Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 741

Page 741

ਕਰਣਹਾਰ ਕੀ ਸੇਵ ਨ ਸਾਧੀ ॥੧॥ क्योंकि जिस परमपिता ने हमें पैदा किया है, हम उसकी उपासना ही नहीं की। १॥
ਪਤਿਤ ਪਾਵਨ ਪ੍ਰਭ ਨਾਮ ਤੁਮਾਰੇ ॥ हे प्रभु ! आपका नाम पतितपावन है,
ਰਾਖਿ ਲੇਹੁ ਮੋਹਿ ਨਿਰਗੁਨੀਆਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मुझ को अपनी शरण में रख लो ॥१॥ रहाउ ॥
ਤੂੰ ਦਾਤਾ ਪ੍ਰਭ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥ हे अन्तर्यामी प्रभु ! एक आप ही दाता है।
ਕਾਚੀ ਦੇਹ ਮਾਨੁਖ ਅਭਿਮਾਨੀ ॥੨॥ यह शरीर तो नश्वर है, पर हम मनुष्य व्यर्थ ही अभिमानी बने हुए हैं।॥ २॥
ਸੁਆਦ ਬਾਦ ਈਰਖ ਮਦ ਮਾਇਆ ॥ दुनिया के स्वाद, वाद - विवाद, इर्षा, एवं माया के नशे में
ਇਨ ਸੰਗਿ ਲਾਗਿ ਰਤਨ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ॥੩॥ लगकर यह अमूल्य जीवन व्यर्थ ही गंवा दिया है ॥ ३ ॥
ਦੁਖ ਭੰਜਨ ਜਗਜੀਵਨ ਹਰਿ ਰਾਇਆ ॥ हे दुःखनाशक! हे जग के जीवन ! हे श्रीहरि !
ਸਗਲ ਤਿਆਗਿ ਨਾਨਕੁ ਸਰਣਾਇਆ ॥੪॥੧੩॥੧੯॥ सबकुछ त्याग कर नानक आपकी ही शरण में आया है ॥ ४ । १३ । १६ ॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग सूही, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਪੇਖਤ ਚਾਖਤ ਕਹੀਅਤ ਅੰਧਾ ਸੁਨੀਅਤ ਸੁਨੀਐ ਨਾਹੀ ॥ जो दुनिया की हर चीज़ को देखता है लेकिन भगवान् को नहीं पहचानता, जो सब आवाज़ें सुनता है पर ईश्वर की महिमा नहीं सुनता, वह आत्मिक रूप से अज्ञानी होता है।
ਨਿਕਟਿ ਵਸਤੁ ਕਉ ਜਾਣੈ ਦੂਰੇ ਪਾਪੀ ਪਾਪ ਕਮਾਹੀ ॥੧॥ निकट पड़ी वस्तु को वह दूर ही जानता है और वह पापी पाप ही करता रहता है। १॥
ਸੋ ਕਿਛੁ ਕਰਿ ਜਿਤੁ ਛੁਟਹਿ ਪਰਾਨੀ ॥ वह कौन-सा कार्य है, जिससे प्राणी पापों से छूट सकता है ?
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਾਨੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सदैव ही भगवान् का नाम स्मरण करो और उसकी अमृत-वाणी जपते रहो ॥ १॥ रहाउ॥
ਘੋਰ ਮਹਲ ਸਦਾ ਰੰਗਿ ਰਾਤਾ ॥ प्राणी हमेशा ही सुन्दर घोड़े एवं भव्य महल के मोह में मग्न रहता है।
ਸੰਗਿ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੈ ਕਛੂ ਨ ਜਾਤਾ ॥੨॥ हे प्राणी ! जगत् को छोड़ते समय तेरे साथ तो कुछ भी जाने वाला नहीं है॥ २॥
ਰਖਹਿ ਪੋਚਾਰਿ ਮਾਟੀ ਕਾ ਭਾਂਡਾ ॥ हे नश्वर, तुम इस नाशवान शरीर को मिट्टी के घड़े की तरह सजाने में लगे हो
ਅਤਿ ਕੁਚੀਲ ਮਿਲੈ ਜਮ ਡਾਂਡਾ ॥੩॥ किन्तु तेरा यह शरीर भीतर से पापों की मैल से भरा होने के कारण बहुत ही गंदा है और इसे यम का दण्ड अवश्य मिलेगा ॥३॥
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧਿ ਲੋਭਿ ਮੋਹਿ ਬਾਧਾ ॥ काम, क्रोध, लोभ एवं मोह ने तुझे फँसाया हुआ है और
ਮਹਾ ਗਰਤ ਮਹਿ ਨਿਘਰਤ ਜਾਤਾ ॥੪॥ विकारों के दल-दल में और भी फंसता जा रहा है ॥ ४॥
ਨਾਨਕ ਕੀ ਅਰਦਾਸਿ ਸੁਣੀਜੈ ॥ ਡੂਬਤ ਪਾਹਨ ਪ੍ਰਭ ਮੇਰੇ ਲੀਜੈ ॥੫॥੧੪॥੨੦॥ हे मेरे प्रभु ! दास नानक की अरदास सुन लो और मुझ जैसे डूबते पत्थर को भी बचा लो॥ ५॥ १४॥ २०॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग सूही, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਜੀਵਤ ਮਰੈ ਬੁਝੈ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਇ ॥ ईश्वर उसे ही मिलता है, जो घर-गृहस्थी में रहकर भी माया से दूर रहता है।
ਤਿਸੁ ਜਨ ਕਰਮਿ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ॥੧॥ भाग्य से उसे ही परमात्मा की प्राप्ति होती है।॥ १॥
ਸੁਣਿ ਸਾਜਨ ਇਉ ਦੁਤਰੁ ਤਰੀਐ ॥ हे मेरे साजन ! सुनो, यह भवसागर बड़ा कठिन है और इससे पार होने के लिए
ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਉਚਰੀਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ साधुओं के साथ मिलकर भगवान् का नाम उच्चारित करते रहना चाहिए॥ १॥ रहाउ ॥
