Guru Granth Sahib Translation Project

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ਚਿਤਿ ਨ ਆਇਓ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਤਾ ਖੜਿ ਰਸਾਤਲਿ ਦੀਤ ॥੭॥ लेकिन यदि उसके हृदय में ईश्वर प्रतिष्ठापित नहीं होता तो उसे जीवन में इतना कष्ट होता है मानो उसे घसीटकर रसातल1 में भेज दिया गया हो। ७॥
ਕਾਇਆ ਰੋਗੁ ਨ ਛਿਦ੍ਰੁ ਕਿਛੁ ਨਾ ਕਿਛੁ ਕਾੜਾ ਸੋਗੁ ॥ यदि काया भी पूर्णतः नीरोग है और कोई रोग नहीं, यदि उसको कोई शोक-संताप नहीं,
ਮਿਰਤੁ ਨ ਆਵੀ ਚਿਤਿ ਤਿਸੁ ਅਹਿਨਿਸਿ ਭੋਗੈ ਭੋਗੁ ॥ वह हर समय सांसारिक सुखों का इतना आनंद ले रहा हो कि मृत्यु का विचार भी उसके मन में न आए।
ਸਭ ਕਿਛੁ ਕੀਤੋਨੁ ਆਪਣਾ ਜੀਇ ਨ ਸੰਕ ਧਰਿਆ ॥ यदि उसने अपनी भुजाओं के बल से सबको अपने अधीन कर लिया है और उसके मन में कोई भय भी न हो,
ਚਿਤਿ ਨ ਆਇਓ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਜਮਕੰਕਰ ਵਸਿ ਪਰਿਆ ॥੮॥ यदि वह परमात्मा को स्मरण नहीं करता तो वह यमदूत के वश में आ जाता है॥८॥
ਕਿਰਪਾ ਕਰੇ ਜਿਸੁ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਹੋਵੈ ਸਾਧੂ ਸੰਗੁ ॥ जिस पर भगवान् अपनी कृपा करते हैं, उसे साधु-संतों की संगति प्राप्त होती है।
ਜਿਉ ਜਿਉ ਓਹੁ ਵਧਾਈਐ ਤਿਉ ਤਿਉ ਹਰਿ ਸਿਉ ਰੰਗੁ ॥ जितना अधिक प्रभु सत्संग में मन लगता है, उतना ही अधिक उस प्रभु के साथ प्रेम प्रगाढ़ हो जाता है।
ਦੁਹਾ ਸਿਰਿਆ ਕਾ ਖਸਮੁ ਆਪਿ ਅਵਰੁ ਨ ਦੂਜਾ ਥਾਉ ॥ परमात्मा ही लोक-परलोक का स्वामी है, उसके बिना प्राणियों के सुख का और कोई आधार नहीं।विशेष— पाताल सात माने गए हैं । पहला अतल, दूसरा वितल, तीसरा सुतल, चौथा तलातल, पाँचवाँ महातल, छठा रसातल और सातवाँ पाताल
ਸਤਿਗੁਰ ਤੁਠੈ ਪਾਇਆ ਨਾਨਕ ਸਚਾ ਨਾਉ ॥੯॥੧॥੨੬॥ परन्तु उस परमेश्वर के पवित्र नाम की प्राप्ति सतगुरु की प्रसन्नता से ही होती है। हे नानक ! यदि सतगुरु प्रसन्न हो जाए तो मनुष्य को सत्य नाम की उपलब्धि हो जाती है॥९॥१॥२६॥
ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੫ ॥ श्रीरागु महला ५ घरु ५ ॥
ਜਾਨਉ ਨਹੀ ਭਾਵੈ ਕਵਨ ਬਾਤਾ ॥ मैं नहीं जानता कि प्रभु को कौन-सी बातें अच्छी लगती हैं।
