल, धरती एवं आकाश तीनों लोकों में रहने वाले परमेश्वर को पहचान लेता है॥ ५॥
ਸਾ ਧਨ ਖਰੀ ਸੁਹਾਵਣੀ ਜਿਨਿ ਪਿਰੁ ਜਾਤਾ ਸੰਗਿ ॥ उस जीव-स्त्री का जीवन बहुत ही सुन्दर हो जाता है जिसने अपने प्रियतम-प्रभु को समझ लिया है, जो सदैव इसके साथ रहता है।
ਮਹਲੀ ਮਹਲਿ ਬੁਲਾਈਐ ਸੋ ਪਿਰੁ ਰਾਵੇ ਰੰਗਿ ॥ दसम द्वार रूपी महल में रहने वाला प्रियतम प्रभु जीव-स्त्री को अपने महल में आमंत्रित कर लेता है। पति उसे बड़ी प्रीति से रखता है।
ਸਚਿ ਸੁਹਾਗਣਿ ਸਾ ਭਲੀ ਪਿਰਿ ਮੋਹੀ ਗੁਣ ਸੰਗਿ ॥੬॥ वही नारी सचमुच प्रसन्न तथा गुणवान सुहागन है, जो अपने प्रियतम पति के गुणों पर मोहित होती है ॥६॥
ਭੂਲੀ ਭੂਲੀ ਥਲਿ ਚੜਾ ਥਲਿ ਚੜਿ ਡੂਗਰਿ ਜਾਉ ॥ मुझ नाम से भूली हुई को गुरु के बिना नाम की सूझ नहीं होगी।
ਬਨ ਮਹਿ ਭੂਲੀ ਜੇ ਫਿਰਾ ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਬੂਝ ਨ ਪਾਉ ॥ मैं सारी धरती पर फिरती रहूँ, धरती पर घूमने के पश्चात पर्वतों पर चढ़ जाऊँ और जंगलों में भटकती रहूँ।
ਨਾਵਹੁ ਭੂਲੀ ਜੇ ਫਿਰਾ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਆਵਉ ਜਾਉ ॥੭॥ यदि हरेि नाम को विस्मृत करके मैं भटकती रहूँ तो मैं पुनः पुनः आवागमन के चक्र में रहूँगी ॥७॥
ਪੁਛਹੁ ਜਾਇ ਪਧਾਊਆ ਚਲੇ ਚਾਕਰ ਹੋਇ ॥ हे जीव-स्त्री ! जाकर उन पथिकों से पता कर लो जो प्रभु के भक्त होकर उसके मार्ग पर चलते हैं।
ਰਾਜਨੁ ਜਾਣਹਿ ਆਪਣਾ ਦਰਿ ਘਰਿ ਠਾਕ ਨ ਹੋਇ ॥ वह ईश्वर को अपना सम्राट मानते हैं और उनको प्रभु के दरबार एवं घर में जाते समय कोई भी बाधा प्राप्त नहीं होती।
ਨਾਨਕ ਏਕੋ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਦੂਜਾ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥੮॥੬॥ हे नानक ! एक परमेश्वर ही सर्वव्यापक है, इसके अलावा अन्य कोई भी अस्तित्व में नहीं ॥८॥६॥
ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੧ ॥ श्रीराग महला १ ॥
ਗੁਰ ਤੇ ਨਿਰਮਲੁ ਜਾਣੀਐ ਨਿਰਮਲ ਦੇਹ ਸਰੀਰੁ ॥ जब गुरु के माध्यम से हमें निष्कलंक ईश्वर का बोध होता है और हमारा शरीर और आत्मा पवित्र हो जाती है।
ਨਿਰਮਲੁ ਸਾਚੋ ਮਨਿ ਵਸੈ ਸੋ ਜਾਣੈ ਅਭ ਪੀਰ ॥ सत्य निर्मल प्रभु मन में आ बसता है। वह परमेश्वर जीव के हृदय की पीड़ा को अनुभव करता है।
ਸਹਜੈ ਤੇ ਸੁਖੁ ਅਗਲੋ ਨਾ ਲਾਗੈ ਜਮ ਤੀਰੁ ॥੧॥ सहज ज्ञान प्राप्त होने पर मन बहुत शांत होता है और काल (मृत्यु) का बाण उसे नहीं लगता ॥ १॥
ਭਾਈ ਰੇ ਮੈਲੁ ਨਾਹੀ ਨਿਰਮਲ ਜਲਿ ਨਾਇ ॥ हे भाई ! हरि नाम के निर्मल जल में स्नान करने से तुझे कोई भी मलिनता नहीं लगी रहेगी, अपितु तेरे समस्त अवगुणों की मैल उतर जाएगी।