ਏਕ ਬਿਨਾ ਦੂਜਾ ਨਹੀ ਜਾਨੈ ॥ जो व्यक्ति एक परमात्मा के अतिरिक्त किसी दूसरे को नहीं जानता,
ਘਟ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਪਛਾਨੈ ॥੨॥ वह प्रत्येक शरीर में विद्यमान पारब्रह्म को पहचान लेता है॥ २॥
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਰੈ ਸੋਈ ਭਲ ਮਾਨੈ ॥ जो कुछ ईश्वर करता है, वह सहर्ष उसे ही भला मानता है।
ਆਦਿ ਅੰਤ ਕੀ ਕੀਮਤਿ ਜਾਨੈ ॥੩॥ जो परमात्मा सृष्टि के आदि एवं अंत तक विद्यमान है, वह उसके मूल्यांकन को जान लेता है। ३॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਜਨ ਬਲਿਹਾਰੀ ॥ ਜਾ ਕੈ ਹਿਰਦੈ ਵਸਹਿ ਮੁਰਾਰੀ ॥੪॥੧੫॥੨੧॥ हे नानक ! मैं उस भक्त पर बलिहारी जाता हूँ, जिसके हृदय में ईश्वर रहते है ll ४ ॥ १५ ॥ २१ ॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग सूही, पंचम गुरु ५ ॥
ਗੁਰੁ ਪਰਮੇਸਰੁ ਕਰਣੈਹਾਰੁ ॥ पुूर्ण गुरु ही परमेश्वर है और वही सबकुछ करने में परिपूर्ण है।
ਸਗਲ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਕਉ ਦੇ ਆਧਾਰੁ ॥੧॥ वह सारी सृष्टि को नाम का आधार देते है ॥१॥
ਗੁਰ ਕੇ ਚਰਣ ਕਮਲ ਮਨ ਧਿਆਇ ॥ हे मेरे मन ! गुरु के चरण कमलों का ध्यान किया कर,
ਦੂਖੁ ਦਰਦੁ ਇਸੁ ਤਨ ਤੇ ਜਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जिसके फलस्वरूप इस तन से दुःख-दर्द दूर हो जाते हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਭਵਜਲਿ ਡੂਬਤ ਸਤਿਗੁਰੁ ਕਾਢੈ ॥ सतगुरु भवसागर में डूब रहे जीव को भी बाहर निकाल देते है।
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕਾ ਟੂਟਾ ਗਾਢੈ ॥੨॥ यह जन्म-जन्मांतर से परमात्मा से बिछुड़े व्यक्ति को भी उससे मिला देते है॥ २॥
ਗੁਰ ਕੀ ਸੇਵਾ ਕਰਹੁ ਦਿਨੁ ਰਾਤਿ ॥ दिन-रात गुरु की सेवा करो,
ਸੂਖ ਸਹਜ ਮਨਿ ਆਵੈ ਸਾਂਤਿ ॥੩॥ इससे सहज सुख एवं मन को बड़ी शांति प्राप्त होती है॥ ३॥
ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਰੇਣੁ ਵਡਭਾਗੀ ਪਾਵੈ ॥ केवल भाग्यशाली व्यक्ति को ही सच्चे गुरु की शिक्षाओं का पालन करने का अवसर मिलता है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਕਉ ਸਦ ਬਲਿ ਜਾਵੈ ॥੪॥੧੬॥੨੨॥ हे नानक ! मैं तो गुरु पर सदैव बलिहारी जाता हूँ ॥ ४॥ १६॥ २२ ॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग सूही, पंचम गुरु: ५ ॥
ਗੁਰ ਅਪੁਨੇ ਊਪਰਿ ਬਲਿ ਜਾਈਐ ॥ अपने गुरु पर बलिहारी जाना चाहिए और
ਆਠ ਪਹਰ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਸੁ ਗਾਈਐ ॥੧॥ आठ प्रहर हरि का यश गाना चाहिए ॥१॥
ਸਿਮਰਉ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਅਪਨਾ ਸੁਆਮੀ ॥ मैं तो अपने स्वामी प्रभु का ही सिमरन करता रहता हूँ,
ਸਗਲ ਘਟਾ ਕਾ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जो सबके मन की जानने वाला बड़ा अन्तर्यामी है॥ १॥ रहाउ॥
ਚਰਣ ਕਮਲ ਸਿਉ ਲਾਗੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥ जब उसकी सुन्दर चरण-कमलों से प्रीति लग जाती है।
ਸਾਚੀ ਪੂਰਨ ਨਿਰਮਲ ਰੀਤਿ ॥੨॥ तब उसकी जीवनशैली धार्मिक, सफल और पवित्र हो जाती है, ||2||॥ २॥
ਸੰਤ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਵਸੈ ਮਨ ਮਾਹੀ ॥ यदि संतों की कृपा से प्रभु मन में बस जाए तो
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਕਿਲਵਿਖ ਜਾਹੀ ॥੩॥ जन्म-जन्मांतर के पाप दूर हो जाते हैं।॥ ३॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭ ਦੀਨ ਦਇਆਲਾ ॥ हे दीनदयालु प्रभु ! कृपा करो,
ਨਾਨਕੁ ਮਾਗੈ ਸੰਤ ਰਵਾਲਾ ॥੪॥੧੭॥੨੩॥ दास नानक तो आपके संतों की चरण-धूलि ही चाहते है॥ ४॥ १७ ॥ २३॥


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