ਮਨ ਖੋਜਿ ਮਾਰਗੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे मेरे मन ! प्रभु को प्रसन्न करने का मार्ग खोज ॥१॥ रहाउ ॥
ਧਿਆਨੀ ਧਿਆਨੁ ਲਾਵਹਿ ॥ ध्यानी मनुष्य समाधि लगाकर भगवान् में ध्यान लगाता है।
ਗਿਆਨੀ ਗਿਆਨੁ ਕਮਾਵਹਿ ॥ ज्ञानी ज्ञान-मार्ग द्वारा प्रभु को समझने का प्रयास करता है।
ਪ੍ਰਭੁ ਕਿਨ ਹੀ ਜਾਤਾ ॥੧॥ परन्तु कोई दुर्लभ पुरुष ही भगवान् को जानता है ॥१॥
ਭਗਉਤੀ ਰਹਤ ਜੁਗਤਾ ॥ वैष्णव जन अपनी धार्मिक क्रियाओं में लीन रहते हैं।
ਜੋਗੀ ਕਹਤ ਮੁਕਤਾ ॥ योगी अष्टांग-भाव से मुक्ति की कल्पना करते हैं।
ਤਪਸੀ ਤਪਹਿ ਰਾਤਾ ॥੨॥ तपस्वी लोग तपस्या में ही कल्याण मानते हैं। ॥२॥
ਮੋਨੀ ਮੋਨਿਧਾਰੀ ॥ मौनी साधु मौन धारण करने में ही ईश्वर की प्राप्ति संभव मानते हैं।
ਸਨਿਆਸੀ ਬ੍ਰਹਮਚਾਰੀ ॥ सन्यासी ब्रह्मचारी बन गया है।सन्यासी ब्रह्मचारी ॥
ਉਦਾਸੀ ਉਦਾਸਿ ਰਾਤਾ ॥੩॥ उदासी वैराग्य में मग्न हुआ है ॥३॥
ਭਗਤਿ ਨਵੈ ਪਰਕਾਰਾ ॥ कोई कहता है कि वह नौ प्रकार की भक्ति करता है।
ਪੰਡਿਤੁ ਵੇਦੁ ਪੁਕਾਰਾ ॥ पण्डित वेदों को सस्वर उच्चारण करते हैं।
ਗਿਰਸਤੀ ਗਿਰਸਤਿ ਧਰਮਾਤਾ ॥੪॥ गृहस्थ-जन धर्मशास्त्रानुसार यज्ञ-दानादि धर्मो के पालन में ही कल्याण समझते हैं ॥४॥
ਇਕ ਸਬਦੀ ਬਹੁ ਰੂਪਿ ਅਵਧੂਤਾ ॥ कोई साधु ऐसे हैं जो केवल एक शब्द औलख (अवर्णनीय-ईश्वर) का उच्चारण करते हैं, कई लोग हैं जो कई वेशभूषा पहनते हैं और कई नग्न त्यागी हैं,
ਕਾਪੜੀ ਕਉਤੇ ਜਾਗੂਤਾ ॥ कुछ ऐसे हैं जो कुछ विशिष्ट पोशाक पहनते हैं, जबकि अन्य कुछ विशेष भाव-भंगिमाएं निभाते हैं, और कुछ विशेष पूजा करने के लिए पूरी रात जागते हैं।
ਇਕਿ ਤੀਰਥਿ ਨਾਤਾ ॥੫॥ कुछ लोग तीर्थ-यात्रा में स्नान द्वारा भी प्रभु-प्राप्ति की संभावना स्वीकारते हैं ॥५॥
ਨਿਰਹਾਰ ਵਰਤੀ ਆਪਰਸਾ ॥ निराहार रहने वाले व्रत को ही ईश्वर मिलन का साधन मानते हैं, ऊँची जाति के लोग निम्न जाति से छुआ-छुत का परहेज करते हैं।
ਇਕਿ ਲੂਕਿ ਨ ਦੇਵਹਿ ਦਰਸਾ ॥ कुछ लोग गुफाओं में छिपे रहते हैं और किसी को अपने दर्शन नहीं देते।
ਇਕਿ ਮਨ ਹੀ ਗਿਆਤਾ ॥੬॥ कुछ लोग अपने चित्त के भीतर स्वयं को ही बुद्धिमान समझते हैं। ॥६॥
ਘਾਟਿ ਨ ਕਿਨ ਹੀ ਕਹਾਇਆ ॥ कोई भी अपने आपको कम नहीं कहता।