ਨਿਰਮਲੁ ਸਾਚਾ ਏਕੁ ਤੂ ਹੋਰੁ ਮੈਲੁ ਭਰੀ ਸਭ ਜਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे प्रभु ! एकमात्र तू ही सत्य और निर्मल है, अन्य समस्त स्थानों पर मैल विद्यमान है॥ १॥ रहाउ॥
ਹਰਿ ਕਾ ਮੰਦਰੁ ਸੋਹਣਾ ਕੀਆ ਕਰਣੈਹਾਰਿ ॥ यह जगत् ईश्वर का अति सुन्दर महल है। सृजनहार प्रभु ने स्वयं इसकी रचना की है।
ਰਵਿ ਸਸਿ ਦੀਪ ਅਨੂਪ ਜੋਤਿ ਤ੍ਰਿਭਵਣਿ ਜੋਤਿ ਅਪਾਰ ॥ सूर्य एवं चंद्रमा की ज्योतियों का प्रकाश अनूप है। ईश्वर का अनन्त प्रकाश तीनों ही लोकों में व्याप्त हो रहा है।
ਹਾਟ ਪਟਣ ਗੜ ਕੋਠੜੀ ਸਚੁ ਸਉਦਾ ਵਾਪਾਰ ॥੨॥ तन के अन्दर दुकानें, नगर तथा किले विद्यमान हैं। जहाँ पर व्यापार करने के लिए सत्य नाम का सौदा है॥ २॥
ਗਿਆਨ ਅੰਜਨੁ ਭੈ ਭੰਜਨਾ ਦੇਖੁ ਨਿਰੰਜਨ ਭਾਇ ॥ ज्ञान का अंजन (काजल) भय को नाश करने वाला है और प्रेम के द्वारा ही पवित्र प्रभु के दर्शन किए जाते हैं।
ਗੁਪਤੁ ਪ੍ਰਗਟੁ ਸਭ ਜਾਣੀਐ ਜੇ ਮਨੁ ਰਾਖੈ ਠਾਇ ॥ प्राणी अप्रत्यक्ष एवं प्रत्यक्ष समूह को जान लेता है, यदि वह अपने मन को एक स्थान पर केन्द्रित रखे।
ਐਸਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਜੇ ਮਿਲੈ ਤਾ ਸਹਜੇ ਲਏ ਮਿਲਾਇ ॥੩॥ यदि मनुष्य को ऐसा सतगुरु मिल जाए तो वह सहज ही उसको प्रभु से मिला देता है ॥३॥
ਕਸਿ ਕਸਵਟੀ ਲਾਈਐ ਪਰਖੇ ਹਿਤੁ ਚਿਤੁ ਲਾਇ ॥ जैसे सोने को परखने के लिए कसौटी पर परख लिया जाता है, वैसे ही पारब्रह्म अपने उत्पन्न किए हुए प्राणियों के आत्मिक जीवन को बड़े प्रेम से ध्यान लगाकर परखता है।
ਖੋਟੇ ਠਉਰ ਨ ਪਾਇਨੀ ਖਰੇ ਖਜਾਨੈ ਪਾਇ ॥ गुणहीन अधम जीवों को कोई स्थान प्राप्त नहीं होता और गुणवान वास्तविक कोष में डाले जाते हैं।
ਆਸ ਅੰਦੇਸਾ ਦੂਰਿ ਕਰਿ ਇਉ ਮਲੁ ਜਾਇ ਸਮਾਇ ॥੪॥ अपनी आशा एवं चिन्ता को निवृत कर दे, इस तरह तेरी मलिनता धुल जाएगी॥ ४॥
ਸੁਖ ਕਉ ਮਾਗੈ ਸਭੁ ਕੋ ਦੁਖੁ ਨ ਮਾਗੈ ਕੋਇ ॥ प्रत्येक व्यक्ति सुख की कामना करता है, कोई भी दुःख की याचना नहीं करता।
ਸੁਖੈ ਕਉ ਦੁਖੁ ਅਗਲਾ ਮਨਮੁਖਿ ਬੂਝ ਨ ਹੋਇ ॥ स्वेच्छा मनमुख प्राणी यह नहीं जानता कि इस समय सांसारिक सुख बाद में अत्यंत कष्ट ला सकता है ।
ਸੁਖ ਦੁਖ ਸਮ ਕਰਿ ਜਾਣੀਅਹਿ ਸਬਦਿ ਭੇਦਿ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ॥੫॥ जो सुख और दुःख को एक समान जानते हैं और अपनी आत्मा को नाम के साथ अभेद करते हैं, वह ईश्वरीय सुख-समृद्धि प्राप्त करते हैं ॥ ५॥
ਬੇਦੁ ਪੁਕਾਰੇ ਵਾਚੀਐ ਬਾਣੀ ਬ੍ਰਹਮ ਬਿਆਸੁ ॥ ब्रह्मा के वेद तथा व्यास के शब्दों के पाठ पुकारते हैं कि
ਮੁਨਿ ਜਨ ਸੇਵਕ ਸਾਧਿਕਾ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਗੁਣਤਾਸੁ ॥ मौनधारी ऋषि, प्रभु के भक्त एवं साधक भगवान् के नाम से गुणों के भण्डार से ओतप्रोत हैं।
ਸਚਿ ਰਤੇ ਸੇ ਜਿਣਿ ਗਏ ਹਉ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੈ ਜਾਸੁ ॥੬॥ जो प्रभु के सत्य नाम के साथ रंग जाते हैं, वे सदैव विजय प्राप्त करते हैं। मैं उन पर सदैव ही बलिहारी जाता हूँ ॥६॥
ਚਹੁ ਜੁਗਿ ਮੈਲੇ ਮਲੁ ਭਰੇ ਜਿਨ ਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਨ ਹੋਇ ॥ जिनके मुख में प्रभु का नाम नहीं, वे मैल से भरे रहते हैं और चारों ही युगों में मैले रहते हैं।
ਭਗਤੀ ਭਾਇ ਵਿਹੂਣਿਆ ਮੁਹੁ ਕਾਲਾ ਪਤਿ ਖੋਇ ॥ जो भगवान् से प्रेम नहीं करते उन भक्तिहीनों का भगवान् के दरबार में मुँह काला किया जाता है और वे अपना मान-सम्मान खो बैठते हैं।
ਜਿਨੀ ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਰਿਆ ਅਵਗਣ ਮੁਠੀ ਰੋਇ ॥੭॥ जिन्होंने भगवान् के नाम को विस्मृत कर दिया है, उन्हें उनके अवगुणों ने ठग लिया है, इसलिए वे विलाप करते हैं।॥७॥
ਖੋਜਤ ਖੋਜਤ ਪਾਇਆ ਡਰੁ ਕਰਿ ਮਿਲੈ ਮਿਲਾਇ ॥ तलाशने और खोज करने पर मुझे यह तथ्य मिला है कि मन में ईश्वर का भय पैदा होने पर वो ईश्वर गुरु के द्वारा मिलाने पर मिल जाता है।
ਆਪੁ ਪਛਾਣੈ ਘਰਿ ਵਸੈ ਹਉਮੈ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਜਾਇ ॥ जिसे एक बार स्वयं पर बोध हो जाता है, उसका मन भटकना बंद कर देता है और अंतरात्मा में स्थिर हो जात है तथा उसकी सभी अहंकार और इच्छाएँ दूर हो जाती हैं।
ਨਾਨਕ ਨਿਰਮਲ ਊਜਲੇ ਜੋ ਰਾਤੇ ਹਰਿ ਨਾਇ ॥੮॥੭॥ उसकी अहंकार एवं तृष्णा मिट जाती है। हे नानक ! जो व्यक्ति भगवान् के नाम में मग्न रहते हैं, वे निर्मल हो जाते हैं और उनके मुख भी उज्ज्वल हो जाते हैं।॥८॥७॥
ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੧ ॥
ਸੁਣਿ ਮਨ ਭੂਲੇ ਬਾਵਰੇ ਗੁਰ ਕੀ ਚਰਣੀ ਲਾਗੁ ॥ हे मेरे भूले बावले मन ! मेरी बात ध्यानपूर्वक सुन। तू गुरु के चरणों में जाकर लग।
ਹਰਿ ਜਪਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ਤੂ ਜਮੁ ਡਰਪੈ ਦੁਖ ਭਾਗੁ ॥ तू ईश्वर का नाम जप और भगवान् का ध्यान किया कर, उसके नाम से यमदूत भी भयभीत होता है और समस्त दुःख निवृत्त हो जाते हैं।
ਦੂਖੁ ਘਣੋ ਦੋਹਾਗਣੀ ਕਿਉ ਥਿਰੁ ਰਹੈ ਸੁਹਾਗੁ ॥੧॥ अभाग्यशाली नारी बहुत कष्ट झेलती है, उसका सुहाग कैसे स्थिर रह सकता है ॥
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