ਸਭ ਕਹਤੇ ਹੈ ਪਾਇਆ ॥ प्रत्येक मनुष्य यहीं कहता है कि उसने भगवान् को पा लिया है।
ਜਿਸੁ ਮੇਲੇ ਸੋ ਭਗਤਾ ॥੭॥ लेकिन भगवान् का भक्त वही होता है जिसे भगवान् अपने साथ मिला लेता है ॥ ७॥
ਸਗਲ ਉਕਤਿ ਉਪਾਵਾ ॥ ਤਿਆਗੀ ਸਰਨਿ ਪਾਵਾ ॥ मैं समस्त युक्तियों एवं उपाय
ਨਾਨਕੁ ਗੁਰ ਚਰਣਿ ਪਰਾਤਾ ॥੮॥੨॥੨੭॥ त्याग कर भगवान् की शरण में आ गया हूँ।
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ हे नानक ! भगवान् की प्राप्ति हेतु गुरु के चरणों में पड़ना सर्वोत्तम युक्ति है ॥८॥२॥२७॥
ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੧ ਘਰੁ ੩ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਜੋਗੀ ਅੰਦਰਿ ਜੋਗੀਆ ॥ श्रीरागु महला १ घरु ३ ॥
ਤੂੰ ਭੋਗੀ ਅੰਦਰਿ ਭੋਗੀਆ ॥ हे ईश्वर ! तू सृष्टि में अनेक रूपों में विचरण कर रहा है। योगियों में तुम योगीराज हो
ਤੇਰਾ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਇਆ ਸੁਰਗਿ ਮਛਿ ਪਇਆਲਿ ਜੀਉ ॥੧॥ एवं भोगियो में तुम महाभोगी हो।
ਹਉ ਵਾਰੀ ਹਉ ਵਾਰਣੈ ਕੁਰਬਾਣੁ ਤੇਰੇ ਨਾਵ ਨੋ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ स्वर्ग लोक के देवता, मृत्युलोक के वासी तथा पाताल के नागादि जीवों ने तुम्हारा भेद नहीं पाया ॥१॥
ਤੁਧੁ ਸੰਸਾਰੁ ਉਪਾਇਆ ॥ मैं तुझ पर बलिहार हूँ, मैं तेरे पावन नाम पर न्यौछावर हूँ ॥१॥ रहाउ॥
ਸਿਰੇ ਸਿਰਿ ਧੰਧੇ ਲਾਇਆ ॥ तुम सृष्टि कर्ता हो, तुम ने ही संसार की रचना करके
ਵੇਖਹਿ ਕੀਤਾ ਆਪਣਾ ਕਰਿ ਕੁਦਰਤਿ ਪਾਸਾ ਢਾਲਿ ਜੀਉ ॥੨॥ उनकी किस्मत निर्धारित करके सांसारिक कार्यों में लगाया है।
ਪਰਗਟਿ ਪਾਹਾਰੈ ਜਾਪਦਾ ॥ अपनी रचना का तुम स्वयं ध्यान रखते हो और अपनी माया-शक्ति से इस संसार की चौपड़ पर निरन्तर पासा फेंक रहे हो ॥२॥
ਸਭੁ ਨਾਵੈ ਨੋ ਪਰਤਾਪਦਾ ॥ समूचे विश्व में तुम प्रत्यक्ष दिखते हो।
ਸਤਿਗੁਰ ਬਾਝੁ ਨ ਪਾਇਓ ਸਭ ਮੋਹੀ ਮਾਇਆ ਜਾਲਿ ਜੀਉ ॥੩॥ प्रत्येक प्राणी तेरे नाम की कामना करता है।
ਸਤਿਗੁਰ ਕਉ ਬਲਿ ਜਾਈਐ ॥ किन्तु सतगुरु के बिना तुम्हें कोई भी प्राप्त नहीं कर सकता। समस्त प्राणी मोह-माया के जाल में लुभायमान होकर फंसे हुए हैं। ॥३॥
ਜਿਤੁ ਮਿਲਿਐ ਪਰਮ ਗਤਿ ਪਾਈਐ ॥ मैं सतगुरु पर बलिहार जाता हूँ,
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